पाठ का उद्देश्य
पढ़ाई-लिखाई के कुछ नुक़सानों को भी समझ सकेंगे।
चंपा की बोली में परिवार के प्रेम को जानेंगे।
शहरों को परिवार बिखराव का कारण माना गया है।
मासूमियत का मूर्त रूप देख सकेंगे।
कविता लेखन की नई शैली से रू-ब-रू होंगे।
ग्रामीण शब्दों से अवगत होंगे।
अन्य जनकारियों से परिचित होंगे।
त्रिलोचन – कवि परिचय
मूल नामः वासुदेव सिंह
जन्मः सन् 1917 चिरानी पट्टी, ज़िला सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश)
प्रमुख रचनाएँ : धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, शब्द, उस जनपद का कवि हूँ, अरघान, तुम्हें सौंपता हूँ, चैती, अमोला, मेरा घर, जीने की कला (काव्य); देशकाल, रोज़नामचा, काव्य और अर्थबोध, मुक्तिबोध की कविताएँ (गद्य); हिंदी के अनेक कोशों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान
प्रमुख सम्मानः साहित्य अकादमी, शलाका सम्मान, महात्मा गांधी पुरस्कार (उत्तर प्रदेश)
हिंदी साहित्य में त्रिलोचन प्रगतिशील काव्य धारा के प्रमुख कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। रागात्मक संयम और लयात्मक अनुशासन के कवि होने के साथ-साथ ये बहुभाषाविज्ञ शास्त्री भी हैं, इसीलिए इनके नाम के साथ शास्त्री भी जुड़ गया है। लेकिन यह शास्त्रीयता उनकी कविता के लिए बोझ नहीं बनती। त्रिलोचन जीवन में निहित मंद लय के कवि हैं। प्रबल आवेग और त्वरा की अपेक्षा इनके यहाँ काफ़ी कुछ स्थिर है।
इनकी भाषा छायावादी रूमानियत से मुक्त है तथा उसका ठाट ठेठ गाँव की ज़मीन से जुड़ा हुआ है। त्रिलोचन हिंदी में सॉनेट (अंग्रेज़ी छंद) को स्थापित करने वाले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। त्रिलोचन का कवि बोलचाल की भाषा को चुटीला और नाटकीय बनाकर कविताओं को नया आयाम देता है। कविता की प्रस्तुति का अंदाज़ कुछ ऐसा है कि वस्तु और रूप की प्रस्तुति का भेद नहीं रहता। उनका कवि इन दोनों के बीच फाँक की गुंजाइश नहीं छोड़ता।
पाठ परिचय
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती नामक कविता ‘धरती’ संग्रह में संकलित है। यह कविता यह सिद्ध करती है कि पढ़ाई-लिखाई लोगों को अपने घर-परिवार से दूर कर देती है। कविता में ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है, जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के उस पक्ष को भी उजागर करता है जो बहुत खतरनाक है। बड़े-बड़े अपराध करने वाले अधिकतर पढे-लिखे लोग ही होते हैं तो दूसरी ओर पढ़-लिख जाने से आदमी अपना पारिवारिक या पारंपरिक पेशा छोड़कर या आर्थिक मजबूरियों के चलते नौकरी की तलाश में बड़े शहर की ओर पलायन करता है जिससे परिवार टूटते हैं। काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस समस्या के केंद्र के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे’। कलकत्ते पर वज्र गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ को प्रदर्शित करती है।
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
कविता का सार
त्रिलोचन द्वारा रचित ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता लोक-भावना से जुड़ी हुई है। सुंदर नामक ग्वाले की लड़की चंपा ठेठ अनपढ़ है। वह मवेशी चराती है। उसे काले अक्षरों में छिपे स्वरों पर आश्चर्य होता है। वह लेखक के साथ शरारत करते हुए कभी उसकी कलम चुरा लेती है, कभी कागज़ गायब कर देती है। वह लेखक के दिन भर लिखते-पढ़ते रहने को कागज़ गोदने का व्यर्थ काम कहकर शिकायत भी करती है। लेखक उसे समझाता है कि वह भी पढ़ना-लिखना सीख ले। गाँधी बाबा भी यही चाहते हैं। परंतु चंपा पढ़ने-लिखने से साफ मना कर देती है। लेखक उसे समझाता है कि जब उसकी शादी हो जाएगी और उसका पति कलकत्ता चला जाएगा तब वह उसे पत्र कैसे लिखेगी? इस पर चंपा कहती है कि – कलकत्ता पर बजर (वज्र) गिरे को। वह तो अपने बालम को कलकत्ता नहीं जाने देगी। उसे अपने पास ही रखेगी।
पंक्तियाँ – 1
चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती
मैं जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है
खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है
‘उसे बड़ा अचरज होता है :
इन काले चीन्हों से कैसे ये सब स्वर
निकला करते हैं
शब्दार्थ
अच्छर-अक्षर
चीन्हती -पहचानती
अचरज-हैरानी
चीन्हों-अक्षरों, निशानों
प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि त्रिलोचन द्वारा रचित ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ नामक कविता से उद्धृत है। इसमें उन्होंने साक्षरता के महत्त्व से अनजान चंपा नामक अहीर-बाला का चित्रण किया है। वह लेखक को लिखते-पढ़ते देखकर हैरान होती है-
व्याख्या
चंपा नामक ग्वाल-बाला अक्षरों का महत्त्व नहीं जानती। उसके लिए ये अक्षर काले-काले धब्बों के सिवाय कुछ नहीं हैं। जब लेखक कोई पुस्तक पढ़ने लगते हैं तो चंपा उनके पास आ जाती है। वह उनके पास खड़ी होकर सुनने लगती है कि लेखक पुस्तक पढ़कर क्या कह रहा है। उसे इस बात से बहुत हैरानी होती है कि काले-काले अक्षरों में से इतने सारे स्वर कैसे निकलते हैं। वह अक्षरों का महत्त्व समझ नहीं पाती।
विशेष-
कविता अत्यंत सरल तथा सहज है।
ग्रामीण अंचल के वातावरण को साकार करने के लिए आंचलिक शब्दों का प्रयोग अनुकूल बन पड़ा है, जैसे – अच्छर, चीन्हती, अचरज।
चंपा का अक्षरों को देखकर आश्चर्यचकित होना एक सशक्त एवं सजीव प्रयोग है।
‘काले-काले’ तथा ‘खड़ी खड़ी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
पंक्तियाँ – 2
चंपा सुन्दर की लड़की है
सुन्दर ग्वाला है : गायें-भैंसें रखता है
चंपा चौपायों को लेकर
चरवाही करने जाती है
चंपा अच्छी है
चंचल है
नटखट भी है
कभी कभी ऊधम करती है
कभी कभी वह कलम चुरा देती है
जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ
पाता हूँ-अब कागज़ गायब
परेशान फिर हो जाता हूँ
शब्दार्थ
ग्वाला – गाय चराने वाला
चौपाया – पशु, गाय, भैंस आदि
चरवाही करना – चराने का काम करना
चंचल – शरारती
नटखट – शरारती
ऊधम करना – हलचल मचाना
प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि त्रिलोचन द्वारा रचित ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने साक्षरता के महत्त्व से अनजान चंपा नामक ग्वाल-बाला का चित्रण किया है। इस पद्यांश में कवि चंपा की चंचल शरारतों का वर्णन करता हुआ कहते हैं-
व्याख्या
यह चंपा सुंदर नामक ग्वाले की लड़की है। सुंदर पेशे से ग्वाला है। उसके पास गायें और भैंसें हैं। चंपा उन गायों-भैंसों को चराने का काम करती है। वह स्वभाव से अच्छी है, चंचल है, शरारती है। कभी-कभी वह बहुत अधिक शरारत करती है। कभी-कभी तो वह लेखक की कलम चुराकर छिपा देती है। तब लेखक बहुत परेशान हो जाता है। वह जैसे-तैसे उस कलम को ढूँढ़कर लाता है। परंतु तब पता चलता है कि उसके कागज़ गायब हैं। चंपा उन कागज़ों को छिपा लेती है। इस प्रकार चंपा अपनी नटखट शरारतों से लेखक को बहुत परेशान किया करती है।
विशेष-
भाषा सहज, सरल और सरस है।
चंपा की भोली शरारतें उसकी मासूमयित को दर्शाते हैं।
‘कभी-कभी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
‘जैसे-तैसे’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
पंक्तियाँ – 3
चंपा कहती है :
तुम कागद ही गोदा करते हो दिन भर
क्या यह काम बहुत अच्छा है
यह सुनकर मैं हँस देता हूँ
फिर चंपा चुप हो जाती है
उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि
चंपा, तुम भी पढ़ लो
हारे गाढ़े काम सरेगा
गांधी बाबा की इच्छा है-
सब जन पढ़ना-लिखना सीखें
चंपा ने यह कहा कि
मैं तो नहीं पढ़ूँगी
तुम तो कहते थे गांधी बाबा अच्छे हैं
वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे
मैं तो नहीं पढ़ूँगी
शब्दार्थ :
कागद – कागज़
गोदना – लिखना
हारे गाढ़े काम सरेगा – कठिनाई में काम आएगा
प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि त्रिलोचन द्वारा रचित ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने साक्षरता के महत्त्व से अनजान चंपा नामक ग्वाल-बाला का चित्रण किया है। इस पद्यांश में चंपा पढ़ाई-लिखाई के प्रति अरुचि प्रकट करती है।
व्याख्या
चंपा लेखक से शिकायत-भरे स्वर में कहती है-तुम दिन-भर इन कागज़ों पर लिखा-पढ़ी करते रहते हो। क्या लिखा-पढ़ी करना बहुत अच्छा काम है! मैं तो ऐसा नहीं समझती। इस पर लेखक चंपा की अबोधता व नासमझी पर हँस देते हैं। चंपा भी चुप हो जाती है, मानो उसकी बात अपने निशाने पर ठीक-से बैठ गई हो। एक दिन चंपा फिर लेखक के पास आई। लेखक ने उसे कहा कि वह भी पढ़ना-लिखना सीख ले। पढ़ाई-लिखाई उसे कठिनाई के समय बहुत काम आएगा। कवि ने गाँधी बाबा का हवाला देते हुए कहा कि गाँधी बाबा भी चाहते हैं कि सभी जन साक्षर बनें। चंपा सरल स्वाभाविकता से लेखक को उत्तर देती है-मैं तो नहीं पढ़ूँगी। तुम तो कहते थे कि गाँधी बाबा अच्छे मनुष्य हैं। फिर वे पढ़ने-लिखने की बात कैसे करते हैं? अगर करते हैं तो वे अच्छे कैसे हैं। मैं तो पढ़ाई-लिखाई को अच्छा नहीं मानती। इसलिए मैं तो नहीं पढ़ूँगी।
विशेष
कागद, गोदना, गाढ़े काम सरना जैसे प्रयोग ग्रामीण परिवेश के अनुकूल हैं।
संवादों के कारण कविता सजीव बन पड़ी है।
‘कागद गोदना’ के प्रयोग से पढ़ाई-लिखाई के प्रति चंपा की खीझ व्यक्त होती है।
पंक्तियाँ – 4
मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है
ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,
कुछ दिन बालम संग साथ रह चला जाएगा जब कलकत्ता
बड़ी दूर
है वह कलकत्ता
कैसे उसे सँदेसा दोगी
कैसे उसके पत्र पढ़ोगी
चंपा पढ़ लेना अच्छा है!
शब्दार्थ
गौने जाना – ससुराल जाना
बालम – पति
सँदेसा – संदेश
प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि त्रिलोचन द्वारा रचित ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ नामक कविता में से उद्धृत है। इसमें उन्होंने साक्षरता के महत्त्व से अनजान चंपा नामक ग्वाल-बाला का चित्रण किया है। चंपा पढ़ाई-लिखाई नहीं करना चाहती। तब लेखक उसे प्रेमपूर्वक समझाते हैं-
व्याख्या
लेखक चंपा से कहते हैं -चंपा ! पढ़-लिख लेना अच्छी बात है। जब तुम्हारी शादी होगी। तुम ससुराल जाओगी। तब कुछ दिनों तक तो तुम्हारा पति तुम्हारे साथ रहेगा। फिर कमाने के लिए कलकत्ता चला जाएगा। तुम जानती हो कि कलकत्ता बहुत दूर है। तब तुम्हीं बताओ कि तुम अपने पति को संदेश कैसे भेजोगी? उसके भेजे हुए पत्र कैसे पढ़ोगी? इसलिए मैं कहता हूँ कि तुम पढ़-लिख लो। पढ़ना-लिखना अच्छी बात है।
विशेष-
भाषा सरल और सहज है।
कवि ने प्रणय-प्रसंग उठाकर चंपा को सोचने पर विवश किया है।
ब्याह, गौना, बालम, संदेशा जैसे ग्रामीण शब्दों के प्रयोग से ग्रामीण वातावरण जीवंत हो उठा है।
पंक्तियाँ – 5
चंपा बोली : तुम कितने झूठे हो, देखा,
हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो
मैं तो ब्याह कभी न करूँगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकत्ते पर बजर गिरे।
शब्दार्थ
ब्याह – विवाह, शादी
बजर गिरे – वज्र गिरे, भारी विपत्ति आए
प्रसंग
प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि त्रिलोचन द्वारा रचित ‘चंपा काले काले अच्छर नहीं चीन्हती’ नामक कविता में से उद्धृत है। चंपा पढ़ाई-लिखाई के प्रति उदासीन है। लेखक उसे तरह-तरह से समझाते हैं। वह शादी, गौने और पति के संदेश को पढ़ने का हवाला देकर उसे पढ़ने-लिखने की प्रेरणा देते हैं। तब चंपा प्रतिक्रिया में कहती है-
व्याख्या
चंपा लेखक की बातों को झूठा बताते हुए कहती है-हाय राम ! तुम कितने झूठे हो। पढ़-लिखकर भी तुम मेरे साथ छल-कपट भरी बातें कर रहे हो। मैं तुम्हारी बातों में नहीं आऊँगी। तुमने विवाह का नाम लिया है तो मैं विवाह करूँगी ही नहीं और यदि मेरा विवाह हो भी गया तो मैं अपने पति को अपने पास रखूँगी। उसे कलकत्ता नहीं जाने दूँगी। कलकत्ता पर वज्र गिरे। उसका सत्यानाश हो।
विशेष-
भाषा सरल और सहज है।
कलकत्ता महानगरीय संस्कृति का प्रतीक है जहाँ रोजगार की तलाश में गए लोग अपने परिवार से दूर रहते हैं।
लड़कियों का ‘हाय राम’ कहना उनकी असहमति का द्योतक है।