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‘भगवान के डाकिए’ कविता का संपूर्ण अध्ययन, रामधारी सिंह ‘दिनकर’

BHagwaan Ke Dakie By Ramdhari Singh Dinkar The Best Explanation

भगवान के डाकिए

पक्षी और बादल,

ये भगवान के डाकिए हैं,

जो एक महादेश से

दूसरे महादेश को जाते हैं।

हम तो समझ नहीं पाते हैं

मगर उनकी लाई चिट्टियाँ

पेड़, पौधे, पानी और पहाड़

बाँचते हैं।

हम तो केवल यह आँकते हैं

कि एक देश की धरती

दूसरे देश को सुगंध भेजती है।

और वह सौरभ हवा में तैरते हुए

पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।

और एक देश का भाप

दूसरे देश में पानी

बनकर गिरता है।

दिनकर जी का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम रवि सिंह तथा माता का नाम मनरूप देवी था। दिनकर की प्राथमिक शिक्षा गाँव से पूरी हुई। वे हाई स्कूल की परीक्षा मोकामाघाट से उत्तीर्ण हुए। उसके बाद वे पटना चले आए और पटना कॉलेज से इतिहास विषय में बी.ए. ऑनर्स की परीक्षा पास की। उन्होंने कई तरह की सरकारी और प्राइवेट नौकरी की। वे कुलपति के पद पर भी रहे और सांसद भी।

दिनकर में राजनीतिक चेतना प्रखर थी जिसकी अभिव्यक्ति उनकी कविताओं में खूब हुई है। उनपर गाँधीवाद का गहरा प्रभाव पड़ा, हालाँकि वे गाँधीवाद के प्रति असहमति दर्ज करनेवाली कविताएँ भी एक दौर में लिख चुके थे। वे जवाहरलाल नेहरू के निकट थे, मगर ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ की कविताओं में उनके शासनकाल की आलोचना भी दिखाई पड़ती है। ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए ‘साहित्य अकादमी’ और ‘उर्वशी’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से वे सम्मानित हुए।।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु 24 अप्रैल, 1974 में हुई थी।

काव्य कृतियाँ

रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवन्ती (1939), द्वंद्वगीत (1940), कुरूक्षेत्र (1946), सामधेनी (1947), बापू (1947), इतिहास के आँसू (1951), रश्मिरथी (1952), दिल्ली (1954), नीम के पत्ते (1954), नील कुसुम (1955), चक्रवाल (1956), सीपी और शंख (1957), उर्वशी (1961), परशुराम की प्रतीक्षा (1963), हारे को हरिनाम (1970), रश्मिलोक (1974)

गद्य कृतियाँ

मिट्टी की ओर 1946 अर्धनारीश्वर 1952, रेती के फूल 1954, संस्कृति के चार अध्याय 1956, पन्त – प्रसाद और मैथिलीशरण 1958, वेणुवन 1958 धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969 लोकदेव नेहरू 1965, शुद्ध कविता की खोज 1966, साहित्य- मुखी 1968, राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी 1968, हे राम! 1968, संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970, भारतीय एकता 1971, मेरी यात्राएँ 1971, दिनकर की डायरी 1973, चेतना की शिला 1973।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की कविता ‘भगवान के डाकिए’ इनकी प्रसिद्ध और अंतिम काव्य संग्रह ‘हारे को हरिनाम’ (1970)  में संगृहीत है। इस कविता का मुख्य संदेश यह है कि प्रकृति में सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। हवा, पानी, पक्षी और बादल धरती के विभिन्न हिस्सों को आपस में जोड़ते हैं। एक देश की प्रकृति का प्रभाव (Impact) दूसरे देश तक पहुँचता है, भले ही मनुष्य इसे सीधे न समझ पाए। इस कविता में पारिस्थितिक संतुलन (Ecological Balance), प्रकृति की संवाद प्रणाली (Nature’s Communication System), और वैश्विक एकता (Global Unity) का सुंदर चित्रण किया गया है।

‘भगवान के डाकिए’ कविता में प्रकृति के अखंड रूप को स्थायी और सत्य माना गया है। देश की बनाई गई सीमाएँ मनुष्य-निर्मित हैं। इन सबके पीछे राजनीति की भूमिका होती है। ये सरहदें बनती-बिगड़ती रही हैं। मगर प्रकृति की सत्ता हमेशा कायम रही है। पक्षी और बादल के माध्यम से यह बात कही गई है कि भगवान या प्रकृति की इस सत्ता को पहचानो! देश की सीमाएँ प्रकृति की अखंडता को नहीं बाँध सकती हैं। प्रकृति हर तरह से स्वतंत्र है।

भगवान के डाकिए – सप्रसंग व्याख्या सहित

01

पक्षी और बादल,

ये भगवान के डाकिए हैं,

जो एक महादेश से

दूसरे महादेश को जाते हैं।

हम तो समझ नहीं पाते हैं

मगर उनकी लाई चिट्टियाँ

पेड़, पौधे, पानी और पहाड़

बाँचते हैं।

शब्दार्थ –

पक्षी और बादल (Birds and Clouds) – ये दोनों प्राकृतिक दूत (Messengers) हैं, जो एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश पहुँचाते हैं।

भगवान के डाकिए (God’s Postmen) – यहाँ कवि पक्षियों और बादलों की तुलना डाकिए (Postman) से करता है, जो संदेश (Message) पहुँचाने का कार्य करते हैं।

महादेश (Continent) – पृथ्वी के बड़े भू-भाग, जैसे एशिया, यूरोप, अमेरिका आदि।

हम तो समझ नहीं पाते (We do not understand) – मनुष्य इन संदेशों को सीधे नहीं समझ सकता क्योंकि यह प्रकृति के संकेतों (Signs of Nature) के रूप में होते हैं।

लाई चिट्टियाँ (Brought Letters) – पक्षी और बादल जो संदेश लाते हैं, वे प्रकृति की भाषा में होते हैं।

पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं (Trees, Plants, Water, and Mountains Read) – ये प्राकृतिक तत्त्व इन संदेशों को पहचानते, पढ़ते और महसूस करते हैं।

संदर्भ और प्रसंग

यह कविता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की प्रसिद्ध और अंतिम काव्य संग्रह ‘हारे को हरिनाम’ (1970) से उद्धृत है। इस कविता में कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने देश की राजनीतिक सीमाओं से परे जाकर प्रकृति की अखंडता को समझने की एक कोशिश की है।

व्याख्या

‘भगवान के डाकिए’ शीर्षक कविता में रामधारी सिंह दिनकर ने वैश्विक संस्कृति को देश की सीमाओं से परे बताया है। देश की सीमाएँ राजनीतिक होती हैं। मगर यह धरती इन सीमाओं के आधार पर नहीं बनी है। धरती का अपना प्राकृतिक स्वरूप अखंड है। इसके प्रमाण प्रकृति में दिखाई पड़ते हैं।

दिनकर कहते हैं कि पक्षी और बादल भगवान के डाकिए की तरह हैं। ये दोनों मानो भगवान के संदेश लेकर सर्वत्र विचरण करते हैं। वे एक महादेश से दूसरे महादेश में चले जाते हैं। अपने आने-जाने के क्रम में न जाने वे कितनी सारी चीजें स्थान्तरित करते रहते हैं। इन पर किसी देश का कानून लागू नहीं हो पाता! ये दोनों जिस तरह के संदेश लेकर आते हैं, उन्हें हम मनुष्य समझ नहीं पाते। इनकी लायी हुई चिट्ठियों को हम पढ़ नहीं पाते। मगर ऐसा नहीं है कि प्रकृति में कोई ऐसा न हो जो इनकी चिट्ठियों को न पढ़ सके ! कवि का ख्याल है कि पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ इन चिट्ठियों को पढ़ लेते हैं। उनमें इतनी क्षमता है कि वे पक्षी और बादल के द्वारा लाई गई भगवान की चिट्ठियों को पढ़ सकें!

02

हम तो केवल यह आँकते हैं

कि एक देश की धरती

दूसरे देश को सुगंध भेजती है।

और वह सौरभ हवा में तैरते हुए

पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।

और एक देश का भाप

दूसरे देश में पानी

बनकर गिरता है।

शब्दार्थ

हम केवल आँकते हैं (We only measure) – मनुष्य केवल बाहरी घटनाओं (External Events) को देखता है, उनका गहरा अर्थ नहीं समझ पाता।

सुगंध भेजना (Sending Fragrance) – यह प्रतीकात्मक (Symbolic) है। एक देश के फूलों की खुशबू (Fragrance of Flowers) हवा में फैलकर दूसरे देश तक पहुँचती है।

सौरभ (Fragrance or Aroma) – यह प्राकृतिक सुगंध (Natural Perfume) का प्रतीक है, जो हवा में बहती है।

हवा में तैरते हुए (Floating in the Air) – यहाँ सुगंध और भावनाओं (Emotions) के बहाव की बात हो रही है।

पक्षियों की पाँखों पर तिरता है (Floats on the Wings of Birds) – पक्षी प्रवास (Bird Migration) के दौरान एक स्थान से दूसरे स्थान तक बीज (Seeds), पराग (Pollen), और जलवायु संदेश (Climate Messages) ले जाते हैं।

एक देश का भाप (One Country’s Vapor) – समुद्रों और जल स्रोतों से भाप (Water Vapor) उठकर बादल बनता है।

दूसरे देश में पानी बनकर गिरता है (Falls as Rain in Another Country) – यह जलचक्र (Water Cycle) को दर्शाता है, जिसमें एक स्थान से जल भाप बनता है और दूसरे स्थान पर वर्षा (Rain) के रूप में गिरता है।

 

संदर्भ और प्रसंग

यह कविता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की प्रसिद्ध और अंतिम काव्य संग्रह ‘हारे को हरिनाम’ (1970) से उद्धृत है। इस कविता में कवि रामधारी सिंह दिनकर जी ने देश की राजनीतिक सीमाओं से परे जाकर प्रकृति की अखंडता को समझने की एक कोशिश की है।

व्याख्या –

इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हम प्रकृति के अविभक्त रूप को कभी नहीं देखते वरन् उसी रूप को देखते हैं जिस रूप को राजनीति के कारण बना दिया गया है। हम तो केवल यह समझते हैं कि हमारी राजनीतिक सीमाएँ ही सत्य हैं और प्रकृति का अखंड स्वरूप इसके आगे झूठा बना दिया जाता है। हम मनुष्य केवल इतना समझ पाते हैं कि एक देश की धरती से जो सुगंध उठती है, वह दूसरे देश को पहुँच जाती है। यह सुगंध हवा में तैरते हुए पक्षियों के पंखों पर सवार हो जाती है। इसी तरह एक देश से उठी हुई भाप पानी बनकर दूसरे देश में बरस जाती है। प्रकृति के प्रक्रिया को भले ही वैज्ञानिक भाषा में जलचक्र की संज्ञा दे दी जाए पर साहित्यिक भाषा में इसे प्रकृति का संगठन ही कहेंगे।   

प्रकृति सबसे बड़ा सत्य है।

देश की सरहदें मनुष्य की बनाई हुई हैं, जिनमें बँधकर रहने की बेबसी मनुष्य की है प्रकृति की नहीं।

प्रकृति के संदेशों को समझकर ही इस दुनिया को खुशहाल बनाया जा सकता है।

यह छंदमुक्त कविता है, हालाँकि कुछ पंक्तियों में तुकबंदी और मात्राओं की समानता भी मौजूद है। फिर भी पूरी कविता में छंद का अनुशासन नहीं है।

देश की राजनीतिक सीमाओं से बड़ा सच प्रकृति का अखंड स्वरूप है।

प्रश्न – पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए क्यों कहा गया है?

उत्तर – क्योंकि वे एक महादेश से दूसरे महादेश तक प्राकृतिक संदेश पहुँचाते हैं।

प्रश्न – कविता में लाई चिट्टियाँ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर – ‘लाई चिट्टियाँ से तात्पर्य उन प्राकृतिक संकेतों से है जो पक्षी और बादल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते हैं, जिन्हें पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ समझते हैं।

प्रश्न – मनुष्य इन प्राकृतिक संदेशों को क्यों नहीं समझ पाता?

उत्तर – क्योंकि मनुष्य केवल बाहरी घटनाओं को आँकता (मापता) है, लेकिन प्रकृति के गहरे संवाद और संकेतों को पढ़ने में असमर्थ रहता है।

 

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