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यशोधरा – चयनित अंश – व्याख्या सहित, मैथिलीशरण गुप्त

Yashodhara By Maithisharan Gupt The best Explanation

यशोधरा – चयनित अंश

सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,

पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,

सखि, वे मुझसे कह कर जाते,

कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना,

फिर भी क्या पूरा पहचाना?

मैंने मुख्य उसी को जाना,

जो वे मन में लाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,

प्रियतम को, प्राणों के पण में,

हमीं भेज देती हैं रण में-

क्षात्र धर्म के नाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

हुआ न यह भी भाग्य अभागा,

किस पर विफल गर्व अब जागा?

जिसने अपनाया था, त्यागा,

रहे स्मरण ही आते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,

पर इनसे जो आँसू बहते,

सदय हृदय वे कैसे सहते?

गए तरस ही खाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

जायें सिद्धि पावें वे सुख से,

दुखी न हों इस जन के दुख से,

उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?

आज अधिक वे भाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

गए, लौट भी वे आयेंगे,

कुछ अपूर्व अनुपम लायेंगे,

रोते प्राण उन्हें पायेंगे,

पर क्या गाते गाते?

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964) द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि हैं। ‘जयद्रथ वध’ और ‘भारत भारती’ के प्रकाशन से लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचे मैथिलीशरण गुप्त को 1930 में महात्मा गांधी ने राष्ट्रकवि की उपाधि दी थी। उन्होंने प्राचीन आख्यानों को अपने काव्य का वर्ण्य विषय बनाकर उनके सभी पात्रों को एक नया अभिप्राय दिया है। जयद्रथवध, पंचवटी, सैरन्ध्री, बक संहार, द्वापर, नहुष, जयभारत, हिडिम्बा, विष्णुप्रिया, यशोधरा, साकेत एवं रत्नावली आदि रचनाएँ इसके उदाहरण हैं। ‘साकेत’ महाकाव्य है तथा शेष सभी काव्य खंड काव्य के अंतर्गत आते हैं।

गुप्त जी ने कुछ नाटक भी लिखे हैं। इन नाटकों में अनघ, तिलोत्तमा, चरणदास, विसर्जन आदि उल्लेखनीय हैं। खड़ी बोली को काव्य भाषा का दर्जा और जन-जन तक पहुँचाने में मैथिलीशरण गुप्त की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है। मैथिलीशरण गुप्त जी को साहित्य जगत् में ‘दद्दा’ नाम से संबोधित किया जाता है।

यशोधरा एक खंडकाव्य है। इसमें राजकुमार सिद्धार्थ (गौतम बुद्ध) की पत्नी यशोधरा के मनोभावों का सुंदर चित्रण हुआ है। यशोधरा एक वियोगिनी नारी है। सिद्धार्थ उन्हें रात्रि में सोती हुई छोड़कर राजप्रासाद से चुपचाप संन्यास हेतु निकल जाते हैं। इससे यशोधरा का मन आहत हो जाता है। यशोधरा को इसी बात का दुख था कि उसके पति ने यह समझ लिया होगा कि वह उनके मार्ग की बाधा बनेगी इसीलिए उसे बिना बताएँ घर छोड़कर चले गए। यशोधरा का कहना है कि यदि वे उस पर विश्वास करते और गृहत्याग की बात बता देते तो वह उन्हें पूरा सहयोग देती।

01

सिद्धि हेतु स्वामी गए, यह गौरव की बात,

पर चोरी-चोरी गए, यही बड़ा व्याघात,

सखी, वे मुझसे कह कर जाते

कह, तो क्या मुझसे वे अपनी पथ- बाधा ही पाते?

