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बर्तोल्त ब्रेख़्त.. नागार्जुन की कविता का संपूर्ण अध्ययन

Nagarjun Ki Bartolt Brekht Kavita Ka Sampoorn Adhyyan Final Draft

प्रस्तुत पाठ को पढ़ने के पश्चात् आप-

1. कवि नागार्जुन की कविता से परिचित होंगे।

2. नागार्जुन की कविता के विस्तृत क्षेत्र से परिचित होंगे।

3. विदेशी लेखक (बर्तोल्त ब्रेख़्त) के विषय में जान सकेंगे।

4. कवि के लिए देश-काल की सीमा नहीं होती। वह किसी को भी अपना प्रेरणा स्त्रोत बना सकता है। यह समझ जाएँगे।

5. अन्य जानकारियाँ प्राप्त कर सकेंगे।

प्रस्तावना

प्रस्तुत कविता ‘बर्तोल्त ब्रेख़्त’ जर्मन लेखक ‘बर्तोल्त ब्रेख़्त’ के विषय में है। बर्तोल्त एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने अमानुषिक आतंक को चुनौती दी। उनकी कविताएँ तन्मय करने के स्थान पर झकझोरने का, जगाने का प्रयास करती हैं। वे निरंतर सहते रहने वाले व्यक्तियों को विद्रोह की तरफ उन्मुख करते हैं। वे शक करते हैं, सवाल करते हैं। उनकी दृष्टि निष्ठुर आलोचक की है जो अपने प्रिय समाजवाद को भी नहीं छोड़ती। यहाँ वे नागार्जुन के समानधर्मा बन जाते हैं जिन्होंने जयप्रकाश नारायण आंदोलन की कमियों की तरफ भी उँगली उठाई। कहना न होगा कि इसी कारण ब्रेख़्त नागार्जुन के काव्य विषय बने। ब्रेख़्त ‘सत्य ठोस है’ (ट्रूथ इज़ कांक्रीट) को अपना आदर्श वाक्य मानते थे। वे चीज़ों को उनके सही नाम से पुकारना जानते थे। बिना लाग लपेट के सत्य कहना नागार्जुन को भी प्रिय था। एक खास ठंडापन उनके स्वर की पहचान है। न वे भावुक होते हैं न करते हैं। यहाँ नागार्जुन उनसे भिन्न हैं जो क्रोध को सार्थक मानते हैं परन्तु हँसते-हँसते बड़ी बात कह जाना नागार्जुन का भी स्वभाव है। बर्तोल्त की आँखें जिसे कवि ‘घुच्ची’ कहता है के विषय में यह कविता लिखी गई है। कवि को उनकी आँखों में सब कुछ दिखता है। स्वकेन्द्रित रचनाकारों से वे कहते हैं- आ तेरे को सैर कराऊँ। घर में घुसकर क्या लिखता है।

‘बर्तोल्त’ पर, लू शुन पर कविता लिखकर वे साबित करते हैं कि घर में घुसकर नहीं लिखते। अपनी एक कविता में वे अपनी आँखों को भी ‘घुच्ची’ कहते हैं। तात्पर्य यह कि घुच्ची आँखें उन्हें बड़ी प्रिय हैं। बर्तोल्त पर कविता लिखते हुए नागार्जुन उनकी उन्हीं विशेषताओं को रेखांकित करते हैं जिनका बीज उनमें भी हैं। एक प्रकार से यह नागार्जुन के प्रिय कवि बनने की कसौटी है।

विशेष

यूजेन बर्थोल्ड फ्रेडरिक ब्रेख्त (1898-1956), जिन्हें पेशेवर रूप से बर्तोल्त ब्रेख्त के नाम से जाना जाता है, एक सफल कवि, नाटककार और थिएटर निर्देशक थे। ब्रेख्त ने यथार्थवाद के रंगमंच का विरोध किया और मंच पर भ्रम पैदा करने से परहेज किया। यही ब्रेख्तियन सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। ब्रेख्त मार्क्सवाद से प्रभावित थे और उन्होंने उन सदियों पुरानी रूढ़ियों को खारिज कर दिया, जो कला को उसके आसपास की वास्तविकताओं से अलग बनाती थीं। ये काफी निर्भीक थे।   

कविता

बर्तोल्त ब्रेख़्त..

क्या नहीं है,

इन घुच्ची आँखों में।

इन शातिर निगाहों में

मुझे तो बहुत कुछ,

प्रतिफलित लग रहा है।

नफ़रत की धधकती भट्ठियाँ……..

प्यार का अनूठा रसायन……..

अपूर्व विक्षोभ …….

जिज्ञासा की बाल-सुलभ ताज़गी…….

ठगे जाने की प्रायोगिक सिधाई।

प्रवंचितों के प्रति अथाह ममता…..

क्या नहीं झलक रही

इन घुच्ची आँखों से ?

हाय, हमें कोई बतलाए तो !

क्या नहीं है.

