पाठ का उद्देश्य
पतंग कविता के माध्यम से बिंबों को जान सकेंगे।
पतंग उड़ाना बच्चों को अति प्रिय होता है।
कविता का रसवास्वादन व व्याख्या कर सकेंगे।
कविता लेखन की नई शैली से अवगत हो सकेंगे।
बच्चों की मानसिकता को समझ सकेंगे।
मानवीकरण के महत्त्व को जान सकेंगे।
अन्य जानकारियों से परिचित हो सकेंगे।
कवि परिचय
आलोक धन्वा
सातवें-आठवें दशक में कवि आलोक धन्वा ने बहुत छोटी अवस्था में अपनी गिनी-चुनी कविताओं से अपार लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1972-1973 में प्रकाशित इनकी आरंभिक कविताएँ हिंदी के अनेक गंभीर काव्यप्रेमियों को ज़बानी याद रही हैं। आलोचकों का तो मानना है कि उनकी कविताओं ने हिंदी कवियों और कविताओं को कितना प्रभावित किया, इसका मूल्यांकन अभी ठीक से हुआ नहीं है। इतनी व्यापक ख्याति के बावजूद या शायद उसी की वजह से बनी हुई अपेक्षाओं के दबाव के चलते, आलोक धन्वा ने कभी थोक के भाव में लेखन नहीं किया। सन् 72 से लेखन आरंभ करने के बाद उनका पहला और अभी तक का एकमात्र काव्य संग्रह सन् 98 में प्रकाशित हुआ। काव्य संग्रह के अलावा वे पिछले दो दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने जमशेदपुर में अध्ययन—मंडलियों का संचालन किया और रंगकर्म तथा साहित्य पर कई राष्ट्रीय संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता के रूप में भागीदारी की है।
जन्म : सन् 1948 ई. मुंगेर (बिहार)
प्रमुख रचनाएँ : पहली कविता जनता का आदमी, 1972 में प्रकाशित उसके बाद भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनो की बेटियाँ से प्रसिद्धि, दुनिया रोज़ बनती है (एकमात्र संग्रह)
प्रमुख सम्मान : राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, पहल सम्मान।
पाठ परिचय
कविता ‘पतंग’ आलोक धन्वा के ‘एकमात्र’ संग्रह का हिस्सा है। यह एक लंबी कविता है जिसके तीसरे भाग को पाठ्यपुस्तक में शामिल किया गया है। पतंग के बहाने इस कविता में बालसुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर चित्रण किया गया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए सुंदर बिंबों का उपयोग किया गया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग—बिरंगा सपना है। आसमान में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, बालमन जिन्हें छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है।
बिंबों का प्रयोग
बिंब शब्द को अंग्रेजी में ‘इमेज’ कहते हैं। इसका अर्थ है – मूर्त रूप प्रदान करना। काव्य में बिंब को वह शब्द चित्र माना जाता है जो हमारी कल्पना द्वारा एंद्रिय अनुभवों के आधार पर निर्मित होता है। इस कविता धीरे—धीरे बिंबों की एक ऐसी नई दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है, दिशाओं के मृदंग बजते हैं। जहाँ छतों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिर-गिरकर सँभलते हैं और पृथ्वी का हर कोना खुद—ब—खुद उनके पास आ जाता है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए फिर—फिर भादो (अँधेरे) के बाद के शरद (उजाला) की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
‘पतंग’ कविता का सार
‘पतंग’ कविता में शरद ऋतु की चमक तथा बाल-मन की उमंग का सुंदर चित्रण हुआ है। भादो के मूसलाधार बरसते मौसम के बाद शरत ऋतु का आगमन हुआ है। प्रकृति में सूर्य की चमकीली धूप और नई उमंग छा गई। बच्चे पतंग उड़ाने को लालायित हैं क्योंकि आकाश मुलायम अर्थात् मौसम साफ हो गया है। पतंगें उड़ने लगीं। बच्चे सीटियाँ और किलकारियाँ मारते हुए दौड़ने लगे।
कवि को लगता है, मानो बच्चे कपास लिए हुए पैदा होते हैं क्योंकि गिरने पर भी उन्हें चोटें नहीं लगतीं। उनके पैर पूरी पृथ्वी पर घूम आने के लिए बेचैन रहते हैं। वे छतों पर इस तरह बेसुध होकर दौड़ते हैं मानो छतें कठोर न होकर नरम हों। वे डाल की तरह पेंग भरते हुए-से तीव्र गति में चलते हैं। उनके पदचापों की गति पाकर दिशाएँ मृदंग की भाँति बजने लगती हैं। खेलते हुए उनका शरीर इतना रोमांचित हो उठता है कि वही रोमांच उन्हें गिरने से भी बचाता है। मानो पतंगों की ऊँचाइयाँ उन्हें गिरने से रोक लेती हैं। बच्चे मानो पतंगों के साथ ही उड़ते हैं। कभी-कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिर जाते हैं। तब उनका साहस और आत्मविश्वास और भी अधिक बढ़ जाता है।
पंक्तियाँ – 1
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर—ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके –
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पतला कागज़ उड़ सके –
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके –
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाज़ुक दुनिया
शब्दार्थ :
भादो – एक महीना जब बहुत बारिश होती है।
किलकारी – खुशी में कूकना या
व्याख्या-