शब्दार्थ –

सिद्धि – सफलता, किसी महान उद्देश्य की प्राप्ति

स्वामी – यहाँ पति के लिए प्रयुक्त हुआ है

गौरव – सम्मान, गर्व

व्याघात – बाधा, दुखद घटना

सखी – सहेली, मित्र

पथ-बाधा – मार्ग की रुकावट

संदर्भ और प्रसंग –

प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘यशोधरा’ से उद्धृत हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा इस प्रसंग में दुखी होकर सखी से मन की बात कह रही हैं।

व्याख्या –

सिद्धार्थ अपने जीवन के सत्य की खोज में सांसारिक सुखों का त्याग करके वन में चले गए। जन कल्याण हेतु उनका सत्य की खोज में चले जाना निश्चय ही गौरव और अभिमान की बात है। परंतु यशोधरा कह रही हैं कि वे उनसे छुपकर चले गए, इसलिए उसे बहुत दुख हुआ। वह अपनी सखि से प्रश्न करती है कि क्या यदि वे मुझसे कहकर जाते, तो मैं उनके मार्ग में बाधा बनती? लेकिन सिद्धार्थ ने ऐसा नहीं किया, इसलिए यशोधरा को अतीव कष्ट होता है।

विशेष –

  1. ‘बड़ा व्याघात’ में अनुप्रास, ‘चोरी-चोरी’ में पुनरुक्तिप्रकाश एवं ‘तो क्या ………. पथबाधा ही पाते?’ में प्रश्न अलंकार है।
  2. स्त्री को सबसे अधिक दुख यह जानकर होता है कि उसका पति उस पर अविश्वास करता है। पति पत्नी को पूर्ण विश्वास की अधिकारिणी नहीं समझता है।
  3. इन काव्य पंक्तियों की भाषा तत्सम प्रधान खड़ी बोली हिंदी है।

02

मुझको बहुत उन्होंने माना

फिर भी क्या पूरा पहचाना?

मैंने मुख्य उसी को जाना,

जो वे मन में लाते

सखी, वे मुझसे कह कर जाते।

शब्दार्थ –

मुझको बहुत उन्होंने माना – लोगों ने मुझे बहुत सम्मान दिया या महत्त्व दिया।

फिर भी क्या पूरा पहचाना? – फिर भी क्या उन्होंने मुझे पूरी तरह समझा?

मुख्य – सबसे महत्त्वपूर्ण

उसी को जाना – केवल उसी को समझा या पहचाना

जो वे मन में लाते – जो वे अपने मन में सोचते थे

सखी – प्रिय सखी या मित्र (यहाँ आत्मीय संबोधन के रूप में प्रयुक्त)

वे मुझसे कह कर जाते – वे मुझे अपने विचार स्पष्ट रूप से कहकर जाते (लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया)

संदर्भ तथा प्रसंग –

उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।

व्याख्या –

यशोधरा अपने गृहस्थ जीवन की स्मृतियों को याद करते हुए कह रही हैं कि उनके पति से उन्हें अत्यधिक स्नेह, प्रेम और दुलार मिला है। वे उन्हें बहुत मानते भी रहे हैं। यशोधरा के मन में एक सवाल गूंजता है कि क्या वास्तव में उनके पति उन्हें पहचानते भी हैं? यदि वे उन्हें भली-भाँति पहचानते तो इस तरह रात के अँधेरे में चोरी-छुपे वन चले नहीं गए होते बल्कि उन्हें कहकर ही निकले होते। पुनः वे कहती हैं कि उन्होंने आज तक वही किया जो उन्हें पसंद रहा, जो उन्हें रुचिकर प्रतीत हुआ। वह मुख्यतः उसी बात को जान पाती थीं जो उनके मन में रहती थी। बेहतर होता कि वे यशोधरा से कहकर जाते। ऐसा होने पर यशोधरा को कोई मानसिक कष्ट न होता और उन्हें खुशी भी होती कि सिद्धार्थ उनकी मनोभावनाओं को समझते हैं। इससे यशोधरा का आत्म-सम्मान भी बना रहता। वह कभी भी उनकी राह की बाधा न बनती, वरन् उनके मार्ग को प्रशस्त करने में सहायता कर सकती थी।

