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Samaas Ka Sampoorna Adhyyan समास का संपूर्ण अध्ययन

Samaas Ka Saral Sanskaran Q N A The Best One

समास (Compound)

दो या दो से अधिक शब्दों के मेल से जो नया शब्द बनता है, उसे समास कहते हैं।

इस मेल की प्रक्रिया में बीच की विभक्तियों, शब्दों, या तथा (‘और’) आदि अव्ययों का लोप हो जाता है, जैसे ‘जल  की धारा’ का सामासिक पद होगा ‘जलधारा’।

विशेष द्रष्टव्य – यहाँ ‘जल’ पूर्व पद है और ‘धारा’ उत्तर पद दोनों के मिलने पर समस्त पद (जलधारा) बनता है और बड़े रूप (जल की धारा) को समास विग्रह कहते हैं।

दो पदों में कभी पहला पद प्रधान और कभी दूसरा पद प्रधान होता है। कभी दोनों पद प्रधान होते हैं। तो कभी दोनों पद किसी तीसरे के द्योतक होते हैं।

समास के भेद

समास के छह भेद हैं-

(1) अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)

(2) तत्पुरुष समास (Determinative Compound)

(3) कर्मधारय समास (Appositional Compound)

(4) द्विगु समास (Numerical Compound)

(5) बहुब्रीहि समास ((Attributive Compound)

(6) द्वंद्व समास (Copulative Compound)

1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)

जिस समास का पहला शब्द अव्यय (Indeclinable) हो उसे ‘अव्ययीभाव’ समास कहते हैं। इसका पहला पद या पूर्व पद प्रधान होता है। इसके प्रारंभ में अव्यय (आ, भर, यथा, प्रति, अनु, बे आदि) होने के कारण ही इसे अव्ययीभाव कहते हैं। पूर्व पद के अव्यय होने से समस्तपद भी अव्यय हो जाता है।

समस्तपद (समास) विग्रह

गली-गली – प्रत्येक गली

हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में

दिनोंदिन – दिन ही दिन में

आजीवन – जीवन पर्यंत

यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार

आजन्म – जन्म से लेकर

आमरण – मरण तक

आसमुद्र – समुद्र पर्यंत

यथाविधि – विधि के अनुसार

यथानियम – नियम के अनुसार

यथाशीघ्र – जितना शीघ्र हो

प्रत्येक – हर एक / प्रति-एक

प्रतिवर्ष – हर वर्ष / वर्ष-वर्ष

प्रतिदिन – हर दिन / दिन-दिन

प्रत्यक्ष – आँखों के सामने

अनुरूप – रूप के अनुसार

बेकाम – बिना काम के

बेखटके – खटके के बिना

भरपेट – पेट भर के

निडर – डर रहित

यथासमय – समय के अनुसार

निस्संदेह – संदेह रहित

साफ-साफ – बिल्कुल साफ/स्पष्ट

रातोंरात – रात ही रात में

यथामति – मति के अनुसार

घड़ी-घड़ी – हर/प्रत्येक घड़ी

तत्पुरुष समास (Determinative Compound)

जिस समास में उत्तर पद प्रधान तथा पूर्व पद गौण होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। समास होने पर विभक्ति (को, के लिए, से, में, पर, का, के, की) का लोप हो जाता है।

(i) कर्म तत्पुरुष

जिसके पूर्व पक्ष में कर्म कारक (को) की विभक्ति का लोप हो, वहाँ ‘कर्म तत्पुरुष’ होता है।

समस्तपद    विग्रह

स्वर्गप्राप्त – स्वर्ग को प्राप्त

आशातीत – आशा को लाँधकर गया हुआ

मरणासन्न – मरण को पहुँचा हुआ

शरणागत – शरण को आगत/पहुँचा हुआ

परलोकगमन – परलोक को गमन

ग्रामगत – ग्राम को गत

(ii) करण तत्पुरुष

जहाँ पूर्व पक्ष में करण कारक की विभक्ति (से/के द्वारा) का लोप हो, वहाँ ‘करण तत्पुरुष’ होता है।

समस्तपद          विग्रह

तुलसीकृत – तुलसी द्वारा कृत

रोगमुक्त – रोग से मुक्त

अनुभवजन्य – अनुभव से जना   

भुखमरी – भूख से मरा हुआ

भयाकुल – भय से आकुल

हस्तलिखित – हाथ से लिखा हुआ

रेखांकित – रेखा से अंकित

कष्टसाध्य – कष्ट से साध्य

कपड़छन – कपड़े से छना

तुलसीरचित – तुलसी द्वारा रचित

स्वरचित – अपने आप रचित

मनमाना – मन से माना

अकालपीड़ित – अकाल से पीड़ित

मनगढ़ंत – मन से गढ़ा

मदमस्त – मद से मस्त

(iii) संप्रदान तत्पुरुष

जहाँ समास के पूर्व पक्ष में संप्रदान की विभक्ति (के लिए) का लोप होता है, वहाँ ‘संप्रदान तत्पुरुष’ होता है।

समस्तपद    विग्रह

युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि

देशभक्ति – देश के लिए भक्ति

हवनसामग्री – हवन के लिए सामग्री

देवबलि – देव/देवता के लिए बलि

हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी

रसोईघर – रसोई के लिए घर

राहखर्च – राह के लिए खर्च

आरामकुर्सी – आराम के लिए कुर्सी

पाठशाला – पाठ के लिए शाला

क्रीडाक्षेत्र – क्रीड़ा के लिए क्षेत्र

विद्यालय – विद्या के लिए आलय

सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह

देशप्रेम – देश के लिए प्रेम

मालगोदाम – माल के लिए गोदाम

गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा

डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी

(iv) अपादान तत्पुरुष

जहाँ अपादान कारक की विभक्ति (से) का लोप हो, वहाँ ‘अपादान तत्पुरुष’ समास होता है।

समस्तपद विग्रह

भयभीत – भय से भीत

देशनिकाला – देश से निकाला

पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट

धर्मभ्रष्ट – धर्म से भ्रष्ट

धनहीन – धन से हीन

जन्मांध – जन्म से अंधा

ऋणमुक्त – ऋण से मुक्त

(2) संबंध तत्पुरुष

जहाँ संबंध कारक की विभक्ति (का, के, की) का लोप हो, वहाँ ‘संबंध तत्पुरुष’ होता है।

समस्तपद    विग्रह

राजसभा – राजा की सभा

युद्धक्षेत्र – युद्ध का क्षेत्र

जलधारा – जल की धारा

सेनापति – सेना का पति

पराधीन – पर के अधीन

राजकुमार – राजा का कुमार

देशवासी – देश का वासी

लखपति – लाख लाखों (रुपयों) का पति

राजमाता – राजा की माता

राजपुरुष – राजा का पुरुष

लोकसभा – लोक की सभा

जलप्रवाह – जल का प्रवाह

घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़

घुड़सवार – घोड़े का सवार

सेनानायक – सेना का नायक

प्रजापति – प्रजा का पति

(vi) अधिकरण तत्पुरुष

जहाँ अधिकरण कारक की विभक्ति (में,पर) का लोप होता है, वहाँ ‘अधिकरण तत्पुरुष’ होता है।

