लेखिका-परिचय :
महादेवी वर्मा का जन्म उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद शहर में सन् 1907 को हुआ। उनकी माता हेमरानी और पिता गोविन्दप्रसाद वर्मा – दोनों कुलीन और धनी परिवार के थे। महादेवी का बचपन सुख-चैन से बीता।
महादेवी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम. ए. पास किया; फिर वे प्रयाग महिला विद्यापीठ में प्रिंसिपल बनीं। उन्होंने हजारों लड़कियों को पढ़ाया, नारी – शिक्षा के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान रहा।
महादेवीजी विदुषी, जागरूक और सहानुभूतिशील थीं। उनके पास तेज बुद्धि थी और कोमल हृदय था। उन्होंने जीवन और जगत को निकट से देखा। केवल मनुष्य ही नहीं, अपितु जीव-जन्तुओं तक के सुख-दुख को उन्होंने पहचाना, अनुभव किया; समाज में फैले अनाचार, अत्याचार और विषमता का अनुभव किया; लोगों की आशा-आकांक्षा, इच्छा-अभिलाषा, पीड़ा-वेदना को समझा। उनको सरल भाव – पूर्ण भाषा में व्यक्त किया। ऐसा सजीव वर्णन किया कि पढ़ने से आँखों के सामने चित्र उभर आते हैं।
महादेवी ने नारी के महत्त्व को समझा, उसके त्याग और बलिदान से प्रेरणा ली। उन्होंने नारी के स्नेह-प्रेम, त्याग – ममता, दुख-दर्द और क्षमताओं की बेजोड़ छवियाँ आँकीं। नारी को उन्होंने दीपशिखा कहा, जो खुद जलकर सबको आलोक प्रदान करती है। वह नीरभरी दुख की बदली है। बदली खुद दुख सहकर करुणा से विगलित हो, धरती पर जल बरसाकर उसे सुख, शांति, शीतलता से भर देती है; जीवन को हरा-भरा कर देती है। उसी तरह नारी भी दुख सहकर सबको आनंद देती है। महादेवी प्यार और पीड़ा की लेखिका हैं। अपनी कविताओं में उन्होंने मानव की पीड़ा, वेदना, विवशता और शक्ति – सामर्थ्य का वर्णन किया। इसलिए उनके काव्य अत्यंत तरल और मार्मिक बन गये। वे छायावाद युग की प्रख्यात कवयित्री हो गयीं।
महादेवी की रचनाओं में विचार हैं तो भाव भी हैं; कल्पना है तो चित्र भी है; सजीवता है, सूक्ष्मता है, करुणा है, शक्ति का संदेश भी है। इसलिए महादेवी कविता तथा गद्य- दोनों में सिद्धहस्त हैं; अतः उनकी रचनाएँ पाठक के मर्म को छू लेती हैं। महादेवी जी ने ईश्वर की चेतना, मानव मन की कोमलता, स्नेह – प्रेम, करुणा-वेदना को अपनी गद्य-रचनाओं में भी उजागर किया। विचारों के साथ कोमल भावनाओं को पिरोया; सूक्ष्म निरीक्षण किया। उनकी गद्य-रचनाएँ पाठक की आँखों के सामने चित्र खड़े कर देती हैं। उन्होंने साफ-सुथरी, संस्कृत शब्दों से भरी सुंदर भाषा का प्रयोग किया।
महादेवी की कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं
काव्य : नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत और दीपशिखा।
रेखाचित्र : अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ।
संस्मरण : पथ के साथी।
निबंध तथा भूमिकाएँ – शृंखला की कड़ियाँ, महादेवी का विवेचनात्मक गद्य, क्षणदा और संकल्पिता।
उन्होंने ‘चाँद’ पत्रिका की संपादना की। उन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक, पद्म भूषण तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
विचार – बोध :
प्रस्तुत निबंध ‘गिल्लू’ महादेवी का एक संस्मरण है। उनकी स्मरण शक्ति इतनी प्रखर है कि बीती घटनाओं के पूरे ब्योरेवर वर्णन – वे अत्यंत सहृदयता से व्यक्त करती हैं। प्राणि – मात्र के प्रति महादेवी के मन में गहरी सहानुभूति थी। अतः उनकी रचनाओं में प्रेम, पीड़ा, विश्व-वेदना और करुणा की सहज स्वाभाविक अभिव्यक्ति पायी जाती है। इस निबंध में एक गिलहरी जैसे छोटे जीव की जीवन शैली का वर्णन करते हुए महादेवी ने प्राणि- मात्र के प्रति अपने प्रेम, करुणा तथा हृदय की संवेदनशीलता से पाठकों को सराबोर कर दिया है।
महादेवी की भाषा अत्यंत सरल, सजीव होने के साथ-साथ चित्र और प्रतीकों से पूर्ण होने के कारण सीधे असर करती है। बीच-बीच में संस्कृत के दो-एक शब्द मोतियों की भांति चमकते और भावों को जगमगा देते हैं। इसलिए ऐसे लेखों को बार- बार पढ़ने की इच्छा होती है। इनमें कहानी का-सा मजा आता है।
गिल्लू
सोनजुही में आज एक पीली कली लगी है। इसे देखकर अनायास ही उस छोट जीव का स्मरण हो आया, जो इस लता की सघन हरीतिमा में छिपकर बैठता था और फिर मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूदकर मुझे चौंका देता था। तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है।
परंतु वह तो अब तक इस सोनजुही की जड़ में मिटृी होकर मिल गया होगा। कौन जाने स्वर्णिम कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो!