विशेष –

  1. उपरोक्त अंश में विरहिणी यशोधरा की मनोव्यथा का चित्रण हुआ है।
  2. स्त्री के प्रति पुरुष की हीन मनोवृत्ति का परिचय मिलता है।
  3. गृहस्थ जीवन की स्मृतियों का स्मरण हुआ है।
  4. उपेक्षित और विरहिणी नारी के आत्मसम्मान को कवि ने प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।
  5. खड़ी बोली में कविता का सहज और स्वाभाविक रूप विद्यमान है।
  6. नाटक, गीत, प्रबंध, पद्य और गद्य सभी के मिश्रण एक मिश्रित शैली में ‘यशोधरा’ की रचना हुई है।

03

स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,

प्रियतम को, प्राणों के पण में,

हमीं भेज देती हैं रण में-

क्षात्र धर्म के नाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

शब्दार्थ –

स्वयं सुसज्जित करके – स्वयं सजा-संवार कर या युद्ध के लिए तैयार करके

क्षण में – बहुत ही कम समय में

प्रियतम – प्रिय व्यक्ति (पति, पुत्र, भाई या कोई और स्नेही)

प्राणों के पण में – अपने प्राणों की बाज़ी लगाकर

हमीं भेज देती हैं रण में – स्वयं ही युद्ध के लिए भेज देती हैं

क्षात्र धर्म – क्षत्रियों (युद्ध योद्धाओं) का धर्म, जिसमें युद्ध करना और राष्ट्र के लिए बलिदान देना सर्वोच्च कर्तव्य माना जाता है।

संदर्भ और प्रसंग –

उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।

व्याख्या –

यशोधरा कहती हैं कि भारतीय नारी का इतिहास रहा है कि उसे क्षत्रिय कुल धर्म का पालन करना आता है। प्राचीन काल से स्त्री अपने पति को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित करके युद्ध क्षेत्र में भेजती रही हैं। उस युद्धक्षेत्र में जहाँ प्राणों की होड़ लगी रहती है। मंगल टीका लगाकर उनकी विजय कामना करते हुए उन्हें युद्ध क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित करती रही है। जिस नारी की यह परंपरा रही है भला वह सिद्धि प्राप्ति हेतु वन में जानेवाले पति की राह का रोड़ा बनकर क्यों खड़ी होती? सिद्धि हेतु गमन करने वाले पति को भला वह रोक सकती है? कहने का आशय यह है कि यशोधरा अपने पति के मार्ग की बाधा बनकर कदापि खड़ी होना नहीं चाहती थीं।

विशेष –

  1. उपरोक्त अवतरण में भारतीय स्त्री के क्षत्राणी कुल की परंपरा का उल्लेख मिलता है।
  2. भारतीय स्त्री की अविचलता का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
  3. विरहिणी स्त्री की मनोदशा का जीवंत चित्रण किया गया है।
  4. खड़ी बोली कविता का सरल और सहज रूप विद्यमान है।
  5. तत्सम प्रधान भाषा की प्रवाहशीलता देखते ही बनती है।
  6. ‘स्वयं सुसज्जित’, ‘प्रियतम-प्राणों-पण’ में अनुप्रास अलंकार है।

04

हुआ न यह भी भाग्य अभागा,

किस पर विफल गर्व अब जागा?

जिसने अपनाया था, त्यागा,

रहे स्मरण ही आते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

शब्दार्थ –

हुआ न यह भी भाग्य अभागा – मेरा भाग्य इतना भी बुरा नहीं था (या मेरा दुर्भाग्य इतना भी बड़ा नहीं था)।

किस पर विफल गर्व अब जागा? – अब किस पर अहंकार करूँ, जब सब कुछ व्यर्थ हो गया?

