कवि परिचय :
रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना है। उनका जन्म सन् 1556 में हुआ था। वे अकबर के अभिभावक बैरम खाँ के पुत्र थे। शाही महल में उनका बचपन बीता। बाद में उन्हें गुजरात की सूबेदारी मिली।
रहीम अरबी, फारसी, तुर्की, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। वे हिंदू संस्कृति और भक्ति-भावना से प्रभावित थे। उन्होंने दरबार का शाही ठाट देखा। वे बड़े पद पर काम करते थे। लेकिन उनमें गर्व का नाम न था। उन्होंने आम जनता के जीवन को देखा था। रहीम एक सहृदय, स्वाभिमानी, वीर और दानी व्यक्ति थे। साधारण मानव के प्रति उनके मन में बड़ा प्रेम था। उनके दोहों में अनुभूति की गहराई मिलती है। भक्ति, नीति, वैराग्य, शृंगार जैसी बातें उनकी रचनाओं में पाई जाती हैं।
रहीम काव्य के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें रहीम रत्नावली, रहीम विलास प्रामाणिक हैं।
दोहे
दोहा – 01
“तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पिय हिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित संपति संचहि सुजान॥”
शब्दार्थ –
तरुवर – पेड़
खात – खाना
सरवर – सरोवर
पियहि – पीना
पान – पानी
कहि – कहना
पर – दूसरा
काज – काम
हित – के लिए, भलाई
संचहि – संचय करना
सुजान – सज्जन
व्याख्या –
रहीम जी का मानना है कि जिस प्रकार पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता, तालाब अपना जल खुद नहीं पीता उसी प्रकार सज्जन भी धन का संचय ज़रूरतमंदों की मदद करने के लिए करते हैं। ज्ञानी लोग सूझ-बूझवाले होते हैं। इसलिए वे दूसरों की भलाई के लिए संपत्ति का संचय करते हैं। इससे परोपकार होता है और परोपकार एक महान कार्य है।
दोहा – 02
“रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवै सुई कहा करै तलवार॥”
शब्दार्थ –
देखि – देखना
बड़ेन – बड़े को
लघु – छोटा
डारि – त्याग
आवे – आए
सुई – Needle
कहा – क्या
तलवारि – तलवार
व्याख्या –
रहीम जी इस दोहे में समानता की बात बताते हुए कह रहे हैं हमें बड़ों को देखकर छोटों का साथ नहीं छोड़ देना चाहिए । इस दुनिया में बड़े-छोटे सभी अपनी-अपनी जगह पर महत्त्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए कहा भी गया है कि कपड़े सीने के लिए हमें सुई की आवश्यकता पड़ती है और युद्ध करने के लिए तलवार की परंतु विपरीत स्थिति में ये दोनों निरर्थक हैं।
दोहा – 03
“रहिमन पर उपकार के करत न यारी बीच।
मांस दिये शिवि भूप ने, दिन्हीं हाड़ दधीचि॥”
शब्दार्थ –
पर – दूसरा
उपकार – भला
करत – करना
यारी – दोस्ती
शिवि – एक राजा का नाम
भूप – राजा
दिन्हीं – दिया
हाड़ – अस्थि
दधीचि – एक ऋषि का नाम
व्याख्या –