समस्तपद    विग्रह

स्नेहमग्न – स्नेह में मग्न

विद्याप्रवीण – विद्या में प्रवीण

ध्यानमग्न – ध्यान में मग्न

ग्रामवास – ग्राम में वास

डिब्बाबंद – डिब्बे में बंद

देशाटन – देश में अटन

पुरुषोत्तम – पुरुषों में उत्तम

सिरदर्द – सिर में दर्द

युद्धवीर – युद्ध में वीर

शरणागत – शरण में आगत

कलानिपुण – कला में निपुण

दानवीर – दान में वीर

व्यवहारनिपुण – व्यवहार में निपुण

कार्यकुशल – कार्य में कुशल

आपबीती – आप पर बीती हुई

कुलश्रेष्ठ – कुल में श्रेष्ठ

जगबीती  – जग पर बीती

घुड़सवार – घोड़े पर सवार

रेलगाड़ी – रेल पर चलने वाली गाड़ी

कई बार समास के मध्य से कई शब्द ही लुप्त हो जाते हैं। जैसे-

बैलगाड़ी बैलों से खींची जाने वाली गाड़ी

पनचक्की पानी से चलने वाली चक्की

मालगाड़ी माल ढोने वाली गाड़ी

वनमानुष वन में रहने वाला मानुष

दहीबड़ा दही में डूबा हुआ बड़ा

तत्पुरुष समास के कुछ अन्य भेद-

दसवीं तक की परीक्षाओं में प्राय: ये भेद नहीं पूछा जाता।

नञ् तत्पुरुष

अभाव, कमी, निषेध को सूचित करने के लिए ‘अ’ या ‘अन’ लगाकर ‘नञ् तत्पुरुष’ होता है।

समस्तपद    विग्रह

अधीर – न धीर

अयोग्य – न योग्य

असत्य – न सत्य/जो सत्य न हो

अनादर – न आदर

अनादि – आदि रहित

अनाथ – नाथ हीन (नहीं)

अस्थिर – न स्थिर

असंभव – न संभव

अनश्वर – न नश्वर

अनदेखी – न देखी

अनहोनी – न होनी

अज्ञात – न ज्ञात/जो ज्ञात न हो

अनर्थ – न अर्थ/अर्थहीन

अपुत्र – पुत्रहीन

अधर्म – धर्महीन

कर्मधारय समास (Appositional Compound)

जिस तत्पुरुष में एक पद उपमेय या विशेषण हो तथा दूसरा पद उपमान या विशेष्य हो, उसे ‘कर्मधारय समास’ कहते हैं।

(i) विशेषण-विशेष्य कर्मधारय

समस्तपद विग्रह

प्रधानाध्यापक – प्रधान है जो अध्यापक

नीलकमल – नीला है जो कमल

नीलगगन – नीला है जो गगन

पीतांबर – पीला/पीत है जो अंबर/कपड़ा

कुबुद्धि – बुरी है जो बुद्धि

दुश्चरित्र – बुरा है जो चरित्र

कृष्णसर्प – काला है जो साँप

महात्मा – महान है जो आत्मा

महाराज – महान है जो राजा

महाजन – महान है जो जन

महापुरुष – महान है जो पुरुष

लालमिर्च – लाल है जो मिर्च

कालीमिर्च – काली है जो मिर्च

कापुरुष – कायर है जो पुरुष

नीलांबर – नीला है जो अंबर

नीलगाय – नीली है जो गाय

सद्धर्म – सत्य है जो धर्म

(ii) उपमेय-उपमान कर्मधारय

समस्तपद    विग्रह

कमलनयन – कमल के समान नयन

कनकलता – कनक के समान लता

घनश्याम – घन के समान श्याम

कुसुमकोमल – कुसुम के समान कोमल

चंद्रमुख, मुखचंद्र – चंद्र जैसा मुख

स्त्रीरत्न – स्त्री रूपी रत्न

चरणकमल – कमल के समान चरण

भुजदंड – दंड के समान भुजा

मृगलोचन – मृग के समान लोचन

क्रोधाग्नि – क्रोध रूपी अग्नि

प्राणप्रिय – प्राणों के समान प्रिय

वचनामृत – वचन रूपी अमृत

विद्याधन – विद्या रूपी धन

ग्रंधरत्न – ग्रंथ रूपी रत्न

देहलता – देह रूपी लता

द्विगु समास (Numerical Compound)

जिसके पूर्वपद में संख्यावाचक शब्द होता है, उसे ‘द्विगु समास’ कहते हैं। ‘द्विगु’ का अर्थ हुआ दो गाय।

समस्तपद    विग्रह

पंचवटी – पंच वटों का समाहार

नवरत्न – नव/नौ रत्नों का समाहार

त्रिफला- तीन फलों का समाहार

त्रिभुवन – तीन भुवनों का समाहार

त्रिलोक – तीन लोकों का समाहार

सतसई – सात सौ का समाहार

नवग्रह – नवग्रहों का समाहार

चवन्नी – चार आनों का समाहार

त्रिवेणी – तीन वेणियों का समाहार

दुराहा – दो राहों का समाहार

तिरंगा – तीन रंगों का समाहार

द्विगुण – दो गुणों का समाहार

पंजाब – पाँच आबों का समूह

चौमासा – चार मासों का समाहार

पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समाहार

चौराहा – चार राहों का समाहार

दोपहर – दो पहरों का समाहार

अष्टाध्यायी – आठ अध्यायों का समाहार

षट्रस – षट्/छह रसों का समाहार

नवनिधि – नौ निधियों का समाहार

अष्टसिद्धि – आठ सिद्धियों का समाहार

सप्ताह – सात अहों/दिनों का समाहार

शताब्दी – शत अब्दों/वर्षों का समूह

बहुब्रीहि समास (Attributive Compound)