अचानक एक दिन सवेरे कमरे से बरामदे में आकर मैंने देखा, दो कौवे एक गमले के चारों ओर चोंचों से छूआ—छुऔवल जैसा खेल खेल रहे हैं। यह काकभुशुंडि भी विचित्र पक्षी है.एक साथ समादरित अनादरित, अति सम्मानित अति अवमानित।
हमारे बेचारे पुरखे न गरुड़ के रूप में आ सकते हैं, न मयूर के, न हंस के। उन्हें पितरपक्ष में हमसे कुछ पाने के लिए काक बनकर ही अवतीर्ण होना पड़ता है। इतना ही नहीं हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधुर संदेश इनके कर्कश स्वर में ही देना पड़ता है। दूसरी ओर हम कौवा और काँव—काँव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।
मेरे काकपुराण के विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी, क्योंकि गमले और दीवार की संधि में छिपे एक छोटे—से जीव पर मेरी दृष्टि रुक गई। निकट जाकर देखा, गिलहरी का छोटा—सा बच्चा है जो संभवतः घोंसले से गिर पड़ा है और अब कौवे जिसमें सुलभ आहार खोज रहे हैं।
काकद्वय की चोंचों के दो घाव उस लघुप्राण के लिए बहुत थे, अतः वह निश्चेष्ट—सा गमले से चिपटा पड़ा था।
सबने कहा, कौवे की चोंच का घाव लगने के बाद यह बच नहीं सकता, अतः इसे ऐसे ही रहने दिया जाए।
परंतु मन नहीं माना उसे हौले से उठाकर अपने कमरे में लाई, फिर रुई से रक्त पोंछकर घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया।
रुई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर जैसे—जैसे उसके नन्हे से मुँह में लगाई पर मुँह खुल न सका और दूध की बूँदे दोनों ओर ढुलक गईं।
कई घंटे के उपचार के उपरांत उसके मुँह में एक बूँद पानी टपकाया जा सका। तीसरे दिन वह इतना अच्छा और आश्वस्त हो गया कि मेरी उँगली अपने दो नन्हे पंजों से पकड़कर, नीले काँच के मोतियों जैसी आँखों से इधर—उधर देखने लगा।
तीन—चार मास में उसके स्निग्ध रोएँ, झब्बेदार पूँछ और चंचल चमकीली आँखें सबको विस्मित करने लगीं।
हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया और इस प्रकार हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे। मैंने फूल रखने की एक हलकी डलिया में रुई बिछाकर उसे तार से खिड़की पर लटका दिया।
वही दो वर्ष गिल्लू का घर रहा। वह स्वयं हिलाकर अपने घर में झूलता और अपनी काँच के मनकों—सी आँखों से कमरे के भीतर और खिड़की से बाहर न जाने क्या देखता—समझता रहता था। परंतु उसकी समझदारी और कार्यकलाप पर सबको आश्चर्य होता था।
जब मैं लिखने बैठती तब अपनी ओर मेरा ध्यान आकर्षित करने की उसे इतनी तीव्र इच्छा होती थी कि उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला।
वह मेरे पैर तक आकर सर्र से परदे पर चढ़ जाता और फिर उसी तेज़ी से उतरता। उसका यह दौड़ने का क्रम तब तक चलता जब तक मैं उसे पकड़ने के लिए न उठती।
कभी मैं गिल्लू को पकड़कर एक लंबे लिफ़ाफ़े में इस प्रकार रख देती कि उसके अगले दो पंजों और सिर के अतिरिक्त सारा लघुगात लिफ़ाफ़े के भीतर बंद रहता। इस अद्भुत स्थिति में कभी—कभी घंटों मेज़ पर दीवार के सहारे खड़ा रहकर वह अपनी चमकीली आँखों से मेरा कार्यकलाप देखा करता।
भूख लगने पर चिक—चिक करके मानो वह मुझे सूचना देता और काजू या बिस्कुट मिल जाने पर उसी स्थिति में लिफ़ाफ़े से बाहर वाले पंजों से पकड़कर उसे कुतरता।
फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया। नीम—चमेली की गंध मेरे कमरे में हौले—हौले आने लगी। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आकर चिक—चिक करके न जाने क्या कहने लगीं?
