लेखक परिचय :
गुलाबराय का जन्म सन् 1888 में इटावा में हुआ। अपने माता-पिता की धार्मिक और दार्शनिक प्रवृत्ति का आप पर विशेष प्रभाव पड़ा। आपने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की परीक्षा पास की। दर्शन शास्त्र पर आपने कई पुस्तकें लिखी हैं। बाद में आपकी रुचि साहित्य पर केंद्रित हुई। आगरा में सेंट जान्स कॉलेज में आप अध्यापक नियुक्त हुए। आपने एल.एल.बी की परीक्षा भी पास की। आगरा में रहते समय आपने साहित्य का गंभीर अध्ययन किया। ‘साहित्य संदेश’ का आपने सफल संपादन भी किया।
गुलाबराय दर्शन, इतिहास, राजनीति, साहित्य आदि अनेक विषयों पर अमूल्य ग्रंथ हिन्दी को दे सके हैं। उनकी साहित्य सेवाओं का उचित मूल्यांकन करते हुए आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया था।
मन की बातें, कर्तव्य शास्त्र, पाश्चात्य दर्शन का इतिहास, बौद्धधर्म आदि उनकी दार्शनिक रचनाएँ हैं। नवरस, प्रसादजी की कला, सिद्धान्त और अध्ययन, हिन्दी नाट्य विमर्श आदि उनकी आलोचनात्मक रचनाएँ हैं। ढलुआक्लब, प्रबंध प्रभाकर, जीवन पथ मेरी असफलताएँ, फिर निराशा क्यों आदि संग्रहों में उनके निबंध संकलित हुए हैं। उनके निबंधों में विषय प्रतिपादन की स्पष्टता तथा पर्याप्त गहराई है।
पाठ का सार
मधुर भाषण, मतलब मीठी बातें। सच में, मीठी बातों से, मधुर व्यवहार से, शिष्टाचार और विनय से दूसरे का दिल को आसानी से जीता जा सकता है। भाषा मनुष्य की बड़ी संपत्ति है। वह मीठी बात करके समाज में मित्र बनाता है, कड़वी बोली से दुश्मनी मोल लेता है। नाराजगी, अहंकार, घमंड कठोर भाषा से व्यक्त हो जाते हैं। मन, वचन, कर्म में निष्कपटता हो तो वाणी मीठी होती है। सरल हृदय का व्यवहार और कपट या दिखावे की तकल्लुफ पहले असर भले ही करे पर देर सबेर पहचाने जाते हैं। लेखक कहता है कि क्यों न मीठी वाणी बोले, दूसरों को खुश करें, आप भी खुश रहें। हम भद्र बनें, सभ्य बनें, सरल बनें। यह मानवता के लक्षण हैं। दुनिया में सफलता और कामयाबी की कुंजी तो मीठी बात ही है।
मधुर भाषण
भाषा पर मनुष्य का विशेष अधिकार है। भाषा के कारण ही मनुष्य इतनी उन्नति कर सका है। जानवर हजारों वर्ष से जहाँ-के-तहाँ बने हुए हैं। किंतु मनुष्य उत्तरोत्तर उन्नति करता चला आया है। अन्य जानवरों की अपेक्षा मनुष्य भौतिक बल में न्यून होता हुआ भी अपनी बुद्धि और भाषा के सहारे अधिक सबल हो गया है। उसने पंच महाभूतों को अपने वश में कर लिया है। यह सब भाषा द्वारा प्राप्त सहकारिता के बल पर ही हो सका है। भाषा द्वारा हमारे ज्ञान और अनुभव की रक्षा होती है।
भाषा द्वारा मनुष्य की सामाजिकता कायम है, किंतु भाषा का दुरुपयोग ही उसे छिन्न- भिन्न भी कर देता है। एक मधुर शब्द दो रूठों को मिला देता है और एक ही कटु शब्द दो मित्रों के मन में वैमनस्य उत्पन्न कर देता है।
अब प्रश्न यह होता है कि मधुर या मिष्ट भाषण किसे कहते हैं? साधारणतया जो वस्तु मनोनुकूल होती है, जिससे चित्त द्रवित होता है, वही मधुर कहलाती है। माधुर्य भाषा का भी गुण है। चित्त को पिघलाने वाला जो आनंद होता है, उसे ‘माधुर्य’ कहते हैंI
वचनों का माधुर्य हृदयद्वार के खोलने की कुंजी है। वचनों का आकर्षण न्यूटन के तत्वाकर्षण और चुंबक के आकर्षण से भी बढ़कर है। तभी तो तुलसीदास ने कहा है-
