कवि परिचय :
बच्चन का जन्म सन् 1907 में इलाहबाद में हुआ था। उनकी अंग्रेजी की उच्च शिक्षा इलाहाबाद तथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (इंलैण्ड) में हुई। वे कुछ दिन अध्यापन कार्य से भी जुड़े रहे, आकाशवाणी में काम किया फिर विदेश विभाग में हिंदी सलाहकार रहे। बचपन से ही बच्चन जी की रुचि कविता लिखने की थी। उनकी कविताओं में जीवन का, जीने के लिए किए जाने वाले नाना कार्यों का वर्णन हुआ है। इन्होंने जीवन को अत्यंत महत्त्व दिया है। इस कविता में भी जीवन को हरपल जीने की प्रेरणा दी गई है। विपत्तियों में निडर होकर लड़ते रहने को उत्साहित किया गया है।
इनकी अनेक रचनाएँ हैं जिन में से ‘दो चट्टानें, के लिए उन्हें साहित्य अकादमी की ओर से पुरस्कृत किया गया था। सन् 1976 में उन्हें पद्मभूषण की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था।
कविता का सार –
देखा जाता है कि चिड़ियाँ अपने नीड़ या घोंसले को बार-बार बनाती हैं। ऐसे मनुष्य भी नए-नए घरों का निर्माण बराबर करते रहते हैं। रहने के लिए वे घर बनाते हैं, क्योंकि उनमें अपने बच्चों और परिवार के दूसरे लोगों के प्रति स्नेह भाव होता है। प्राणी की यह जीने की इच्छा अदम्य है। इसलिए नीड़ या घर बार-बार टूटने पर भी पक्षी और नर-नारी उसे बनाते रहते हैं।
छोटे लोगों का जीवन, छोटी चिड़िया का नीड़, आँधी तूफान में, अंधेरे में, धूल की आँधी में घिर जाता है। अर्थात् पृथ्वी पर बार-बार विपत्तियाँ आती हैं। कभी विपत्ति भयानक होती है तो दिन में रात सा अँधेरा हो जाता है। रात भी घने अंधकार में डूब जाती है। एक पल तो ऐसा लगता है कि क्या सवेरा नहीं होगा? सब के सब भीतत्रस्त हो जाते हैं। इतने में पूर्व दिशा से हँसती हुई उषा-रानी आ जाती है। भयंकर दुख से सुख की यह किरण नए जीवन के लिए प्रेरणा देती है। यह स्नेह और प्रेम का आह्वान है। जब बड़े तूफान से पृथ्वी काँप उठती है, बड़े बड़ पेड़ उखड़ जाते हैं, उनकी डाल पर घोंसले कहाँ उड़कर टूट बिखर जाते हैं और तो और, बड़े बड़े मकान जो ईंट पत्थर से बने होते हैं, बड़े मजबूत होते हैं वे भी ढह जाते हैं। उस वक्त एक छोटी-सी चिड़िया नए जीवन की आशा लेकर आसमान पर चढ़ आती है। वह विपत्ति से डरती नहीं। चाहे जो हो, नीड़ का निर्माण फिर करेगी। कुछ मनुष्य भी ऐसे ही उत्साही होते हैं। आकाश के बड़े-बड़े भयानक वज्रपात, आँधी, तूफान, घने बादल जितना भी आतंक क्यों न मचाए इनहि के बीच से आशा की उषा मुसकराती है। जब बादल गरजते हैं तब चिड़ियाँ चहचहाती भी हैं। तेज हवा के भीतर चिड़िया चोंच में तिनका लेकर उड़ जाती है। वह उनचास पवन (बड़ी तेज हवा) की भी परवाह नहीं करती।
विनाश से दुख तो होता है लेकिन उसको निर्माण या सृजन का सुख दबा देता है। नीचा दिखा देता है। प्रलय होता है। उसके चारों ओर सन्नाटा छा जाता है। लेकिन फिर से नई सृष्टि के गीत भी बार-बार गाये जाते हैं। प्राणी मरता नहीं, बार-बार जीता है। इसी तरह के जीने को जीवन कहते हैं।
नीड़ का निर्माण
नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर।
वह उठी आँधी कि नभ में
छा गया सहसा अँधेरा,
धूलि-धूसर बादलों ने
भूमि को इस भाँति घेरा।
रात-सा दिन हो गया,
फिर रात आई और काली,
लग रहा था अब न होगा
इस निशा का फिर सबेरा,
रात के उत्पात-भय से
भीत जन-जन भीत कण-कण,
किन्तु प्राची से उषा की
मोहिनी मुसकान फिर-फिर।
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर।
बह चले झोंके कि काँपे
भीम कायावान भूधर,
जड़ समेत उखड़-पुखड़ कर
गिर पड़े, टूटे विटप वर।
हाय तिनकों से विनिर्मित
घोंसलों पर क्या न बीती !
डगमगाए जब कि कंकड़,
ईंट, पत्थर के महल-घर।
बोल आशा के विहंगम,
किस जगह पर तू छिपा था,
जो गगन पर चढ़ उठाता
गर्व से निज वक्ष फिर-फिर !