जिसने अपनाया था, त्यागा – जिसने मुझे कभी अपनाया था, अब उसने मुझे छोड़ दिया।

रहे स्मरण ही आते – अब केवल यादें ही रह गई हैं।

संदर्भ और प्रसंग –

उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।

व्याख्या –

यशोधरा यह भी कहती हैं कि यदि सिद्धार्थ उन्हें कहकर जाते तो उन्हें आनंद के साथ विदा करतीं। लेकिन यशोधरा के लिए अपने पति को हर्षपूर्वक विदा करने का भी सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। अब तो यशोधरा के लिए मिथ्या गर्व करने के लिए भी कोई अवसर नहीं बचा। जिस पति ने उन्हें अत्यंत प्रेम के साथ अपनाया था उन्हीं ने अब यशोधरा को त्याग भी दिया है। भले ही सिद्धार्थ उन्हें भूल जाएँ लेकिन यशोधरा उन्हें सदैव स्मरण करती रहेंगी। अर्थात् सिद्धार्थ के प्रति यशोधरा के प्रेम के स्वरूप में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

विशेष –

  1. विरहिणी स्त्री की मनोदशा का जीवंत चित्रण किया गया है।
  2. उपेक्षित और विरहिणी नारी के आत्मसम्मान को कवि ने प्रभावशाली ढंग से चित्रित किया है।
  3. खड़ी बोली कविता का सरल और सहज रूप विद्यमान है।
  4. तत्सम प्रधान भाषा की प्रवाहशीलता देखते ही बनती है।

05

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,

पर इनसे जो आँसू बहते,

सदय हृदय वे कैसे सहते?

गए तरस ही खाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

शब्दार्थ –

हुआ न यह भी भाग्य अभागा – मेरा भाग्य इतना भी बुरा नहीं था (या मेरा दुर्भाग्य इतना भी बड़ा नहीं था)।

किस पर विफल गर्व अब जागा? – अब किस पर अहंकार करूँ, जब सब कुछ व्यर्थ हो गया?

जिसने अपनाया था, त्यागा – जिसने मुझे कभी अपनाया था, अब उसने मुझे छोड़ दिया।

रहे स्मरण ही आते – अब केवल यादें ही रह गई हैं।

संदर्भ और प्रसंग –

उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।

व्याख्या –

उद्धृत अंश में यशोधरा अपनी शारीरिक दशा का वर्णन करते हुए कहती है कि आँखें उन्हें निष्ठुर कहती हैं क्योंकि उन्होंने नेत्रों को बिना बतलाए इस प्रकार त्याग दिया है, परंतु, नेत्रों से बहनेवाली अश्रुधारा को वे दयालु हृदय भला किस प्रकार सह सकते थे। इसलिए उन्होंने चोरी-चोरी गृह त्याग करना ही उपयुक्त समझा।

विशेष –

  1. मैथिली शरण गुप्त ने अवतरित अंश में सिद्धार्थ के प्रति यशोधरा के अमलिन प्रेम का चित्रण किया है। इस प्रेम चित्रण से गुजरते समय हमें गोपियों का कृष्ण प्रेम स्मरण हो आता है। प्रेम में प्रियतम की उद्देश्य और लक्ष्य प्राप्ति की कामना और अपनी स्थिति की परवाह न करना प्रेम को उदात्त बनाता है।
  2. अवतरित अंश में नारी का त्याग चित्रित हुआ है।
  3. भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
  4. तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता हैI

06

जायें सिद्धि पावें वे सुख से,

दुखी न हों इस जन के दुख से,

उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से?

आज अधिक वे भाते।

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।  

शब्दार्थ –

जायें – (वे) चले जाएँ

सिद्धि पावें – सफलता प्राप्त करें

सुख से – आनंद और प्रसन्नता के साथ

दुखी न हों – परेशान न हों

इस जन के दुख से – मेरे दुख से

उपालम्भ – उलाहना, शिकायत

किस मुख से? – किस अधिकार या हक़ से

आज अधिक वे भाते – आज वे पहले से भी अधिक अच्छे लगते हैं

संदर्भ और प्रसंग –

उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।

व्याख्या –

यशोधरा का विचार है कि सिद्धार्थ ने वन जाकर उसके प्रति अच्छा ही आचरण किया। वे सुखपूर्वक सिद्धि प्राप्त करें। कभी भी यशोधरा के दुख से वे पीड़ित न हों। यशोधरा उन्हें किसी भी प्रकार का उलाहना नहीं देना चाहती हैं। इस विरहावस्था में भी वे अधिक प्रिय लग रहे हैं, क्योंकि उन्होंने संसार के कल्याण हेतु यह त्याग किया है।

