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सुमित्रानंदन की कविता ‘पल्लव’ का सम्पूर्ण अध्ययन

Pallava kavita ka saar the best one

आपने एक तीर से दो निशान की उक्ति तो सुनी होगी लेकिन एक तीर से तीन निशान कैसे साधा जाता है यह हमें सुमित्रानंदन पंत की कविता पल्लव से ज्ञात होगा। अपनी इस कविता के माध्यम से कवि पहले तो कविता में वर्णित ‘पल्लव’ अर्थात् नए पत्ते के विकास के बारे में बता रहे हैं और इसके साथ स्वत: ही उनके काव्य संग्रह ‘पल्लव’ के विकसित होने का वर्णन तथा छायावाद की उत्तरोत्तर प्रगति के बारे में भी ज्ञात हो रहा है। इस तरीके से ‘पल्लव’ कविता ने एक तीर से तीन निशान साधा है।

सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित कविता संग्रह ‘पल्लव’ की भूमिका को छायावाद का घोषणा पत्र कहा जाता है।

डॉ॰ नगेन्द्र ने इसे छायावादी युग के आविर्भाव का ऐतिहासिक घोषणा पत्र बताया है।  

यह सुमित्रानंदन पंत का तीसरा कविता संग्रह है।

यह संग्रह साल 1926 में प्रकाशित हुआ था।

इस संग्रह की लगभग सभी कविताएँ प्रकृति के प्रति प्रेम में डूबी हुई हैं।

‘पल्लव’ सुमित्रानंदन पंत का तीसरा कविता संग्रह है जो 1928 में प्रकाशित हुआ था. माना जाता है कि पल्लव में सुमित्रानंदन पंत की सबसे कलात्मक ऐसी 32 कविताओं का संग्रहीत हैं जो 1918 से 1925 के बीच लिखी गई थीं।  