“कोयल काको देत है कागा कासो लेत।
तुलसी मीठे बचन ते जग अपनो करि लेत॥”
एक ही बात को हम कर्णकटु शब्दों में कहते हैं और उसी को हम मधुर बना सकते हैं। बाणभट्ट जब मरने वाला था तो यह प्रश्न हुआ कि उसकी अधूरी कादंबरी को कौन पूरा करेगा? उसने अपने दोनों लड़कों को बुलाया और उनसे पूछा कि सामने जो सूखा
वृक्ष खड़ा है उसको तुम किस प्रकार अपनी भाषा में व्यक्त करोगे? बड़े लड़के ने कहा, “शुष्कं काष्ठं तिष्ठत्यग्रे” दूसरे ने कहा, “नीरस तरुवर विलसति पुरतः” बात एक ही थी; कहने में फर्क था। बाणभट्ट ने अपने छोटे लड़के को ही पुस्तक पूरी करने का भार सौंपा।
यह तो रही साहित्य के शब्दसंयोजन की बात ! साधारण बोलचाल में भी बड़ा अंतर हो जाता है। भाव को प्रभावशाली भाषा में व्यक्त कर देना ही साहित्य है। जो मनुष्य किसी गलतफहमी को दूर कर रूठे हुए मित्र को मना लेता है वह सच्चा साहित्यिक है।
वार्तालाप की शिष्टता मनुष्य को आदर का भाजन बनाती है और समाज से उसकी सफलता के लिए रास्ता साफ कर देती है। मनुष्य का समाज में जो प्रभाव पड़ता है, वह बहुत अंश में पोशाक और चालढाल पर निर्भर रहता है, किंतु विषभरे कनकघटों की संसार में कमी नहीं है। यह प्रभाव ऊपरी होता है और पोशाक का मान जब तक भाषण से पुष्ट नहीं होता है, तब तक स्थायी नहीं होता। मधुर भाषी के लिए करनी और कथनी का साम्य आवश्यक है, किंतु कर्म के लिए वचन पहली सीढ़ी है। मधुर वचन ही विश्वास उत्पन्न कर भय और आंतक का परिमार्जन कर देते हैं। कटु भाषी लोगों से लोग हृदय खोल कर बात करने में डरते हैं। सामाजिक व्यवहार के लिए विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक है और भाषा की सार्थकता इसी में है कि वह दूसरों पर यथेष्ट प्रभाव डाल सके। जब बुरे वचन आदमी को रुष्ट कर सकते हैं तो मधुर वचन दूसरे को प्रसन्न भी कर सकते हैं। शब्दों का जादू बड़ा जबर्दस्त होता है।
मधुर वचनों के साथ यह भी आवश्यक है कि उनके पीछे टकसाली भाव भी हों नहीं तो मुलम्मे के सिक्कों की भाँति वे बेकार रहेंगे। हृदय की मलिनता और मधुर वचनों का योग नहीं हो सकता है। वचन के अनुकूल जब कर्म भी होते हैं, तभी मनुष्य वंद्य बनता है।
मन, वाणी और कर्म का सामंजस्य ही मनुष्य को श्रेष्ठता के पद पर पहुँचाता है। फिर भी वचनों का विशेष महत्व है, क्योंकि एक कटु वचन सारे किए-धरे पर पानी फेर सकता है। यद्यपि यह ठीक है कि दुधारु गाय की दो लातें भी सहन की जाती हैं, फिर भी दूसरे के स्वाभिमान का हनन कर उसके साथ उपकार करना कोई महत्व नहीं रखता। वाणी की मधुरता के साथ विनयपूर्ण व्यवहार ही शिष्टाचार है। शिष्टाचार का अर्थ लोग दिखावा या तकल्लुफ करते हैं। लेकिन वास्तव में उसका अर्थ है – सज्जनोचित व्यवहार। मधुर भाषण के साथ इसका भी मूल्य है। उनके द्वारा मनुष्य की शिक्षा-दीक्षा और कुल की परंपरा और मर्यादा का परिचय मिलता है।
है|
किसी काम को कराने के लिए कृपया शब्द का प्रयोग शिष्टता का परिचायक होता। काम हो जाने के पश्चात् धन्यवाद कहना भी जरुरी है। जो अपने से नीचे हैं उनसे कोई ऐसी बात न कही जाए कि जिससे यह प्रकट हो कि हम उनको नीचा समझते हैं। अपने से कम स्थिति के लोगों के स्वाभिमान की रक्षा करना सज्जन का पहला कर्तव्य है।