जिस समास में न पूर्व पद प्रधान होता है, न उत्तर पद; बल्कि समस्तपद किसी अन्य पद का विशेषण होता है, उसे बहुब्रीहि समास कहते हैं। प्राय: यह एक ही होता है और वह भी पौराणिक पात्र। 

उदाहरणतया – ‘पीतांबर’ समस्त पद को लें। इसका विग्रह हुआ पीत अंबर पीला है कपड़ा जिसका (कृष्ण)। यहाँ न ‘पीत’ प्रधान है, न ‘अंबर’; बल्कि पीले कपड़े वाला कृष्ण प्रधान है। अतः यहाँ बहुब्रीहि समास है। कुछ अन्य उदाहरण देखिए-

समस्तपद विग्रह

त्रिलोचन – तीन हैं लोचन जिसके (शिवजी)

चतुर्भुज – चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु)

चक्रधर – चक्र धारण करने वाला (कृष्ण)

पीतांबर – पीत/पीले हैं वस्त्र जिसके (कृष्ण)

चक्रपाणि – चक्र है पाणि में जिसके (विष्णु)

तपोधन – तप ही है धन जिसका वह (तपस्वी)

नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका वह (शिव)

सुमुखी – सुंदर है मुख जिसका वह (स्त्री)

चंद्रमुखी – चंद्र के समान है मुख जिसका वह (स्त्री)

दशानन, दशमुख – दस हैं आनन मुख जिसके वह (रावण)

गजानन – गज के समान है आनन जिसका (गणेश)

गिरिधर – गिरि को धारण करने वाला है जो (कृष्ण)

दीर्घबाहु – दीर्घ हैं बाहु जिसके वह (विष्णु)

निशाचर – निशा में चलता है जो (राक्षस)

मृगनयनी – मृग के समान हैं नयन जिसके वह (सीता)

चतुर्मुख, चतुरानन – चार हैं मुख जिसके वह (ब्रह्म)

त्रिवेणी – तीन नदियों का संगम स्थल (प्रयागराज)

कमलनयन – कमल जैसे नयनों वाला है जो वह (राम)

द्वंद्व समास (Copulative Compound)

जिस समास में दोनों पद समान हों, वहाँ द्वंद्व समास होता है। द्वंद्व में दो शब्दों का मेल होता है। समास होने पर दोनों को मिलाने वाले ‘और’ या अन्य समुच्चयबोधक अव्ययों का लोप हो जाता है।

