कवि परिचय
कबीरदास का जन्म सन् 1398 में काशी में हुआ था। कहा जाता है कि वे एक तालाब के किनारे मिले थे। एक जुलाहे दंपति ने उनका पालन पोषण किया। वे कपड़ा बुनने का काम करते थे। ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन बड़े अनुभवी थे। बुद्धि, विवेक से काम लेते थे। बहुत बातें जानते थे। वे सभी धर्मों को बराबर मानते थे। वे ईश्वर के निर्गुण, निराकार रूप को मानते थे। उस समय धर्म और समाज में बड़ी गड़बड़ी थी। कबीर ने अपनी वाणी से उसे दूर करने का प्रयास किया। लोगों में जाति – पाँति, ऊँच-नीच का भेद भाव था। विभिन्न धर्मों के अनुयायी आपस में झगड़ते थे। बाह्य आडंबर, अंधविश्वास फैल गया था। कबीर जाति भेद, मूर्ति पूजा, बाहरी आडंबर आदि का विरोध करते थे। वे कहते थे कि सब मनुष्य बराबर हैं। वे बाहरी धार्मिक कर्म कांडकी अपेक्षा भक्तिभाव पर बल देते थे। वे तीर्थ व्रत, जप-तप, मूर्ति- पूजा आदि बाहरी काम छोड़ सच्चे दिल से भगवान की भक्ति करने को कहते थे। वे सदाचार, सच्चाई, भाईचारे, धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार करते थे। कबीर का व्यक्तित्व सीधा-सादा पर बड़ा प्रभावशाली था। उनकी वाणियों को उनके शिष्यों ने ‘बीजक’नामक ग्रंथ में संगृहीत किया। उनकी भाषा पंचमेल खिचड़ी है, जो उस समय जन समाज में प्रचलित थी। वे अपने गुरु रामानंद स्वामी का बड़ा आदर करते थे।
दोहे
दोहा -1
“साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै, साँच है, ताके हिरदै आप॥”
शब्दार्थ –
साँच – सत्य।, तप – तपस्या, पाप – पातक, कुकर्म।, जाके – जिसके।, हिरदै – हृदय में।, ताके – उसके।, आप – ईश्वर।
व्याख्या –
कबीर जी कहते हैं कि सत्य हमेशा श्रेष्ठ होता है। संसार में सत्य के समान न कोई तपस्या है या न कोई ज्ञान। उसी प्रकार झूठ या मिथ्या पाप या बुरे काम के बराबर है। जिसके हृदय में सत्य का निवास है अर्थात् जो हमेशा सच बोलता है, उसका हृदय निर्मल होता है, पापरहित होता है। उसके निर्मल हृदय में ही भगवान विराजमान होते हैं अर्थात् सत्यवादी को ही भगवान के दर्शन मिलते हैं। ऐसे महानुभाव महान होते हैं, तत्त्वदर्शी होते हैं। समाज भी सत्यवादी का आदर करता है और पापी का अनादर।
दोहा -2
“जो तोको काँटा बुबै ताहि बोय तू फूल।
तोकु फूल को फूल है, बाको है तिरसूल॥”
शब्दार्थ –
तोको – तुम्हारे लिए।, बुबै – बोता है।, ताहि – उसके लिए।, बोय – बोओ।, तू – तुम।, तोकु – तुम्हारे।, बाको – शेष।, तिरसूल – काँटे।
व्याख्या –
यहाँ कबीर कहते हैं कि यह सत्य है, प्रमाणित है कि अच्छे काम करने वालों को अच्छा फल मिलता है और बुरे काम करनेवाले को बुरा फल मिलता है। अर्थात् सभी को कर्म के अनुसार फल भुगतना पड़ता है। जैसी करनी वैसी भरनी। कबीर के कहने का अर्थ है कि जो तेरे रास्ते में काँटा बोता है अर्थात् जो तेरी बुराई करता है, तुम उसके रास्ते पर फूल बिछा दो अर्थात् तुम उसकी भलाई करो। इसका नतीजा यही होगा कि तुम्हारी अच्छाई से तुम्हें अच्छा फल मिलेगा और उसकी बुराई के लिए उसको बुरा फल मिलेगा। मतलब हुआ कि अच्छा काम करो और अच्छा फल पाओ।
दोहा -3
“धीरे-धीरे रे मना, धीरे-धीरे सब कुछ होय।
माली सीचें सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥”
शब्दार्थ –
धीरे-धीरे – धीरज के साथ।, रे मना – हे मन, धीरे-धीरे – आहिस्ता- आहिस्ता।, होय – होता है।, माली – gardener, सीचें सौ घड़ा – सौ घड़ा पानी सींचना।, ऋतु आए फल होय – ऋतु आने पर फल होते हैं। –
व्याख्या –
कबीर दास का कहना है कि प्रकृति के सारे काम धीरे-धीरे होते हैं। उसके लिए धैर्य की आवश्यकता है। इस कथन को पुष्ट करने के लिए उदाहरण देकर कबीर कहते हैं कि माली के सौ घड़े पानी सींचने पर भी किसी भी पेड़ में समय से पहले फल नहीं लग जाते। फल पाने के लिए उपयुक्त ऋतु की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। सही समय के आने से ही पेड़ में फल लगते हैं।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए :
(क) साँच या सत्य के बारे में कबीर ने क्या कहा है?
उत्तर – साँच या सत्य के बारे में कबीर ने यह कहा है कि सत्य के समान दूसरी और कोई भी तपस्या नहीं है। सत्य के मार्ग का अनुसरण हमें महान बनाने के साथ-साथ ईश्वर को भी हमारे हृदय में स्थापित कर देता है। अर्थात् हमें सदा सत्य वचन कहने चाहिए।
(ख) बुराई करनेवालों की भलाई क्यों करनी चाहिए?