गिल्लू को जाली के पास बैठकर अपनेपन से बाहर झाँकते देखकर मुझे लगा कि इसे मुक्त करना आवश्यक है।
मैंने कीलें निकालकर जाली का एक कोना खोल दिया और इस मार्ग से गिल्लू ने बाहर जाने पर सचमुच ही मुक्ति की साँस ली। इतने छोटे जीव को घर में पले कुत्ते, बिल्लियों से बचाना भी एक समस्या ही थी।
आवश्यक कागज़—पत्रों के कारण मेरे बाहर जाने पर कमरा बंद ही रहता है। मेरे कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला गया और मैंने भीतर पैर रखा, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर मेरे पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगा। तब से यह नित्य का क्रम हो गया।
मेरे कमरे से बाहर जाने पर गिल्लू भी खिड़की की खुली जाली की राह बाहर चला जाता और दिन भर गिलहरियों के झुंड का नेता बना हर डाल पर उछलता—कूदता रहता और ठीक चार बजे वह खिड़की से भीतर आकर अपने झूले में झूलने लगता।
मुझे चौंकाने की इच्छा उसमें न जाने कब और कैसे उत्पन्न हो गई थी। कभी फूलदान के फूलों में छिप जाता, कभी परदे की चुन्नट में और कभी सोनजुही की पत्तियों में।
मेरे पास बहुत से पशु—पक्षी हैं और उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है, परंतु उनमें से किसी को मेरे साथ मेरी थाली में खाने की हिम्मत हुई है, ऐसा मुझे स्मरण नहीं आता।
गिल्लू इनमें अपवाद था। मैं जैसे ही खाने के कमरे में पहुँचती, वह खिड़की से निकलकर आँगन की दीवार, बरामदा पार करके मेज़ पर पहुँच जाता और मेरी थाली में बैठ जाना चाहता। बड़ी कठिनाई से मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया जहाँ बैठकर वह मेरी थाली में से एक—एक चावल उठाकर बड़ी सफ़ाई से खाता रहता। काजू उसका प्रिय खाघ था और कई दिन काजू न मिलने पर वह अन्य खाने की चीज़ें या तो लेना बंद कर देता या झूले से नीचे फेंक देता था।
उसी बीच मुझे मोटर दुर्घटना में आहत होकर कुछ दिन अस्पताल में रहना पडा़ उन दिनों जब मेरे कमरे का दरवाज़ा खोला जाता गिल्लू अपने झूले से उतरकर दौड़ता और फिर किसी दूसरे को देखकर उसी तेज़ी से अपने घोंसले में जा बैठता। सब उसे काजू दे आते, परंतु अस्पताल से लौटकर जब मैंने उसके झूले की सफ़ाई की तो उसमें काजू भरे मिले, जिनसे ज्ञात होता था कि वह उन दिनों अपना प्रिय खाद्य कितना कम खाता रहा।
मेरी अस्वस्थता में वह तकिए पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हे—नन्हे पंजों से मेरे सिर और बालों को इतने हौले—हौले सहलाता रहता कि उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
गरमियों में जब मैं दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झूले में बैठता। उसने मेरे निकट रहने के साथ गरमी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह मेरे पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता।
गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती, अतः गिल्लू की जीवन यात्रा का अंत आ ही गया। दिन भर उसने न कुछ खाया न बाहर गया। रात में अंत की यातना में भी वह अपने झूले से उतरकर मेरे बिस्तर पर आया और ठंडे पंजों से मेरी वही उँगली पकड़कर हाथ से चिपक गया, जिसे उसने अपने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
पंजे इतने ठंडे हो रहे थे कि मैंने जागकर हीटर जलाया और उसे उष्णता देने का प्रयत्न किया। परंतु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया। उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परंतु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक—चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है।
सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है। इसलिए भी कि उसे वह लता सबसे अधिक प्रिय थी.इसलिए भी कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मुझे संतोष देता है।
शब्दार्थ :
सोनजुही – Jasmine
कली – Bud
अनायास – बिना प्रयास के
जीव – प्राणी
स्मरण – याद
लता – Creeper
हरीतिमा – हरापन
लघुप्राण- छोटा जीवन
स्वर्णिम – सुनहरा
छूआ—छुऔवल – एक प्रकार का खेल
काकभुशुंडि – एक ब्राह्मण और प्रभु श्रीराम के बड़े भक्त थे, जो लोमश मुनि के शाप से कौआ हो गये थे।
विचित्र – अनोखा
समादरित – समान आदर वाला
अनादरित – बेइज़्ज़त
पितरपक्ष – पितरपक्ष क्वार की कृष्ण प्रतिपदा से अमावास्या तक का समय जब मृत पूर्व पुरुषों के नाम पर श्राद्ध आदि किया जाता है।
काक – कौआ
अवतीर्ण – अवतार के रूप में उत्पन्न
दूरस्थ – दूर का स्थान
संदेश – ख़बर
कर्कश – कड़वा
अवमानना – तिरस्कार
संधि – जोड़ मेल
संभवतः – च्तवइंइसल
सुलभ – आसान, सरल, सहज
आहार – भोजन
काकद्वय – दो कौए
चोंच – Beak
निश्चेष्ट – बेहोश-सा
रक्त – लहू, खून
पेंसिलिन – एक प्रकार की दवा
मरहम – लेप
उपचार – इलाज
आश्वस्त – निश्चिंत
पंजा – Paws
स्निग्ध – चिकना
रोएँ – लोम
विस्मित – आश्चर्य
मनका – मोती
आकर्षित – Attract
तीव्र – द्रुत, तेज़
क्रम – सिलसिला
लिफ़ाफ़ा – खाम, Envelope
लघुगात – छोटा शरीर
अतिरिक्त – के अलावा
अद्भुत – विचित्र
मुक्त – आज़ाद
नित्य – प्रतिदिन
चुन्नट – Wrinkle
अपवाद – Exceptional
दुर्घटना – Accident
आहत – चोट
खाद्य – भोजन
परिचारिका – Care taker
सुराही – मिट्टी का बर्तन
समीप – नज़दीक
ठंडक – शीतलता
यातना – कष्ट
मरणासन्न – मरने की स्थिति
उष्णता – गर्मी
समाधि – क़ब्र
पीताभ – जिसमें पीला रंग झलक रहा हो
संतोष – Satisfaction
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए :
(क) सोनजुही में लगी पीली कली को देखकर लेखिका के मन में कौन-से विचार उमड़ने लगे?