इन घुच्ची आँखों में।

कठिन शब्दार्थ

1. घुच्ची – छोटी, धँसी हुई

2. शातिर – ख़तरनाक, रहस्यमयी, चालाक

3. निगाह – नज़र, दृष्टि

4. प्रतिफलित – प्रतिबिंबित, जिसे प्रतिफल या बदला मिला हो।

5. नफ़रत – घृणा

6. अनूठा – अनुपम

7. अपूर्व – जैसा पहले न हुआ हो

8. विक्षोभ – चित्त की खलबली, दुख व क्रोध का मिला-जुला भाव

9. जिज्ञासा – जानने की इच्छा

10. ताज़गी – हरियाली, प्रफुल्लता, उल्लास

11. वंचित – अकिंचन, किसी चीज़ से दूर किया गया

12. झलक – दिखना, प्रतिबिंबित होना।

13. मज़लूम – दुखी, दीन, असहाय

14. युक्त – जुड़ा

15. अकिंचन – गरीब, दीन

16. साज़िश – षड्यन्त्र, जाल, फरेब

17. समाहित – लीन होना, मिल जाना

18. सौष्ठव – संरचना, गठन

19. समानधर्मी- समान कर्म करने वाला

20. गुमराह – पथभ्रष्ट

21. निष्ठुर – कठोर, क्रूर

22. सत्ताधारी- शासक वर्ग, सत्ता में रहने वाला

संदर्भ  

इस कविता के रचयिता हमारे प्रिय कवि ‘नागार्जुन’ हैं। प्रस्तुत कविता में वे जर्मन कवि एवं लेखक ‘बर्तोल्त ब्रेख़्त’  Bertolt Brecht की आँखों के माध्यम से उनके व्यक्तित्व का विश्लेषण करते हैं।

प्रसंग

प्रस्तुत कविता ‘बर्तोल्त ब्रेख़्त’ में कवि नागार्जुन जर्मन रचनाकार बर्तोल्त की आँखों के विषय में लिख रहे हैं। आँखें वस्तुत ! किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होती हैं। चेहरा और उसमें भी आँखें कभी झूठ नहीं बोलती हैं। नागार्जुन ब्रेख़्त की आँखों में प्यार और घृणा सब कुछ देख लेते हैं।

‘एक चीनी काष्ठ सिंह को देखकर’ शीर्षक कविता में ब्रेख़्त ने अपनी कविता को बुरों के लिए डरावनी भलों के लिए लुभावनी माना-

तुम्हारे पंजे देखकर, डरते हैं बुरे आदमी

तुम्हारा सौष्ठव देखकर, खुश होते हैं अच्छे आदमी

यही मैं चाहूँगा सुनना अपनी कविता के बारे में।

व्याख्या

प्रस्तुत कविता में कवि नागार्जुन ब्रेख़्त के प्रति एक आत्मीय भाव से कविता लिखते हैं। उन्हें उनकी आँखों में जिन्हें वे प्यार और सहज आत्मीय बोध से शातिर कहते हैं और वे निगाहें शातिर हैं भी क्योंकि वे संसार के सारे भले-बुरे को समझती हैं। इन्हें कोई बहका नहीं सकता, गुमराह नहीं कर सकता। इनसे कोई छल नहीं कर सकता। कवि कहता है कि मुझे तो इन निगाहों में बहुत कुछ पकता-फलता लगता है। जैसे कोई विचार-विमर्श चल रहा हो।

यहाँ सिर्फ प्यार हो ऐसा नहीं है यहाँ दुष्टों के प्रति नफ़रत की भट्ठियाँ धधकती हैं और उन भट्ठियों में प्यार का अनूठा रसायन भी पकता है। पीड़ा का भाव भी है तथा बालकों के समान जिज्ञासा तथा ताज़गी भी हैं। इन आँखों में असहाय शोषित तथा वंचितों के प्रति अथाह ममता भी है अर्थात् दुष्टों के प्रति नफ़रत तथा असहायों के प्रति ममता।

कवि कहते हैं कि इन आँखों में उसे सब कुछ दिखाई दे रहा है। कवि प्रतिप्रश्न करता है कि भला क्या नहीं दिखाई दे रहा है, इन घुच्ची आँखों में। कभी तुलसी बाबा ने लिखा था ‘जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’। यहाँ बाबा नागार्जुन ‘ब्रेख़्त’ को देश काल की सीमा भूल कर इतना प्यार करते हैं कि उन्हें उनकी आँखों में सब कुछ दिखाई पड़ता है।

विशेष – भावपक्ष

कवि नागार्जुन सत्ता और राजनीति में दखल रखते थे। जितनी राजनीतिक घटनाओं तथा व्यक्तियों पर कविताएँ नागार्जुन ने लिखीं कम लोगों ने लिखी होंगी।