समस्तपद विग्रह

देश-विदेश – देश और विदेश

माँ-बाप – माँ और बाप

स्त्री-पुरुष – स्त्री और पुरुष

माता-पिता – माता और पिता

रात-दिन – रात और दिन

दाल-रोटी – दाल और रोटी

पाप-पुण्य – पाप और पुण्य

गंगा-यमुना – गंगा और यमुना

सुख-दुख – सुख और दुख

अन्न-जल – अन्न और जल

धनी-मानी – धनी और मानी

रुपया-पैसा – रुपया और पैसा

घी-शक्कर – घी और शक्कर

आटा-दाल  – आटा और दाल

लोटा-डोरी – लोटा और डोरी

दाल-भात – दाल और भात

ऊँच-नीच – ऊँच और नीच

जन्म-मरण – जन्म और मरण

छोटा-बड़ा – छोटा और बड़ा

यश-अपयश – यश या अपयश

उलटा-सीधा – उलटा और सीधा

अपना-पराया – अपना और पराया

जल और वायु – जल-वायु

भूख-प्यास – भूख और प्यास

राम-लक्ष्मण – राम और लक्ष्मण

लव-कुश – लव और कुश

खट्टा-मीठा – खट्टा और मीठा

आशा-निराशा – आशा और निराशा

भीमार्जुन – भीम और अर्जुन

हरा-भरा – हरा और भरा

दूध-दही – दूध और दही

अमीर-गरीब – अमीर और गरीब

हानि-लाभ – हानि और लाभ

तन-मन – तन और मन

कृष्णार्जुन – कृष्ण और अर्जुन

अन्न-जल – अन्न और जल

भला-बुरा – भला और बुरा

शस्त्रास्त्र – शस्त्र और अस्त्र

नर-नारी – नर और नारी

दो-चार – दो या चार

परीक्षोपयोगी

समस्त पद         विग्रह                          भेद

(1) चतुर्भुज –  चार भुजाएँ हैं जिसकी (विष्णु)            बहुब्रीहि

(2) यथासंभव – जहाँ तक संभव हो                    अव्ययीभाव

(3) अश्वारोही – अश्व पर आरोहण करने वाला            तत्पुरुष

(4) राजा-रंक – राजा और रंक                         द्वंद्व

(5) भयभीत – भय से भीत                           तत्पुरुष

(6) माँ-बाप – माँ और बाप                           द्वंद्व

(7) दशानन – दश/दस आननों वाला है जो वह (रावण)     बहुब्रीहि

(8) प्रतिदिन – प्रत्येक दिन                           अव्ययीभाव

(9) यथाअवसर – अवसर के अनुसार                    अव्ययीभाव

(10) रुपया-पैसा – रुपया और पैसा                     द्वंद्व

(11) त्रिलोचन – तीन लोचनों हैं जिसके वह (शिव)        बहुब्रीहि

(12) जनहित  – जन का हित                        तत्पुरुष

(13) गजानन – गज जैसे आनन वाला (गणेश)           बहुब्रीहि

(14) दिन-रात  – दिन और रात                       द्वंद्व

(15) यथास्थिति – स्थिति के अनुसार                   अव्ययीभाव

(16) तुलसीकृत – तुलसी द्वारा कृत/रचित               तत्पुरुष

(17) रसोईघर – रसोई के लिए घर                     तत्पुरुष

(18) नीलकंठ – नीला कंठ है जिसका (शिव)             बहुब्रीहि

(19) नाना-नानी – नाना और नानी                     द्वंद्व

(20) रातों-रात – रात ही रात में                                             अव्ययीभाव

(21) राजपूत – राजा का पुत्र                          तत्पुरुष

(22) यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार                   अव्ययीभाव