उत्तर – सोनजूही की मनमोहक पीली कली को देखकर लेखिका के मन में यह विचार आया कि वह छोटा जीव गिल्लू इसी कली की सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। मेरे निकट पहुँचते ही कंधे पर कूद जाता था और उन्हें चौंका देता था।
(ख) गिलहरी के घायल बच्चे का उपचार किस प्रकार किया गया?
उत्तर – लेखिका ने दो कौओं की चोंच से घायल और निश्चेष्ट-सा गमले से चिपके पड़े गिलहरी के बच्चे को उठा लिया और कमरे में ले आई और रूई से उसका खून पोंछकर उसके घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया। लेखिका ने रूई की पतली बत्ती दूध से भिगोकर बार-बार उसके नन्हें से मुँह पर भी लगाया।
(ग) लेखिका का ध्यान आकर्षित करने के लिए गिल्लू क्या करता था?
उत्तर – जब लेखिका लिखने बैठती तो गिल्लू उनका ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करता। इसके लिए वह लेखिका के पैर तक आकर तेज़ी से पर्दे पर चढ़ जाता और फिर तेज़ी से उतरता। गिल्लू का यह सिलसिला उस समय तक चलता रहता जब तक लेखिका उसे पकड़ने के लिए न उठती। इस प्रकार गिल्लू लेखिका का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो जाता।
(घ) गिल्लू का कार्य-कलाप कैसा था?
उत्तर – गिल्लू का कार्य-कलाप बिलकुल परिचारिका के समान था। वह लेखिका का खयाल रखता था। उनकी थाली से खाना लेकर खाया करता था। लेखिका का ध्यान आकर्षित किया करता था और कभी-कभी उन्हें चौंका भी दिया करता था।
(ङ) लेखिका को क्यों ऐसा लगा कि गिल्लू को मुक्त करना आवश्यक है?
उत्तर – गिल्लू को मुक्त करने की आवश्यकता पड़ी क्योंकि उसके जीवन का पहला वसंत आ गया था। बाहर की गिलहरियाँ खिड़की की जाली के पास आने लगीं और गिल्लू उन्हें देखा करता था। उसे भी मुक्त वातावरण में उछलने-कूदने का मन करता था। साथ ही साथ कुत्ते और बिल्ली से गिल्लू को बचाना भी था। अतः, लेखिका ने उसे मुक्त करने के लिए जाली का एक कोना खोल दिया और बाहर जाकर गिल्लू ने सचमुच मुक्ति की साँस ली।
(च) लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू क्या करता था?
उत्तर – एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल होने के कारण कई दिनों के बाद घर आई तो गिल्लू ने परिचारिका की तरह लेखिका की सेवा की। वह लेखिका के पास बैठा रहता था। वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से लेखिका के सिर और बालों को इस प्रकार सहलाता जिस प्रकार कोई सेविका अपने हाथों को हल्का कर मालिश कर रही हो।
(छ) गरमी से बचने का कौन-सा उपाय गिल्लू ने खोज निकाला था?
उत्तर – गरमियों में जब लेखिका दोपहर में काम करती रहती तो गिल्लू न बाहर जाता न अपने झूले में बैठता। उसने लेखिका के निकट रहने के साथ गरमी से बचने का एक सर्वथा नया उपाय खोज निकाला था। वह लेखिका के पास रखी सुराही पर लेट जाता और इस प्रकार समीप भी रहता और ठंडक में भी रहता।
(ज) गिल्लू की किन चेष्टाओं से लेखिका को लगा कि अब उसका अंत समय समीप है?