जो काम करना है उसको प्रसन्नता से करना चाहिए और उसके संबंध में कोई ऐसे शब्द भी न कहने चाहिए जिनसे प्रकट हो कि यह काम नाखुशी से किया जा रहा है या उस काम के करने से दूसरे के साथ एहसान किया जा रहा है। या तो कोई चीज न दे और दे तो पूर्ण उदारता से और प्रसन्नता के साथ। कम-से-कम जहाँ क्रिया में उदारता हो वहाँ ‘वचने दरिद्रता’ न आने देनी चाहिए।
यदि इनकार ही करना पड़े तो उसमें अधिकार और अभिमान की गंध न आनी चाहिए। इनकार मजबूरी के ही कारण होना चाहिए चाहे वह सैद्धांतिक मजबूरी हो या आर्थिक इनकार शिष्टता के साथ भी हो सकता है और अशिष्टता के साथ भी। प्रायः लोग अशिष्टता से यह कह देते हैं – जाओ ! अमुक वस्तु यहाँ कहाँ से आई, तुम्हारा कोई देना आता है? घर वालों को तो जुड़ता ही नहीं तुम्हारे लिए कहाँ से लाएँ? इनकार करने में जो बातें कही जाएँ उनमें परायेपन का भाव न आने देना चाहिए | इनकार करते समय खेद प्रकट करना शिष्टाचार की माँग है। कहना चाहिए कि ‘मुझे बड़ा खेद है कि आपके लिए इनकार करना पड़ता है। आपने यहाँ आने का या माँगने का कष्ट किया और मैं इस विषय में आपकी सेवा न कर सका।’
वार्तालाप में हमको व्यापारिक या जाब्ते की बातचीत और निजी बातचीत में थोड़ा अंतर करना होगा। व्यापारिक बातचीत भी अशिष्ट न होनी चाहिए, किंतु वह नपी-तुली हो सकती है। निजी संबंध की बातचीत में आत्मीयता का अभाव न रहना चाहिए और थोड़ा सा कष्ट उठाकर बात को पूरी तौर से समझा देना अपना कर्तव्य हो जाता है। कुछ लोग सबके साथ निजी संबंध का-सा ही वार्तालाप करते हैं, यह भी बुरा नहीं है; किंतु बात उतनी ही कही जाए जितनी निभाई जा सके।
शब्दार्थ :
भौतिक बल – शारीरिक ताकत।
न्यून – कम्।
पंचमहाभूत – पृथिवी, जल, आकाश, वायु, अग्नि।
सहकारिता – सबसे मिल कर काम करना।
वैमनस्य – विरोधी भाव, नाराजगी।
माधुर्य – मधुरता।
मनोनुकूल – मनको अच्छा लगने वाला।
न्युटन का गुरुत्वाकर्षण – पाश्चात्य वैज्ञानिक न्यूटन ने बताया है कि पृथ्वी की माध्याकर्षण शक्ति चुम्बक से भी बढ़कर है।
कोयल ………. करिलेत – तुलसी ने बताया है कि कोयल किसी को कुछ नहीं देता है और कौआ किसी से कुछ नहीं लेता है। लेकिन कोयल अपनी मधुर बोली से सबको खुश कर देती है। कौवे की कर्कश वाणी से सब नाखुश हो जाते हैं। कादम्बरी – बाणभट्ट द्वारा रचित प्रसिद्ध गद्यकाव्य है जो कि संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
शुष्कं काष्ठं तिष्ठत्यग्रे – आगे सुखी लकड़ी है।
नीरस तरुवर विलासति पुरतः -आगे नीरस वृक्ष शोभा पा रहा है।
गलत फहमी – भ्रम धारणा
चालढाल – आचार व्यवहार।
जबर्दस्त – जोरदार।
टकसाली भाव – सच्ची भावना।
मुलम्मे के सिक्कों – नकली मुद्रा।
कटु – तिक्त।
शिष्ट – भद्र।
सैद्धान्तिक – किसी विद्वान से सम्बंधित सिद्धांत, Doctrine
मजबूरी – बेबसी
वार्तालाप – बातचीत।
विषभरे कनकघट – बाहर से आकर्षक मगर भीतर से हानिकारक, सफेद भेस में काले दिलवाला।
वचने दरिद्रता – कथन में कमी।
आत्मीयता – निजीपन, अपनापन
प्रश्न और अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए :
(क) भाषा के द्वारा मनुष्य ने किस प्रकार की उन्नति की है?
