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हिंदी में योजक चिह्न (हाइफ़न) का प्रयोग

Yojak Chihn hyphen ka prayog

योजक चिह्न (-) (हाइफ़न) परिभाषा

एक चिह्न (-) जो दो शब्‍दों को जोड़ता है, जैसे- माता-पिता, भाई-बहन, दिन-रात या यह व्‍यक्त करता है कि किसी विभक्त शब्‍द का शेष भाग अगली पंक्ति में है। वही योजक चिह्न या  हाइफ़न कहलाता है।

योजक चिह्न के लाभ

योजक चिह्न (हाइफ़न) का विधान स्पष्टता के लिए किया जाता है। इस चिह्न का हिंदी में बहुत प्रयोग (सदुपयोग के साथ-साथ कभी-कभी दुरुपयोग भी) होता है। संश्लेषणात्मक प्रकृति की भाषा ‘संस्कृत’ में इस चिह्न का प्रयोग अत्यल्प होता है, किंतु विश्लेषणात्मक प्रकृति की भाषा ‘हिंदी’ में इसका प्रयोग अनेक अवसरों पर करना पड़ता है। योजक चिह्न का सही प्रयोग न होने से अर्थ तथा उच्चारण संबंधी भ्रम की गुंजाइश है, यथा-

भू-तत्त्व (=भूमि / पृथ्वी से संबद्ध तत्त्व)

भूतत्व (=भूत का भाववाची रूप)

कु-शासन (=बुरा शासन)

कुशासन (=कुश से निर्मित आसन)

उप-माता  (=सौतेली माँ)

उपमाता (=उपमा देनेवाला) 

योजक चिह्न (-) का प्रयोग क्षेत्र

1. एकार्थी सहचर शब्दों, विपरीतार्थक शब्दों, पुनरुक्त शब्दों तथा अनुक्त या लुप्त ‘और’ योजक के पदों के मध्य योजक चिह्न लगता है, यथा-

भोग-विलास, दीन-दुखी, जी-जान, हँसी-खुशी, नौकर-चाकर; हानि-लाभ, स्वर्ग-नरक, गरीब-अमीर, आकाश-पाताल; गली-गली, बात-बात, कण-कण, चप्पा-चप्पा, धीरे-धीरे, आगे-आगे, थोड़ा-थोड़ा, अभी-अभी, उलटा-पुलटा, खाना-वाना, झूठ-मूठ, धर्म-अधर्म, माता-पिता, फल-फूल आदि।

2. दो मूल सामान्य (रूपी) संयुक्त क्रियाओं, सामान्य एवं प्रेरणार्थक क्रियाओं, दो प्रेरणार्थक क्रियाओं के मध्य योजक चिह्न लगता है, यथा-

सोना-जागना, कहना-सुनना, खाना-पीना, पढ़ना-लिखना, लेटना-लिटाना, पीना-पिलाना, उड़ना- उड़ाना, सोना-सुलाना; कटाना-कटवाना, जिताना-जितवाना, डराना – डरवाना।  

3. पुनरुक्त शब्दों के मध्य आए ‘से, का, न, ही’ के पूर्व एवं पश्चात्, सा/सी/से/जैसा/जैसी/जैसे/सरीखा/सरीखी/सरीखे जोड़ कर बनाए गए विशेषण शब्द में इन शब्दों से पूर्व योजक चिह्न लगता है, यथा-

आप-से-आप, कभी-न-कभी, आप-ही-आप, ज्यों-का-त्यों, कोई-न-कोई, किसी-न-किसी, कम-से-कम, अधिक-से-अधिक, बहुत-सी बातें, छोटा-सा काम, थोड़े-से लोग, तुझ-जैसा नालायक, तुम-जैसी भोली, उन-जैसे दुष्ट, तुझ-सरीखी नादान।

