बात उन्हीं दिनों की है, जिन दिनों कृष्ण वृंदावन में गाएँ चराया करते थे। एक बार ब्रह्माजी के मन में श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने का विचार उत्पन्न हुआ। उन्होंने सोचा, जरा पता लगाया जाए कि नंद के पुत्र कृष्ण के बारे में ये जो नाना प्रकार की बातें प्रचारित हो रही हैं कि वे भगवान का रूप हैं, इनमें कितनी सत्यता है।
दोपहर का समय था। कृष्ण दोपहर को भोजन करने के पश्चात् कदंब के वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे। गाएँ और बछड़े भी इधर-उधर बैठे हुए थे। ग्वाल-बाल भी इधर-उधर सोए हुए आराम कर रहे थे। सहसा कृष्ण उठकर बैठ गए। उन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि न तो कोई गाय दिखाई पड़ रही है, न बछड़ा दिखाई पड़ रहा है, न ग्वाल-बाल दिखाई पड़ रहे हैं। कृष्ण विस्मय की तरंगों में डूबकर सोचने लगे, सब कहाँ चले गए, सब कहाँ छिप गए? श्रीकृष्ण गायों, बछड़ों और ग्वाल- बालों को खोजने लगे, किंतु बहुत खोजने पर भी न तो गाएँ मिलीं, न बछड़े मिले और न ग्वाल-बाल मिले। मिलते भी तो कैसे मिलते? ब्रह्माजी ने सभी को ले जाकर छिपा जो दिया था।
कृष्ण ने जब विचार किया, तो उन्हें सबकुछ मालूम हो गया। वे यह जान गए कि ब्रह्माजी ने उनकी परीक्षा लेने के लिए गायों, बछड़ों और ग्वाल-बालों को छिपा दिया है। बस फिर क्या था, कृष्ण ने अपनी योग-माया की शक्ति से चारों ओर गाय, बछड़े और ग्वाल-बाल पैदा कर दिए। उन्होंने कई कृष्ण और भी पैदा कर दिए। ब्रह्माजी इस लीला को देखकर चक्कर में पड़ गए। उन्होंने गायों, बछड़ों और ग्वाल-बालों को जहाँ छिपाया था, वहाँ जाकर देखा, तो वे सब वहाँ मौजूद थे।
ब्रह्मा जी सोचने लगे, यह कैसी अद्भुत लीला है? मैंने जिन्हें छिपाया था, वे तो अपनी जगह मौजूद हैं। फिर ये दूसरी गाएँ, बछड़े और ग्वाल-बाल कहाँ से आ गए? इनमें कौन वास्तविक हैं और कौन बनावटी-कुछ समझ में नहीं आता। जब ब्रह्मा जी सोच-सोचकर थक गए, तो उन्होंने प्रकट होकर भगवान श्रीकृष्ण की प्रार्थना की, ” हे अच्युत, हे असीम, हे इंन्द्रियातीत, हे भावातीत और हे शब्दातीत, हमें क्षमा कीजिए। हम आपकी शरण में हैं। आपकी लीला ने हमारे मन में अज्ञानता उत्पन्न कर दी थी। हमारी बुद्धि भ्रम में पड़ गई। हम पर दया करके मेरे भ्रम को दूर कीजिए।”
ब्रह्माजी की प्रार्थना सुनकर कृष्ण मुस्करा उठे। उन्होंने मुस्कराते हुए ब्रह्माजी की ओर देखकर कहा, “हे ब्रह्मदेव! आपने मेरी गाएँ, मेरे बछड़ों और मेरे ग्वाल-बालों को क्यों छिपा रखा है?”
ब्रह्माजी भगवान श्रीकृष्ण के सामने झुक पड़े। उनके झुकते ही लीला की गाएँ, लीला के बछड़े और लीला के ग्वाल-बाल तो अदृश्य हो गए, उनके स्थान पर असली गाएँ, बछड़े और ग्वाल-बाल प्रकट हो गए। जय कृष्ण, जय कन्हैया के घोष से सारा वातावरण गूँज उठा।