अरे, ये पल्लव बाल।

सजा सुमनों के सौरभ हार

गूँथते वे उपहार

अभी तो हैं ये नवल प्रवाल,

नहीं छूटी तरु डाल

विश्व पर विस्मित चितवन डाल,

हिलाते अधर प्रवाल।

न पत्रों का मर्मर संगीत,

न पुष्पों का रस, राग, पराग

एक अस्फुट, अस्पष्ट, अगीत,

सुप्ति की ये स्वप्निल मुसकान

सरल शिशुओं के शुचि अनुराग,

वन्य विहगों के गान।

हृदय के प्रणय कुंज में लीन

मूक कोकिल का मादक गान,

बहा जब तन मन बन्धन हीन

मधुरता से अपनी अनजान

खिल उठी रोओं-सी तत्काल

पल्लवों की यह पुलकित डाल।

प्रथम मधु के फूलों का बाण

दुरा उर में, कर मृदु आघात,

रुधिर से फूट पड़ी रुचिमान

पल्लवों की यह सजल प्रभात,

शिराओं में उर की अज्ञात

नव्य जग जीवन कर गतिवान।

दिवस का इनमें रजत प्रसार

उषा का स्वर्ण सुहाग,

निशा का तुहिन अश्रु शृंगार,

साँझ का निःस्वन राग,

नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,

तरुणतम सुन्दरता की आग।

कल्पना के ये विह्वल बाल,

आँख के अश्रु, हृदय के हास,

वेदना के प्रदीप की ज्वाल,

प्रणय के ये मधुमास

सुछवि के छाया वन की साँस

भर गयी इनमें हाव, हुलास।

आज पल्लवित हुई है डाल,

झुकेगा कल गुंजित मधुमास।

मुग्ध होंगे मधु से मधु बाल,

सुरभि से अस्थिर मरुताकाश।

अरे, ये पल्लव बाल।

सजा सुमनों के सौरभ हार

गूँथते वे उपहार

अभी तो हैं ये नवल प्रवाल,

नहीं छूटी तरु डाल

विश्व पर विस्मित चितवन डाल,

हिलाते अधर प्रवाल।

न पत्रों का मर्मर संगीत,

न पुष्पों का रस, राग, पराग

एक अस्फुट, अस्पष्ट, अगीत,

सुप्ति की ये स्वप्निल मुसकान

सरल शिशुओं के शुचि अनुराग,

वन्य विहगों के गान।

हृदय के प्रणय कुंज में लीन

मूक कोकिल का मादक गान,

बहा जब तन मन बन्धन हीन

मधुरता से अपनी अनजान

खिल उठी रोओं-सी तत्काल

पल्लवों की यह पुलकित डाल।

प्रथम मधु के फूलों का बाण

दुरा उर में, कर मृदु आघात,

रुधिर से फूट पड़ी रुचिमान

पल्लवों की यह सजल प्रभात,

शिराओं में उर की अज्ञात

नव्य जग जीवन कर गतिवान।

दिवस का इनमें रजत प्रसार

उषा का स्वर्ण सुहाग,

निशा का तुहिन अश्रु शृंगार,

साँझ का निःस्वन राग,

नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,

तरुणतम सुन्दरता की आग।

कल्पना के ये विह्वल बाल,

आँख के अश्रु, हृदय के हास,

वेदना के प्रदीप की ज्वाल,

प्रणय के ये मधुमास

सुछवि के छाया वन की साँस

भर गयी इनमें हाव, हुलास।

आज पल्लवित हुई है डाल,

झुकेगा कल गुंजित मधुमास।

मुग्ध होंगे मधु से मधु बाल,

सुरभि से अस्थिर मरुताकाश।

अरे, ये पल्लव बाल।

सजा सुमनों के सौरभ हार

गूँथते वे उपहार

अभी तो हैं ये नवल प्रवाल,

नहीं छूटी तरु डाल

विश्व पर विस्मित चितवन डाल,

हिलाते अधर प्रवाल।

 

कठिन शब्द

नवल प्रवाल – नया मूँगा, नया पत्ता

पल्लव बाल – किशोर उम्र के पल्लव, नये पत्ते

नवल प्रवाल – नया मूँगा, नया पत्ता

विस्मित चितवन – आश्चर्य से चकित निगाहें

अधर प्रवाल – मूँगे की तरह लाल पल्लव-रूपी होंठ

 

व्याख्या

इन पंक्तियों में पंतजी कहते हैं कि ये पल्लव (छायावादी कविताएँ व पल्लव काव्य संग्रह) अभी कम उम्र के हैं। वे फूलों से भरते जा रहे हैं। उनसे निकलने वाली सुगंध से मानो वे हार बनाते जा रहे हैं। इस तरह पल्लवों और पुष्पों से बना सुगंधित उपहार हमारे सामने आ रहा है। ये पल्लव अभी नए प्रवाल की तरह दिखाई पड़ रहे हैं। इनका रंग-रूप समुद्री मूँगे से मिलता-जुलता है। ये अभी इतने बड़े भी नहीं हुए हैं कि पेड़ की डाल पर स्वतंत्र रूप से लहरा सकें। इनकी डंठल अभी पूरी तरह बनी नहीं है। इन्हें ध्यान से देखिए तो मालूम होगा कि ये संसार को चकित निगाहों से देख रहे हैं, जैसे कोई बच्चा पूरी आँखें खोलकर इधर-उधर देखता हुआ सुंदर मालूम पड़ता है। इन पल्लवों को प्रवाल से बने होंठों की तरह भी महसूस किया जा सकता है।

न पत्रों का मर्मर संगीत,

न पुष्पों का रस, राग, पराग

एक अस्फुट, अस्पष्ट, अगीत,

सुप्ति की ये स्वप्निल मुसकान

सरल शिशुओं के शुचि अनुराग,

वन्य विहगों के गान।

 

कठिन शब्द

पत्रों – पत्तों

मर्मर संगीत – धीमा और कोमल संगीत

राग – रंग

अस्फुट – जो पूरी तरह न खुला हो

अगीत – एक ऐसा गीत जो परम्परागत ढंग का न हो

सुप्ति – नींद

स्वप्निल मुसकान – सपने देखते हुए चेहरे पर आई मुस्कुराहट

शुचि अनुराग – मासूम प्रेम

वन्य विहगों – वन के पक्षी

 

