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बाकी बच गया अंडा नागार्जुन की कविता का संपूर्ण अध्ययन

Nagarjun Baki Bach Gaya Anda Final

इस पाठ को पढ़ने के पश्चात्- 

1. आप नागार्जुन के काव्य से परिचित हो जाएँगे। 

2. नागार्जुन की व्यंग्य क्षमता से परिचित हो जाएँगे। 

3. भारत माता की दुर्दशा क्यों हो रही है, यह समझने में समक्ष होंगे। 

4. देश के प्रति संवेदना महसूस कर सकेंगे। 

5. नागार्जुन जी की व्यंग्य क्षमता के साथ उनकी शब्द शक्ति से भी परिचित होंगे। 

6. कविता की व्याख्या एवं रसास्वादन कर सकेंगे। 

प्रस्तावना

प्रस्तुत कविता में अत्यंत प्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि नागार्जुन ने भारत माता की दुर्दशा के कारणों की पड़ताल की है। भारत माता के जिन सपूतों के सिर पर उनकी जिम्मेदारी थी वे अपने स्वार्थ में लग गए। इसलिए अब माता की देख भाल के लिए कोई नहीं रह गया। कवि भ्रष्टाचार के भयावह रूप को उजागर करता हुआ भ्रष्टाचारी राजनेताओं की कार्य पद्धति और भ्रष्टाचार पर कटु व्यंग्य करते हैं पहले भी कवि लिखते हैं – 

रामराज्य में अबकी रावण नंगा होकर नाचा है, 

सूरत – शक्ल वही है भैया, बदला केवल ढाँचा है,

नेताओं की नीयत बदली, फिर तो अपने ही हाथों ,

भारतमाता के गालों पर कसकर पड़ा तमाचा है। 

कवि नागार्जुन ने राजनीति के क्षेत्र में गंभीरता से मनन किया है। अनेक विषय पर निर्भीक एवं निष्पक्ष होकर अपनी मौलिक विचारधारा प्रस्तुत की है। अपनी कविता स्वदेशी शासन में कवि स्वतंत्रता – प्राप्ति पर ही प्रश्न चिह्न लगाता है क्योंकि शहीदों ने प्राणोत्सर्ग करके जो भारतमाता को मुक्त कराया उस का फल चुने हुए व्यक्ति भोग रहे हैं- 

व्यर्थ हुई साधना, त्याग कुछ काम न आया, 

कुछ ही लोगों ने स्वतंत्रता का फल पाया, 

इसीलिये क्या लाठी – गोली के प्रहार हमने थे झेले, 

इसीलिए क्या डंडा – बेड़ी डलवाई हाथ-पैरों में। 

डॉ. विष्णु प्रभाकर का कहना है – “इसमें संदेह नही है कि बाबा राजनीति में आकंठ डूबे हैं आंदोलन प्रदर्शन जेल कुछ भी नहीं हटा उनसे।” 

कविता विशेष

पाँच पुत्र

महात्मा गांधी व चन्द्रशेखर आज़ाद

सुभाष चंद्र बोस

मोहम्मद अली जिन्ना

जवाहर लाल नेहरू

जयप्रकाश नारायण

कविता

बाकी बच गया अंडा 

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूँखार

गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गए चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर – प्रवीन 

देश – निकाला मिला एक को बाकी रह गए तीन 

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो 

अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो 

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक 

चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक-

एक पूत भारत माता का, कंधे पर है झंडा 

पुलिस पकड़ कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा। 

कठिन शब्दार्थ 

पूत – पुत्र 

खूँखार – बहुत खतरनाक 

चतुर – कुशल, चालाक 

प्रवीन – प्रवीण, दक्ष 

टेक – परंपरा, लय 

दुर्दशा – खराब हालात 

देशज – देश (ग्राम) 

राजनीतिक – राजनीति से संबंधित

सत्ताधारी – सत्ता में रहने वाला 

माणिक्य – लाल रंग का रत्न 

संदर्भ

इस कविता के रचयिता बाबा नाम से प्रसिद्ध प्रखर राजनीतिक चेतना के कवि नागार्जुन जी हैं। 