उत्तर – भाषा के द्वारा मनुष्यों ने अपने विचार एक-दूसरे से साझा किए और विकास के कार्यों में भी मिलकर हाथ बँटाया, फलस्वरूप मनुष्य ने हरेक क्षेत्र में उन्नति की और पंचभूतों को भी अपने वश में कर लिया।
(ख) मधुर भाषण किसे कहते हैं?
उत्तर – साधारणतया जो वचन या बातें मन के अनुकूल होती हैं, जिससे चित्त द्रवित होता है, जिसमें बोलने वाले और सुनने वाले दोनों को असीम शांति और सुख का अनुभव होता है, वही मधुर भाषण कहलाता है।
(ग) बाणभट्ट ने अपने छोटे लड़के को पुस्तक पूरी करने के लिए क्यों कहा?
उत्तर – बाणभट्ट जब मृत्यु के समीप पहुँचे तो अपनी अधूरी पुस्तक कादंबरी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने दोनों लड़कों को बुलाया और उनसे पूछा कि सामने जो सूखा वृक्ष खड़ा है उसे तुम किस प्रकार अपनी भाषा में व्यक्त करोगे? बड़े लड़के ने कहा, “शुष्कं काष्ठं तिष्ठत्यग्रे” अर्थात् मेरे सामने एक सूखी लकड़ी खड़ी है। उनके दूसरे बेटे ने कहा, “नीरस तरुवर विलसति पुरतः” अर्थात् एक नीरस वृक्ष मेरे सामने शोभित हो रहा है। बात एक ही थी बस कहने में फर्क था इसलिए बाणभट्ट ने अपने छोटे लड़के को ही पुस्तक पूरी करने का भार सौंपा।
(घ) किन-किन गुणों के कारण मनुष्य आदर भाजन बनता है?
उत्तर – वार्तालाप की शिष्टता, सहृदयता और आत्मीयता जैसे गुणों के कारण मनुष्य आदर का भाजन बनता है और यही सम्मान उसकी सफलता के लिए मार्ग प्रशस्त कर देती है।
(ङ) मधुर वचन और कटु वचन बोलने वालों को क्या मिलता है?
उत्तर – मधुर वचनों का प्रयोग दो रूठे हुए व्यक्तियों को मिला देता है, उनके पारस्परिक संबंधों को और भी प्रगाढ़ बना देता है जबकि एक ही कटु शब्द दो मित्रों के मन में वैमनस्य उत्पन्न कर देता है। कटु वचन बोलने वालों के साथ कोई अपना हृदय खोलकर भी बातें नहीं करता है।
(च) किसी काम को करने के लिए सज्जन का पहला कर्तव्य क्या है?
उत्तर – सज्जन किसी काम को कराने से पहले ‘कृपया’ शब्द का प्रयोग करते हैं और काम हो जाने के बाद ‘धन्यवाद’ शब्द का। और साथ ही साथ अपने से कम स्थिति के लोगों के स्वाभिमान की रक्षा करना भी सज्जन का पहला कर्तव्य है।
(छ) वार्त्तालाप में व्यापारिक बातचीत और निजी बातचीत में क्या अंतर है?
उत्तर – व्यापारिक बातचीत शिष्ट और नपी-तुली शब्दों में होनी चाहिए जबकि निजी संबंध की बातचीत में आत्मीयता का प्राचुर्य होना चाहिए और अपनी बातों को थोड़ा-सा कष्ट उठाकर सामने वाले व्यक्ति को पूरे तरीके से समझा देना चाहिए।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए :
(क) मनुष्य की सामाजिकता किसके द्वारा कायम रहती है?
उत्तर – भाषा द्वारा मनुष्य की सामाजिकता कायम है।
(ख) कैसा शब्द दो रूठों को मिला देता है और कैसा शब्द दो मित्रों के मन में वैमनस्य उत्पन्न कर देता है?