उत्तर – गिलहरी की जीवन अवधि लगभग दो वर्ष की होती है। जब गिल्लू का अंत समय आया तो उसने दिन भर कुछ भी नहीं खाया। वह घर से बाहर भी नहीं गया। वह अपने अंतिम समय में झूले से उतरकर लेखिका के बिस्तर पर निश्चेष्ट-सा लेट गया। उसके पंजे पूरी तरह ठंडे पड़ चुके थे। वह अपने ठंडे पंजे से लेखिका की अँगुली पकड़ कर हाथ से चिपक गया। लेखिका ने हीटर जलाकर उसे गर्मी देने का प्रयास किया परंतु इसका कोई लाभ न हुआ। सुबह होने तक गिल्लू की मृत्यु हो चुकी थी।
(झ) सोनजुही की लता के नीचे बनी गिल्लू की समाधि से लेखिका के मन में किस विश्वास का जन्म होता है?
उत्तर – सोनजुही की पीली कली लगी थी। इसी सोनजूही की लता के नीचे गिल्लू की समाधि थी जो लेखिका को गिल्लू के पुनर्जन्म की अनुभूति दिला रहा था। लेखिका को ऐसा लगा कि इस पीली कली के रूप में गिल्लू फिर से उन्हें चौंकाने आया है।
(ञ) लेखिका को उस लघुप्राण गिल्लू की खोज क्यों थी?
उत्तर – लेखिका को उस लघुप्राण गिल्लू की खोज थी क्योंकि लेखिका उसे आज भी बहुत याद करती हैं। उस समय सोनजुही में लेखिका को केवल कली की खोज रहती थी पर अब वे उस लघुगात, प्राणी को ढूँढ रही थी। इस कली को पुनः खिले हुए देखकर लेखिका के मन में उसी पारिवारिक सदस्य की याद आ गई।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दीजिए :
(क) किसे देखकर लेखिका को गिल्लू का स्मरण हो आया?
उत्तर – सोनजूही में लगी पीली कली को देखकर लेखिका को गिल्लू का स्मरण हो आया।
(ख) गिल्लू लेखिका को कैसे चौंका देता था?
उत्तर – गिल्लू सोनजूही की सघन छाया में छिपकर बैठ जाता था। वह लेखिका के निकट पहुँचते ही कंधे पर कूद जाता था और उन्हें चौंका देता था।
(ग) सोनजुही की स्वर्णिम कली को देखकर लेखिका को क्या लगा?
उत्तर – सोनजुही की स्वर्णिम कली को देखकर लेखिका को लगा कि इस कली के रूप में गिल्लू ही मुझे चौंकाने के लिए पुनर्जन्म लेकर आया है।
(घ) कौवे को कब सम्मानित किया जाता है?
उत्तर – पितरपक्ष में अपने पूर्वज कौवे के रूप में ही आकर भोजन ग्रहण करते हैं और ऐसे में कौवे का बहुत सम्मान किया जाता है।
(ङ) लघुप्राण क्यों निश्चेष्ट – सा गमले में चिपटा पड़ा था?
उत्तर – दो कौवों के चोंच के प्रहार से लघुप्राण गिलहरी निश्चेष्ट – सा गमले में चिपटा पड़ा था।
(च) भूख लगने पर गिल्लू क्या करता था?
उत्तर – भूख लगने पर गिल्लू चिक—चिक करके अपने भूख की सूचना देता था।
(छ) गिल्लू का नित्य का क्रम कैसा था?
उत्तर – लेखिका के कॉलेज से लौटने पर जैसे ही कमरा खोला जाता और वह भीतर पैर रखती, वैसे ही गिल्लू अपने जाली के द्वार से भीतर आकर लेखिका के पैर से सिर और सिर से पैर तक दौड़ लगाने लगता और यह उसका नित्य का क्रम हो गया था।
(ज) लेखिका की अस्वस्थता के समय गिल्लू का हटना क्यों एक परिचारिका के हटने के समान लगता था?
उत्तर – लेखिका की अस्वस्थता के समय गिल्लू का हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता था क्योंकि वह लेखिका के सिरहाने बैठकर अपने नन्हें पंजों से उनका सिर सहलाया करता था।
(झ) गिल्लू की जीवन-यात्रा का अंत क्यों आ गया?
उत्तर – गिल्लू की जीवन-यात्रा का अंत आ गया क्योंकि उसके जीवन के दो वर्ष पूरे हो चुके थे और गिलहरियों की जीवन अवधि दो वर्षों की ही होती है।
(ञ) कौन-से स्पर्श के साथ ही गिल्लू किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया?
उत्तर – प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही गिल्लू किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक शब्द में दीजिए :
(क) लघुप्राण किसे कहा गया है?
उत्तर – लघुप्राण गिल्लू को कहा गया है।
(ख) दो कौवे कैसा खेल खेल रहे थे?