व्याख्या

ये (छायावादी कविताएँ व ‘पल्लव’ काव्य संग्रह) पल्लव अभी इतने परिपक्व नहीं हो पाए हैं कि इनके सामूहिक दोलन से पत्तों का मधुर संगीत उत्पन्न हो सके। इनमें फूलों की तरह का रस, रंग और पराग नहीं है। इनमें किसी तरह का कोई गीत भी नहीं है। इसकी ध्वनि या अभिव्यक्ति के बारे में यही कहा जा सकता है कि वह पूरी तरह व्यक्त नहीं है। वह साफ-साफ सुनाई नहीं देती है। उसे गीत नहीं ‘अगीत’ कहना ज्यादा अच्छा होगा। पंत कहना चाहते हैं कि पल्लव में गीत न होकर भी गीत – जैसा बहुत कुछ है। इसे (छायावादी कविताओं को व ‘पल्लव’ काव्य संग्रह) समझने के लिए अलग ढंग की समझ की जरूरत है। ये पल्लव नींद में पैदा हुई स्वप्निल मुस्कान की तरह सुंदर मालूम पड़ते हैं। इन्हें हम सरल स्वभाव वाले बच्चों के निर्दोष प्रेम की तरह मान सकते हैं। ये पल्लव (छायावादी कविताएँ व ‘पल्लव’ काव्य संग्रह) वन के पक्षियों के मुक्त गान की तरह आकर्षक लगते हैं।

हृदय के प्रणय कुंज में लीन

मूक कोकिल का मादक गान,

बहा जब तन मन बन्धन हीन

मधुरता से अपनी अनजान

खिल उठी रोओं-सी तत्काल

पल्लवों की यह पुलकित डाल।

 

कठिन शब्द

प्रणय – प्रेम

कुंज – वनस्पतियों से घिरी हुई सुंदर जगह

लीन – मग्न

मूक – अस्वर

कोकिल – कोयल

बंधनहीन – बंधन से मुक्त

 

व्याख्या

हृदय में बसे हुए प्रणय-कुंज अर्थात् प्रेम रूपी उपवन की कल्पना की जाए, फिर उसमें कोयल के मादक गान के मौन स्वरूप की कल्पना की जाए – इन्हें मिलाकर जो भाव व्यक्त होगा ठीक वैसे ही भाव मेरी कविता पल्लव में समाहित है और उसी भाव के माध्यम से ही मेरी कविता का रसास्वादन किया जा सकता है। पंतजी कहते हैं कि मेरी ये कविताएँ अपनी मधुरता से अनभिज्ञ हैं। उन्हें सचेत रूप से नहीं मालूम है कि वे कितनी मधुर हैं। उनका यह भोलापन ही उनकी विशेषता है। उनके तन और मन पर किसी प्रकार का बंधन नहीं है। ये पल्लव डालियों पर ऐसे खिलते हैं जैसे सिहरन से भरकर रोएँ सजग हो जाते हैं। पंत का आशय यह है कि मेरी ये कविताएँ मेरी पुलक से भरी हैं।

प्रथम मधु के फूलों का बाण

दुरा उर में, कर मृदु आघात,

रुधिर से फूट पड़ी रुचिमान

पल्लवों की यह सजल प्रभात,

शिराओं में उर की अज्ञात

नव्य जग जीवन कर गतिवान।

 

कठिन शब्द

प्रथम मधु – फूलों में आया हुआ नया पराग

दुरा उर में – हृदय में छिपा कर

मृदु आघात – मीठी चोट

रुधिर – रक्त

शिराओं में – धमनियों में

सजल प्रभात – सरस लगती हुई सुबह

अज्ञात – अनजान

रुचिमान – शोभायमान, जो सुंदर लग रहा हो

नव्य जग – नई दुनिया

 

व्याख्या

इन पंक्तियों में पंत जी कहते हैं कि पहले प्रेम की मिठास की तरह जिन फूलों में पराग आए हों और उन फूलों से कामदेव अपने बाण बना कर हृदय भेदन करते हैं जिससे जैसी आंतरिक सुख का आभास होता है ठीक वैसी ही आंतरिक सुख का आभास ये मेरी कविताएँ भी देतीं हैं। ये पल्लव मानो अपने हृदय में इन बाणों को छिपाए रखते हैं और धीमे-से आघात कर देते हैं। इन पल्लवों को देखकर कामदेव के इन विशिष्ट बाणों की याद हो आती है। ये पल्लव जब खिलते हैं तो ऐसा लगता है मानो रुधिर की लाली सुरुचिपूर्ण तरीके से किसी की छवि में फैल गयी हो। ये पल्लव प्रभात के सौन्दर्य को सजल – सरसता से भर देते हैं। मेरी इन कविताओं को भी इसी तरह के क्रम और विन्यास के साथ समझने की जरूरत है। पल्लव की तरह की मेरी ये कविताएँ, संसार और जीवन के नएपन को, मन की शिराओं में सहज ही भर देती हैंI

दिवस का इनमें रजत प्रसार

उषा का स्वर्ण सुहाग,

निशा का तुहिन अश्रु शृंगार,

साँझ का निःस्वन राग,

नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार,

तरुणतम सुन्दरता की आग।

 

