पाठ का उद्देश्य
आप द्वितीय विश्वयुद्ध के बारे में जान सकेंगे।
मानवता की बर्बरता का अनुभव कर सकेंगे।
शिक्षितों का विकसित नहीं विकृत रूप देख सकेंगे।
कविता लेखन की नई शैली से परिचित होंगे।
मानवता के वास्तविक स्वरूप को समझ सकेंगे।
पृष्ठभूमि
संयुक्त राज्य अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 6 अगस्त, 1945 को सुबह 8:15 बजे जापान के हिरोशिमा पर पहला परमाणु बम गिराया। ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम को होंशू के दक्षिणी छोर पर बी-29 बमवर्षक एनोला लड़ाकू विमान से गिराया गया था। बम के विस्फोट और गर्मी ने हिरोशिमा के अधिकांश हिस्से को नष्ट कर दिया, जिससे लगभग 70,000 लोग तुरंत मारे गए और वर्ष के अंत तक 1,00,000 से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए। यह बमबारी इतिहास के सैन्य युद्ध की पहली बमबारी थी जब परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया गया था। हिरोशिमा पर बमबारी को ‘हिरोशिमा दिवस’ पर याद किया जाता है, जो जीवित बचे लोगों और उनके वंशजों के लिए शोक, स्मरण और श्रद्धांजलि का दिन है।
हिरोशिमा – संक्षिप्त परिचय
कविवर अज्ञेय विरचित ‘हिरोशिमा’ कविता अमेरिका द्वारा जापान के नगर हिरोशिमा पर परमाणु बम के गिराए जाने की घटना पर आधारित है। कवि कहता है कि परमाणु बम के फटने से ऐसा प्रकाश हुआ मानो सूर्य आकाश की बजाय पृथ्वी से निकल आया हो। पूर्व से निकलने की बजाय नगर के बीच से निकल आया हो, लेकिन यह सूर्य नहीं था अपितु यह परमाणु बम था।
हिरोशिमा
एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे, क्षितिज पर नहीं
नगर के चौक :
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं – वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के :
काल- सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखरे गये हों
दसों दिशा में।
शब्दार्थ :
क्षितिज – पृथ्वी और आकाश के बीच का स्थल
अन्तरिक्ष – आकाश
छायाएँ – प्रतिबिम्ब
काल-सूर्य – मत्यु रूपी सूर्य
अरे – पहिए के वृत्त को जोड़ने वाली तीलियाँ
प्रसंग
प्रस्तुत काव्यांश कविवर अज्ञेय विरचित काव्य-संकलन ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ में संकलित ‘हिरोशिमा’ नामक कविता से उद्धृत है। इसमें कवि द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान जापान के नगर हिरोशिमा पर परमाणु बम के गिराए जाने वाले प्रसंग को अंकित करते हैं और भीषण नर-संहार का वर्णन भी करते हैं।
व्याख्या
कवि कहते हैं कि अमेरिका द्वारा अचानक हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरा दिए जाने और उसके विस्फोट से ऐसा लगा कि जैसे सूर्य उस दिन पूर्व के क्षितिज की बजाए अचानक नगर के बीचों-बीच चौक पर निकल आया है। धूप भी अंतरिक्ष की बजाए फटी धरती से निकली है। मानव की रचनाएँ भी दिशाहीन हो सब ओर फैली दिखाई दीं। वह सूर्य पूर्व से नहीं उगा था। वह धरतीवासियों को जीवन, आलोकमयी खुशी देने वाला सूर्य नहीं था। ऐसा लगा था कि काल रूपी सूर्य के रथ के पहियों को जोड़ने वाली अरे (धुरी) टूटकर दशों दिशाओं में बिखर गए हों। अर्थात् परमाणु बम की प्राणघातक अग्नि- श्लाकाएँ दशों दिशाओं में फैलती हुई नर-संहार कर रही थीं।
विशेष
1. कवि ने 6 और 9 अगस्त 1945 को अमेरिका द्वारा जापान के दो बड़े शहरों (हिरोशिमा और नागासाकी) पर परमाणु बम गिराए जाने की घटना को सांकेतिक रूप में अंकित किया है। इस बम के गिराए जाने से पौने दो लाख लोगों की जानें गईं थीं और एक लाख से अधिक लोग घायल, अपाहिज और अंधे हो गए थे।
2. सहसा सूरज, बीचों-बीच, दशों दिशाओं में अनुप्रास अलंकार है।
3. काल सूर्य में रूपक अलंकार है।
4. पहिये के ज्यों अरे टूटकर बिखर गये हों, उत्प्रेक्षा अलंकार है।
5. सम्पूर्ण पद्य में बिम्बात्मकता है।
6. भाषा सहज, सरल, प्रभावपूर्ण और प्रयोगशील है।
पंक्तियाँ – 2.