उत्तर – दो कौवे छूआ—छुऔवल का खेल खेल रहे थे।
(ग) गिल्लू के जीवन में प्रथम बसंत आने पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – गिल्लू के जीवन में प्रथम बसंत आने पर उसे बाहर जाने तथा अन्य गिलहरियों के साथ खेलने का अवसर मिला।
(घ) गिल्लू किसका नेता बनकर हर डाल पर उछलता-कूदता रहता था?
उत्तर – गिल्लू गिलहरियों का नेता बनकर हर डाल पर उछलता-कूदता रहता था।
(ङ) किसके पास बहुत से पशु-पक्षी हैं?
उत्तर – महादेवी वर्मा के पास बहुत से पशु-पक्षी हैं।
(च) गिल्लू का प्रिय खाद्य कौन – सा था?
उत्तर – काजू गिल्लू का प्रिय खाद्य था।
(छ) लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू कहाँ बैठता था?
उत्तर – लेखिका की अस्वस्थता में गिल्लू लेखिका के सिरहाने बैठता था।
(ज) गिलहरियों के जीवन की अवधि कितने वर्ष से अधिक नहीं होती?
उत्तर – गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती।
(झ) गिल्लू ने कैसी स्थिति में लेखिका की उँगली को पकड़ा था?
उत्तर – गिल्लू ने मरणासन्न स्थिति स्थिति में लेखिका की उँगली को पकड़ा था।
(ञ) गिल्लू को कहाँ समाधि दी गई?
उत्तर – सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है।
4. निम्नलिखित अवतरणों के अर्थ स्पष्ट कीजिए :
(क) तब मुझे कली की खोज रहती थी, पर आज उस लघुप्राण की खोज है।
उत्तर – एक समय लेखिका को सोनजुही में केवल कली की खोज रहती थी पर अब वे उस लघुगात, प्राणी को ढूँढ रही थी। इस कली को पुनः खिले हुए देखकर लेखिका के मन में उसी पारिवारिक सदस्य की याद आ जाती है जिसका नाम उन्होंने गिल्लू रखा था।
(ख) यह काकभुशुण्डि भी विचित्र पक्षी है एक साथ समादरित, अनादरित, अति सम्मानित, अति अवमानित।
उत्तर – कौवे एकमात्र ऐसे पक्षी हैं जिनका अति सम्मान और अति अवमानना की जाती है। पितरपक्ष के समय में कौवे हमारे पूर्वजों के रूप में आते हैं। इतना ही नहीं हमारे दूरस्थ प्रियजनों को भी अपने आने का मधुर संदेश इनके कर्कश स्वर में ही मिलता है। दूसरी ओर हम कौवा और काँव—काँव करने को अवमानना के अर्थ में ही प्रयुक्त करते हैं।
(ग) उसका हटना एक परिचारिका के हटने के समान लगता।
उत्तर – एक बार लेखिका मोटर दुर्घटना में घायल हो गई और कई दिनों तक उन्हें अस्पताल में रहना पड़ा। अस्पताल से घर आने के बाद गिल्लू ने परिचारिका की तरह लेखिका की सेवा की। वह लेखिका के पास बैठा रहता था। वह तकिये पर सिरहाने बैठकर अपने नन्हें-नन्हें पंजों से लेखिका के सिर और बालों को इस प्रकार सहलाता जिस प्रकार कोई सेविका अपने हाथों को हल्का कर मालिश कर रही हो। गिल्लू का सिरहाने से हटना लेखिका को ऐसा प्रतीत होता मानो परिचारिका ही हट गई हो।
(घ) प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया।
उत्तर – गिल्लू के जीवन का अंतिम समय आ गया था। परंतु प्रभात की प्रथम किरण के स्पर्श के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया। उसका झूला उतारकर रख दिया गया है और खिड़की की जाली बंद कर दी गई है, परंतु गिलहरियों की नयी पीढ़ी जाली के उस पार चिक—चिक करती ही रहती है और सोनजुही पर बसंत आता ही रहता है। लेखिका को हमेशा गिल्लू की याद आती ही रहती है।
(ङ) उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, मुझे सन्तोष देता है।
उत्तर – लेखिका ने सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी है। क्योंकि गिल्लू को वह लता सबसे अधिक प्रिय था। और लेखिका को यह भी लगता है कि उस लघुगात का, किसी वासंती दिन, जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास, लेखिका को संतोष देगा।
5.रिक्त स्थानों को भरिए :
(क) कौन जाने कली के बहाने वही मुझे चौंकाने ऊपर आ गया हो।
(ख) नीम – चमेली की गंध मेरे कमरे में हौले-हौले आने लगी।
(ग) हमने उसकी जातिवाचक संज्ञा को व्यक्तिवाचक का रूप दे दिया।
(घ) जिसे उसने बचपन की मरणासन्न स्थिति में पकड़ा था।
(ङ) जुही के पीताभ छोटे फूल में खिल जाने का विश्वास मुझे सन्तोष देता है।
6.निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर दिए गए विकल्पों से दीजिए :
(क) दो कौवे कैसा खेल खेल रहे थे?