उत्तरा- मधुर शब्द दो रूठों को मिला देता है और कटु शब्द या कटु वचन दो मित्रों के मन में वैमनस्य उत्पन्न कर देता है।
(ग) बाणभट्ट की कौन-सी किताब अधूरी रह गयी थी?
उत्तर – बाणभट्ट की कादंबरी पुस्तक अधूरी रह गई थी।
(घ) वार्तालाप की शिष्टता से हमें क्या लाभ मिलता है?
उत्तर – वार्तालाप की शिष्टता हमें आदर का भाजन बनाती है और समाज में हमारी सफलता का मार्ग साफ कर देती है।
(ङ) कथनी और करनी में साम्य क्यों आवश्यक है?
उत्तर – मधुर भाषी के लिए कथनी और करनी में साम्य आवश्यक है, क्योंकि अगर वह जो कहता है वही करे तो लोगों में उसके प्रति विश्वास दृढ़ हो जाएगा और लोग उनसे दिल खोलकर बातें करेंगे।
(च) मनुष्य कब वंद्य बनता है?
उत्तर – जब मनुष्य के वचन के अनुरूप ही उसके कर्म भी होते हैं, तभी मनुष्य वंद्य बनता है।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए :
(क) भाषा द्वारा किसकी रक्षा होती है?
उत्तर – भाषा द्वारा हमारे ज्ञान और अनुभव की रक्षा होती है।
(ख) ‘मधुर भाषण’ निबंध के लेखक कौन हैं?
उत्तर – ‘मधुर भाषण’ निबंध के लेखक गुलाबराय हैं।
(ग) कौन मनुष्य को आदर भाजन बनाती है?
उत्तर – वार्तालाप की शिष्टता मनुष्य को आदर का भाजन बनाती है।
(घ) मधुर भाषी के लिए किसमें साम्य रखने की आवश्यकता है?
उत्तर – मधुर भाषी के लिए कथनी और करनी में साम्य रखने की आवश्यकता है।
(ङ) किन-किन का सामंजस्य मनुष्यता को श्रेष्ठता के पद पर पहुँचाता है?
उत्तर – मन, वाणी और कर्म का सामंजस्य ही मनुष्य को श्रेष्ठता के पद पर पहुँचाता है।
(च) किन-किन का योग नहीं हो सकता?
उत्तर – हृदय की मलिनता और मधुर वचनों का योग नहीं हो सकता है।
(छ) किसकी दो लातें भी सहन की जाती हैं?
उत्तर – दुधारू गाय की दो लातें भी सहन की जाती हैं।
(ज) शिष्टता क्या है?
उत्तर – अपने से बड़ों, समवयस्कों या छोटों के प्रति किया जाने वाला प्रेमपूर्ण व्यवहार ही शिष्टता है।
(झ) किसकी रक्षा सज्जन का पहला कर्तव्य है?
उत्तर – अपने से कम स्थिति के लोगों के स्वाभिमान की रक्षा करना सज्जन का पहला कर्तव्य है।
(ञ) निजी संबंध की बातचीत में किसका अभाव न रहना चाहिए?