प्रारंभ से ही नागार्जुन शोषितों और वंचितों के पक्ष में खड़े रहते थे। सत्ताधारी कितना ही बड़ा क्यों न हो नागार्जुन कमज़ोर के साथ ही रहे। राजनीतिक उठा-पटक, छल-कपट, काला बाज़ारी को वे अच्छी तरह समझते थे। ब्रेख़्त के यहाँ सबसे अधिक जिस क्रिया का प्रयोग किया गया वह है ‘बदलना’। ‘सब कुछ बदलता है’ उनकी प्रसिद्ध कविता है। नागार्जुन भी इस दुनिया को बदलना चाहते हैं। इस तरह ब्रेख़्त हुए नागार्जुन के समानधर्मी। अपने समानधर्मा पर नागार्जुन कविता लिखते हैं क्योंकि उनकी आँखों में उन्हें वे सभी भाव दिखते हैं जो दुनिया बदलने के लिए ज़रूरी हैं, जो शोषितों वंचितों के लिए आवश्यक है। ब्रेख़्त ने तटस्थ मनः स्थिति को तोड़ने के लिए ही अलगाव प्रभाव नामक सिद्धांत बनाया। जिसका प्रयोग रंगकर्म में किया जाता है। ब्रेख़्त उसे कविता में भी ले आए। ब्रेख़्त कहने का साहस रखते हैं- ‘जब जुल्मों की बारिश होने लगती है तो कोई / नहीं बोलता ! बन्द करो।”

नागार्जुन इसी साहस के लिए उनकी आँखों में प्यार और सत्ताधारियों के लिए नफ़रत देखते हैं। वास्तव में नागार्जुन ब्रेख़्त में आत्मछवि देखते हैं। ब्रेख़्त में साहस था कि हिटलर और स्टालिन दोनों की आलोचना कर सके। नागार्जुन कांग्रेस और जयप्रकाश नारायण आंदोलन दोनों की निंदा कर सकते थे। उसकी असलियत देखने के बाद। नागार्जुन लिखते हैं –

“सत्य को लकवा मार गया है’

 सोचना बन्द, समझना बन्द।”

ब्रेख़्त लिखते हैं-

“उबरने के रास्ते की बात अन्धे करते हैं।

मुझे तो दिखाई देता है।”

ब्रेख़्त स्वयं कहते हैं –

“तभी बनती है हमारे मन में तस्वीर उसकी

जब वह हम जैसा होता है और

जब वह हमसे अलग होता है।”

नागार्जुन के मन में अपने जैसा होने के कारण ही ब्रेख़्त की तस्वीर बनती है।

3.5.8 कलापक्ष

रस – वीर

छन्द – मुक्त

अलंकार- अनुप्रास

भाषाशैली- भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली।  चुटीली भाषा का प्रयोग। शातिर, निग़ाह, ताज़गी, नफ़रत (अरबी फारसी)

शब्द शक्ति- अभिधा शब्द के साथ लक्षणा की छींट पड़ती हैं।

बोध प्रश्न – 1

1. प्रस्तुत कविता बर्तोल्त ब्रेख़्त के रचयिता कौन है?

उत्तर – प्रस्तुत कविता ‘बर्तोल्त ब्रेख़्त’ के रचयिता प्रसिद्ध कवि नागार्जुन हैं।

2. नागार्जुन किस नाम से मैथिली कविता लिखते थे?

उत्तर – नागार्जुन ‘यात्री’ उपनाम से मैथिली भाषा में कविता लिखते थे।

3. कवि नागार्जुन का पूरा नाम क्या था?

उत्तर – कवि नागार्जुन का पूरा नाम ‘वैद्यनाथ मिश्र’ था।

4. बर्तोल्त ब्रेख़्त कौन थे?

उत्तर – बर्तोल्त ब्रेख़्त जर्मन भाषा के प्रसिद्ध कवि एवं नाटककार थे। वे राजनीतिक कविताएँ भी बिना डरे लिखते थे।

5. उनके किस अंग पर कवि ने कविता लिखी है?

उत्तर – कवि ने प्रस्तुत कविता ब्रेख़्त की आँखों पर लिखी है।

6. उनकी आँखों में कवि को क्या दिखाई पड़ता है?

उत्तर – ब्रेख़्त की आँखों में कवि को सत्ता के प्रति नफ़रत एवं वंचितों के प्रति प्रेम व ममता दिखाई देती है।

7. ब्रेख्त की आँखों में किनके प्रति नफ़रत है?

उत्तर – ब्रेख़्त की आँखों में शोषितों के प्रति नफ़रत दिखाई देती है।

8. ब्रेख़्त की आँखों में किनके प्रति प्यार है?

उत्तर – ब्रेख़्त की आँखों में वंचितों के प्रति प्यार दिखाई देता है।

9. कवि नागार्जुन ब्रेख़्त पर कविता क्यों लिख रहा है?

उत्तर – कवि नागार्जुन स्वयं भी ब्रेख़्त की तरह ही शोषकों से नफ़रत तथा शोषितों से प्यार करने वाले थे। यहीं कारण है कि वे ब्रेख़्त को पंसद करते हैं तथा उनकी आँखों पर, व्यक्तित्व पर कविता लिखते हैं। केवल प्रेयसी की आँखों पर कविता लिखने वाले इस युग में, प्रिय कवि की आँखों पर वह भी आँखों की खूबसूरती नहीं भाव पर, कविता नागार्जुन जैसा कवि ही लिख सकता है।

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