Hindi Sourabh, Class X Hindi solution, Odisha Board (TLH) 5. जननी जन्मभूमि संकलित

यह निबंध हमारी जन्मभूमि ओड़िशा (उत्कल, कलिंग, कोशल आदि) के बारे में काफी जानकारी देता है। कलिंग के लोग बड़े बीर और साहसी होते थे। कलिंग की सेना ने सम्राट अशोक की सेना के साथ मुकाबला किया। बहुत लोग मारे गए। मध्यकाल में ओड़िशा के गजपति राजाओं ने गंगा से गोदावरी तक अपना राज्य फैलाया था। आज वह गौरव अतीत में डूब गया है। उत्कल भूमि मंदिर मूर्त्तियाँ बनाने की कला में मशहूर थी। यहाँ की चित्रकला तथा अन्य शिल्प कला देश-विदेश में प्रख्यात थी।

आड़िशा का वर्त्तमान फिर से उत्साहजनक हुआ। स्वतंत्रता के बाद यहाँ अनेक छोटे बड़े उद्योग तथा कारखानें स्थापित हुए। कई बंदरगाहों की स्थापना हुई है। यह प्रांत आज प्रगति के पथ पर चल रहा है।

यह दुनिया बड़ी अजीब है। क्या – क्या नहीं है इसमें। बड़े-बड़े पहाड़ हैं। घने जंगल हैं। कलकल करती नदियाँ बहती हैं। झरने झरते हैं। सागर गरजते हैं। किस्म-किस्म के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नर-नारी हैं। भला है तो बुरा भी है। तुलसीदास कहते हैं- “जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।” यहाँ जड़-चेतन, चर-अचर सब हैं। यह विविधता का भंडार है।  अच्छे लोग अच्छाई को चुनते हैं, जैसे हंस दूध पी लेता है, और पानी छोड़ देता है।

संसार हर पल बदलता भी रहता है। ऋतुएँ बदलती हैं। मौसम कभी सुहावना होता है तो कभी डरावना। कभी जानलेवा गर्मी तो कभी कड़ाके की सर्दी। जहाँ हरीभरी फसल नाचती है, वहाँ अकाल भी पड़ता है। आदमी कभी सुख-चैन से जीता है तो कभी दु:खी होता है। कहीं अमीरी है तो कहीं गरीबी। अच्छे दिन जल्दी उड़ जाते हैं। बुरे दिन हौले-हौले सरकते हैं। लोग कहते हैं यह जिंदगी भी क्या है? चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात।

यह मनुष्य भी अजीब प्राणी है। वह अँधेरी रात से डरता नहीं, लड़ता है। वह हर दुःख को झेलता है, हर दर्द को सहता है। चार दिन की चाँदनी की तलाश में उन चंद दिनों के सुख के लिए, प्रकृति से भी लड़ता है। उस पर कब्जा जमाना चाहता क्योंकि आशा से ही आकाश थमा है। मनुष्य की यह अदम्य जिज्ञासा नया-नया इतिहास रचती है। यह उसके उत्थान और पतन की कहानी है।

इसलिए हर आदमी का हर समाज का, हर देश या प्रदेश का अलग इतिहास होता है। उसमें उसकी आशा-आकांक्षा, खुशी-गम का, सफलता-विफलता का, आलस्य और चौकसी का लेखाजोखा रहता है? आइए, अपनी जन्मभूमि ओड़िशा के इतिहास के एक-दो पन्ने पढ़ें।

ओड्र देश या ओड़िशा के कई नाम मिलते हैं। कलिंग, उत्कल, कंगोद और कोशल। एक-एक नाम शायद किसी अंचल या काल में ज्यादा प्रिय हुए हैं। 

इस इतिहास का पहला पन्ना है ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दी का। लिखा है – कलिंगा : साहसिकाः। क्योंकि कलिंग के सैनिकों ने विशाल मगध- सेना के दाँत खट्टे कर दिए। सम्राट अशोक का डटकर मुकाबला किया। जानें दीं, जमीन नहीं दी। लाख की तादाद में मरे, लाख बंदी बने। दया नामकी नदी में रक्त की धारा बह चली। न राजा का नाम पता है, न सेनापति का। लेकिन प्रचंड अशोक भी घबरा गया। वह धर्माशोक बन गया। युद्ध