उत्तर – निजी संबंध की बातचीत में आत्मीयता का अभाव नहीं रहना चाहिए।
भाषा – ज्ञान
1. निम्नलिखित में से विशेषण शब्दों को चुनकर लिखिए:
विश्वास, भौतिक, पटु, माधुर्य, वचन, शिष्टता, प्रसन्नता, व्यापारिक, सैद्धान्तिक, मर्यादा, अभिमान।
उत्तर – भौतिक, पटु, व्यापारिक, सैद्धान्तिक
2. निम्नलिखित शब्दों के लिंग बताइए :
गंध, भाव, कर्त्तव्य, परंपरा, भाषा, भाषण, वचन, वाणी, साहित्य, उन्नति।
उत्तर – गंध – स्त्रीलिंग, भाव – पुल्लिंग, कर्त्तव्य – पुल्लिंग, परंपरा – स्त्रीलिंग, भाषा – स्त्रीलिंग, भाषण – पुल्लिंग, वचन– पुल्लिंग, वाणी – स्त्रीलिंग, साहित्य – पुल्लिंग, उन्नति – स्त्रीलिंग।
3. निम्नलिखित के पर्यायवाची शब्द लिखिए :
मनुष्य, चित्र, पुस्तक, मधुर, कटु, आनंद
उत्तर – मनुष्य – नर, मानव, मनुज
चित्र – तसवीर, रेखाचित्र
पुस्तक – किताब, पोथी, ग्रंथ
मधुर – मीठा, रसीला
कटु – कड़वा, तिक्त
आनंद – उल्लास, उमंग
4. निम्नलिखित शब्दों के विलोम रूप लिखिए :
ज्ञान, उन्नति, सच्चा, मधुर, आनंद, मित्र, बड़ा
उत्तर – ज्ञान – अज्ञान, उन्नति – अवनति, सच्चा – झूठा, मधुर – तिक्त, आनंद – शोक, मित्र – शत्रु , बड़ा – छोटा
5. निम्नलिखित शब्दों के प्रयोग से एक-एक वाक्य बनाइए :
वचन, भाषण, चाल-ढाल, आदान-प्रदान, सामंजस्य, इनकार, आत्मीयता
उत्तर – वचन – मीठे वचन सबका मन मोह लेते हैं।
भाषण – सुधीर ने ऊर्जा से भरपूर भाषण दिया।
चाल-ढाल – पड़ोसी हमारी चाल-ढाल पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।
आदान-प्रदान – भावों का आदान-प्रदान आदिकाल से होता आ रहा है।
सामंजस्य – हमें खेलकूद और पढ़ाई-लिखाई में सामंजस्य बनाना चाहिए।
इनकार – हमें गलत काम करने से इनकार देना चाहिए।
आत्मीयता – अपनों के प्रति आत्मीयता होती ही है।
6. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(क) भाषा मनुष्य के विशेष अधिकार है।
उत्तर – भाषा पर मनुष्य का विशेष अधिकार है।
(ख) हृदय का मलिनता और मधुर वचनो में योग नहीं हो सकता।
उत्तर – हृदय की मलिनता और मधुर वचनो में योग नहीं हो सकता।
(ग) कटुभाषी लोगों में लोग हृदय खोलकर बात करने में डरते हैं।
उत्तर – कटुभाषी लोगों से लोग हृदय खोलकर बात करने में डरते हैं।
(घ) भाव को प्रभावशाली भाषा के व्यक्त कर देना ही साहित्य है।
उत्तर – भाव को प्रभावशाली भाषा में व्यक्त कर देना ही साहित्य है।
(ङ) मधुर वचन दूसरे में प्रसन्न भी कर सकते हैं।
उत्तर – मधुर वचन दूसरे को भी प्रसन्न कर सकते हैं।
7. ‘ता’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए :
सामाजिक, मनुष्य, प्रसन्न, अशिष्ट, मलिन
उत्तर – सामाजिक + ता = सामाजिकता
मनुष्य + ता = मनुष्यता
प्रसन्न + ता = प्रसन्नता
अशिष्ट + ता = अशिष्टता
मलिन + ता = मलिनता
8. ‘इक’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए :
विचार, नीति, इतिहास, भूत, समाज, साहित्य, सिद्धांत, व्यापार
उत्तर – विचार + इक = वैचारिक
इतिहास + इक = ऐतिहासिक
भूत + इक = भौतिक
समाज + इक = सामाजिक
साहित्य + इक = साहित्यिक
सिद्धांत + इक = सैद्धांतिक
व्यापार + इक = व्यापारिक
निम्नलिखित वाक्यों को याद रखिए :
(क) वाणी और कर्म में सामंजस्य ही मनुष्य को श्रेष्ठता के पद पर पहुँचाता है।
(ख) मधुरभाषी के लिए कथनी और करनी का साम्य आवश्यक है।
(ग) चित्त को पिघलानेवाला जो आनंद होता है, उसे ‘माधुर्य’ कहते हैं।
(घ) वार्त्तालाप की शिष्ठता मनुष्य को आदर भाजन बनाती है।
योग्यता विस्तार :
(क) कक्षा में ‘मधुर’ भाषण का एक कार्यक्रम आयोजित कीजिए।
(ख) अपनी योग्यता बढाने के लिए ऊपर छाँटकर दिए गए मधुर वाक्यों को याद रखिए
और अपने भाषण को सरस बनाने के लिए इसका उपयोग कीजिए।