प्रंसग 

प्रस्तुत कविता में कवि ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत की दशा एवं उसके नेताओं और अधिकारियों की कालाबाजारी की बात बताई है। नागार्जुन चुप रहने वालों में से नहीं हैं। वे बोलते हैं और चुप रहने वालों छोड़ते नहीं है। वे विनोबा भावे की चुप्पी पर भी प्रश्न उठाते हैं। जिन्होंने एमरेजेंसी का समर्थन किया उसे अनुशासन पर्व कहा। विनोबा भावे के लिए वे कहते हैं जिसमें नागार्जुन का व्यंग्य स्पष्ट दिखता है – 

राजनीति के बारे में मैं एक शब्द भी नहीं कहूँगा,

तकली मेरे साथ रहेगी मैं तकली के साथ रहूँगा। 

वे आज की नकली आजादी पर भी कटु व्यंग्य करते हैं – “कागज की आजादी मिलती ले लो दो-दो आने में।”

कवि प्रस्तुत कविता में बताना चाहते हैं कि भारतमाता की रक्षा की जिम्मेदारी जिन लोगों पर थी वे निजी स्वार्थ में डूब गए। अतः देश की रक्षा तो हो नहीं सकती। जिन नेताओं, अधिकारियों, पुलिस राष्ट्रभक्तों पर देश की जिम्मेदारी थी वे तो स्वार्थ में लिप्त हो गए। अब माता को कौन देखे? वह तो पुत्रों के रहते भी निपूती हो गई। अष्टभुजा शुक्ल लिखते है – “कूच किए ललमुँहें तो, कूद पड़े कलमुँहे”। 

नागार्जुन पूँजीपतियों और धनियों की पोल खोलते हैं। उनकी कथनी और करनी के अंतर को स्पष्ट करते हैं। श्री अरुण कमल का कहना है – “आज नागार्जुन हिंदी के सबसे बड़े राजनीतिक कवि हैं। उनकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि वे राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील कवि हैं। वास्तव में वे उन कवियों में से हैं जिन्होंने भारतीय जनता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्षो में भाग लिया है। शायद ही ऐसा कोई दूसरा कवि हो जिसने राजनीतिक घटनाओं, चरित्रों पर इतनी बड़ी संख्या में कविताएँ लिखी हो।” 

जमींदार है, साहूकार हैं, बनिया हैं व्यापारी हैं, 

अन्दर – अन्दर विकट कसाई बाहर खद्दरधारी हैं। 

सब घुस आए भरा पड़ा है, भारत माता का मन्दिर। 

एक बार जो फिसले अगुआ फिसल रहे हैं फिर-फिर-फिर। 

व्याख्या 

कवि कहते हैं कि देश की रक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले भारत माता के पाँच पुत्र थे। अर्थात् जो समझदार, बुद्धिजीवी एवं जागरूक माने जाते थे। ऐसे भारत माता के पाँच पुत्र प्रमुख थे। वे पाँचों शूरवीर, बहादुर व चतुर तथा प्रवीण थे। परंतु दुश्मन भी अत्यंत निर्मम -निष्ठुर, कठोर व खूँखार थे। उनमें से एक पुत्र (महात्मा गांधी) दुश्मन की गोली खाकर शहीद हो गया। अब भारत माता के पास सिर्फ चार पुत्र रह गए। माता के ये चारों पुत्र अत्यंत प्रवीण दक्ष एवं चतुर थे। उनमें से भी एक पुत्र (सुभाष चंद्र बोस) को सरकार का विरोध करने के कारण, सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने के कारण देश से निकाल दिया गया। तात्पर्य यह कि जो सरकार का समर्थन करे वह देश में रह सकता है परंतु जो उसकी नीतियों का विरोध करे वह देश से निकाला जाता है। माता के बाकी बचे पुत्रों में आपस में संघर्ष होने लगा। वे माता के  विषय में न सोचकर अपने विषय, अपने पद के विषय में सोचने लगे। उनकी आपसी फूट के परिणाम स्वरूप उनमें से एक (मोहम्मद अली जिन्ना) जाकर शत्रुओं से मिल गया। इस प्रकार जिस पर देश की रक्षा की जिम्मेदारी थी वह देश को तोड़ने का कार्य करने लगा। 