(i) दौड़ लगानेका (ii) छूआ – छुऔवल (iii) खाना खाने का (iv) गेंद
उत्तर – (ii) छूआ – छुऔवल
(ख) लेखिका के किस विवेचन में अचानक बाधा आ पड़ी?
(i) शिव पुराण (ii) काक पुराण (iii) सूर्य पुराण (iv) नृसिंह पुराण
उत्तर – (ii) काक पुराण
(ग) लेखिका के कमरे में किसकी गंध हौले-हौले आने लगी?
(i) सोनजुही (ii) बसंत (iii) नीम – चमेली (iv) गुलाब
उत्तर – (iii) नीम – चमेली
(घ) गिल्लू का कौन – सा खाद्य प्रिय खाद्य था?
(i) चावल (ii) बिस्कुट (iii) केला (iv) काजू
उत्तर – (iv) काजू
(ङ) गिलहरियों के जीवन की अवधि कितने वर्ष से अधिक नहीं होती?
(i) एक (ii) दो (iii) तीन (iv) चार
उत्तर – (ii) दो
भाषा – ज्ञान
प्रस्तुत पाठ में आये हुए निम्नलिखित शब्दों पर ध्यान दीजिए :
स्वर्णिम, समादरित, अपनापन, लगाव, परिचारक, झूला।
– ये शब्द कुछ प्रत्ययों के मेल से बने हैं जो इस प्रकार हैं-
स्वर्णिम = स्वर्ण + इम
समादरित = समादर + इत
अपनापन = अपना + पन
लगलव = लगना + आव
परिचारिक = परिचार + इक
झूला = झूल + आ
इन शब्दों के अंत में लगनेवाले शब्दांश प्रत्यय हैं। जो शब्दांश धातु, क्रिया या शब्दों के अंत में लग कर नये शब्दों का निर्माण करते हैं, उन्हें प्रत्यय कहते हैं। प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं – कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय। धातु या क्रिया के अंत में लगनेवाले प्रत्यय कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं और उनके मेल से बने शब्द को कृदन्त पद कहा जाता है। संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण के बाद लगनेवाले प्रत्यय को तद्धित प्रत्यय और इनके मेल से बने शब्द को तद्धितान्त पद कहा जाता है।
2. पाठ में आए इन शब्दों पर ध्यान दीजिए :
नीम – चमेली, दोपहर, जीवन-यात्रा, मरणासन्न।
इन शब्दों को समास कहा जाता है। परस्पर संबंध रखनेवाले दो या दो से अधिक शब्दों के मेल को समास कहा जाता है।
जैसे —
नीम और चमेली = नीम – चमेली
दो पहरों का समूह = दोपहर
जीवन की यात्रा = जीवन-यात्रा
मरण को आसन्न (पहुँचा हुआ) = मरणासन्न
– ये शब्द क्रमशः द्वन्द्व समास, द्विगु समास एवं संबंध तत्पुरुष तथा कर्म तत्पुरुष समास के उदाहरण हैं।
3. किसी भी प्राणी, पदार्थ, स्थान, गुण आदि का बोध करानेवाले शब्द को संज्ञा कहा जाता है। इसके पाँच भेद हैं :
(क) व्यक्तिवाचक संज्ञा
(ख) जातिवाचक संज्ञा
(ग) भाववाचक संज्ञा
(घ) समुदायवाचक संज्ञा
(ङ) द्रव्यवाचक संज्ञा
निम्न पंक्तियों में रेखांकित किए गए संज्ञा – शब्दों का भेद बताइए :
(क) सोनजुही की लता के नीचे गिल्लू को समाधि दी गई है।
उत्तर – व्यक्तिवाचक संज्ञा
(ख) गिलहरियों के जीवन की अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं होती।
उत्तर – जातिवाचक संज्ञा
(ग) उनका मुझसे लगाव भी कम नहीं है।
उत्तर – भाववाचक संज्ञा
(घ) नीम – चमेली की गंध मेरे कमरे में आने लगी।
उत्तर – व्यक्तिवाचक संज्ञा
(ङ) दिनोंदिन सोने का भाव बढ़ता जा रहा
उत्तर – द्रव्यवाचक संज्ञा
(च) गिल्लू गिलहरियों के झुंड का नेता था।
उत्तर – समूहवाचक संज्ञा
4. कोष्ठक में दिए गए शब्दों की भाववाचक संज्ञाएँ बनाकर रिक्त स्थान भरिए :
(क) कभी किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए। (बुरा)
(ख) परिश्रम करने पर सफलता मिलती है। (सफल)
(ग) बुजुर्ग की सज्जनता से हम मुग्ध हो गए। (सज्जन)