(23) राजपुत्र   – राजा का पुत्र                        तत्पुरुष

(24) पाप-पुण्य – पाप और पुण्य                       द्वंद्व

(25) लंबोदर – लंबा उदर है जिसका वह (गणेश)          बहुब्रीहि

(26) आमरण – मरण तक                            अव्ययीभाव

(27) रणवीर – रण में वीर                            तत्पुरुष

(28) पंचानन – पाँच आननों वाला है जो (शिव)           बहुब्रीहि

(29) आजीवन – जीवन तक                          अव्ययीभाव

(30) गुणहीन – गुण से हीन                          तत्पुरुष

(31) जय-पराजय – जय और पराजय                   द्वंद्व

(32) नर-नारी – नर और नारी                         द्वंद्व

(33) सिरदर्द – सिर में दर्द                            तत्पुरुष

(34) हवन-सामग्री – हवन के लिए सामग्री               तत्पुरुष

(35) गुण-दोष  – गुण और दोष                       द्वंद्व

(36) पीतांबर – पीत अंबर हैं जिसके वह (कृष्ण)          बहुब्रीहि

(37) शोकमग्न – शोक में मग्न                        तत्पुरुष

(38) माता-पिता – माता और पिता                     द्वंद्व

(39) आजन्म – जन्म से लेकर                        अव्ययीभाव

(40) हाथ-पैर – हाथ और पैर                         द्वंद्व

(41) चतुरानन – चार मुख हैं जिसके (ब्रह्मा) वह         बहुब्रीहि

(42) यथामति – मति के अनुसार                      अव्ययीभाव

(43) हस्तलिखित – हस्त से लिखित                    तत्पुरुष

(44) महात्मा – महान आत्मा है जिसकी वह (गांधी)       बहुब्रीहि

(45) भीमार्जुन – भीम और अर्जुन                      द्वंद्व

(46) हथकड़ी – हाथ में पहने जाने वाली कड़ी            तत्पुरुष

(47) प्रतिक्षण – प्रत्येक क्षण                          अव्ययीभाव

(48) राजपुत्री – राजा की पुत्री                          तत्पुरुष

(49) लाभालाभ – लाभ और अलाभ                     द्वंद्व

(50) भयातुर – भय से आतुर                         तत्पुरुष

(51) त्रिभुज – तीन भुजाओं का समाहार                 द्विगु

(52) राजकुमार – राजा का कुमार                      तत्पुरुष

(53) यथासमय – समय के अनुसार                     अव्ययीभाव

(54) देवासुर – देव और असुर                         द्वंद्व

(55) देशभक्ति – देश के लिए भक्ति                   तत्पुरुष

(56) सेनानायक – सेना का नायक                     तत्पुरुष

(57) भला-बुरा – भला और बुरा                       द्वंद्व

(58) घुड़दौड़ – घोड़ों की दौड़                          तत्पुरुष

(59) रुपया-पैसा – रुपया और पैसा                     द्वंद्व

(60) मुरलीधर – मुरली धारण किए हैं जो वह (कृष्ण)      बहुब्रीहि

(61) घड़ी-घड़ी – प्रत्येक घड़ी                          अव्ययीभाव

(62) ग्रामपंचायत – ग्राम की पंचायत                   तत्पुरुष

(63) ऊँच-नीच – ऊँच और नीच                        द्वंद्व

(64) घर-घर – प्रत्येक घर                            अव्ययीभाव

(65) जेब-घड़ी – जेब में रखने वाली घड़ी                तत्पुरुष

(66) लाभ-हानि – लाभ और हानि                      द्वंद्व

(67) यथारुचि – रुचि के अनुसार                      अव्ययीभाव

(68) जनसेवक – जन का सेवक                       तत्पुरुष

(69) फूल-पत्ती – फूल और पत्ती                        द्वंद्व

(70) अष्टभुजी – अष्ट भुजाओं वाली है जो (दुर्गा)         बहुब्रीहि

(71) सवाल-जवाब – सवाल और जवाब                  द्वंद्व

(72) हँसमुख – हँसते हुए मुख वाला                    कर्मधारय

(73) गाँव-गाँव – प्रत्येक गाँव                          अव्ययीभाव

(74) पशु-पक्षी – पशु और पक्षी                        द्वंद्व

(75) राजभाषा – राजकाज की भाषा                    तत्पुरुष

(76) घरवास – घर में वास                           तत्पुरुष

(77) नवरत्न – नौ रत्नों का समूह                     द्विगु

(78) चक्रधर – चक्र धारण किए है जो वह (कृष्ण)        बहुब्रीहि

(79) सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह                   तत्पुरुष