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
नेह का आह्वान फिर-फिर !
क्रुद्ध नभ के बज्रदंतों
में उषा है मुस्कुराती,
घोर गर्जन-भय गगन के
कंठ से खग-पंक्ति गाती।
एक चिड़िया चोंच में तिनका
लिए जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन
उंचास को नीचा दिखाती !
नाश के दुख से कभी
दबता नहीं निर्माण का सुख
प्रलय की निस्तब्धता से
सृष्टि का नव गान फिर-फिर !
नीड़ का निर्माण फिर-फिर
नेह का आह्वान फिर-फिर।
शब्दार्थ –
नीड़ – घोंसला
निर्माण – बनाना
नेह – स्नेह, प्रेम
आह्वान – बुलाना
आँधी – Storm
नभ – आकाश
सहसा – अचानक
धूलि-धूसर – धूल के रंग का
भूमि – ज़मीन
भाँति – की तरह
निशा – रात
सवेरा – सुबह
उत्पात-भय – Fear of disaster
भीत – दीवार
जन-जन – People
कण-कण – Particles
प्राची – पूर्व दिशा
उषा – सुबह
मोहिनी – मन मोहने वाली
झोंके – Capful of wind
काँपना – थरथराना
भीम कायावान – बड़े आकार वाला
भूधर – पहाड़
जड़ – Root
समेत – के साथ
विटप वर – तरुवर, वृक्ष समूह
हाय – Expression of sorrow
तिनका – तृण
विनिर्मित – बना हुआ
आशा – उम्मीद, Hope
विहंगम – पक्षी, सूर्य
गगन – आकाश
गर्व – अभिमान
निज – अपना
तान – Tone
क्रुद्ध – गुस्सा
नभ – आकाश
वज्र – Thunderbolt
दंत – दाँत
घोर – भारी, अधिक
गर्जनमय – Thunderous
कंठ – गला
खग – पक्षी
पंक्ति – Line
चोंच – Beak
सहज – आसान
पवन – हवा
उंचास – उनचास (वायु के उनचास (49) रूप)
प्रलय – कयामत, Universal dissolution
निस्तब्धता – सूनापन, सन्नाटा
सृष्टि – Creation
नव गान – नया गीत
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए :
(क) आँधी के कारण दिन कैसा दीखने लगा और क्यों?
उत्तर – आँधी के कारण दिन रात जैसी काली दीखने लगी क्योंकि घने बादलों से सूर्य छिप गया और हर तरफ़ अँधेरा छा गया।
(ख) आँधी की रात कैसे लग रही थी?
उत्तर – आँधी की रात भय और संत्रास उत्पन्न करने वाली लग रही थी। इसकी भयानकता को देखकर ऐसा लग रहा था कि फिर कभी सवेरा होगा भी या नहीं।
(ग) तूफान की उग्रता से कौन-कौन से विनाश होने लगे?
उत्तर – तूफान की उग्रता से बड़े-ऊँचे भूधर काँपने लगे, बड़े-बड़े भीमकाय वृक्ष जड़ समेत उखड़ गए और घोंसलों कि स्थिति तो अवर्णनीय ही हो गई।
(घ) आँधी को कौन और कैसे नीचा दिखाता है?
उत्तर – आँधी को पक्षी नीचा दिखाता है क्योंकि इस विनाश के बाद भी पक्षी पुनः नई आशा और उत्साह के साथ अपनी चोंच में तिनका लिए नीड़ का निर्माण करने को तैयार है।
(ङ) आँधी तूफान में भी कौन मुस्कुराता था?
उत्तर – आँधी तूफान में भी पक्षी मुस्कुराता रहता था।
(च) नाश के दुख में किसका सुख नहीं दबता?
उत्तर – नाश के दुख में निर्माण या सृष्टि सुख नहीं दबता क्योंकि नाश और निर्माण तो इस दुनिया की सतत प्रक्रिया है।
(छ) प्रलय की निस्तब्धता में किसका नव गान सुनाई पड़ता था?
उत्तर – प्रलय की निस्तब्धता में सृष्टि का नव गान सुनाई पड़ता है क्योंकि विनाश के उपरांत निर्माण का क्रम आरंभ होता है।
(ज) गृहस्थी जोड़ने में आनेवाली किन विपत्तियों का उल्लेख कवि ने किया है?
उत्तर – गृहस्थी अर्थात् नीड़ को जोड़ने में आनेवाली विपत्तियों का उल्लेख कवि ने आँधी के आने और घोंसलों के विनाश को दर्शा कर किया है।
(झ) ‘विपत्तियों के बाद सुख के दिन आते हैं’ कवि ने इस भाव को किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर – यह तो विधि का विधान है कि विपत्तियों के बाद सुख के दिन आते हैं। कवि ने इस भाव को व्यक्त करने के लिए विनाश के बाद चिड़ियों के द्वारा नीड़ के निर्माण के विलक्षण साहसिक को दर्शाया है।
(ञ) नीड़ के निर्माण से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर – नीड़ के निर्माण से कवि का यह तात्पर्य है कि जीवन में विषम परिस्थितियाँ एक बार या दो बार नहीं आती बल्कि ये बार-बार आती हैं और हमें हर बार उन प्रतिकूल परिस्थितियों से उबर कर निर्माण कार्य में संलग हो ही जाना चाहिए। अर्थात् जीवन में साकारात्मक सोच और कर्मठ बनने के लिए यह कविता प्रेरित करती है।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए :
(क) आँधी उठने से नभ में क्या छा गया?
उत्तर – आँधी उठने से नभ में अँधेरा छा गया।
(ख) बादलों ने किस को घेरा?
उत्तर – बादलों ने भूमि को घेरा।
(ग) उषा की मुस्कान कैसी थी?
उत्तर – उषा की मुस्कान सभी को मोहने वाली थी।
(घ) बड़े विटप कैसे उखड़ कर गिरे?
उत्तर – बड़े विटप (पेड़) जड़ समेत उखड़ कर गिर गए।
(ङ) तूफान में कैसा लग रहा था?
उत्तर – तूफान में ऐसा लग रहा था मानो दिन में ही रात हो गई हो।
(च) रात कैसी थी?
उत्तर – रात काली थी।
(छ) जन-जन कैसे थे?
उत्तर – जन-जन भयभीत थे।
(ज) कहाँ से उषा आई?
उत्तर – उषा प्राची अर्थात् पूर्व दिशा से आई।
(झ) घोंसले किससे विनिर्मित थे?
उत्तर – घोंसले तिनकों से विनिर्मित थे।
(ञ) गर्जनमय गगन के कंठ से कौन गाती थी?
उत्तर – पंछियों की पंक्ति गर्जनमय गगन के कंठ से गीत गाती थी।
(ट) चिड़िया चोंच में क्या लिए जा रही थी?
उत्तर – चिड़िया अपनी चोंच में तिनका लिए जा रही थी।
भाषा-ज्ञान
1. निम्नलिखित के विपरीत शब्द लिखिए :
काला – सफ़ेद
अँधेरा – उजाला
क्रुद्ध – शांत
नीचा – ऊँचा
सुख – दुख
नाश – निर्माण
दबता – उठता
महल – झोंपड़ी
2. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए:
रात – निशा, रजनी
बादल – मेघ, वारिद
चिड़िया – खग, पक्षी
नीड़ – घोंसला, खोता
सबेरा – सुबह, प्रातः
निर्माण – रचना, सृष्टि
गगन – नभ, अंबर
3. निम्नलिखित शब्दों के अर्थ बताते हुए वाक्य में प्रयोग कीजिए :
निशा – रात – निशा के समय पृथ्वी शांत और निस्तब्ध रहती है।
वज्र – अशनि – बारिश में कभी-कभी वज्रपात भी होता है।
प्रलय – कयामत – प्रयल और सृष्टि संसार का नियम है।
विहंगम – चिड़िया/सूर्य – आकाश में विचरण करने वाले को ही विहंगम कहते हैं।
उत्पात – उपद्रव – शरारती बच्चे उत्पात करते हैं।
भूधर – पर्वत – भूधर विशालकाय होते हैं।
प्राची – पूर्व – प्राची में लालिमा छाई है।
4. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(क) निस्तब्धता छाया हुआ।
उत्तर – निस्तब्धता छाई हुई है।
(ख) काला रात आई।
उत्तर – काली रात आई।
(ग) चिड़िया चहचहा रहा है।
उत्तर – चिड़िया चहचहा रहे है।
(घ) उषा मुस्कुराता है।
उत्तर – उषा मुस्कुराती है।
(ङ) सृष्टि की नव गान हो रही है।
उत्तर – सृष्टि का नव गान हो रहा है।
(च) कंठ में खगपति गाती है।
उत्तर – कंठ से खगपति गाते हैं।
(छ) नीड़ की निर्माण होती है।
उत्तर -नीड़ की निर्माण होता है।
(ज) रात-सा दिन हो गई।
उत्तर – रात-सा दिन हो गया।
5. निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थान की पूर्ति कोष्ठक में दिए गए शब्दों से कीजिए :
(उषा की, तिनका, दुख, कंकड़, बादलों ने)
(क) धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा।
(ख) प्राची से उषा की मोहिनी मुसकान फिर-फिर !
(ग) डगमगाए जब कि कंकड़ ईंट पत्थर के महल-घर।
(घ) नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख।
(ङ) एक चिड़िया चोंच में तिनका लिए जो जा रही है।
अभ्यास कार्य
(क) इस कविता की आवृत्ति कीजिए और याद रखिए।
उत्तर – छात्र कविता वाचन करेंगे।
(ख) ऐसी एक कविता लिखकर अपने मित्रों को सुनाइए।
उत्तर – छात्र अध्यापक के निर्देश में स्वरचित कविता लिखेंगे और उस कविता वाचन करेंगे।