4. दो निश्चित संख्यावाची शब्द एक साथ आने पर दो विशेषण पद (संज्ञावत् प्रयोग होने पर) योजक चिह्न से जुड़ते हैं, यथा- चार-छह, दो-चार, एक-दो, चौथा-पाँचवाँ, दूसरे-तीसरे,  अन्धे-बहरे, लूली-लँगड़ी, भूखा-प्यासा।

5. कठिन संधियों से बचने के लिए भी योजक या हाइफ़न का प्रयोग किया जा सकता है, जैसे –

द्वि-अक्षर न कि द्व्यक्षर;

द्वि-अर्थक न कि द्व्यर्थक,

त्रि-अक्षर न कि त्र्यक्षर आदि।

6. पंक्ति के अंत में अधूरे रहे शब्द के अक्षर के बाद योजक चिह्न रखा जा सकता है। ऐसे समय शब्द के खंडित अंशों में ताल-मेल रहना चाहिए, यथा-

इनके अलावा वे अनेक विदेशी विश्व- विद्यालयों और संस्थानों में अतिथि प्राध्यापक भी हैं।

इस कड़े मुकाबले के बाद टायसन ने कहा था, “मुझे कोई नहीं हरा सकता। मैं दुनिया का सर्व-श्रेष्ठ मुक्केबाज हूँ।

योजक चिह्न (-) का वर्जित प्रयोग क्षेत्र

जहाँ तक संभव हो, योजक चिह्न का कम प्रयोग करना ही अच्छा है। निम्नलिखित प्रकार के अनेक शब्दों को बिना योजक चिह्न के लिखने का प्रचलन विशेषतः अंग्रेज़ी के प्रभाव से या प्रयत्न-लाघव प्रवृत्ति के कारण बढ़ रहा है जो एक तरह से सही भी है। –

1. तत्पुरुष समासज शब्द – ‘का/की/के’ लुप्त/अनुक्त होने पर दो पदों के मध्य योजक चिह्न न लगाया जाए, यथा- मनगढ़न्त, गुरुभाई, तिलचट्टा, रसोईघर, राष्ट्रभाषा, घुड़दौड़, देशनिकाला, गंगाजल, मदमाती, आनन्दमग्न, गोबरगणेश, धर्मशाला, करपल्लव, कमलनयन, डाकगाड़ी, वायुयान आदि।

2. पूर्ण, मय, युक्त, पूर्वक, स्वरूप, मात्र, भर, द्वारा, गण, रूपी, व्यापी आदि शब्दों के पूर्व योजक चिह्न नहीं रखा जाता, यथा- रोषपूर्ण मुद्रा, विनोदपूर्ण स्वर, मंगलमय कामना, करुणामय, प्रत्यययुक्त, लोभयुक्त, श्रद्धापूर्वक, भक्तिपूर्वक, परिणामस्वरूप, प्रसादस्वरूप, मानवमात्र, दयामात्र, रातभर, पेटभर, अध्यक्ष द्वारा, विद्या सभा द्वारा, छात्रगण, देवतागण, लक्ष्मीरूपी कन्या रत्न, कमलरूपी नयन, विश्वव्यापी समस्या, देशव्यापी भ्रष्टाचार।

3. विशेष्य और विशेषण के मध्य सामान्यतः योजक चिह्न नहीं लगाया जाता, यथा- कलकत्तावासी, शुभ समाचार, सान्ध्य गोष्ठी, हिंदी पत्रकारिता, विधवा विवाह, सुमधुर स्वर, अहिंदी भाषा भाषी, अहिंदी भाषी आदि।

अपवाद – अंजुमन-ए-इस्लाम, आईन-ए-अकबरी जैसे लंबे शब्दों में उच्चारण सौकर्य की दृष्टि से योजक चिह्न लगा सकते हैं।

4. अंग्रेजी की अंधी नकल पर उप (Vice-), भूतपूर्व (Ex–), अ (Non-) के बाद योजक चिह्न नहीं लगाया जाए, यथा- उपसभापति, भूतपूर्व मंत्री, असहयोग आंदोलन, अहिंसक वृत्ति, उपप्रधानाध्यापक, भूतपूर्व सैनिक।

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