(घ) प्रत्येक मनुष्य को अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। (स्वस्थ)
5. विशेषण के साथ सही संज्ञा शब्द को मिलाइए :
पीली – कली
झब्बेदार – पूँछ
स्निग्ध – रोएँ
नीले – काँच
दूरस्थ – प्रियजन
सघन – हरीतिमा
चमकीली – आँखें
पतली – बत्ती
कर्कश – स्वर
मधु – संदेश
6. निम्नलिखित शब्दों का विलोम / विपरीत शब्द लिखिए :
प्रभात – संध्या
जीवन – मरण
विश्वास – अविश्वास
आवश्यक – अनावश्यक
सन्तोष – असंतोष
अपनापन – परायापन
7. निम्नलिखित वाक्यों में उचित परसर्ग शब्द भरिए :
(i) वह मेरे पैर तक आकर परदे पर चढ़ जाता।
(ii) सारा लघुगात लिफाफे में बन्द रहता।
(iii) इस मार्ग से गिल्लू ने मुक्ति की साँस ली।
(iv) नीम – चमेली की गंध मेरे कमरे में आने लगी।
(v) फिर गिल्लू के जीवन का प्रथम बसंत आया।
8. उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित वाक्यों को कर्मवाच्य में बदल कर लिखिए:
उदाहरण : महादेवी ने गिल्लू के घावों पर पेंसिलिन का मरहम लगाया।
कर्मवाच्य में – महादेवी के द्वारा गिल्लू के घावों पर पैसिलिन का मरहम लगाया गया।
(क) उसने एक अच्छा उपाय खोज निकाला।
उत्तर – उसके द्वारा एक अच्छा उपाय खोज निकाला गया।
(ख) मैंने उसे थाली के पास बैठना सिखाया।
उत्तर – मेरे द्वारा उसे थाली के पास बैठना सिखाया गया।
(ग) महादेवी ने उसे तार से खिड़की पर लटका दिया।
उत्तर – महादेवी द्वारा उसे तार से खिड़की पर लटका दिया गया।
(घ) हम उसे गिल्लू कहकर बुलाने लगे।
उत्तर – हमारे द्वारा उसे गिल्लू कहकर पुकारा जाने लगा।
(ङ) गिल्लू ने मुक्ति की साँस ली।
उत्तर – गिल्लू द्वारा मुक्ति की साँस ली गई।
9. वचन बदलिए :
कली – कलियाँ
कौवा – कौवे
पक्षी – पक्षियाँ
गमला – गमले
10. लिंग स्पष्ट कीजिए :
भूख – स्त्रीलिंग
गंध – स्त्रीलिंग
आँख – स्त्रीलिंग
गिलहरी – स्त्रीलिंग
झूला – पुल्लिंग
हंस – पुल्लिंग
पानी – पुल्लिंग
झुण्ड – पुल्लिंग
दौड़ – पुल्लिंग
पूँछ – स्त्रीलिंग
जीवन – पुल्लिंग
पीढ़ी – स्त्रीलिंग
11. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची रूप लिखिए :
दीवार – भित्ति
पुरखे – पूर्वज
आँख – नयन
प्रभात – सुबह
जीवन – प्राण
प्रयत्न – कोशिश
आवश्यक – ज़रूरी
घर – सदन
अभ्यास – कार्य
1. निम्नलिखित शब्दों को पाँच-पाँच बार लिखिए:
स्वर्णिम – स्वर्णिम स्वर्णिम स्वर्णिम स्वर्णिम स्वर्णिम
निश्चेष्ट – निश्चेष्ट निश्चेष्ट निश्चेष्ट निश्चेष्ट निश्चेष्ट
स्निग्ध – स्निग्ध स्निग्ध स्निग्ध स्निग्ध स्निग्ध
हरीतिमा – हरीतिमा हरीतिमा हरीतिमा हरीतिमा हरीतिमा
आश्वस्त – आश्वस्त आश्वस्त आश्वस्त आश्वस्त आश्वस्त
2. क्रिया – शब्द से प्रत्यय – ना हटाने से क्रियार्थक संज्ञा-शब्द बनता है।
जैसे :-
दौड़ना – दौड़
पकड़ना – पकड़
उछलना-कूदना – उछल-कूद
पहुँचना – पहुँच
सोचना – सोच
माँगना – माँग
3. हिन्दी में अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु के प्रयोग तथा उच्चारण पर ध्यान दीजिए :
हंस – अनुस्वार, व्यंजन का उच्चारण
साँस – चन्द्रबिन्दु, अनुनासिक स्वर का उच्चारण
निम्नलिखित शब्दों का सही उच्चारण कीजिए :
अनुस्वार – संधि, चोंच, पंजा, बसंत, झुंड, घोंसला, ठंडक, अंत।
अनुनासिक स्वर – काँव – काँव, पहुँचना, बूँद, मुँह, उँगली, काँच, झाँकना, आँगन।
4. अर्थ देखिए और समझिए :
के निकट – के पास, के समीप
के बहाने – के कारण
के अतिरिक्त – के बिना
इस तरह के शब्द प्रस्तुत पाठ से छाँटिए।
उत्तर – छात्र स्वयं करें