विशेष –

  1. प्रेम भाव में प्रियतम का दोष न ढूँढना और उनसे किसी प्रकार की कोई शिकायत न करना तटस्थता नहीं बल्कि प्रेम की परिपक्वता है।
  2. बृहत्तर प्रेम हेतु निजी प्रेम को त्यागने की भावना तत्कालीन युग स्पंदन का प्रतीक है।
  3. भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
  4. तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता हैI
  5. नाटक, गीत, प्रबंध, पद्य और गद्य सभी के मिश्रण एक मिश्रित शैली में ‘यशोधरा’ की रचना हुई है।

07

गए, लौट भी वे आयेंगे,

कुछ अपूर्व अनुपम लायेंगे,

रोते प्राण उन्हें पायेंगे,

पर क्या गाते गाते?

सखि, वे मुझसे कह कर जाते।

शब्दार्थ –

गए – (वे) चले गए

लौट भी वे आयेंगे – (वे) वापस भी आएंगे

अपूर्व – अनोखा, विशेष

अनुपम – अतुलनीय, जिसकी कोई तुलना न हो

रोते प्राण – दुखी हृदय या आत्मा

उन्हें पायेंगे – (जब वे लौटेंगे, तो) उन्हें पाएंगे या देखेंगे

पर क्या गाते गाते? – लेकिन क्या खुशी में गाते हुए (मिलना होगा) या दुख ही बना रहेगा?

संदर्भ और प्रसंग –

उपरोक्त पंक्तियाँ मैथिली शरण गुप्त की बहुचर्चित काव्यकृति ‘यशोधरा’ से अवतरित हैं। सिद्धार्थ गौतम अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को निद्रावस्था में छोड़कर संन्यास धर्म अपनाने और सिद्धि प्राप्त करने हेतु वन में चले गए। इसके पश्चात् यशोधरा गौतम के इस आचरण से अत्यंत दुखी होकर अपनी मनोभावनाएँ प्रकट करती हैं। उसकी मनोदशा का सुंदर चित्रण गुप्त जी ने किया है।

व्याख्या –

कविता के अंतिम भाग में यशोधरा की स्पष्ट मान्यता है कि उनके पति भले ही अभी गृहत्याग किया है लेकिन उन्हें सिद्धि अवश्य प्राप्त होगी। इस सिद्धि प्राप्ति के पश्चात् उनका पुनरागमन होगा और तभी यशोधरा के व्यथित प्राण उन्हें प्राप्त कर सकेंगे। उनके दर्शन करेंगे। यह सिद्धि उनसे अधिक संपूर्ण लोक के कल्याण हेतु फलप्रसू होगी।

विशेष –

  1. गुप्त जी ने भारतीय नारी के अपूर्व उज्ज्वल जीवन की एक मधुर झलक दिखाई है। विलासिता से दूर भारतीय स्त्री अपने पति को पूर्णतया सहयोग प्रदान करती है। यदि इसे परंपरा कहें तो ‘सखि वे मुझसे कहकर जाते’ में उसका आत्मसम्मान, स्वाभिमान छिपा हुआ है जो नवीनता का सूचक है। इस तरह से यशोधरा में प्राचीनता और नवीनता का सुंदर समन्वय साधित हुआ है। तत्कालीन भारतीय संदर्भ पर ध्यान केंद्रित करें तो पाते हैं कि गांधीजी ने अधिक अधिक से संख्या में स्त्रियों को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए आह्वान किया था। इस दृष्टि से यशोधरा का चरित्र और व्यक्तित्व विशेष प्रासंगिक है।
  2. बृहत्तर प्रेम हेतु निजी प्रेम को त्यागने की भावना तत्कालीन युग स्पंदन का प्रतीक है।
  3. भाषा की सरलता और सहजता पर कवि का पूरा ध्यान रहा है।
  4. तुक के प्रति कवि का ध्यान परिलक्षित होता है।

 

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