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Khul Gayi Naav, Agyeya kii Kavita Ka Saar

Khul Gayi Naav Agyeya Ki Kavita The Best Explanation

खुल गयी नाव

उद्देश्य

प्रिय से विदा होने की पीड़ा के वर्णन को प्रतीकों के माध्यम से जान सकेंगे।

जीवन में ऐसे व्यक्ति की अहमियत का बोध होगा जिसके बिना पूरी दुनिया खाली लगने लगती है।

भावनात्मक संबंधों का गहरा ज्ञान होगा।

पृष्ठभूमि

अज्ञेय जी का पहला विवाह सन्तोष नाम की महिला से हुआ था। इन दोनों में विवाह के दिन से ही संबंध विच्छेद के प्रयास शुरू हो गए। अंततः तलाक हुआ। अज्ञेय ने फिर चौदह साल बाद प्रेयसी कपिला मलिक से माता-पिता के विरोध करने पर भी 1956 में विवाह कर लिया। ये दोनों विवाह के पहले और बाद के कुल मिलाकर 13 वर्ष साथ रहे फिर तलाक से ही अलग-अलग रहने लगे। अज्ञेय जी कपिला से अलग होने पर इला डालमिया के साथ रहने लगे। इन दोनों में चौंतीस साल का अंतर था। इनका खुला संबंध था। ये दोनों विवाह की औपचारिकता में भी नहीं पड़े थे। अपने जीवन की इस आपा-धापी में कवि अपने अंतरंग क्षणों को याद करते हुए इस कविता की सृष्टि करते हैं।

पाठ परिचय

प्रस्तुत कविता कविवर अज्ञेय विरचित काव्य संकलन ‘इन्द्रधनु रौंदे हुये ये’ में संकलित है। इसका प्रकाशन वर्ष 1957 है। इस कविता में कवि संध्याकालीन डूबते सूर्य के माध्यम से प्रिय से विदा की वेदना को व्यक्त करते हैं।

खुल गयी नाव

घिर आयी संझा, सूरज

डूबा सागर-तीरे।

धुँधले पड़ते से जल-पंछी

भर धीरज से

मूक लगे मँडराने

सूना तारा उगा

चमक कर

साथी लगा बुलाने।

तब फिर सिहरी हवा

लहरियाँ काँपी

तब फिर मूर्च्छित व्यथा विदा की

जागी धीरे-धीरे।

शब्दार्थ

संझा – संध्या, शाम

सागर-तीरे – समुद्र के किनारे

सूना – शांत

मूक – कुछ न कहना

मूर्च्छित – बेहोश

व्यथा – वेदना, दुख

धीरज – धैर्य

प्रसंग

प्रस्तुत कविता अज्ञेय विरचित काव्य संकलन ‘इन्द्रधनु रौंदे हुए ये’ से उद्धृत है। इसमें कवि संध्याकालीन सूर्य के माध्यम से प्रिय की विदाई की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। यह तो माना जाता है कि जब संध्या का आगमन होता है तो रात्रि की शीतलता अपने साथ भूली-बिसरीं यादों को भी ले आती है। दूसरी तरफ रोजी-रोटी की व्यवस्था के लिए दिनभर की गई जद्दोजहद से जब रात को मुक्ति मिलती है तो पुरानी और हसीन यादें दुख की चादर ओढ़े मस्तिष्क में प्रवेश कर मन को विचलित कर ही देती हैं। प्रिय की याद शाम के वक्त ही ज़ोर पकड़ती है तो डूबता सूर्य, शांत वातावरण और अँधियारा उद्दीपन की तरह उस विरह वेदना को और भी घनीभूत कर देता है।   

व्याख्या

कवि कहते हैं कि संध्याकाल में सागर के किनारे पर डूबते सूर्य की किरणों में (सूर्यास्त की किरणों में) जल और पंछी जो दिन में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे, वे भी धुंधले दिखाई देने लगे हैं और धैर्य धारण कर मौन होकर विचरण करने लगे हैं। आकाश में सूना तारा निकल आया है और अपने प्रकाश से मानो दूसरे तारों को भी निमंत्रण देने लगा है। धीरे-धीरे हवा बहने लगी है, जिससे सागर की लहरें काँपने लगी हैं और इन सबको देखकर हृदय में विदा की पीड़ा जाग उठी है और प्रिय की विरह वेदना जो अब तक मूर्च्छित अवस्था में थी धीरे-धीरे चेतना में आने लगी है जिसके कारण मन और मस्तिष्क को एक अवसाद ने घेर लिया है।  

विशेष :

1. संध्याकालीन वातावरण का चित्रण और डूबते हुए सूर्य का दृश्य किसी के लिए सुखदायक होता है तो विरही के लिए दुखदायक।  

2. ‘नाव’ का प्रतीकात्मक प्रयोग है।

3. धुँधले, धीरज, काँपी जैसे शब्दों के प्रयोग से कवि की प्रयोगधर्मिता ही लक्षित होती है।

4. भाषा सहज, सरल, प्रभावपूर्ण है।

5. कवि की प्रयोगशील चेतना व अवचेतन मन की कुंठा का प्रस्फुटन हुआ है।

About the author

Avinash Ranjan Gupta

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