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Bholaram Ka Jeev By Harishankar Parsai

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लेखक परिचय

हरिशंकर परसाई हिन्दी के पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबार कर समाज के सामयिक सामाजिक समस्याओं से जोड़ा। उनकी व्यंग्य रचनाएँ हमारे मन में गुदगुदी ही पैदा नहीं करतीं, बल्कि हमें उन सामाजिक वास्तविकताओं के सामने खड़ा करती हैं, जिनसे किसी भी व्यक्ति का अलग रह पाना असंभव है। सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों की खिल्ली उड़ाते हुए, उन्होंने सदैव विवेक और विज्ञान सम्मत दृष्टि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा शैली में खास किस्म का अपनापन है, जिससे पाठक लेखक के साथ एकात्मकता का अनुभव करता है।

इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं  – हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव, रानी नागफनी की कहानी, भूत के पाँव पीछे, तट की खोज, वैष्णव की फिसलन, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर।

पाठ का उद्देश्य

भ्रष्ट सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के चरित्र को समझ सकेंगे;

नौकरशाही में बढ़ते भ्रष्टाचार के शिकंजे में आम आदमी की अवस्था कितनी असहाय और दयनीय हो जाती है, को रेखांकित कर सकेंगे;

परसाई जी की रचनाओं का उद्देश्य और सामाजिक परिवर्तन में इनकी भूमिका का विवेचन कर सकेंगे;

भ्रष्ट नौकरशाही की विसंगतियाँ, उसकी विरूपता और अमानवीय प्रवृत्तियों पर प्रकाश डाल सकेंगे;

परसाई जी द्वारा प्रयुक्त व्यंग्यात्मक शैली की विशेषताओं और इसकी सामाजिक परिवर्तन में विशिष्ट भूमिका के मूल्याकंन कर सकेंगे;

व्यंग्य के सटीक प्रयोग द्वारा भ्रष्ट नौकरशाही की विरूपता को उजागर करने में कहानी की सफलता-असफलता पर आलोचनात्मक टिप्पणी कर सकेंगे।

व्यंग्य शैली ही क्यों?

स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज में जीवन मूल्यों के विघटन के लिए जिम्मेदार स्थितियाँ, और भक्ति तथा संस्थाएँ परसाई के व्यंग्य लेखन का विषय बने है। उन्होंने अपने लिए व्यंग्य की विधा इसलिए चुनी, क्योंकि वे जानते हैं कि समसामयिक जीवन की व्याख्या, उसका विश्लेषण और उसकी भर्त्सना एवं विडंबना के लिए व्यंग्य से बढ़कर दूसरा कोई कारगर हथियार नही हो सकता। ‘भोलाराम का जीव एक ऐसी ही व्यंग्यात्मक कहानी है जिसमें सामाजिक राजनीतिक स्थितियो में निहित विसंगतियों का उद्घाटन हुआ है। उन्हें व्यंग्य का विषय ही नहीं बनाया गया है बल्कि उन स्थितियों और विसंगतियों को झेल रहे आदमी की नियति को भी उद्घाटित किया गया है।

व्यंग्य शैली की और रचनाएँ

‘एक लड़की पाँच दीवाने’, ‘जैसे उनके दिन फिरे, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर, ‘सदाचार का तावीज’ ‘दो नाक वाले लोग’, ‘काग भगौड़ा’ कहानी संग्रह हरिशंकर परसाई के यथार्थवादी कहानी-लेखन का परिचय देते हैं।

पाठ परिचय

लेखक ने अपने एक परिचित रिटायर्ड कर्मचारी की दुःख पूर्ण यथार्थ घटना से प्रेरित होकर इस कहानी की रचना की । कहानी का कथानक इतना है कि- ‘भोलाराम के जीव की तलाश स्वर्ग में हो रही है, मगर उसका जीव यमदूत को चकमा देकर अपनी पेंशन की फाइल में घुस गया । जीव की तलाश करते हुए नारद आते हैं और साहब को घूस में अपनी वीणा देकर दबी फाइल निकलवाते हैं। फाइल में चिपके भोलाराम के जीव से स्वर्ग चलने के लिए कहते हैं । मगर भोलाराम का जीव कहता है कि मैं तो अपनी पेंशन की दरख्वास्तों में ही चिपके रहना चाहता हूँ।”

कहानी सौन्दर्य कथानक में न होकर उसके सहारे उभारे गए तीखे रिमार्क और चुटीले व्यंग्य के माध्यम से शासकीय ढाँचे की लाल फीता शाही, घूसखोरी और क्रूरता को उजागर करने का प्रयत्न किया है।

भारत की समाज व्यवस्था और प्रशासन तन्त्र का चित्रण इस कहानी में कुशलता और मार्मिकता के साथ किया गया। उसमें मार्मिकता में सनी मानवीय संवेदना भी है और तीखे व्यंग्य से तिलमिला देने वाली गम्भीर चोटें भी।

पात्र परिचय

पौराणिक पात्र

धर्मराज,

चित्रगुप्त

यमदूत और

नारद

पृथ्वीलोक के पात्र

भोलाराम

उसकी पत्नी

दो लड़के और एक लड़की

चपरासी

बड़े बाबू

पाठ का सार

‘भोलाराम का जीव’ कहानी में पौराणिक कथा को आधार बनाकर कहानी में व्यंग्य समाहित है। धर्मराज, चित्रगुप्त और यमराज तीनों ही बड़े चिंतित होकर सोच रहे हैं कि पाँच दिन पहले जीव त्यागने वाले भोलाराम के जीव को लेकर यमदूत इस लोक में क्यों नहीं पहुँचा। उन्हें चिंतित देखकर वहाँ पहुँचे नारद ने उनकी समस्या का हल ढूँढने हेतु पृथ्वीतल पर जाने की योजना बनाई। नारद पृथ्वी पर पहुँच गए। भोलाराम के जीव की तलाश में नारद अनेक स्थानों पर भटकने के बाद एक दफ्तर पहुँचते हैं और वहाँ के कर्मचारियों की रिश्वत लेकर ही काम करने की पद्धति को देखकर हैरान ही नहीं, परेशान भी हो जाते हैं। अपनी पेंशन पाने के लिए भोलाराम ने रिश्वत नहीं दी थी। जब तक दरख्वास्तों पर वजन नहीं रखा जाता कोई काम नहीं होता। दफ्तर के बड़े बाबू नारद से साफ-साफ कहते हैं, ‘आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं; उस पर वजन रखिए। रिश्वत के रूप में नारद अपनी वीणा दे देते हैं। वीणा के रूप में वजन रखते ही पेंशन की फाइलों में से उन्हें भोलाराम के जीव की आवाज सुनाई देती है। नारद भोलाराम के जीव से कहते हैं, ‘मै तुम्हें लेने आया हूँ। चलो, स्वर्ग में तुम्हारा इन्तजार हो रहा है पर भोलाराम के जीव की विवशता है कि वह पेंशन की दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता। इसी कथा – सूत्र के व्यंग्यात्मक उपयोग द्वारा लेखक ने भ्रष्टाचार के अमानवीय रूप पर मार्मिक चोट की है। एक आम इंसान को जिंदगी में शासन तंत्र में फैले भ्रष्टाचार के कारण कितनी ही कठिनाई से गुजरना पड़ता है तथा इन सबसे लड़ने के बावजूद वह सफलता हासिल नहीं कर सकता है।

पाठ संक्षिप्त में

“ऐसा कभी नहीं हुआ था। इस वाक्य से कहानी शुरू होती है। कैसा नहीं हुआ था? ‘धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों के कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान अलाट करते आ रहे थे।’ तो इस बार क्या हुआ? इस बार हुआ यह कि ‘भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा।’ सही है ऐसा तो कभी नहीं हुआ था। धर्मराज ने पूछा- ‘और वह दूत कहाँ है?’ उत्तर मिला- ‘महाराज वह भी लापता है।’ फिर दूत अचानक बदहवास प्रकट हुआ । चित्रगुप्त चिल्ला उठे – अरे तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है? ‘यमदूत हाथ जोड़कर बोला- ‘दया निधान, मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया।… इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला।’

इसी समय नारद जी वहाँ पहुँचे और उन्होंने समस्या पर विचार किया। उन्होंने पाया कि ‘मामला बड़ा दिलचस्प है।’ और कहा ‘अच्छा मुझे उसका नाम पता तो बताओ। मैं पृथ्वी पर जाता हूँ।’ पृथ्वी पर जाकर उन्होंने पता लगाया कि उसको गरीबी की बीमारी थी। पाँच साल हो गए थे पेंशन पर बैठे। पेंशन अभी तक बँधी न थी। हर दस-पन्द्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे पर वहाँ से या तो जवाब आता ही नहीं था और आता तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पाँच सालों में सब गहने बेचकर खा लिए गए थे। चिन्ता में घुलते – घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया। नारद को इस दुःख गाथा में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वे तो भोलाराम का जीव ढूँढ़ रहे थे। लेकिन साधु का दिल पसीज गया सो वे पेंशन के दफ्तर जा पहुँचे। वहाँ उन्हें पता लगा कि भोलाराम ने दरख्वास्त तो दी थी लेकिन उस पर वज़न नहीं रखा था। नारद क्या रिश्वत देते? ‘वज़न के नाम पर उनके पास उनकी वीणा ही थी।

साहब ने कहा- ‘यह सुन्दर वीणा है। इसका वज़न भी दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती है। यह मैं उसे दे दूँगा ।’ नारद जी की वीणा ले लेने के बाद साहब ने भोलाराम की फ़ाइल मँगवाई। नारद से उन्होंने नाम पूछा। नारद ने कहा, ‘भोलाराम!’ अपना नाम सुनकर सौ डेढ़ सौ दरख्वास्तों के बीच से आवाज़ आई – ‘कौन पुकार रहा है मुझे? पोस्टमैन है? क्या पेंशन का ऑर्डर आ गया?’ नारद ने कहा- ‘चलो, स्वर्ग में तुम्हारा इन्तजार हो रहा है।’ भोलाराम ने जवाब दिया- ‘मुझे नहीं जाना। मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में भटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता।’

पाठ से जुड़े प्रश्न

1. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए :-

1. स्वर्ग या नरक में निवास स्थान ‘अलॉट’ करने वाले कौन हैं?

उत्तर: धर्मराज (यमराज)

2. भोलाराम के जीव ने कितने दिनों पहले देह त्यागा था?

उत्तर: पाँच दिन पहले

3. भोलाराम का जीव किसे चकमा दे गया?

उत्तरः यमदूत को

4. यमदूत ने सारा ब्रह्मांड किसकी खोज में छान मारा?

उत्तर: भोलाराम के जीव की

5. भोलाराम किस शहर का निवासी था?

उत्तर: जबलपुर का

6. भोलाराम को पाँच साल से क्या नहीं मिला था?

उत्तर: उसकी पेंशन नहीं मिली 

7. नारद जी भोलाराम की पत्नी से विदा लेकर कहाँ पहुँचे?

उत्तर: सरकारी दफ़्तर पहुँचे 

8. भोलाराम ने दरख्वास्त पर क्या नहीं रखा था?

उत्तर: वज़न (रिश्वत) नहीं रखा था।

9. बड़े साहब के कमरे के बाहर कौन ऊँघ रहा था?

उत्तरः चपरासी 

10. बड़े साहब की लड़की क्या सीखती है?

उत्तर: गाना-बजाना 

11. नारद क्या छिनते देख घबराए?

उत्तर: अपनी वीणा 

12. फ़ाइल में से किसकी आवाज़ आई?

उत्तर: भोलाराम की आवाज़  

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए :-

1. चित्रगुप्त ने धर्मराज से क्या कहा?

उत्तर: धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे। उनके सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार – बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे। गलती पकड़ में ही नहीं आ रही थी। आखिर उन्होंने रिजिस्टर खीझकर बंद किया और बोले कि महराज रिकार्ड सब, ठीक है। भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा। चित्रगुप्त ने धर्मराज को यह भी बताया कि भोलाराम के जीव को लानेवाला यमदूत भी लापता है।

2. यमदूत ने हाथ जोड़कर चित्रगुप्त से क्या विनती की?

उत्तर: यमदूत हाथ जोड़कर चित्रगुप्त से कहा कि दयानिधान मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया? आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया। पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम की देह को त्यागा, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरंभ की। नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु – तरंग पर सवार हुआ, त्यों ही वह मेरी चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया। इन पाँच दिन में मैंने सारा ब्रह्मांड छान मारा, पर उनका कहीं पता नहीं चला।

3. नरक में निवास स्थान की समस्या कैसे हल हुई?

उत्तरः नरक में पिछले सालों में बड़े गुणी कारीगर आ गए थे। कई इमारतों के ठेकेदार भी आए थे, जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनाईं थीं। बड़े-बड़े इंजीनियर भी आ गए थे, जिन्होंने ठेकेदारों से मिलकर पंचवार्षीय योजनाओं का पैसा खाया था। ओवरसीयर थे, जिन्होंने उन मज़दूरों की हाज़री भर कर पैसा हड़पा था, जो कभी काम पर गए ही नहीं थे। ऐसे कई लोग मिलकर बहुत जल्दी नरक में कई इमारतें तान दी। इस प्रकार नरक में निवास स्थान की समस्या हल हुई।

4. भोलाराम का परिचय दीजिए।

उत्तरः भोलारम जबलपुर शहर के घमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक टूटे-फूटे मकान में परिवार समेत रहता था। उसकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी के साथ। उम्र लगभग साठ साल। यह एक सरकारी नौकर था और पाँच साल पहले रिटायर हो गया था। मकान का किराया उसने एक साल से नहीं दिया, इसलिए मकान मालिक उसे निकालना चाहता था। पाँच साल से पेंशन नहीं मिली थी। इतने में भोलाराम ने संसार ही छोड़ दिया।

5. भोलाराम की पत्नी ने नारद से भोलाराम के संबंध में क्या कहा?

उत्तर: भोलाराम की पत्नी ने नारद से भोलाराम के संबंध में कहा कि उन्हें सिर्फ गरीबी की बीमारी थी। पाँच साल हो गए, पेंशन पर बैठे। पर पेंशन अभी तक नहीं मिली। हर दस-पंद्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से या तो जवाब आता ही नहीं था और आता, तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पाँच सालों में सब गहने बेचकर हम लोग खा गए, फिर बरतन बिके। कुछ नहीं बचा। फ़ाके होने लगे थे। चिंता में घुलते – घुलते और भूखे मरते- मरते उन्होंने दम तोड़ दिया।

6. भोलाराम की पत्नी ने नारद से क्या विनती की?

उत्तर: भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी, पर यमलोक नहीं पहुँचा। इस मामले से यमदूत, चित्रगुप्त और धर्मराज सब चिंतित थे। नारद, चित्रगुप्त से खबर पाकर उसे ढूँढ़ने निकले। भोलाराम के घर में उनकी पत्नी थी और नारद ने उनसे कुछ पूछ-ताछ की। जब नारद भोलाराम के बारे में सुनकर चलने लगते हैं तब उसकी पत्नी इस प्रकार विनती करती है कि – ‘महाराज, आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरुष हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रुकी हुई पेंशन मिल जाए। इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाए’।

7. बड़े साहब ने नारद से दफ़्तरों के रीति-रिवाज़ के बारे में क्या कहा?

उत्तर: बड़े साहब ने नारद से दफ़्तरों के रीति-रिवाज़ के बारे में कहा कि आप तो वैरागी हैं। दफ़्तरों के रीति-रिवाज़ नहीं जानते। असल में भोलाराम ने गलती की। यह भी एक मंदिर है। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है। सरकारी पैसों का मामला है। पेंशन का केस बीसों दफ़्तरों में जाता है। देर लग ही जाती है। एक ही बात को बीस बार बीस जगह लिखना पड़ता है, तब पक्की होती है। जितनी पेंशन मिलती है, उतनी ही स्टेशनरी लग जाती है। जल्दी भी हो सकती है, मगर वज़न चाहिए। आपकी यह सुंदर वीणा है, इसका भी वज़न भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है।

8. नारद आखिर भोलाराम का पता कैसे लगाते हैं?

उत्तर: भोलाराम की पत्नी की विनती पर नारद, सरकारी दफ़्तर में जाते हैं और वहाँ बड़े साहब से मिलते हैं। बड़े साहब भोलाराम की फ़ाइल जल्दी निपटाने के लिए दरख्वास्त पर वज़न रखने को कहते हैं। नारद अपनी वीणा ही रख देते हैं। बड़े साहब चपरासी से फ़ाइल लाने के लिए कहते हैं। चपरासी भोलाराम की सौ – डेढ़ सौ दरख्वास्तों से भरी फ़ाइल लाकर देता है। साहब फ़ाइल पर नाम देखकर निश्चित करने के लिए नारद से नाम पूछते हैं। नारद समझते हैं कि साहब कुछ ऊँचा सुनते हैं। इसलिए ज़ोर से – ‘भोलाराम’ बोलते हैं तब सहसा फ़ाइल में से भोलाराम जीव की आवाज़ आती है। इस प्रकार नारद आखिर भोलाराम का पता लगा देते हैं।

III. निम्नलिखित वाक्य किसने किससे कहे?

1. ‘महाराज, रिकार्ड सब ठीक है’।

उत्तर: इस वाक्य को चित्रगुप्त ने धर्मराज से कहा।

2. ‘भोलाराम का जीव कहाँ है?

उत्तर: इस प्रश्न को चित्रगुप्त ने यमदूत से पूछा।

3. ‘महाराज, मेरी सावधानी में बिलकुल कसर नहीं थी’।

उत्तर: इस वाक्य को यमदूत ने धर्मराज से कहा।

4. ‘क्यों महाराज, कैसे चिंतित बैठे हैं’?

उत्तर: इस प्रश्न को नारद ने धर्मराज से पूछा।

5. ‘इनकम होती तो टैक्स होता। भुखमरा था’।

उत्तर: इस वाक्य को चित्रगुप्त ने नारद से कहा।

6. ‘मुझे भिक्षा नहीं चाहिए, मुझे भोलाराम के बारे में कुछ पूछ-ताछ करनी है’।

उत्तर: इस वाक्य को नारद ने भोलाराम की बेटी से कहा।

7. ‘गरीबी की बीमारी थी’।

उत्तर: इस वाक्य को भोलाराम की पत्नी ने नारद से कहा।

8. ‘ आप साधु हैं; आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती’।

उत्तर: इस वाक्य को बाबू ने नारद से कहा।

IV. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए :

1. ‘पर ऐसा कभी नहीं हुआ था’।

संदर्भ: इस वाक्य को हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘भोलाराम का जीव’ पाठ से लिया गया है। इस वाक्य को लेखक ने पाठकों से कहा।

विवरण: भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ यमलोक के लिए रवाना भी हुआ पर वहाँ तक नहीं पहुँचा। धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों के कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे। इसी संदर्भ में लेखक ने उपरोक्त बातें कहीं।

2. ‘ आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया’।

संदर्भ: इस वाक्य को हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘भोलाराम का जीव’ पाठ से लिया गया है। इस वाक्य को यमदूत ने चित्रगुप्त से कहा।

विवरण: भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ उस लोक के लिए रवाना भी हुआ पर वहाँ नहीं पहुँचा। इस बात से धर्मराज और चित्रगुप्त दोनों चिंतित थे। उस वक्त यमदूत बदहवास लौटता है तो चित्रगुप्त चिल्ला उठते हैं। तब यमदूत हाथ जोड़कर कहने लगे कि दयानिधान, मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया। आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया।

3. इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रहमाण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला’।

संदर्भ: इस वाक्य को हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘भोलाराम का जीव’ पाठ से लिया गया है। इस बात को यमदूत ने चित्रगुप्त से कहा।

भोलाराम के जीव को ढूंढ़ने में जो कष्ट हुआ, उसे बताते हुए यमदूत ने इस प्रकार कहा कि पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम की देह को त्यागा, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरंभ की। नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ, त्यों ही वह मेरी चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया। उसी संदर्भ पर यमदूत ने चित्रगुप्त से उपरोक्त बातें कहीं।

4. चिंता में घुलते – घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया’।

संदर्भः इस वाक्य को हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘भोलाराम का जीव’ पाठ से लिया गया है। इस बात को भोलाराम की पत्नी ने नारद से कहा।

विवरण: यमलोक में घटित विचित्र घटना के बारे में सुनकर नारद भोलाराम के जीव को ढूँढते हुए उनकी पत्नी से पूछ-ताछ करने लगते हैं। तब वह कहती है कि पाँच साल हो गए, पेंशन पर बैठे। पर पेंशन अभी तक नहीं मिली। हर दस-पंद्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से या तो जवाब आता ही नहीं था और आता, तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पाँच सालों में सब गहने बेचकर हम लोग खा गये। फिर बरतन बिके। अब कुछ नहीं बचा। इसी संदर्भ में उपरोक्त बातें कहीं गयी हैं।

5. ‘साधु-सन्तों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते’।

संदर्भः इस वाक्य को ‘हरिशंकर परसाई’ द्वारा लिखित ‘भोलाराम का जीव’ पाठ से लिया गया है। इस वाक्य को बड़े साहब ने नारद से कहा।

विवरण: बड़े साहब नारद से दफ़्तरों के रीति-रिवाज़ के बारे में कहने लगे कि यह भी एक मंदिर है। यहाँ भी दान पुण्य करना है। पेंशन का केस बीस दफ़तरों में जाता है। जितनी पेंशन मिलती है, उतनी ही स्टेशनरी लग जाती है। मगर वज़न चाहिए। जैसे आपकी यह सुन्दर वीणा है, इसका भी वज़न भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना – बजाना सीखती है। यह मैं उसे दे दूँगा। इसी संदर्भ में बड़े साहब ने उपरोक्त बातें कहीं।

6. ‘पेंशन का आर्डर आ गया’?

संदर्भ: इस वाक्य को हरिशंकर परसाई द्वारा लिखित ‘भोलाराम का जीव’ पाठ से लिया गया है। इस प्रश्न को भोलाराम के जीव ने नारद से पूछा।

विवरण: दफ़्तर में आकर जब नारद ने बड़े साहब से भोलाराम की फ़ाइल के बारे में वज़न के रूप में वीणा रखनी पड़ी। इसके बाद बड़े साहब ने चपरासी से फ़ाइल लाने के लिए कहा। चपरासी सौ – डेढ़ सौ दरख्वास्तों से भरी फ़ाइल ले आता है। बड़े साहब ने फ़ाइल निकाल कर नारद से नाम पूछा। नारद ने समझा कि साहब कुछ ऊँचा सुनते हैं। इस लिए नारद ने ज़ोर से ‘भोलाराम’ कहा तो सहसा फ़ाइल में से उपरोक्त आवाज़ आई।

कहानी

भोलाराम का जीव

ऐसा कभी नहीं हुआ था।

धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग या नर्क में निवास स्थान ‘अलॉट’ करते आ रहे थे- पर ऐसा कभी नहीं हुआ था।

सामने बैठे चित्रगुप्त बार – बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर देख रहे थे। गलती पकड़ में नहीं आ रही थी। आखिर उन्होंने खीझकर रजिस्टर इतने जोर से बंद किया कि मक्खी चपेट में आ गयी। उसे निकालते हुए वह बोले – ‘महाराज, रिकार्ड सब ठीक है। भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर हाँ अभी यहाँ तक नहीं पहुँचा।’

धर्मराज ने पूछा— ‘और वह दूत कहाँ है?’

‘महाराज, वह भी लापता है।’

इसी समय द्वार खुले और एक यमदूत बहुत बदहवास – सा वहाँ आया। उसका मौलिक कुरूप चेहरा परिश्रम, परेशानी और भय के कारण और भी विकृत हो गया था। उसे देखते ही चित्रगुप्त चिल्ला उठे – ‘अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है?’

यमदूत हाथ जोड़कर बोला- ‘दयानिधान! मैं कैसे बतलाऊँ कि क्या हो गया। आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर इस बार भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया। पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम की देह त्यागी, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरम्भ की। नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ, त्यों ही वह मेरे चंगुल से छूटकर न जाने कहाँ गायब हो गया। इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्मांड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला।’

धर्मराज क्रोध से बोले – ‘मूर्ख जीवों को लाते – लाते बूढ़ा हो गया, फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया। ‘

दूत ने सिर झुकाकर कहा – ‘महाराज, मेरी सावधानी में बिल्कुल कसर नहीं थी। मेरे इन अभ्यस्त हाथों से अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके, पर इस बार तो कोई इन्द्रजाल ही हो गया।’

चित्रगुप्त ने कहा- ‘महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का व्यापार बहुत चला है। लोग दोस्तों को फल भेजते हैं और वे रास्ते में ही रेलवेवाले उड़ा लेते हैं। हौजरी के पार्सलों के मौजे रेलवे अफसर पहनते हैं। मालगाड़ी के डिब्बे-के-डिब्बे रास्ते में कट जाते हैं। एक बात और हो रही है। राजनैतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर कहीं बन्द कर देते हैं। कहीं भोलाराम के जीव को भी तो किसी विरोधी ने, मरने के बाद भी खराबी करने के लिए नहीं उड़ा दिया?’

धर्मराज ने व्यंग्य से चित्रगुप्त की ओर देखते हुए कहा – ‘तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गयी। भला भोलाराम जैसे नगण्य, दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना?’

इसी समय कहीं से घूमते-फिरते नारद मुनि वहाँ आ गये। धर्मराज को गुमसुम बैठे देख बोले- ‘क्यों धर्मराज, कैसे चिन्तित बैठे हैं? क्या नर्क में निवास स्थान की समस्या अभी हल नहीं हुई?”

धर्मराज ने कहा- ‘वह समस्या तो कभी की हल हो गयी, मुनिवर ! नर्क में पिछले सालों में बड़े गुणी कारीगर आ गए हैं। कई ईमारतों के ठेकेदार हैं, जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनायीं।’

बड़े-बड़े इंजीनियर भी आ गए हैं, जिन्होंने ठेकेदारों से मिलकर भारत की पंचवर्षीय योजनाओ का पैसा खाया। ओवरसीयर हैं, जिन्होंने उन मजदूरों की हाजिरी भरकर पैसा हड़पा, जो कभी काम पर गए ही नहीं। इन्होंने बहुत जल्दी नर्क में कई इमारतें तान दी हैं। वह समस्या तो हल हो गई। भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई। उसके जीव को यह दूत यहाँ ला रहा था कि जीव इसे रास्ते में चकमा देकर भाग गया। इसने सारे ब्रह्मांड छान डाला, पर वह कहीं नहीं मिला। अगर ऐसा होने लगा, तो पाप-पुण्य का भेद ही मिट जाएगा।’

नारद ने पूछा- ‘उस पर इन्कम टैक्स तो बकाया नहीं था? हो सकता है, उन लोगों ने रोक लिया हो।’

चित्रगुप्त ने कहा – ‘इन्कम होता तो टैक्स होता!… भुखमरा था ! ‘ नारद बोले- ‘मामला बड़ा दिलचस्प है। अच्छा, मुझे उसका नाम- पता तो बतलाओ। मैं पृथ्वी पर जाता हूँ।’

चित्रगुप्त ने रजिस्टर देखकर बताया- ‘ भोलाराम नाम था उसका, जबलपुर शहर के घमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे के टूटे- फूटे मकान में वह परिवार समेत रहता था। उसकी एक स्त्री थी, दो लड़के और एक लड़की। उम्र लगभग पैंसठ साल सरकरी नौकर था; पाँच साल पहले रिटायर हो गया था। मकान का किराया उसने एक साल से नहीं दिया था, इसलिए मकान मालिक उसे निकालना चाहता था। इतने में भोलाराम ने संसार ही छोड़ दिया। आज पाँचवाँ दिन है। बहुत सम्भव है कि अगर मकान मालिक, वास्तविक मकान मालिक है, तो उसने भोलाराम के मरते ही, उसके परिवार को निकाल दिया होगा। इसलिए आपको परिवार की तलाश में काफी घूमना पड़ेगा।’

माँ-बेटी के सम्मिलित क्रंदन से ही नारद भोलाराम का मकान

पहचान गए।

द्वार पर जाकर उन्होंने आवाज लगाई – ‘नारायण….नारायण !’ लड़की ने देखकर कहा – ‘ आगे जाओ, महाराज।’

नारद ने कहा-

कहा – ‘मुझे भिक्षा नहीं चाहिए। मुझे भोलाराम के बारे में कुछ पूछताछ करनी है। अपनी माँ को जरा बाहर भेजो, बेटी।’

भोलाराम की पत्नी बाहर आई। नारद ने कहा- ‘माता, भोलाराम को क्या बीमारी थी?”

क्या बताऊँ? गरीबी की बीमारी था। पाँच साल हो गए, पेंशन पर बैठे, पर पेंशन अभी तक नहीं मिली। हर दस-पंद्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से या तो जवाब ही नहीं आता था और आता तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले पर विचार हो रहा है। इन पाँच सालों से मेरे सब गहने बेचकर हमलोग खा गए। फिर बर्तन बिके। अब कुछ नहीं बचा था। फाके होने लगे थे। चिन्ता में घुलते – घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया।’

नारद ने कहा- ‘क्या करोगी, माँ?.. उनकी इतनी ही उम्र थी।’

ऐसा तो मत कहो, महाराज। उम्र तो बहुत थी। पचास-साठ रुपया महीना पेंशन मिलती, तो कुछ और काम नहीं करके गुजारा हो जाता। पर क्या करें? पाँच साल नौकरी से बैठे हो गए और अभी तक एक कौड़ी नहीं मिली।’

दुख की कथा सुनने की फुरसत नारद को थी नहीं। वह अपने मुद्दे पर आए – ‘ माँ, यह तो बताओ कि यहाँ किसी से क्या उनका विशेष प्रेम था, जिसमें उनका जी लगा हो?’

पत्नी बोली-’ लगाव तो महाराज, बाल-बच्चों से ही होता है।’ नारद हँसकर बोले—’हाँ, तुम्हारा यह सोचना ठीक ही है। यही भ्रम अच्छी गृहस्थी का आधार है। अच्छा माता, मैं चला।’

व्यंग्य समझने की असमर्थता ने नारद को सती के क्रोध की ज्वाला से बचा लिया।

स्त्री ने कहा – ‘महाराज, आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरुष हैं। कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उनकी रुकी हुई पेंशन मिल जाए। इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाएगा।’

नारद को दया आ गई थी। वह कहने लगे – ‘ साधुओं की बात कौन मानता है? मेरा यहाँ कोई मठ तो है नहीं। फिर भी मैं सरकारी दफ्तर जाऊँगा और कोशिश करूँगा।’

वहाँ से चलकर नारद सरकारी दफ्तर में पहुँचे। वहाँ पहले ही कमरे में बैठे बाबू से उन्होंने भोलाराम के केस के बारे में बातें कीं। उस बाबू ने उन्हें ध्यानपूर्वक देखा और बोला- ‘भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वजन नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होंगी।’

नारद ने कहा- ‘भाई, ये बहुत से पेपरवेट तो रखे हैं इन्हें क्यों नहीं रख दिया?’

बाबू हँसा – ‘आप साधु हैं, आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती। दरख्वास्तें पेपरवेट से नहीं दबतीं… खैर, आप उस कमरे में बैठे बाबू से मिलिए।’

नारद उस बाबू के पास गए। उसने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास, चौथे ने पाँचवें के पास। जब नारद पच्चीस-तीस बाबुओं और अफसरों के पास घूम आए, तब एक चपरासी ने कहा – ‘महाराज, आप क्यों इस झंझट में पड़ गए ! आप अगर साल भर भी यहाँ चक्कर लगाते रहें, तो भी काम नहीं होगा। आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए। उन्हें खुश कर लिया तो अभी काम हो जाएगा।’

नारद बड़े साहब के कमरे में पहुँचे। बाहर चपरासी ऊँघ रहा था, इसलिए उन्हें किसी ने छेड़ा नहीं। उन्हें एकदम बिना विजटिंग कार्ड के आया देख, साहब बड़े नाराज हुए। बोले-’ इसे कोई मंदिर – वंदिर समझ लिया क्या?’ धड़धड़ाते चले आए ! चिट क्यों नहीं भेजी?’

नारद ने कहा- ‘कैसे भेजता? चपरासी तो सो रहा है!’

‘काम है?’ – साहब ने रौब से पूछा।

नारद ने भोलाराम का पेंशन केस बतलाया।

साहब बोले- ‘आप हैं वैरागी; दफ्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते I असल में भोलाराम ने गलती की। भई, यह भी एक मंदिर है। यहाँ भी दान- पुण्य करना पड़ता है; भेंट चढ़ानी पड़ती है। आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं; इन पर वजन रखिए।’

नारद ने सोचा कि फिर वजन की समस्या खड़ी हो गई। साहब बोले- ‘भई, सरकारी पैसे का मामला है। पेशन का केस बीसों दफ्तरों में जाता है। देर लग ही जाती है। हजारों बार एक ही बात को हजार जगह लिखना पड़ता है, तब पक्की होती है। जितनी पेंशन मिलती है उतनी कीमत की स्टेशनरी लग जाती है। हाँ, जल्दी भी हो सकती है, मगर…’ साहब रुके।

नारद ने कहा- ‘ मगर क्या?’

साहब ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा- ‘मगर वजन चाहिए। आप समझे नहीं। जैसे आपकी यह सुन्दर वीणा हैं, इसका भी वजन भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती है। यह मैं उसे दे दूँगा। साधुओं की वीणा तो बड़ी पवित्र होती है। लड़की जल्दी संगीत सीख गई, तो उसकी शादी हो जाएगी।’

नारद अपनी वीणा छिनते देखकर जरा घबराए। पर फिर सँभालकर उन्होंने वीणा टेबल पर रखकर कहा – ‘यह लीजिए। अब जरा जल्दी उसकी पेंशन का ऑर्डर निकाल दीजिए।’

साहब ने प्रसन्नता से उन्हें कुर्सी दी, वीणा को एक कोने में रखा और घंटी बजाई। चपरासी हाजिर हुआ।

साहब ने हुक्म दिया- ‘ बड़े बाबू से भोलाराम के केस की फाइल लाओ!’

थोड़ी देर बाद चपरासी भोलाराम की सौ-डेढ़ सौ दरख्वास्तों से भरी फाइल लेकर आया। उसमें पेंशन के कागजात भी थे। साहब ने फाइल पर का नाम देखा और निश्चित करने के लिए पूछा- ‘क्या नाम बताया, साधुजी, आपने?’

नारद ने समझा कि साहब कुछ ऊँचा सुनता है। इसलिए जोर से बोल – ‘भोलाराम।’

सहसा फाइल में से आवाज आई- ‘कौन पुकार रहा है मुझे? पोस्टमैन है क्या? पेंशन का ऑर्डर आ गया?’

साहब डरकर कुर्सी से लुढ़क गए। नारद भी चौंके। पर दूसरे ही क्षण बात समझ गए। बोले-’भोलाराम ! तुम क्या भोलाराम के जीव हो।’

‘हाँ’ आवाज आई।

नारद ने कहा- ‘मैं नारद हूँ मैं तुम्हें लेने आया हूँ। चलो स्वर्ग में तुम्हारा इन्तजार हो रहा है।’

आवाज आई- ‘मुझे नहीं जाना। मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों में अटका हूँ। यहीं मेरा मन लगा है। मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता!’

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