छोड़ दिया। तलवार फेंक दी। मानव – प्रेम और अहिंसा की नीति अपनाई। धौली के अशोकीय शिलालेख उसका बयान करते हैं। पहाड़ी पर जापानियों के हाथों बना नया बौद्धस्तूप उस गौरवशाली घटना की उद्घोषणा करता है। वीरत्व की यह कहानी आगे बढ़ती है। कलिंग सम्राट खारबेल मगध पर आक्रमण कर देते हैं। उसे पराजित करके ‘कलिंग जिन’ को वापस

ले आते हैं। खण्डगिरि – उदयगिरि के शिलालेख और गुफाएँ खारबेल का यशोगान करती हैं। कलिंग के शौर्य की यह अमर कथा है।

साहसिकता का यह सिलसिला आधुनिक युग में फिर दिखाई देता है। बक्सि जगबन्धु, सुरेन्द्र साय, चाखि खुण्टिया, चक्रधर बिसोई, लक्ष्मण नायक जैसे साहसी कलिंग के सपूतों ने अंग्रेजों को भी चैन की साँस नहीं ले  दिया था। इन लोगों ने प्राण दे दिए, मगर अन्याय नहीं सहा।

इतिहास का अब दूसरा पन्ना देखें। उत्कृष्ट कलाओं का देश उत्कल। सदियाँ बीत गई। मगर भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क के बड़े-बड़े मंदिर आज भी सिर उठाए खड़े हैं। दुनिया के ये अजूबे हैं। भव्य और विशाल स्थापत्य अनेक छोटे-बड़े मंदिर ! हजारों नारी मूर्तियाँ। विभिन्न चेष्टाओं और भंगिमाओं से मुग्ध करनेवाली। हाथी, घोड़े, पहिए, कमल, रथाकार मंदिर ! विशाल और मनोहर ! नृत्य-गान के माहौल ! द्वारपाल, दिक्पालों के पौरुष। ये सब देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए जादू के नमूने हैं। ओड़िशा के सूती और पाट के वस्त्र, सोने-चाँदी के गहने, काँसे- पीतल के बर्तन, सींग की कलाकृतियाँ विदेशी बाजार के आकर्षण रही हैं। ओड़िशी चित्रकला, नृत्य और संगीत आज विदेशों में अत्यंत लोकप्रिय हैं। ओड़िआ साधव (बनिए) छोटे-बड़े नावों में सुदूर पूर्वी द्वीपों में व्यापार का जाल फैलाए

हुए थे। महासमुद्र की तरंगमालाओं में नाच-नाच कर जाते और धनरत्नों से नौकाएँ भर भर कर घर लौटते थे। न तूफान से डरते थे न गहरे सागर से। वे कहते थे ‘आ का मा भै’ ! हमें किसीका डर नहीं। चिलिका झील तो उत्कल – लक्ष्मी की विलास सरोवर रही। लेकिन दीपक जलता है तो बुझता भी है। ओड़िशा के ऐसे, शैर्य, ऐश्वर्य, और वैभव सब काल के गर्भ में विलीन हो गए। ओड़िशा का सारा कार्यकलाप इतिहास बन गया। उसका

पतन हो गया।

बीसवीं शती के आंरभ में महापुरुष मधुसूदन ने इस इतिहास को पढ़ा। उनका दिल भर आया। उन्होंने सोते को जगाया। बोले – ‘है उत्कल के सपूतो ! उठो, जागो ! अपने पुराने गौरव को याद करो ! तुम्हारे पूर्वजों ने गंगा से गोदावरी तक अपना राज्य फैलाया था। वह टूट-बिखर गया। “गजपति गौड़ेश्वर नव कोटि कर्णाट कलर्वर्गेश्वर” की उपाधि झूठी हो गई। तुम दाने दाने के मोहताज हो गए। अब तो उठो ! करो या मरो।”

