अल्पप्राण Un-aspirate और महाप्राण Aspirate
श्वास (प्राण/वायु) की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद
उच्चारण में वायुप्रक्षेप (मुख से निकलने वाली हवा) की दृष्टि से व्यंजनों के दो भेद हैं-
(1) अल्पप्राण
(2) महाप्राण
अल्पप्राण
(अल्पप्राण को अप्राण भी कहते हैं।)
अल्प अर्थात् कम या थोड़ा
प्राण अर्थात् वायु
अल्पप्राण अर्थात् कम वायु
(1) अल्पप्राण :-जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में श्वास मुख से अल्प मात्रा में निकले और जिनमें ’ह’ कार-जैसी ध्वनि नहीं होती, उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। सरल शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा कम होती है, वे अल्पप्राण कहलाते हैं।
प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन है।
जैसे- क, ग, ङ; च, ज, ञ; ट, ड, ण; त, द, न; प, ब, म,।
अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं।
क | ख | ग | घ | ङ |
च | छ | ज | झ | ञ |
ट | ठ | ड(ड़) | ढ (ढ़) | ण |
त | थ | द | ध | न |
प | फ | ब | भ | म |
य | र | ल | व | – |
श | ष | स | ह | – |
इस तरह अल्पप्राण व्यंजनों की संख्या 19 हो गईं।
स्वर वर्णों को भी अल्पप्राण के अंतर्गत ही रखा जाता है।
इस तरह कुल अल्पप्राण वर्णों की संख्या 30 हो गई।
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ए | ऐ | ओ | औ |
महाप्राण
महाप्राण को सप्राण भी कहते हैं।
महा अर्थात् अधिक या ज़्यादा
प्राण अर्थात् वायु
महाप्राण अर्थात् अधिक वायु
महाप्राण:-जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में ‘ह’ कार – जैसी ध्वनि विशेष रूप से रहती है और श्वास अधिक मात्रा में निकलती हैं। उन्हें महाप्राण कहते हैं। सरल शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की मात्रा अधिक होती है, वे महाप्राण कहलाते हैं।
प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।
जैसे- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और
ऊष्म वर्ण श, ष, स, ह।
क | ख | ग | घ | ङ |
च | छ | ज | झ | ञ |
ट | ठ | ड(ड़) | ढ (ढ़) | ण |
त | थ | द | ध | न |
प | फ | ब | भ | म |
य | र | ल | व | – |
श | ष | स | ह | – |
संक्षेप में अल्पप्राण वर्णों की अपेक्षा महाप्राणों में प्राणवायु का उपयोग अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता हैं।
इस तरह महाप्राण व्यंजनों की संख्या 14 हो गईं।
अल्पप्राण और महाप्राण को पहचानने का एक और तरीका
आप अपने हाथ के पंजे को उल्टा कर अपने मुख के सामने रखें को व्यंजन वर्णों का उच्चारण करें जिनके उच्चारण में उष्मता अधिक होगी निश्चित रूप से वह महाप्राण और कम उष्मता वाले अल्पप्राण व्यंजन होंगे।
इसके अतिरिक्त आप जब हिन्दी व्यंजन वर्णों को अंग्रेज़ी में लिखेंगे तब भी आप अल्पप्राण और महाप्राण में निहित अंतर को जान पाएँगे, जैसे – ‘क’ के किए ‘ka’ मगर ‘ख’ के लिए ‘kha’ इसमें प्रयुक्त ‘h’ ही महाप्राण व्यंजन होने की पहचान है।
अल्पप्राण और महाप्राण से ध्वनि परिवर्तन
महाप्राणीकरण (Aspiration) फारसी भाषा का शब्द किशमिश जिसका अर्थ currant होता है मराठी मे वही खिशमिश हो गया है। इसमे ‘क’ जो अल्पप्राण था वह ‘ख’ महाप्राण में बदल गया है।
इसी प्रकार फारसी का ‘ताक’ भोजपुरी में ‘ताखा’ हो गया है और संस्कृत का ‘तप’ कश्मीरी भाषा में ‘तफ’ हो गया है।
अरबी भाषा का क़िस्सा भोजपुरी मे खिस्सा हो गया।
अल्पप्राणीकरण (Un-Aspiration) संस्कृत का विधि शब्द कश्मीरी में व्यद हो गया और भ+भूव = वभूव तथा ध+धामी= दधामि
अल्पप्राण वाले व्यंजनों से बनने वाले शब्दों की संख्या महाप्राण व्यंजन वर्णों (‘स’ के अतिरिक्त) से ज़्यादा होते हैं।
महाप्राण व्यंजनों के उच्चारण में अधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है।
महाप्राण व्यंजनों का द्वित्व (‘स’ के अतिरिक्त) नहीं होता है। लेकिन अल्पप्राण के साथ महाप्राण का संयुक्तीकरण होता है जैसे- मक्खी, मच्छर, चिट्ठी, पत्थर इत्यादि।
‘ङ’ और ‘ञ’ को छोड़कर सभी अल्पप्राण व्यंजनों का द्वित्व हो सकता है जैसे- पक्का, कच्चा, पट्टी, पत्ता, चप्पल, विषण्ण, अन्न इत्यादि।