कवि रहीम कहते हैं कि केवल जहाँ दोस्ती या मित्रता हो केवल वहीं उपकार नहीं किया जाता बल्कि परोपकार तो किसी के भी साथ भी किया जा सकता है। हम कहीं भी किसी भी स्थान पर आवश्यकता पड़ने पर दूसरे का उपकार कर सकते हैं, जैसे – राजा शिवि ने अपना मांस शरण में आए कबूतर की रक्षा के लिए अपरिचित बाज को दे दिया। दधीचि ऋषि ने देवताओं की मदद के लिए अपनी हड्डियाँ बज्र बनाने हेतु दे दीं जिससे देवताओं के शत्रु वृत्रासुर का वध किया गया। इन कृत्यों में केवल परोपकार की भावना थी।
अंतर्कथा
शिवि
पुराने जमाने में शिवि (उशीनर) नामक एक राजा थे। वे बड़े परोपकारी थे। एक बार बाज पक्षी डरकर एक कबूतर उनकी शरण में आया। राजा ने उसे शरण दे दी। उसको खाने वाला भूखा बाज उसके पीछे-पीछे आकर अपने आहार के लिए राजा से कबूतर उसके बदले राजा शिवि ने उसे अच्छे खाद्य देने को कहा। पर बाज राजी नहीं हुआ। उसने राजा से कबूतर के बराबर मांस माँगा। अंत में राजा ने कबूतर की जान बचाने के लिए अपने शरीर से मांस काट कर भूखे बाज को दे दिया था। आखिरकार वे तराजू पर बैठ गए। अपना पूरा बलिदान कर दिया।
दधीचि :
दधीचि एक परोपकारी ऋषि थे। वे सरस्वती नदी के किनारे रहते थे। वृत्रासुर नामक एक बड़ा पराक्रमी राक्षस था। उससे मनुष्य क्या देवतागण भी डरते थे। उसके आतंक से स्वर्ग में हाहाकार मच गया। उनसे रक्षा पाने के लिए देवगण भगवान विष्णु के पास पहुँचे। भगवान विष्णु ने सलाह दी कि ऋषि दधीचि की अस्थियों से बज्र बनाया जाएगा। उसी बज्र से ही वृत्रासुर मारा जाएगा। भगवान विष्णु से परामर्श लेकर देवगण ऋषि दधीचि के आश्रम पहुँचे। ऋषि दधीचि ने देवगण का यथोचित आदर सत्कार किया। उनके शुभागमन का कारण पूछा। उनसे सारी बातें सुनकर ऋषि दधीचि ध्यान मुद्रा में बैठ गए। उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई। उनकी अस्थियों से बज्र बनाया गया। उस बज्र से वृत्रासुर मारा गया। परोपकारी ऋषि दधीचि ने देवताओं की भलाई के लिए अपनी हड्डियाँ दे दी थीं।
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्यों में दीजिए :
(क) तरुवर और सरवर क्या करते हैं?
उत्तर – तरुवर और सरोवर अनादिकाल से क्रमश: अपना फल जन-जन को देकर उनकी भूख मिटाते हैं तथा सरोवर अपना जल खुद न पीकर लोगों की प्यास बुझाने के लिए समर्पित करके परोपकार करते हैं।
(ख) शिवि राजा ने क्यों मांस दान दिया?
उत्तर – शिवि राजा ने मांस दान दिया क्योंकि एक बाज से अपने प्राणों की रक्षा करते हुए एक कबूतर उनकी शरण में आया और शरणागत कबूतर की रक्षा तथा भूखे बाज के साथ न्याय करने के उद्देश्य से राजा शिवि ने अपने शरीर के मांस का दान किया था।
(ग) छोटों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए क्यों?
उत्तर – हमें कभी भी छोटों या लघु की अवहेलना नहीं करनी चाहिए क्योंकि समाज में छोटे-बड़े सभी की उपयोगिता बनी हुई है। उदाहरण के लिए अगर हमें कपड़े सीने हैं तो छोटी-सी सुई की आवश्यकता है न कि बड़े से तलवार की।
(घ) ऋषि दधीचि ने किसलिए हाड़ या अस्थि दान दिया था?
