मैंने देखा एक बूँद सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
पाठ का उद्देश्य
जीवन के क्षणिक रूप के समझेंगे।
मुक्ति या मोक्ष की आवश्यकता को जान सकेंगे।
प्रतीकों का प्रयोग जान सकेंगे।
जीवन और मृत्यु के बीच का समय अनमोल है।
प्रस्तावना
किसी ने कहा है जीवन लंबा होने से कहीं बेहतर है जीवन का बड़ा होना। प्रस्तुत कविता में कवि क्षणवादी जीवन-दर्शन से प्रभावित होकर एक बूँद पर पड़ती सूर्य की स्वर्णिम किरणों को देखकर क्षण-अनुभूति को अभिव्यक्त करने की कोशिश करते हैं। इस कविता के माध्यम से वे यह बताना चाहते हैं कि मनुष्य का जीवन भी क्षणिक ही है। यह निरी मूर्खता है कि मनुष्य व्यर्थ के कामों में उलझकर अपने क्षणिक जीवन को यूँ ही बर्बाद कर देता है। कवि का यहाँ तक मानना है कि मनुष्य के जीवन को तृप्ति उसका समग्र जीवन नहीं प्रदान करता वरन् उसके जीवन के कुछ ऐसे खास पल जिसमें वह श्रेष्ठ कार्य करता है वही पल उसे तृप्ति के साथ-साथ मुक्ति भी प्रदान करते हैं। अर्थात् मनुष्यों को ऐसे पल को मूर्त रूप देने की कोशिश करनी ही चाहिए।
मैंने देखा एक बूँद
मैंने देखा
एक बूँद सहसा
उछली सागर के झाग से-
रँगी गयी क्षण-भर ढलते सूरज की आग से।
– मुझे को दिख गया
सूने विराट के सम्मुख हर आलोक –
छुआ अपनापन है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से।
शब्दार्थ
सहसा – अचानक
झाग – Foam
आलोक – प्रकाश
क्षण-भर – Moment
विराट – परम सत्ता
उन्मोचन – मुक्ति
नश्वर – क्षणभंगुर
प्रसंग
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ कविवर अज्ञेय विरचित काव्य संकलन ‘अरी ओ करुणा प्रभामय’ में संकलित ‘मैंने देखा एक बूँद’ से उद्धृत है। यहाँ पर कवि क्षणवादी जीवन-दर्शन से प्रभावित होकर क्षण के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
व्याख्या
कवि कहते हैं कि सांध्य – कालीन बेला में मैंने देखा कि समुद्र के झागों से उछलकर सहसा एक बूँद बाहर गिरी। वह बूँद अस्त होते सूर्य की अरुणिम किरणों के प्रकाश में स्वयं भी स्वर्ण की भाँति झिलमिला रही थी। सूर्य की संध्याकालीन किरणें सुनहरी होती हैं। इसीलिए क्षण भर के लिए वह बूँद भी सुनहरे रंग की दिखाई दे रही थी। कवि उस बूँद के क्षण भर के अस्तित्व को ही उसके जीवन की चरम सार्थकता मानता हुआ कहता है कि अरुणाभ (कवि ने ‘आग’ शब्द का प्रयोग सूर्य की लाल किरणों के लिए किया है, क्योंकि आग का रंग भी लाल ही होता है) किरणों में अरुण हो उठने वाली उस बूँद को देखकर मेरे हृदय में भाव उठे कि मानव जीवन में आने वाले स्वर्णिम विशेष क्षण ही हुआ करते हैं जो उन्हें विशेष तृप्ति प्रदान किया करते हैं। ऐसे क्षण मानव को नश्वरता के दाग (लांछन या कलंक) से मुक्ति दिलाकर उसके अस्तित्व की सार्थकता सिद्ध कर सकते हैं।
विशेष
1. लघु क्षण के महत्त्व को भी प्रतिपादित किया है।
2. कविता के केंद्र में क्षणवादी विचारधारा कार्यरत है। कवि का मानना है कि जीवन का एक सुखद क्षण शेष सारे जीवन से श्रेयस्कर है।
3. ‘आग’ शब्द का प्रयोग आलोक के अर्थ में साभिप्राय रूप में हुआ है।
4. यहाँ सागर अनंत जीवन और समाज का प्रतीक है। बूँद व्यक्ति का प्रतीक है जो उसका अंग होते हुए भी अपना अलग अस्तित्व रखती है।
5. ‘मैंने देखा……………. आग से।’ में दृश्य बिंब है।
6. ‘आग’, ‘दाग’ जैसे शब्दों के प्रयोग से कवि की प्रयोगधर्मिता स्पष्ट दिखाई देती है।