कुछ क्षण का वह उदय-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी : फिर?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो कर :
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।
शब्दार्थ :
उदय-अस्त – निकलना और छिपना
साखी – गवाह, प्रमाण
प्रज्जवलित – जलता हुआ
झुलसे – थोड़े जले हुए
गच – धरातल, फर्श।
प्रसंग
प्रस्तुत काव्यांश कविवर अज्ञेय विरचित काव्य-संकलन ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ में संकलित ‘हिरोशिमा’ नामक कविता से उद्धृ है। इसमें कवि द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान जापान के नगर हिरोशिमा पर परमाणु बम के गिराए जाने वाले प्रसंग को अंकित करते हैं और भीषण नर-संहार का वर्णन भी करते हैं।
व्याख्या
कवि कहते हैं कि परमाणु बम के गिरने से ऐसा लगा कि थोड़ी देर के लिए वहाँ सूर्य निकला और अस्त हो गया हो। सुबह के समय परमाणु बम गिराया गया, जिसने देखते-देखते ही सारे दृश्य को नष्ट कर दिया अर्थात् हिरोशिमा नगर को नष्ट कर दिया।
मानव छाया में इधर-उधर नहीं बिखरे अपितु गर्मी की अधिकता से उन सबका वाष्पन हो गया अर्थात् मनुष्यों के शरीर भाँप बनकर उड़ गए। भले ही मानव शरीर नहीं बचे, उनके चिह्न भी नहीं बचे, लेकिन उनकी छायाएँ अभी भी शेष हैं अर्थात् उस भयंकर विनाश की याद आज भी है। झुलसे हुए पत्थरों और पक्के धरातलों पर विनाश की परछाइयाँ आज भी अंकित हैं। मनुष्य के द्वारा बनाए सूर्य (परमाणु बम) ने मनुष्य को ही भाँप बनाकर सोख लिया, उसे ही नष्ट कर दिया। पत्थरों पर यह परछाइयाँ, आज भी उस दिन की घटना की, भयंकर विनाशलीला की गवाह हैं।
विशेष
1. प्रस्तुत कविता ‘विज्ञान वरदान है या अभिशाप’ पर गहराई से चिंतन, मनन करने की ओर संकेत देती है।
2. जापान में परमाणु विस्फोट से बची एक लड़की तोशिको तनाका ने इस त्रासदी के बारे में अपनी कहानी साझा की। 6 अगस्त, 1945 को, जापान के हिरोशिमा में छह साल की तोशिको तनाका स्कूल जा रही थी, जब सुबह 8:15 बजे, उसने ऊपर देखा और देखा कि ऊपर का आकाश सफ़ेद हो गया था।
3. 6 अगस्त, 1945 को प्रातः 8 बजकर 16 मिनट पर सब मुर्दा हो गए थे। आग चारों और फैल गई थी और भवन कागज़ की भाँति जल रहे थे।
4. ‘साखी’ शब्द साक्षी का तद्भव है। इस शब्द प्रयोग से कवि की प्रयोगधर्मिता परिलक्षित होती है।
5. ‘पत्थर पर’ में ‘अनुप्रास, मानव ही, सब भाप हो गए’ में लुप्तोपमा एवं ‘हो हो’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
निष्कर्ष
इस कविता के अध्ययन के उपरांत यह कहा जा सकता है कि यहाँ शिक्षा और शिक्षितों का विकृत रूप देखने को मिल रहा है। शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य मानवता का लालन-पालन करना है न कि मानवता का हनन। कुछ लोग अहं और सत्ता के मद में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए भीषण नरसंहार करते हैं। यह कविता भी ऐसे ही महत्त्वाकांक्षाओं के परिणाम का रौद्र रूप व्यक्त करती है। अत: हमें इतिहास से सीखना चाहिए और भविष्य में ऐसी त्रासदी कभी भी न आए इसके लिए सामूहिक रूप से सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए।