Hindi Sourabh Class X Hindi solution Odisha Board (TLH) 6. काँटे कम-से-कम मत बोओ रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’

कवि रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ का जन्म सन् 1915 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के किशनपुर गाँव में हुआ। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करके सरकारी नौकरी की। बाद में वे हिंदी के प्रोफेसर हो गए।

‘अंचल’ जी के पास अनुभव के साथ कल्पना-शक्ति भी थी। इसलिए शुरू में उन्होंने सूक्ष्म मनोभावों पर लिखा। उनकी कविता में मानव और प्रकृति के सौन्दर्य, यौवन, स्नेह-प्रेम, दुख-दर्द के सुंदर और भावात्मक चित्र मिलते हैं। लेकिन कुछ दिनों के बाद उन्होंने जीवन के वास्तव रूप को देखा। समाज में विषमता थी। अन्याय-अत्याचार, शोषण और असंतोष था। तब उन्होंने इनके विरोध में आवाज उठाई; मानवता का पक्ष लिया, शोषितों की वकालत की। ‘अंचल’ जी छायावाद से प्रगतिवाद के दौर में आए। देश-प्रेम, राष्ट्रीयता, संस्कृति के गीत गाए। मनुष्य को सही तरह से जीना सिखाया।

‘अंचल’ जी ने उपन्यास, कहानी और निबंध भी लिखे। उनकी प्रमुख रचनाओं में से ‘अपराजिता’, ‘मधूलिका’, ‘लाल चूनर’, ‘किरण वेला’, ‘वर्षान्त के बादल’, ‘विराम चिह्न’ आदि रचनाएँ लोक प्रिय हुईं।

प्रस्तुत कविता कवि की एक प्रगतिशील रचना है। कवि का आग्रह है कि आदमी स्वार्थी नहीं, परोपकारी बने। वह दुख नहीं, सुख दे। सुख न दे सके तो कम-से-कम किसी को कष्ट न पहुँचाए। इसलिए कवि कहते हैं   कि यदि तुम किसी के रास्ते पर फूल नहीं बो सकते तो कम-से-कम काँटें तो मत बोओ। अपने मन को अपने सुख-दुख के चक्कर में डालकर छोटा न करो। दूसरों को स्नेह, प्रेम और ममता की शीतल छाया में रखो। ईर्ष्या की कटुता समाप्त करो। क्योंकि शांति-सौहार्द के सुखद स्पर्श से जीवन की ज्वालाएँ बुझ जाती हैं। अपने व्यक्तिगत दुख तथा क्रोध से परिवेश को दुखी मत करो। शांति फैलाओ। संकट के समय अगर मुसकरा न सको तो व्याकुल भी मत होओ। आशा के सपने देखो। पर जलो मत। शांति से उसे पाने की चेष्टा करो। जो व्यक्ति दुख में भी जी सका, वही सच्चा चेतन प्राणी है। क्योंकि जीवन सुख और दुख दोनों से बना है कवि ने ठीक ही कहा है कि ‘सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका, वह है चेतन’। जीवन को जागकर भोगो। सोकर उदासीन न हो जाओ। संकट से मुँह मोड़ना, संघर्ष न करना कायरता है। तुम दूसरों का हौंसला बढ़ाओ। धीरज बँधाओ। जैसे बादलों की गड़गड़ाहट के बीच पवन का जयघोष बंद नहीं होता, वैसे संकट चाहे कितना गहरा हो; अपना विश्वास, धैर्य, साहस नहीं खोना चाहिए। नहीं तो आदमी ज़िंदा लाश हो जाएगा।

यदि फूल नहीं बो सकते तो

काँटे कम से कम मत बोओ !

(1)

है अगम चेतना की घाटी, कमजोर बड़ा मानव का मन;

ममता की शीतल छाया में होता कटुता का स्वयं शमन!

ज्वालाएँ जब धुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन।

होकर निर्मलता में प्रशान्त बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।

संकट में यदि मुस्का न सको, भय से कातर हो मत रोओ !

यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ !

(2)

हर सपने पर विश्वास करो, लो लगा चाँदनी का चन्दन,

मत याद करो, मत सोचो-ज्वाला में कैसे बीता जीवन,

इस दुनिया की है रीति यही – सहता है तन, बहता है मन,

सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका, वह है चेतन !

इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ !

यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ !

(3)

पग-पग पर शोर मचाने से मन में संकल्प नहीं जमता,

अनसुना अचीह्ना करने से संकट का वेग नहीं कमता,

संशय के सूक्ष्म कुहासे में विश्वास नहीं क्षण भर रमता,

बादल के घेरों में भी तो जय घोष न मारुत का थमता।

यदि बढ़ न सको विश्वासों पर साँसों के मुरदे मत ढोओ !

यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ !

शब्दार्थ

अगम – जहाँ कोई न जा सके।, चेतना – चैतन्य, ज्ञान, बुद्धि, ज्ञानात्मक मनोवृत्ति।, घाटी – पर्वतों के बीच का संकरा मार्ग।, कटुता – कड़वापन।,

शमन – दमन, शांति।, ज्वालाएँ – अग्निशिखा, लपटें।,  क्षुब्ध – व्याकुल, कुपित।, कातर — अधीर, व्याकुल।, मदिरा – शराब, नशा।, संकल्प – दृढ़ निश्चय।, अचीह्ना – अजनबी।, संकट – विपदा।, संशय – संदेह।, सूक्ष्म – छोटा।, कुहासा – कुहरा, कुहेलिका। साँसों के मुरदे – जिन्दा लाश।, मारुत – वायु, हवा। जयघोष – जय जयकार।

(क) मानव का जीवन प्रशान्त कैसे हो सकता है?

उत्तर – जब हमारे मन से दूसरों के प्रति कटु भावना और ईर्ष्या की ज्वाला का शमन हो जाता है तब हमारा मन निर्मल हो जाता है। ऐसी स्थिति में हमारा जीवन प्रशान्त हो जाता है।  

(ख) दुनिया की रीति कौन-सी है?

उत्तर – दुनिया की रीति है कि यह जीवन सुख-दुख के पाटों में घूमता रहता है। यहाँ हम कई बार अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं और सफलता मिलते ही अभिमानी हो जाते हैं। इन सबसे निर्लिप्त रहते हुए जो व्यक्ति सदैव अपने कर्म में लिप्त रहता है दुनिया उसी का बखान करती है। 

(ग) मनुष्य को किसके बारे में सोचना नहीं चाहिए?

उत्तर – मनुष्य को अपने अतीत के दुखों और कष्टों के बारे में सोचना नहीं चाहिए क्योंकि ये सोच उसकी ऊर्जा और जोश को कम कर देंगे। उसे तो सदैव आत्मप्रेरित होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। 

(घ) साँसों के मुरदे न होने का आग्रह कवि ने क्यों किया है?

उत्तर – कवि ने यह अनुभव किया है कि समाज में ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनके जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। उनमें आत्मविश्वास का भी नितांत अभाव है जिस वजह से वे अपने जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाते। कवि ने ऐसे ही लोगों को साँसों के मुरदे कहा है। ऐसे लोग इस दुनिया से जाने के बाद न ही किसी के लिए आदर्श बन पाते हैं और न ही तारीख बन पाते हैं। इसलिए कवि ने साँसों के मुरदे न होने का आग्रह किया है।

(क) यदि फूल नहीं बो सकते तो क्या करना चाहिए?

उत्तर – यदि फूल नहीं बो सकते तो कम से कम काँटे नहीं बोने चाहिए।

(ख) कौन-सी घाटी अगम होती है?

उत्तर – चेतना रूपी घाटी अगम होती है।

(ग) किसको कमजोर कहा गया है?

उत्तर – कविता में मन को कमजोर कहा गया है।

(घ) संकट में अगर मुस्करा न सको तो क्या करना चाहिए?

उत्तर – संकट में अगर मुस्करा न सके तो हमें न ही भयभीत होना चाहिए और न ही रोना चाहिए।

(ङ) चेतन किसे कहा गया है?

उत्तर – जो प्रतिकूल परिस्थितियों में विचलित नहीं होता और अनुकूल परिस्थितियों में अभिमानी नहीं होता उसे ही चेतन कहा गया है।

(च) तुम अगर जाग नहीं सकते तो क्या करना चाहिए?

उत्तर – कविता के अनुसार अगर कोई जाग नहीं सकता तो उसे सेज लगाकर सो नहीं जाना चाहिए।

(छ) क्या करने से संकट का वेग कम नहीं होता?

उत्तर – संकट के समय पल-पल शोर मचाने से संकट का वेग कम नहीं होता।

(ज) संशय के सूक्ष्म कुहासे में क्या नहीं होता?

उत्तर – संशय के सूक्ष्म कुहासे में तनिक भी विश्वास नहीं होता है।

(झ) किसमें भी पवन का जयघोष नहीं थमता?

उत्तर – बादलों के घेरों में भी पवन का जयघोष नहीं थमता है।

(ञ) अगर विश्वासों पर न बढ़ सको तो कम-से-कम क्या नहीं ढोना चाहिए?

उत्तर – अगर विश्वासों पर न बढ़ सके तो कम-से-कम साँसों के मुरदे को नहीं ढोना चाहिए।

(क) प्रस्तुत कविता का कवि कौन है?

उत्तर – प्रस्तुत कविता के कवि रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ हैं।

(ख) कम-से-कम क्या नहीं बोना चाहिए?

उत्तर – कम-से-कम काँटे नहीं बोने चाहिए।

(ग) चेतना की घाटी का स्वरूप कैसा है?

उत्तर – चेतना की घाटी का स्वरूप अगम है।

(घ) मानव के मन को क्या माना गया है?

उत्तर – मानव के मन को कमजोर माना गया है।

(ङ) किसकी शीतल छाया में कटुता का शमन हो सकता है?

उत्तर – ममता की शीतल छाया में कटुता का शमन हो सकता है।

(च) किसके धुल जाने से मुँदे नयन खुल जाते हैं?

उत्तर – ईर्ष्या की ज्वालाएँ धुल जाने से मुँदे नयन खुल जाते हैं।

(छ) किस पर विश्वास करना चाहिए?

उत्तर – अपने हर सपने पर विश्वास करना चाहिए।

(ज) सुख की कौन-सी मदिरा में जागने वाले को चेतन कहा गया है?

उत्तर – सुख की अभिमानी मदिरा में जागने वाले को चेतन कहा गया है।

(झ) संशय का कुहासा कैसा होता है?

उत्तर – संशय का कुहासा सूक्ष्म अर्थात् बहुत छोटा होता है।

(ञ) किसके मुर्दे ढोने के लिए मना किया गया है?

उत्तर – साँसों के मुरदे को ढोने के लिए मना किया गया है।

(क) यदि फूल नहीं बो सकते तो

काँटे कम-से-कम मत बोओ।

उत्तर – इन पंक्तियों के माध्यम से कवि यह यह अनुनय विनय कर रहे हैं कि हम यदि किसी का भला नहीं कर सकते तो कम से कम किसी का बुरा तो नहीं ही करना चाहिए।

(ख) ज्वालाएँ जब धुल जाती हैं

खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन।

उत्तर – कवि इन पंक्तियों में यह कह रहे हैं कि जब हमारे मन की ईर्ष्या रूपी ज्वालाएँ पूर्ण रूप से शांत हो जाती हैं तब ज्ञान रूपी चक्षु खुल जाते हैं और हम सत्य से अवगत होते हैं।  

(ग) है अगम चेतना की घाटी।

उत्तर – कवि अपनी इस पंक्ति में यह कह रहे हैं कि मनुष्य बाहरी वस्तुओं पर तो बहुत ध्यान देता है पर वह कभी अपने मन के अंदर नहीं झाँकता, अपनी बुराइयों को नहीं देखता अर्थात् मनुष्य का मन और चेतना किसी दुर्गम घाटी के समान है।

(घ) सुख की अभिमानी मदिरा में जो जाग सका,

वह है चेतन।

उत्तर – कवि अपनी इस पंक्ति के माध्यम से हमें इस सच्चाई से अवगत कराने का सफल प्रयास कर रहे हैं कि जब हमें सफलता मिलती हैं तो हममें अभिमान आ जाता है और हम खुद को श्रेष्ठ तथा दूसरों को तुच्छ मानने लगते हैं। कवि का यह दृढ़ विश्वास है कि अगर सफलता या उन्नति प्राप्त करने पर भी जो सौम्य और सरल बने रहता है वही वास्तव में चेतन मन का स्वामी है।

(ङ) यदि बढ़ न सको विश्वासों पर

साँसों के मुरदे मत ढोओ।

उत्तर – कवि का यह मानना है कि मनुष्य जीवन अपने आप में एक सबसे बड़ी उपलब्धि है और इस मनुष्य जीवन को सार्थक बना देना मनुष्य का परम कर्तव्य होना चाहिए। इसलिए कवि यह कह रहे हैं कि हमें अपने जीवन में सफल होने के विश्वास के साथ आगे बढ़ना चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते हैं, तो हम जिंदा लाश के समान हैं।

(क) है अगम चेतना की घाटी,

कमजोर बड़ा मानव का मन।

(ख) होकर निर्मलता में प्रशान्त

बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।

(ग) हर सपने पर विश्वास करो,

लो लगा चाँदनी का चन्दन । 

(घ) सुख की अभिमानी मदिरा में

जो जाग सका, वह है चेतन ।

(ङ) संशय के सूक्ष्म कुहासे में।

विश्वास नहीं क्षण भर रमता।

(क) किसके घेरों में मारुत का जयघोष नहीं थमता?

(i) शत्रुओं के

(ii) मनुष्यों के

(iii) बादलों के

(iv) बिजली के

उत्तर – बादलों के

(ख) किसमें बीते हुए जीवन को याद नहीं करना चाहिए?

(i) ज्वालाओं में

(ii) दुःख में

(iii) सुख में

(iv) विपत्ति में

उत्तर – (i) ज्वालाओं में

(ग) मानव के मन को कहा गया है?

(i) चंचल

(ii) कमजोर

(iii) चेतन

(iv) सजग

उत्तर – (ii) कमजोर

(घ) सुख की अभिमानी मदिरा में जीनेवाले को कहा गया है?

(i) शराबी

(ii) सुखी

(iii) घमण्डी

(iv) चेतन

उत्तर – (iii) घमण्डी

(ङ) किसकी शीतल छाया में कटुता का शमन होता है ?

(i) ममता की

(ii) पेड़ की

(iii) प्रेम की

(iv) घर की

उत्तर – (i) ममता की

1. प्रस्तुत पाठ में प्रयुक्त तुकवाले शब्द लिखिए :

उदाहरण : नयन — पवन । ममता — कटुता ।

(तुक = शब्दों के अंत के समान अंश, जैसे – ‘न’ और ‘ता’।

उत्तर- शमन -नयन

रोओ – बोओ

चन्दन – जीवन

मन – चेतन

जमता – कमता

रमता – थमता

2. प्रस्तुत कविता में बहुत सारे विशेषण शब्दों का प्रयोग हुआ है,

जैसे —  अगम, कमजोर, शीतल आदि।

इस तरह दूसरे विशेषण – शब्दों को छाँटिए।

उत्तर – बड़ा

क्षुब्ध

चाँदनी

अभिमानी

अनसुना

सूक्ष्म

3. प्रस्तुत पाठ में ‘प्रशान्त’ शब्द आया है।

इस शब्द के पहले लगा हुआ अंश ‘प्र’ एक उपसर्ग है। यह अधिकता का सूचक है।

जो शब्दांश किसी मूल शब्द के पहले लगकर उसके अर्थ या भाव को बदल देते हैं, उन्हें उपसर्ग कहते हैं।

इस तरह के उपसर्ग-प्रयुक्त शब्दों की सूची तैयार कीजिए।

कमजोर – कम + जोर

निर्मलता – निर् + मल + ता

अभिमानी – अभि + मान _ ई

संकल्प – सम् + कल्प

अनसुना – अन + सुना

You cannot copy content of this page