अब भारतमाता के दो ही पुत्र बच गए जिनसे वह सेवा ले सकती थी, तात्पर्य यह कि जिससे उम्मीद की जा रही थी वह नालायक निकलता जा रहा था। दो बचे पुत्रों में से भी एक पुत्र (जवाहर लाल नेहरू) अपनी पुरानी परंपरा यानी देश सेवा मातृ सेवा को छोड़कर जाकर सत्ताधारी हो गया। तात्पर्य यह कि भारत की सेवा जिनके कंधे पर थी वह व्यक्ति स्वंय सत्ताधारी बन गया। जैसा कहा गया है ‘सत्ता के संग रहता तो मै भी महलों में रह सकता’। अब बाकी एक बच गया। भारतमाता का सच्चा सपूत (जयप्रकाश नारायण) केवल एक था जिसने माता का झंडा अपने कंधे पर उठा रखा था। देश का झंडा तिरंगा उसके हाथों में था। वह उस झंडे को लहरा रहा था। लेकिन पुलिस उसे सरकार विरोधी कार्यों के कारण पकड़कर जेल ले गई और अब माता के पास संतान के नाम पर सिर्फ शून्य बचा। अर्थात् जो एक पुत्र माता का साथ दे सकता था उसे जेल में भेज दिया गया। 

तात्पर्य यह कि व्यवस्था ऐसी बनी है कि जो वास्तव में माँ की सेवा कर सकता है उसे अकारण जेल दिया जाता है क्योंकि वह व्यवस्था के लिए खतरा बन सकता है। 

भाव पक्ष (मूल भाव) 

नागार्जुन भी भारत माता की ऐसी ही स्थिति देखते हैं। वे बताते हैं कि भारत माता भले ही स्वतंत्र हो गई है  परंतु वह आज भी उतनी ही परतंत्र और दुखी हैं। शासक बदल गए परंतु माता की स्थिति बदतर होती जा रही है। उनका जो पुत्र उनकी सेवा करना चाहता है उसे जेल हो जाती है। जो गद्दी से चिपक गया वह तो माता से मुँह फेर ही लेगा। 

पंत ने लिखा भारतमाता ग्रामवासिनी, खेतों में फैला श्यामल, धूल भरा मैला-सा आँचल / गंगा जमुना में आँसू जल मिट्टी की प्रतिमा उदासिनी। 

कलापक्ष 

रस – हास्य रस की अनुभूति होती है परंतु व्यंग्य की तीव्र चमक / करूण रस की झलक भी देती है। 

छंद – छंद मुक्त परंतु तुकान्त कविता। 

अलंकार – अनुप्रास 

भाषा शैली – भाषा सरल सजीव एवं सुबोध है। आम बोल-चाल की भाषा प्रयुक्त हुई है। प्रत्येक शब्द संगीत के रोशन तारों में माणिक्य मोतियों की तरह गूँथा हुआ है। भाव, भाषा तथा शैली का अद्भुत संगम मिलता है। चुटीली और व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग है। देशज शब्दावली का भी प्रयोग है। 

बोध प्रश्न – 1 

1. प्रस्तुत कविता ‘बाकी बच गया अंडा’ के रचयिता कौन है ? 

उत्तर – प्रस्तुत कविता के रचयिता नागार्जुन जी हैं।

2. भारत माता के कितने पुत्र थे ? 

उत्तर – भारत माता के पाँच पुत्र थे।

3. माता का पहला पुत्र कैसे मरा ? 

उत्तर – भारत माता का पहला पुत्र गोली खाकर मर गया।

4. भारत माता के चारों पुत्र कैसे थे ? 

उत्तर – भारत माता के चारों पुत्र चतुर एवं प्रवीण थे।

5. कंधे पर झंडा रखे पुत्र को जेल क्यों हुई?

उत्तर – कंधे पर झंडा रखे पुत्र को जेल इसलिए हुई क्योंकि वह भारत माता का सम्मान करता था। उनकी सेवा करना चाहता था। 

6. कविता में कवि किस बात का वर्णन कर रहा है ? 

उत्तर – कविता में कवि कहता है कि देश जिनके भरोसे है वे अपने स्वार्थ में लग गए और देश की चिंता उन्होंने छोड़ दी है।

7. कविता की भाषा शैली कैसी है ? 

उत्तर – कविता की भाषा चुटीली व्यंग्यात्मक तथा प्रवाहपूर्ण है खड़ी बोली के साथ कुछ देशज शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। 

अभ्यास प्रश्न 

1. प्रस्तुत कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। 

2. नागार्जुन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में लिखिए। 

3. नागार्जुन जी की भाषा पर एक लेख लिखिए। 

4. नागार्जुन की राजनीतिक चेतना पर संक्षेप में लिखिए। 

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