उत्तर – ऋषि दधीचि परम परोपकारी थे। जब देवतागण उनके समक्ष वृत्रासुर के आतंक से पीड़ित होने की करुण कथा सुनाई तो वे द्रवित हो उठे और उनके कल्याण तथा वृत्रासुर के वध के लिए वज्र बनाने हेतु अपनी अस्थियों का दान कर दिया।
2. निम्नलिखित अवतरणों का आशय दो-तीन वाक्यों में स्पष्ट कीजिए
(क) तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पिय हिं न पान।
उत्तर – इस पंक्ति में कवि रहीम यह कहना चाहते हैं कि मनुष्य को सदा परोपकार की भावना से भरा होना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार पेड़ अपना फल खुद नहीं खाता और तालाब अपना जल खुद नहीं पीता। ये परोपकार हित बने हैं। उसी प्रकार हमें भी परोपकारी बनना चाहिए।
(ख) जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।
उत्तर – यहाँ कवि रहीम यह कह रहे हैं कि समाज में सभी चीजों की आवश्यकता अपनी-अपनी जगह पर बनी हुई है, जैसे- कपड़े सीने के लिए हमें सुई की आवश्यकता है और युद्ध करने के लिए हमें तलवार की आवश्यकता है। इसलिए रहीम यह बताना चाहते हैं कि चीज़ें छोटी हों या बड़ी उपयोगिता सभी की है।
(ग) मांस दियो शिवि भूप ने, दीन्हों हाड़ दधीचि।
उत्तर – इस दुनिया में ऐसे भी महान आत्माओं ने जन्म लिया है जिनके लिए परोपकार की भावना सदा से सर्वोपरि रही है। इसी महानुभावों में राजा शिवि और ऋषि दधीचि भी आते हैं जिन्होंने क्रमश: कबूतर की रक्षा के लिए स्वमांस दान किया और वृत्रासुर के आतंक से देवताओं की रक्षा करने हेतु अपनी अस्थियों का दान कर दिया था।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए :
(क) तरुवर क्या नहीं खाता है?
उत्तर – तरुवर अपना फल स्वयं नहीं खाता है।
(ख) सरवर क्या नहीं पीता है?
उत्तर – सरवर अपना पानी स्वयं नहीं पीता है।
(ग) सुजान किसलिए संपत्ति का संचय करता है?
उत्तर – सुजान जरूरतमंदों की मदद करने के लिए संपत्ति का संचय करते हैं।
(घ) बड़े लोगों को देखकर लघु का क्या नहीं करना चाहिए?
उत्तर – बड़े लोगों को देखकर लघु अर्थात् छोटों का अनादर या तिरस्कार नहीं करना चाहिए।
(ङ) सुई की जगह अगर तलवार मिल जाए तो काम होगा या नहीं?
उत्तर – सुई की जगह अगर तलवार मिल जाए तो तलवार सुई का काम नहीं कर सकेगी।
(च) परोपकार करते समय क्या ज़रूरी नहीं है?
उत्तर – परोपकार करते समय यह ज़रूरी नहीं कि परोपकार केवल अपने मित्रों में या परिचितों में की जाए।
(छ) शिवि भूप ने क्या दान दिया था?
उत्तर – शिवि भूप ने स्वमांस अर्थात् अपने शरीर के मांस का दान दिया था।
(ज) किसने अपनी हड्डियों का दान दिया था?
उत्तर – ऋषि दधीचि ने अपनी हड्डियों का दान दिया था।
भाषा – ज्ञान
1. नीचे लिखे शब्दों के खड़ीबोली रूप लिखिए :
नहिं – नहीं
सरवर – सरोवर
पिय – पीना
पान – पानी
तलवारि – तलवार
काज – काम
2. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखिए :
पर – अपना
हित – अहित
सुजान – दुर्जन
बड़ा – छोटा
लघु – गुरु
उपकार – अपकार
3. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थक शब्द लिखिए :
सरवर – तालाब
तरु – पेड़
पान – पानी
संपत्ति – धन-दौलत
सुजान – सज्जन
लघु – छोटा
तलवारि – तलवार
भूप – राजा
यारी – मित्रता
हाड़ – हड्डी
4. निम्नलिखित शब्दों के लिंग निर्णय कीजिए :
फल – पुल्लिंग
संपत्ति – स्त्रीलिंग
सुई – स्त्रीलिंग
तलवार – पुल्लिंग
मांस – पुल्लिंग
5. ‘को‘ परसर्ग का प्रयोग करके पाँच वाक्य बनाइए।
जैसे- राम को किताब दो।
क. रमा को बुलाओ।
ख. चोर को पकड़ लिया गया है।
ग. सुरेश ने सिद्धार्थ को अपने घर बुलाया है।
घ. हमें भारत को श्रेष्ठ स्थान पर पहुँचाना है।
ङ. मेरे चाचाजी को आज दिल्ली जाना पड़ेगा।