ओड़िशावासियों ने यह पुकार सुनी। अप्रैल 1936 को स्वतंत्र ओड़िशा प्रदेश बना। अनेक सुधी नेता काम में जुट गए। नवनिर्माण का बीड़ा उठाया। उत्कल विश्वविद्यालय स्थापित हुआ। अनेक स्कूल-कॉलेज खुले। नई और तकनीकी शिक्षा का इंतजाम हुआ। इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज खुले। कुछ ही वर्षों में हजारों अमले – ऑफिसर, शिक्षक- अध्यापक, इंजीनियर और डॉक्टर तैयार हो गए। इन योग्य व्यक्तियों ने अपने तथा बाहर के प्रांतों में काम करके नाम कमाया। हीराकुद बाँध बना। खेतों की सिंचाई हुई। अनाज का पैदावार बढ़ा। राउरकेला से लोहे का उत्पादन होने लगा। सुनाबेड़ा में हवाई जहाज बनने लगे। पराद्वीप बंदरगाह ने नौवाणिज्य को बढ़ावा दिया। इमफा, नालको, जिन्दल और वेदान्त जैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों ने धातु- द्रव्यों का उत्पादन किया। चाँदीपुर और बडमाल में देश के लिए आधुनिक रक्षा – सामग्री बनने लगी। आजकाल तो ओड़िशा में ही सारी आधुनिक सुविधाएँ मिलने लगी हैं।

सदियों बाद फिर ओड़िशा की किस्मत पलटी है। वह प्रगति के रास्ते पर आया है। दूसरे राज्यों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहा है। देश की प्रगति में भी उसका योगदान बढ़ा है। यह उसके उत्थान के लक्षण हैं। हम सबको इससे लाभ उठाना चाहिए। नए उद्यमों में भागेदारी होनी चाहिए। तब ओड़िशा का नया इतिहास बन सकेगा।

निराला – विचित्र।

स्थावर – स्थिर रहनेवाले,

जंगम – चलने-फिरनेवाले,

जड़ – लकड़ी पत्थर जैसी वस्तुएँ,

चेतन – जीव,

सुहावना – सुखकर,

फकीरी – गरीबी,

खुशहाली – सुख का वक्त,

बदहाली – बुरा समय,

गम – दुख,

पन्ना आश्चर्य-वस्तु,

झील – बड़ा जलाशय,

शौर्य – वीरत्व,

आखिरकार – अंत में,

सपूत – सुपुत्र।

अजूबा – आश्चर्य

पृष्ठ – पन्ना

सिलसिला – क्रम

हंस का विवेक – गुण को ग्रहण करना और दोष को छोड़ना

चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात- कुछ दिन सुख के फिर दुख। यह एक कहावत है।

दिल दहलना – डर जाना

कलिंग जिन – वह मूल्यवान वस्तु जो मगध से लाई गई थी।

आ का मा भै – ओड़िशा के बनिए समुंदर में बोहित छोड़ते वक्त यह नारा

देते हैं।

विलास सरोवर – लक्ष्मीजी के विलास का जलाशय अर्थात् चिलिका व्यापार का केन्द्र था, जहाँ धनरत्न आते थे।

(क) इस दुनिया को विचित्र क्यों कहा जाएगा?

उत्तर – इस दुनिया को विचित्र कहा जाएगा क्योंकि इसमें बड़े-बड़े पहाड़ हैं। घने जंगल हैं। कलकल करती नदियाँ बहती हैं। झरने झरते हैं। सागर गरजते हैं। किस्म-किस्म के पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नर-नारी हैं। भला है तो बुरा भी है। यहाँ जड़-चेतन, चर-अचर सब हैं।

(ख) दुनिया बदलती है, इसके क्या प्रमाण हैं?

उत्तर – दुनिया बदलती है, इसके अनेक प्रमाण हैं, जैसे- ऋतुएँ बदलती हैं। मौसम कभी सुहावना होता है तो कभी डरावना। कभी जानलेवा गर्मी तो कभी कड़ाके की सर्दी। यहाँ हरी-भरी फसल नाचती है, यहीं अकाल भी पड़ता है। आदमी कभी सुख-चैन से जीता है तो कभी दुखी होता है। कहीं अमीरी है तो कहीं गरीबी। अच्छे दिन जल्दी उड़ जाते हैं। बुरे दिन हौले-हौले सरकते हैं।

(ग) कलिंगा: साहसिकाः – ऐसा क्यों कहा गया है?

उत्तर – कलिंगा: साहसिकाः – ऐसा कहा गया है क्योंकि कलिंग के सैनिकों ने विशाल मगध- सेना के दाँत खट्टे कर दिए। सम्राट अशोक का डटकर मुकाबला किया था। अपनी जानें दीं मगर जमीन नहीं दी। लाखों की तादाद में मरे, लाखों बंदी बने। दया नाम की नदी में रक्त की धारा बह चली पर कलिंगवासियों का उत्साह और मातृभूमि के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ।

(घ) धर्माशोक ने क्या किया?

उत्तर – कलिंग युद्ध की विभीषिका ने अशोक का हृदय परिवर्तन कर दिया। वह अशोक से धर्माशोक बन गया। उसने युद्ध का त्याग किया और तलवार फेंक दी। मानव – प्रेम और अहिंसा की नीति अपनाई। धौली के अशोकीय शिलालेख इस घटना को बयान करते हैं। 

(ङ) वीरत्व की कहानी आगे कैसे बढ़ी?

उत्तर – कलिंग सम्राट खारबेल ओड़िशा के खोए हुए गौरव को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से मगध पर आक्रमण कर देते हैं। उसे पराजित करके ‘कलिंग जिन’ को वापस ले आते हैं। इस तरह वीरत्व की कहानी आगे बढ़ती है। यह कलिंग के शौर्य की यह अमर कथा है।

(च) धउली के शिलालेख में क्या लिखा है?

उत्तर – सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध के बाद हृदय परिवर्तन और धर्म, अहिंसा और मानव सेवा का प्रण लेना तथा उसके प्रचारार्थ अनेक कार्यों के बारे में ही धउली के शिलालेख में लिखा है। 

(छ) ‘उत्कल’ का क्या अर्थ है?

उत्तर – ‘उत्कल’ का अर्थ है उत्कृष्ट कलाओं का देश।

(ज) ओड़िशा के मंदिर अजूबे क्यों हैं?

उत्तर – ओड़िशा के भुवनेश्वर, पुरी, कोणार्क तथा अन्य जिलों के छोटे-बड़े मंदिर भव्य और विशाल स्थापत्य कला के श्रेष्ठ नमूने हैं। हजारों मूर्तियाँ उनकी विभिन्न चेष्टाएँ और भंगिमाएँ मुग्ध करनेवाली हैं। हाथी, घोड़े, पहिए, कमल, रथाकार मंदिर, द्वारपाल, दिक्पालों के पौरुष को प्रदर्शित करती वास्तुकला मनोहारी हैं। इसलिए ओड़िशा के मंदिर अजूबे हैं। 

(झ) ओड़िशा के बनिए क्या करते थे?

उत्तर – ओड़िआ साधव या बनिए अपने छोटे-बड़े व्यापारिक नावों में सुदूर पूर्वी द्वीपों में व्यापार का जाल फैलाए हुए थे। महासमुद्र की तरंगमालाओं में नाच-नाच कर जाते और धनरत्नों से नौकाएँ भर-भर कर घर लौटते थे। वे न तो तूफान से डरते थे और न ही गहरे सागर से। वे कहते थे ‘आ का मा भै’ ! हमें किसीका डर नहीं।

(ञ) मधुसूदन ने क्या किया?

उत्तर – ओड़िशा के स्वर्णिम इतिहास को जानकर महापुरुष मधुबाबू ने ओड़िशवासियों से कहा – ‘हे उत्कल के सपूतो ! उठो, जागो ! अपने पुराने गौरव को याद करो ! तुम्हारे पूर्वजों ने गंगा से गोदावरी तक अपना राज्य फैलाया था। वह टूट-बिखर गया है। “गजपति गौड़ेश्वर नवकोटि कर्णाट कलर्वर्गेश्वर” की उपाधि झूठी हो गई। तुम दाने-दाने के मोहताज हो गए। अब तो उठो ! करो या मरो।”

(ट) मधुबाबू की पुकार सुनकर क्या हुआ?

उत्तर – मधुबाबू की पुकार सुनकर ओड़िशा का चतुर्दिग विकास हुआ। अप्रैल 1936 को स्वतंत्र ओड़िशा प्रदेश बना। अनेक सुधी नेताओं ने नवनिर्माण का बीड़ा उठाया। अनेक स्कूल, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज तथा उत्कल विश्वविद्यालय स्थापित हुआ। कुछ ही वर्षों में हजारों अमले-ऑफिसर, अध्यापक, इंजीनियर और डॉक्टर तैयार हो गए। हीराकुद बाँध बना व खेतों की सिंचाई हुई जिससे अनाज का पैदावार बढ़ी। राउरकेला से लोहे का उत्पादन होने लगा। सुनाबेड़ा में हवाई जहाज बनने लगे। पाराद्वीप बंदरगाह ने नौवाणिज्य को बढ़ावा दिया। इमफा, नालको, जिंदल और वेदान्त जैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों ने धातु- द्रव्यों का उत्पादन किया। चाँदीपुर और बडमाल में देश के लिए आधुनिक रक्षा – सामग्री बनने लगी।

(ठ) ओड़िशा ने कैसे प्रगति की?

उत्तर – ओड़िशा ने अपनी कर्मनिष्ठा व सत्यनिष्ठा, शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाकर, विविध कल-कारखाने, बांध, बंदरगाह आदि का निर्माण करके प्रगति की है।

(ड) ओड़िशा आज पीछे नहीं है, क्या प्रमाण है?

उत्तर – ओड़िशा आज पीछे नहीं है, इसके अनेक प्रमाण हैं, जैसे – राउरकेला से लोहे का उत्पादन होना, सुनाबेड़ा में हवाई जहाज बनना, पाराद्वीप बंदरगाह से नौवाणिज्य को बढ़ावा मिलना, इमफा, नालको, जिंदल और वेदान्त जैसे बड़ी-बड़ी कंपनियों का धातु- द्रव्यों का उत्पादन करना, चाँदीपुर और बडमाल में देश के लिए आधुनिक रक्षा – सामग्रियों  का बनना, अनेकानेक इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों का खुलना।  आदि।

(ढ) आजकल क्या-क्या नए उद्योग हो रहे हैं?

उत्तर – आजकल ओड़िशा में अनेक नए-नए उद्योग हो रहे हैं, जैसे – बंदरगाहों का निर्माण होना, लौह उत्पादन के लिए कल-कारखानों की स्थापना होना। इसके साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व प्रगति हो रही है।

(क) संसार निराला क्यों है?

उत्तर – इस संसार को निराला कहा गया है क्योंकि यहाँ विविधताओं का भंडार है। यहाँ बड़े-बड़े पहाड़ हैं। घने जंगल हैं। कलकल करती नदियाँ, झरने और सागर हैं। अनेक पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नर-नारी हैं। भला है तो बुरा भी है। यहाँ जड़-चेतन, चर-अचर सब हैं।

(ख) संसार बदलता है, इसके क्या प्रमाण हैं?

उत्तर – संसार हर पल बदलता रहता है, जैसे – ऋतुएँ बदलती हैं। मौसम कभी सुहावना होता है तो कभी डरावना हो जाता है। कभी जानलेवा गर्मी तो कभी कड़ाके की सर्दी पड़ती है। जहाँ हरी-भरी फसल झूमती है, वहाँ अकाल भी पड़ता है। आदमी कभी सुख-चैन से जीता है तो कभी दुखी होता है। कहीं अमीरी है तो कहीं गरीबी। अच्छे दिन जल्दी उड़ जाते हैं। बुरे दिन हौले-हौले सरकते हैं।

(ग) आदमी के जीवन का क्या इतिहास है?

उत्तर – आदमी के जीवन इतिहास में उसकी आशा-आकांक्षा, खुशी-गम का, सफलता-विफलता का, आलस्य और चौकसी का लेखाजोखा रहता है। 

(घ) कलिंग की ख्याति क्यों बढी?

उत्तर – कलिंग सम्राट खारबेल पूरी योजना के साथ मगध पर आक्रमण कर देते हैं और उसे पराजित करके ‘कलिंग जिन’ को वापस ले आते हैं। जो ओड़िशा के आन-बान और शान का प्रतीक था इसलिए कलिंग की ख्याति बढ़ी। 

(ङ) धौली के शिलालेख क्या कहते हैं?

उत्तर – धौली के शिलालेख ओड़िशा के स्वर्णिम इतिहास और सम्राट  अशोक के हृदय परिवर्तन का जीवंत प्रमाण है। यहाँ अशोक द्वारा मानव – प्रेम और अहिंसा की नीति अपनाई जाने की इबारत लिखी गई है। पहाड़ी पर जापानियों के हाथों बना बौद्धस्तूप उसी गौरवशाली घटना की उद्घोषणा करता है।

(च) बक्सि जगबंधु आदि ने क्या किया?

उत्तर – ओड़िशा में साहसिकता का सिलसिला आधुनिक युग में भी दिखाई देता है जब अंग्रेजी शासन के विरोध में क्रांतिकारी स्वर उठने लगे जिसमें मुख्य रूप से बक्सि जगबन्धु, सुरेन्द्र साय, चाखि खुण्टिया, चक्रधर बिसोई, लक्ष्मण नायक जैसे साहसी कलिंग के सपूतों ने अंग्रेजों को चैन की साँस नहीं लेने दे रहे थे। इन वीरों ने प्राण दे दिए, मगर अन्याय नहीं सहा।

(छ) कौन-सी मूर्तियाँ दुर्लभ हैं?

उत्तर – उत्कृष्ट कलाओं का देश, उत्कल प्रदेश में भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क के भव्य और विशाल स्थापत्य, अनेक छोटे-बड़े मंदिर और उन मंदिरों में विभिन्न चेष्टाओं और भंगिमाओं से मुग्ध करनेवाली मूर्तियाँ वास्तव में दुर्लभ हैं।

(ज) चिलिका की क्या खासियत है?

उत्तर – ओड़िशा के स्वर्णिम काल में ओड़िआ साधव या बनिए छोटे-बड़े नावों में सुदूर पूर्वी द्वीपों में व्यापार का जाल चिलिका झील के माध्यम से ही फैलाए हुए थे। चिलिका झील तो उत्कल – लक्ष्मी की विलास सरोवर रही हैं क्योंकि व्यापारी धनरत्नों से नौकाएँ भर भर कर घर लौटते थे।

(झ) मधुसूदन ने क्या किया?

उत्तर – ओड़िशा के स्वर्णिम इतिहास को जानकर महापुरुष मधुबाबू ने ओड़िशावासियों में नवचेतना का मंत्र फूँका। उन्हें उनके स्वर्णिम इतिहास की याद दिलाई और फिर से ओड़िशा को धन-धान्य से परिपूर्ण करने के लिए सामूहिक आवाहन किया।

(ञ) ओड़िशावासियों ने मधुसूदन की पुकार सुनकर क्या-क्या किया?

उत्तर – ओड़िशावासी मधुसूदन की पुकार सुनकर उत्साहित हो उठे। अपनी एड़ी-चोटी का बल लगाकर ओड़िशा को विकसित राज्य की श्रेणी में ला खड़ा किया। आज यहाँ अनेक धातु-उत्पादन, खेती-बाड़ी, बांध, कल-कारखाने, अधिकाधिक स्कूल कॉलेजों का निर्माण हो चुका है।

(क) नीर क्षीर का विवेक किसके पास है?

उत्तर – नीर क्षीर का विवेक हंस के पास है।

(ख) आज सुहाना मौसम है तो कल कैसा हो जाता है?

उत्तर – आज सुहाना मौसम है तो कल डरावना हो जाता है।

(ग) आदमी के जीवन का इतिहास क्या है?

उत्तर – अदम्य जिज्ञासा ही आदमी के जीवन का इतिहास है।

(घ) प्रदेश के इतिहास में क्या-क्या होता है?

उत्तर – प्रदेश के इतिहास में हमारे पूर्वजों का वर्णन होता है। हमारे अतीत के सही-गलत निर्णयों का लेखा-जोखा होता है। हमारी संस्कृति के चिह्न होते हैं।

(ङ) कलिंगवासी किसके नेतृत्व में लड़े?

उत्तर – कलिंगवासी बक्सि जगबन्धु, सुरेन्द्र साय, चाखि खुण्टिया, चक्रधर बिसोई, लक्ष्मण नायक आदि वीर नेताओं के नेतृत्व में लड़े।

(च) अशोक ने कौन सी नीति अपनाई।

उत्तर – अशोक ने मानव – प्रेम और अहिंसा की नीति अपनाई।

(छ) खण्डगिरी की गुफाएँ किसका यशोगान करती हैं

उत्तर – खण्डगिरि-उदयगिरि के शिलालेख और गुफाएँ खारबेल का यशोगान करती हैं।

(ज) विदेशी पर्यटकों के लिए ये मंदिर कैसे हैं?

उत्तर – विदेशी पर्यटकों के लिए ओड़िशा के मंदिर जादू के नमूने जैसे हैं।

(झ) यहाँ के साधव (बनिए) नौकाओं में क्या भर-भर कर लौटते थे?

उत्तर – यहाँ के साधव (बनिए) नौकाओं में अपार धनरत्न भर-भर कर लौटते थे।

(ञ) स्वतंत्र ओड़िशा प्रदेश कब बना?

उत्तर – ओड़िशा 1 अप्रैल 1936 को स्वतंत्र प्रदेश बना।

(ट) देश के लिए आधुनिक रक्षा सामग्रियाँ कहाँ बनने लगीं?

उत्तर – चाँदीपुर और बडमाल में देश के लिए आधुनिक रक्षा सामग्रियाँ बनने लगीं।

(ठ) लोहे का उत्पादन कहाँ होने लगा?

उत्तर – लोहे का उत्पादन राउरकेला से होने लगा।

दाँत खट्टे करना – युद्ध में हरा देना

दिल दहलना – डर जाना

जान की बाजी लगाना – मौत की परवाह न करना

धावा बोलना – आक्रमण कर देना

दिल भर आना – रो पड़ना

दाने दाने का मोहताज – खाने को न मिलना

बीड़ा उठाना – ज़िम्मेदारी लेना

सिंचाई, चढ़ाई, खिंचाई, बड़ाई, कमाई

ढिठाई, दिखाई, रचाई, सुनाई, कमाई 

स्थावर – जंगम 

जड़ – चेतन

गुण – अवगुण

सर्दी – गर्मी

खुशी – गमी

सुख – दुख

अँधेरा – उजाला

खुशहाली – बदहाली

उत्थान – पतन

बढ़िया – खराब

वीर – कायर

युद्ध – शांति

अहिंसा – हिंसा

सजीव – निर्जीव

बड़ा – छोटा

आदमी – मनुष्य, मानव

मौसम – ऋतु

प्राण – जान

युद्ध – लड़ाई, जंग

पन्ना – पृष्ठ

अमूल्य – अनमोल, बहुमूल्य

जरिए – माध्यम से

द्वीप – टापू

प्रांत – प्रदेश, राज्य

पेशा – धंधा, जीविका, काम

नाव – नौका, नैया

किस्मत – भाग्य, तकदीर

संसार – पुल्लिंग

पहाड़ – पुल्लिंग

नदी – स्त्रीलिंग

पौधा – पुल्लिंग

पक्षी – पुल्लिंग

विवेक – पुल्लिंग

दूध – पुल्लिंग

पानी – पुल्लिंग

गर्मी – स्त्रीलिंग

सर्दी – स्त्रीलिंग

फसल – स्त्रीलिंग

अनाज – पुल्लिंग

दुःख – पुल्लिंग

दर्द – पुल्लिंग

सूखा – पुल्लिंग

अकाल – पुल्लिंग

खुशहाली – स्त्रीलिंग

चाँदनी – स्त्रीलिंग

खुशी – स्त्रीलिंग

नम – पुल्लिंग

अमीरी – स्त्रीलिंग

गरीबी – स्त्रीलिंग

जीवन – पुल्लिंग

जिन्दगी – स्त्रीलिंग

सुहाना – पुल्लिंग

अँधेरी -स्त्रीलिंग 

रात – स्त्रीलिंग

दिन – पुल्लिंग

मुकाबला – पुल्लिंग

पन्ना – पुल्लिंग

प्राण – पुल्लिंग

जान – स्त्रीलिंग

दीपक – पुल्लिंग

इतिहास – पुल्लिंग

सामाज्य – पुल्लिंग

आजादी – स्त्रीलिंग

बिजली – स्त्रीलिंग

कारखाना – पुल्लिंग

शिक्षा – स्त्रीलिंग

 नाम – पुल्लिंग

नदियाँ – नदी

झरने – झरना

पौधे – पौधा

पन्ने – पन्ना

बड़े – बड़ा

मुकाबला – मुक़ाबले

जान – जानें

धारा – धाराएँ

हाथी – हाथियाँ

घोड़ा – घोड़े

मूर्तियाँ – मूर्ति

सुई – सुइयाँ

वस्तु – वस्तुएँ

नाव – नावें

जहाज – जहाज़ें

दाना – दाने

बहन – बहनें

भाई – भाइयों

देशवासी – देशवासियों

सुविधा – सुविधाएँ

कंपनी – कंपनियाँ

चुनौती – चुनौतियाँ

(क) कलकल करके नदियाँ बहती हैं।

(बह रहा है, बहती हैं, खड़ी हैं, चलती हैं)

(ख) हंस ने दूध पिया।

(पिया, पी, पीलिए, पीएगा)

(ग) कलिंगवासियों ने जानें दीं पर जमीन नहीं दिया।

(दीं, दी, दिया, दिए)

(घ) अशोक ने युद्ध छोड़ शांति की नीति अपनायी।

(अपनाया, अपनायी, अपनाए, अपनायीं)

(ङ) लोगों ने प्राण दिए।

(दिए, दिया, दी, दीं)

(च) मधुसूदन ने इतिहास पढ़ा।

(पढ़ा, पढ़े, पढ़ी, पढ़ीं)

(छ) अशोक ने वीरत्व की कहानी सुनी।

(सुना, सुनी, सुनीं, सुने)

(ज) पूर्वजों ने साम्राज्य बनाया।

(बनाया, बनाए)

अच्छी शिक्षा मिली।

इस्पात कारखाना बसा।

प्रगति में तेजी आयी।

तलवार फेंक दी।

युद्ध छोड़ दिया।

मानव-प्रेम और अहिंसा की नीति अपनाई।

है        था       होगा

देना      दिया     देगा

जाता     गया      जाएगा

अकर्मक

दुनिया बड़ी अजीब है।

सकर्मक

यहाँ बड़े-बड़े पहाड़ हैं।

यहाँ घने जंगल हैं।

डरना – डराना, डरवाना

बहना – बहाना, बहवाना

पढ़ना – पढ़ाना, पढ़वाना

बनना – बनाना, बनवाना

करना – कराना, करवाना

मानना – मनाना, मनवाना

सुहावना – लुभावना

गौरवशाली – प्रतिभाशाली

तरंगमाला – वर्णमाला

जिजीविषा – जीहीर्षा

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