(80) अपना-पराया – अपना और पराया                 द्वंद्व

(81) नीलकंठ – नीला कंठ है जिसका (शिव)             बहुब्रीहि

(82) हाथोंहाथ – हाथ ही हाथ में                       अव्ययीभाव

(83) प्रेमातुर – प्रेम से आतुर                          तत्पुरुष

(84) घी-शक्कर – घी और शक्कर                      द्वंद्व

(85) लंबोदर – लंबा उदर है जिसका वह (गणेश)          बहुब्रीहि

(86) यश-अपयश – यश और अपयश                   द्वंद्व

(87) शोकाकुल – शोक से आकुल                      तत्पुरुष

(88) दाल-रोटी – दाल और रोटी                       द्वंद्व

(89) प्रतिक्षण – प्रत्येक क्षण                          अव्ययीभाव

(90) जल-थल  – जल और थल                       द्वंद्व

(91) शरणागत – शरण में आया हुआ                   तत्पुरुष

(92) जीवन-मरण – जीवन और मरण                   द्वंद्व

(93) भयातुर – भय से आतुर                         तत्पुरुष

(94) अंशुमाली – अंशु (किरणों) की माला वाला (सूर्य)            बहुब्रीहि

(95) पंचरत्न – पाँच ररत्नों का समूह                   द्विगु

(96) भरपेट – पेट भरकर                            अव्ययीभाव

(97) धर्माधर्म – धर्म और अधर्म                       द्वंद्व

(98) नरकगत – नरक को गया हुआ                    तत्पुरुष

(99) काम-मोक्ष – काम और मोक्ष                      द्वंद्व

(100) जन्मांध – जन्म से अंधा                        तत्पुरुष

अभ्यास के लिए

विग्रह करे और समस का नाम भी लिखें –

अनुरूप

सुख-दुख

घनश्याम

देशगत

रात-भर

सिरदर्द

जय-पराजय

ऋणमुक्त

राष्ट्रपति

देशभक्त

त्रिभुवन

दो-चार

शताब्दी

पथभ्रष्ट

राष्ट्रभक्त

त्रिभुज

दिन-रात

दिनभर

चंद्रकिरण

त्रिकोण

जन्म-मृत्यु

रंगमहल

नीलगगन

गुणदोष

ग्रामसेवक

सोना-चाँदी

नीलगाय

बाढ़पीड़ित

यथारुचि

कृपा-पात्र

दिवंगत

यथानाम

मृगनयनी

नद-नदी

परीक्षाफल

यथाशीघ्र

बाढ़ग्रस्त

चंद्रमुख

दिनोंदिन

नीलकमल

परलोकगमन

त्रिलोकी

सुनामीपीड़ित

चौराहा

राजीवलोचन

2. निम्नलिखित समस्तपदों का विग्रह कीजिए और समास का नाम भी बताइए-

चतुर्भुज

उद्योगपति

राजा-प्रजा

तुलसीकृत

प्रसंगानुकूल

धूपदोप

नकटा

रसोईघर

चौराहा

घुड़दौड़

आटादाल

पीतांबर

अल्पबुद्धि

रोगग्रस्त

राहखर्च

घूसखोर

परमानंद

महात्मा

यथाशक्ति

नौलगगन

खरा-खोटा

दशमुख

गुणहीन

धर्मात्मा

भारत-रत्न

पंचवटी

सेनापति

लव-कुश

दुरात्मा

नीलांबर

नरेंद्र

त्रिभुवन

देशभक्ति

नीलगाय

चंद्रमुख

रातोंरात

सत्याग्रह

नीलकंठ

ध्यान-मग्न

अभ्यास हेतु प्रश्न

समस्त पद

अकालपीड़ित

महादेव

त्रिभुवन

यथासमय

रसोईघर

चौराहा

दिनरात

श्वेतांबरा

यथासंभव

नीलगगन

2. निम्नलिखित विग्रहों के समस्तपद बनाइए तथा समास का नाम भी लिखिए-

शक्ति के अनुसार

माता और पिता

कमल जैसे नयन

दो या चार

नीला है कंठ जिसका

दूसरों का उपकार

राजा की आज्ञा

घर और बाहर

मरण तक

चुनाव के लिए आयोग

अल्प आहार करने वाला

घी और शक्कर

स्वर्ग में वास

दीन और दुखी

योग्यता के अनुसार

चार भुजाओं वाला

पथ से भ्रष्ट

पूजा के लिए पर

युद्ध का क्षेत्र

महान है आत्मा

नया है गीत जो

आज्ञा पालन करने वाला

नर और नारी

घोड़े पर सवार

दस या बीस

तीव्र है बुद्धि जिसकी

हाथ से लिखा

रसोई के लिए घर

मधुर बोलता है जो

इच्छा के अनुसार

नीली है जो गाय

संसद का सदस्य

पाँच वट के वृक्षों का समूह

मुख्य है जो सर्वस्व

दो या चार

बसों का अड्डा

मृग के समान नयन हैं जिसके

मरण-पर्यंत

सौ वर्षों का समूह

देवता और दानव

प्रधान है जो मंत्री

राजा का पुत्र

घर और बाहर

चंद्रमा की कला

शक्ति के अनुसार

तीन भुजाओं का समूह

बाढ़ से पीड़ित

नीला है जो नभ

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