उत्तर – हमें बुराई करनेवालों की भी भलाई ही करनी चाहिए क्योंकि इस दुनिया में सभी को अपने-अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है। अगर हम भी बुरे के प्रति बुरा व्यवहार करने लगेंगे तो इससे हमारा भी बुरा होने लगेगा। अतः, समझदारी इसी में है कि हम बिना विचलित हुए सदैव सत्कर्मों का ही संपादनकरते रहें।
(ग) धीरे-धीरे सबकुछ कैसे होता है – इसके लिए कवि ने कौन सा उदाहरण दिया है?
उत्तर – कबीर का यह मानना है कि प्रकृति के सारे काम अपनी गति से यानी कि धीरे-धीरे ही होते हैं और प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि उसमें संयम और धैर्य समान अनुपात में बना रहे तभी वह अपने जीवन में सफल हो सकेगा। अपनी बातों को पुष्ट करने के लिए कबीर जी ने कहा है कि भले ही हम किसी पेड़ की सौ घड़े पानी से सिंचाई करें लेकिन फल तो तभी लगेंगे जब सही समय और उचित ऋतु आएगी।
2. निम्नलिखित पदों के अर्थ दो-तीन वाक्यों में स्पष्ट कीजिए :
(क) जाके हिरदै साँच है, ताके हिरदै आप।
उत्तर – दोहे के इस पंक्ति के माध्यम से संत कवि कबीर हमें यह बताना चाह रहे हैं कि जिन व्यक्तियों के हृदय में केवल सच्चाई होती है। जो केवल सत्य के राह पर चलने को ही सत्कर्म मानते हैं उनके हृदय में ही ईश्वर का वास होता है।
(ख) जो तोको काँटा बुबै ताहि बोय तू फूल।
उत्तर – कबीर इस पंक्ति में हमें अपने सत्कर्मों पर अडिग रहने की सलाह देते हुए कहते हैं कि अगर कोई तुम्हारे रास्ते में काँटे बिछा रहा है तो भी तुम उसके रास्ते में फूल ही लगाना। अर्थात् अगर कोई तुम्हें समस्याओं में डालना चाह रहा है तो भी हमें उसके प्रति भद्र व्यवहार ही प्रदर्शित करना चाहिए क्योंकि यहाँ कर्मों के अनुसार ही फल भोगना पड़ता है।
(ग) माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।
उत्तर – कबीर इस पंक्ति में हमें अपने अंदर संयम और धैर्य को बनाए रखने की प्रेरणा दे रहे हैं। कबीर ने यहाँ एक अति प्रचलित तथ्य के माध्यम से हमें यह बताया है कि भले ही हम एक पेड़ की सिंचाई सौ घड़े पानी से कर दें फिर भी उस पेड़ में फल तभी ही लगेंगे जब सही समय और उपयुक्त मौसम आएगा।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए :
(क) किसके बराबर तप नहीं है?
उत्तर – सत्य के बराबर दूसरा कोई तप नहीं है।
(ख) झूठ के बराबर क्या नहीं है?
उत्तर – झूठ के बराबर दूसरा कोई पाप नहीं है।
(ग) जिसके हृदय में साँच है, उसके हृदय में कौन होते हैं?
उत्तर – जिसके हृदय में साँच है, उसके हृदय में ईश्वर का वास होता है।
(घ) झूठ की तुलना किसके साथ की गई है?
उत्तर – झूठ की तुलना पाप के साथ की गई है।
(ङ) साँच की तुलना किसके साथ की गई है?
उत्तर – साँच की तुलना तपस्या के साथ की गई है।
(च) जो तुम्हारे रास्ते पर काँटा बोता है, तुझे उसके लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर – जो मेरे रास्ते पर काँटा बोता है, मुझे उसके लिए फूल ही बोने चाहिए।
(छ) पेड़ में कब फल लगते हैं?
उत्तर – उपयुक्त ऋतु आने पर ही पेड़ में फल लगते हैं।
(ज) कौन सौ घड़े पानी सींचता है?
उत्तर – माली सौ घड़े पानी सींचता है।
(झ) इन दोहों के रचयिता कौन हैं?
उत्तर – इन दोहों के रचयिता संत कबीर हैं।
(ञ) प्रथम दोहे में ‘आप’ शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर – प्रथम दोहे में ‘आप’ शब्द ईश्वर के लिए आया है।
भाषा- ज्ञान
1. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत या विलोम शब्द लिखिए :
साँच – झूठ
पाप – पुण्य
बुरा – भला
धीर – अधीर
काँटा – फूल
2. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द कोष्ठक से चुन कर लिखिए :
(मौसम, समान, कलुष, दिल, पुष्प, घट, मिथ्या)
बराबर – समान
झूठ – मिथ्या
पाप – कलुष
हृदय – दिल
फूल – पुष्प
घड़ा – घट
ऋतु – मौसम
3. निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलिए :
पाप – पापों को (तिर्यक बहुवचन)
फूल – फूलों पर (तिर्यक बहुवचन)
फल – फलों में (तिर्यक बहुवचन)
माली – मालियों ने (तिर्यक बहुवचन)
घड़ा – घड़े
काँटा – काँटे
ऋतु – ऋतुएँ
4. इन शब्दों के खड़ी बोली-रूप लिखिए :
साँच – सच्चा
जाके – जिसके
हिरदै – हृदय
तोको – उसको
बुबै – बोए
बाको – बाकी
होय – होगा