बस केवल यही पुकार मेरी
जन-जन की भाषा हो हिंदी
नवयुग की आशा हो हिंदी
हर मन की भाषा हो हिंदी।
नवयुग का नूतन गान बने,
कविता का छंद विधान बने।
अपनी अभिलाषा एक यही,
हिंदी भारत की शान बने।
सम्पूर्ण देश जिसमें अपनी
छवि के गीतों को गाता है,
वह कोई और नहीं मित्रों
यह अपनी हिंदी भाषा है।
भारत का भाव कलश हिंदी
यह सरस सुगीत पुनीता है
दोहा चौपाई छंदों में
नवयुग की भगवत गीता है।
यह लोकतंत्र की वाणी है
यह संविधान की भाषा है
इसमें ही यह राष्ट्र स्वयं को
अभिव्यक्ति दे पाता है।
यह हिंदी दिवस आज अपनी
प्रिय भाषा को अर्पित करते हैं।
इसके माध्यम से हिंदी हित
अपना सम्मान प्रदर्शित करते हैं।
हे भावप्रसविनी हिंदी तुम
अपना सामर्थ्य समृद्ध करो।
हे शब्दमयी, हे छंदमयी
भारत जननी का गर्व बनो।
हे राष्ट्रकंठ की वाणी तुम
भावी भारत की आशा हो
जो समरस और समुन्नत है
उस लोकतंत्र की भाषा हो।
भक्ति का कविता कानन तुम ही,
मीरा का पद वृंदावन हो।
तुम हो घन आनंद का प्रेम विरह,
तुलसी का मणिमय मानस हो।
हो तुम ही विनय पत्रिका भी ,
तुम सूरदास का सागर हो
दोहों के वैभव जल युक्ता,
तुम सतसैया की गागर हो।
तुम देवनगर में सद्व्यवहृत
और भारतेंदु से मंडित हो
तुम महावीर का सदप्रयत्न
और सूर्यकांत से सरसित हो।
तुम ही बच्चन की मधुशाला
दिनकर की ओजस्वी वाणी हो।
सुरसरि की धारा सम अविरल
भारत जन मन कल्याणी हो।
तुम प्रेमचंद की कथा भूमि
तुम जयशंकर का नाटक हो।
तुम भारत भारति की जननी
तुम ही ग्रंथों में रासक हो।
बसती तुम कथा कहानी में
रंगों और निबंधों में
तुम ही तो बसी हुई हो
अन गिन कवियों के छंदों में।
है वास तुम्हारा विद्यापति की
मैथिल कोकिल अमराई में।
तुम ही तो बसती हो जननी
मन भावों की गहराई में।
इस पुण्य दिवस के अवसर पर
हम तुमको निज प्रणति समर्पण करते हैं।
तुम हिंदी हो हम हिंदी हैं यह मंत्रोच्चारण करते हैं।
कर्तव्य भाव से भरे हुए पुत्रों का प्रेम अकुंठित लो।
तुम विकसित हो सब विकसित हों भारत को अब ऐसा वर दो।
जय हिंदी जय नागरी।