कठिन शब्द

रजत प्रसार — दिन का प्रकाशित रूप ऐसे फैला है मानो चाँदी की चमक फैली हो

स्वर्ण सुहाग – सुनहला सौन्दर्य

निशा – तुहिन अश्रु शृंगार – ओस-रूपी आँसुओं से सुंदर लगती रात

निःस्वन राग – शाम की खामोश रागिनियाँ

नवोढ़ा – नव विवाहिता

तरुणतम – यौवन

 

व्याख्या

प्रकृति के सुकुमार कवि पंत जी कहते हैं कि पल्लव की तरह ही मेरी इन कविताओं में ढेर सारी विशेषताएँ हैं। इनमें दिन की विस्तृत चमक है, उषा का सुनहला सौन्दर्य है, आँसू-जैसे ओसकणों से सजी हुई रात है और शाम की खामोश रागिनियाँ हैं। इनमें नव-विवाहिता की सुकुमार लज्जा है और तरुण अवस्था की अतुलित सुंदरता की आग है।

कल्पना के ये विह्वल बाल,

आँख के अश्रु, हृदय के हास,

वेदना के प्रदीप की ज्वाल,

प्रणय के ये मधुमास

सुछवि के छाया वन की साँस

भर गयी इनमें हाव, हुलास।

 

कठिन शब्द

विह्वल – व्याकुल

बाल – किशोर उम्र

हृदय के हास – हृदय का हुलास

वेदना – पीड़ा

प्रदीप – दीपक

ज्वाल – ज्वाला

मधुमास – वसंत ऋतु

सुछवि के छाया वन – सुंदरता की छाया से निर्मित वन

हाव शृंगारिक – संकेत, पुरुष को आकृष्ट करने के लिए स्त्री के द्वारा किया जानेवाला शृंगारिक संकेत

हुलास – खुशी और उत्साह

 

व्याख्या

पंत जी इन पंक्तियों में कहते हैं कि मेरी ये कविताएँ कल्पना की व्याकुल किशोरों के समान हैं, इनमें आँखों के छलकते आँसू हैं, इनमें हृदय का हुलास है, इनमें गहरे दुख से बने दीपक की ज्वाला है, ये कविताएँ प्रेम की वसंत ऋतु हैं। ‘पल्लव’ की कविताओं को, रूपक के माध्यम से परिभाषित करते हुए, अगली पहचान बताते हैं कि सुंदरता की छाया से निर्मित वन में चलने वाली मंथर हवा की तरह हैं ये कविताएँ। इस मंथर हवा ने ही इनमें हाव-भाव और खुशी-उत्साह का संचार किया है।

आज पल्लवित हुई है डाल,

झुकेगा कल गुंजित मधुमास।

मुग्ध होंगे मधु से मधु बाल,

सुरभि से अस्थिर मरुताकाश।

 

कठिन शब्द

पल्लवित – प्रौढ़ होना

गुंजित मधुमास – स्वरों से भरा सावन

मधु बाल – किशोर उम्र के भौंरे

सुरभि – सुगंध

अस्थिर मरुताकाश – आकाश तक फैली हवा का बेचैन हो जाना

 

व्याख्या

पंत जी कहते हैं कि आज मेरी कविता की डाली केवल पल्लवित हुई है, कल इस डाली के आस-पास भौंरों की गुंजार से भरा हुआ वसंत खुद झुक कर चला आएगा। तब इन कविताओं के पास मधु और पराग की इतनी बहुतायत होगी कि किशोर उम्र के भौंरे इन पर मुग्ध हो उठेंगे। इनसे इतनी सुगंध फैलेगी कि धरती से लेकर आकाश तक व्याप्त वायु बेचैन हो उठेगी।

 

इस कविता में ‘पल्लव’ और ‘कविता’ के रूपक को अद्भुत ढंग से निभाया गया है।

छायावादी कविता को समझने के लिए जिस तरह के सौन्दर्य-बोध की जरूरत थी, उसे समझाने की कोशिश इस कविता में दिखाई पड़ती है।

छायावादी कवि अपनी कविताओं की बोधगम्यता को लेकर सजग चिंतित थे, जिसका प्रकटीकरण इस कविता में हुआ है।

12 और 16 मात्राओं की पंक्तियों से इस कविता का निर्माण हुआ है, मगर किसी नियमित क्रम में ये पंक्तियाँ नहीं हैं।

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