भादो का महीना बीता। इस महीने में बहुत ही तेज़ बारिश हुई। बारिशों के बाद शरद ऋतु आई। यह ऋतु इतनी उजली थी मानो अँधेरे के बाद सवेरा हो गया हो। शरद का सवेरा खरगोश की आँखों जैसा लाल-भूरा था। शरद का उज्ज्वल मास इस तरह उमंग, उत्साह और चमक से भरपूर होकर छा गया मानो कोई उत्साही बालक कई पुलों को पार करके अपनी चमकीली साइकिल को तेजी से चलाते हुए, जोर-जोर से घंटियाँ बजाते हुए तथा पतंग उड़ाने वाले बच्चों को चमकीले इशारों से बुलाते हुए आ धमका हो। आशय यह है कि शरद ऋतु में चारों ओर उत्साह है, उमंग है, धूप की चमक है, बच्चों के मीठे-मीठे शोर है, खेलने के इशारे हैं और पतंगबाजी का माहौल है। यूँ लगता है मानो शरत ऋतु रूपी बालक ने आकाश को बहुत कोमल, साफ़ और मुलायम बना दिया है जिससे कि आकाश में पतंग उड़ सके। पतंग दुनिया की सबसे पतली, हलकी और रंगीन चीज़ है। उसमें लगी बाँस की कमानी भी बहुत पतली होती है। जब पतले कागज़ और कमानी से बनी पतंग आकाश में उड़ती है तो बच्चे खुशी के मारे सीटियाँ बजाने लगते हैं तथा किलकारियाँ मारने लगते हैं। पतंगों से भरा आकाश ऐसा प्रतीत होता है मानो यहाँ रंगबिरंगी तितलियों की कोई चलती-फिरती कोमल और अनोखी सृष्टि हो।
विशेष
प्रकृति का मानवीकरण बहुत मनोरम बन पड़ा है, जैसे-
‘भादो गया’
‘शरद आया पुलों को पार करते हुए।’
‘अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए।’
‘आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए।’
पंक्तियाँ – 2
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक –
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ़ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
शब्दार्थ :
कपास – रुई, यहाँ मुलायम और गद्देदार अनुभूति
बेसुध – तल्लीन, मस्त
मृदंग – एक वाद्य-यंत्र
पेंग भरना – खुशी से झूले झूलना
लचीला – Flexible
रोमांचित – अति प्रसन्न
महज – केवल
व्याख्या –
कवि को ऐसा लगता है कि बच्चे जन्म के साथ ही अपने शरीर में कपास ले आते हैं। आशय यह है कि उनका शरीर हर प्रकार की चोट-खरोंच सहने योग्य होता है। उनके पाँवों में एक बेचैनी होती है जिसके कारण वे सारी पृथ्वी को नाप डालना चाहते हैं। वे मानो सारी धरती पर घूम आना चाहते हैं। उनके जीवन में ऐसी विचित्र मस्ती होती है कि उन्हें धूप-गर्मी, कठोर छत, दीवारों आदि का बोध तक नहीं होता। वे कठोर छतों पर इस तरह दौड़ते हैं कि मानो वे छत बहुत नरम हों। उनकी लयपूर्ण पदचापों के कारण सारी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा संगीत गूँजने लगता है। वे चलते हैं तो झूला झूलते हुए झोंकों के समान चलते हैं। वे छतों के खतरनाक किनारों पर पतंग उड़ाते हुए भी ऐसी गतिविधियाँ करते हैं मानो पेड़ की लचीली डाल से लटककर लचकीली गति से झूल रहे हों। इतना खतरा उठाते हुए भी वे बचते हैं तो अपने रोमांचित शरीर की मस्त लय के कारण बचते हैं। पतंग की ऊर्ध्वगामी गति उन्हें रोमांच से भर देती है और उन्हें गिरने से रोके रखती हैं। वे पतंगें मानो अपनी डोर के सहारे इन रोमांचित बच्चों को सँभाले रखती हैं।
विशेष
बिंबों का प्रयोग देखिए-
दृश्य बिंब-
पृथ्वी घूमती हुई आती है
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों के खतरनाक किनारों तक-
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे
स्पर्श बिंब-
छतों को भी नरम बनाते हुए
श्रव्य बिंब-
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
पंक्तियाँ – 3
पतंगों के साथ—साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज़ घूमती हुई आती है
उनके बेचैन पैरों के पास।
शब्दार्थ :
रंध्र – शरीर के रोम छिद्र।
व्याख्या–
पतंग उड़ाने वाले बच्चे मानो पतंग के साथ-साथ खुद भी उड़ रहे हैं। वे अपने शरीर के रोओं से निकलने वाले संगीत के सहारे उड़ रहे हैं। यूँ तो वे कभी गिरते नहीं। परंतु यदि कभी-कभार वे छतों के खतरनाक किनारों से नीचे गिर भी जाते हैं और बच जाते हैं, तो वे पहले से भी अधिक निर्भय हो जाते हैं। तब वे अत्यधिक उत्साह के कारण सुनहले सूरज के समान प्रकाशित हो उठते हैं। तब वे अपने बेचैन पैरों से मानो सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं। अति उत्साहित होकर वे सब ओर घूमना-फिरना चाहते हैं।
विशेष
बिंब
छतों के खतरनाक किनारों
पृथ्वी तेज़ घूमती हुई आती है, उनके बेचैन पैरों के पास।
प्रश्न अभ्यास
1. ‘सबसे तेज़ बौछारें गयीं, भादो गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
2. सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज़, सबसे पतला कागज़, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया है?
3. बिंब स्पष्ट करें –
सबसे तेज़ बौछारें गयीं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर—ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके।
4. जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास – कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बन सकता है।
5. पतंगों के साथ—साथ वे भी उड़ रहे हैं – बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता है?
6. निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़ कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
(क) छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।
· दिशाओं को मृंदग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?
· जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?
· खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं।