कवि परिचयः कबीरदास
कबीरदास भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि थे। वे अनपढ़ थे। रहस्यवादी कवि थे। उनका जन्म सं.1455 में हुआ था। नीरू और नीमा दंपति ने कबीर का पालन पोषण किया था। बचपन से ही कबीर धर्म परायण थे। वे ईश्वर को निराकार, निरंजन तथा सर्वातर्यामी मानते थे। वे मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे। बड़े समाज सुधारक थे। साखी, सबद, रमैनी कबीरदास की रचनाएँ हैं। जो ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संग्रहित हैं। उनकी भाषा सधुक्कड़ी है।
कबीरदास
(1) जाको राखै साँइयाँ, मारि न सकै कोय।
बाल न बाँका करि सकै, जो जग बैरी होय॥
संदर्भ – इसमें भगवान की महिमा बताई गई है।
व्याख्या – कबीरदास कहते हैं- भगवान जिसकी रक्षा करता है, उसे कोई मार नहीं सकता। चाहे सारी दुनिया उनकी शत्रु हो जाए तो भी उसका कुछ भी नुकसान नहीं हो सकता। (इसलिए हरेक को भगवान की कृपा प्राप्त करनी चाहिए)
कठिन शब्दार्थ –
जाको – जिसको,
राखै-रक्षा करता है।
साँइयाँ – भगवान,
बाल बाँका न करना – जरा-सा नुकसान नहीं पहुँचाना।
(2) साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय॥
संदर्भ – इसमें साधु के स्वभाव की विशेषता बतायी गई है।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं साधु का स्वभाव सूप के समान होता है जो सारत्व को ग्रहण कर लेता है और थोथी वस्तु अर्थात्त् तत्वहीन वस्तु को छोड़ देता है।
कठिन शब्दार्थ –
सूप – अनाज साफ करने का छाज,
सुभाय-स्वभाव,
गहि रहे – ग्रहण करता है,
थोथा – निस्सार।
(3) जा घट प्रेम न संचरै, सो घट जान मसान।
जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान॥
संदर्भ – इसमें प्रेमहीन व्यक्ति के बारे में बताया गया है।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं जिस हृदय में प्रेम का संचार नहीं होता, उसे मृत समझना चाहिए। ऐसा व्यक्ति प्राण रहित साँस लेने वाली लोहार की धौंकनी के समान है। लोहार की धौंकनी प्राणों के
न होने पर भी साँस लेती है, उसी प्रकार साँस लेने पर भी प्रेमहीन व्यक्ति प्राण रहित होता है।
कठिन शब्दार्थ –
जा – जिस,
घट – शरीर,
सो – वह, सं
चरै – संचार होता है
लोहार की खाल – लोहार की धौंकनी,
बिनु – बिना।
(4) जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठि।
मैं बपुरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठि॥
संदर्भ – इसमें बताया गया कि साहस करने वाले को ही सब कुछ मिलता है।
व्याख्या – कबीरदास जी कहते हैं जिन लोगों ने समुद्र के गहरे पानी में जाकर कुछ ढूंढा है, उन लोगों ने
अमूल्य रत्नों को प्राप्त किया। जो बेचारा डूबने से डरा वह किनारे पर ही बैठा रहा। अर्थात्त् कुछ भी प्राप्त नहीं कर पाया।
कठिन शब्दार्थ –
जिन – जिन्होंने,
तिन – वे लोग,
पाइयाँ – प्राप्त किया,
पैठि – घुसकर, प्रेवश कर,
बपुरा – बेचारा
शब्द (Word) | हिंदी अर्थ (Hindi Meaning) | தமிழ் அர்த்தம் (Tamil Meaning) | English Meaning |
भक्तिकाल | भक्ति का युग | பக்தி காலம் | Period of devotion |
ज्ञानमार्गी | ज्ञान के मार्ग का अनुयायी | அறிவு வழி | Follower of the path of knowledge |
प्रतिनिधि | प्रतिनिधित्व करने वाला | பிரதிநிதி | Representative |
अनपढ़ | निरक्षर | படிக்காதவர் | Illiterate |
रहस्यवादी | रहस्यमयी | மர்மவாதி | Mystic |
निराकार | बिना आकार का | உருவமற்ற | Formless |
निरंजन | बेदाग | களங்கமற்ற | Spotless |
सर्वातर्यामी | सर्वव्यापी | எல்லாம் அறிந்தவர் | Omnipresent |
मूर्ति पूजा | मूर्तियों की आराधना | சிலை வழிபாடு | Idol worship |
कट्टर | कठोर | கடுமையான | Staunch |
विरोधी | विपक्षी | எதிர்ப்பாளர் | Opponent |
समाज सुधारक | समाज में सुधार करने वाला | சமூக சீர்திருத்தவாதி | Social reformer |
साखी | दोहा जैसी रचना | சாட்சி பாடல் | Couplet or testimony |
सबद | शब्द या भजन | வார்த்தை பாடல் | Word or hymn |
रमैनी | कबीर की रचना का प्रकार | ரமைனி (கவிதை வகை) | Type of poetic composition |
संग्रहित | एकत्रित | சேகரிக்கப்பட்ட | Compiled |
सधुक्कड़ी | मिश्रित भाषा | கலந்த மொழி | Mixed dialect |
जाको | जिसको | யாருக்கு | Whom |
राखै | रक्षा करता है | பாதுகாக்கிறான் | Protects |
साँइयाँ | भगवान | இறைவன் | God |
बाल बाँका | जरा-सा नुकसान | ஒரு முடி கூட வளைக்காத | Not even a hair harmed |
सूप | अनाज साफ करने का यंत्र | தானியம் சுத்தப்படுத்தும் கருவி | Winnowing basket |
सुभाय | स्वभाव | இயல்பு | Nature |
गहि रहै | ग्रहण करता है | பிடித்துக்கொள்ள | Holds or grasps |
थोथा | निस्सार | பயனற்ற | Worthless |
घट | शरीर | உடல் | Body |
संचरै | संचार होता है | பரவுகிறது | Circulates |
लोहार की खाल | लोहार की धौंकनी | இரும்புக்கடை பைகள் | Blacksmith’s bellows |
बिनु | बिना | இல்லாமல் | Without |
जिन | जिन्होंने | யார் | Who (plural) |
तिन | वे लोग | அவர்கள் | They |
पाइयाँ | प्राप्त किया | பெற்றனர் | Obtained |
पैठि | प्रवेश करके | உள்ளே சென்று | Entering |
बपुरा | बेचारा | ஏழை | Poor fellow |
अभ्यास के लिए प्रश्न
- संत कबीर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर – संत कबीरदास मध्यकालीन भक्तिकाल के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और भेदभावों का विरोध किया। वे ईश्वर की एकता, प्रेम, सादगी और मानवता के संदेश के प्रवक्ता थे। उनका जीवन अत्यंत सरल था और उनकी वाणी में गहरी आध्यात्मिकता और व्यावहारिकता झलकती है।
- कबीर ने ईश्वर की महिमा का वर्णन कैसे किया है?
उत्तर – कबीरदास ने कहा है कि भगवान जिसकी रक्षा करते हैं, उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकता। यदि पूरा संसार भी उसका शत्रु बन जाए, तब भी उसका बाल तक बाँका नहीं हो सकता। इससे ईश्वर की अपार शक्ति और उनकी कृपा का महत्त्व प्रकट होता है।
- कबीर दास ने प्रेम के महत्त्व को कैसे बताया?
उत्तर – कबीरदास जी ने कहा है कि जिस मनुष्य के हृदय में प्रेम नहीं है, वह जीवित होकर भी मृत समान है। ऐसा व्यक्ति लोहार की धौंकनी की तरह है जो साँस तो लेती है, पर उसमें जीवन नहीं होता। इस प्रकार उन्होंने प्रेम को जीवन का मूल तत्व बताया है।
- कबीर का साधु के बारे में विचार क्या है?
उत्तर – कबीरदास जी के अनुसार साधु का स्वभाव सूप के समान होना चाहिए। जैसे सूप अच्छा अन्न रखकर भूसी को उड़ाता है, वैसे ही सच्चा साधु सार्थक बातों को ग्रहण करता है और असार बातों को त्याग देता है। अर्थात्, उसे अच्छाई अपनानी चाहिए और बुराई छोड़ देनी चाहिए।
- कबीर ने परिश्रम के फल के बारे में क्या कहा है?
उत्तर – कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति साहस और परिश्रम करता है, वही सफलता प्राप्त करता है। जैसे जो लोग गहरे पानी में उतरते हैं, उन्हें रत्न मिलते हैं, पर जो डूबने के डर से किनारे बैठ जाते हैं, उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं होता। इसलिए बिना परिश्रम के सफलता संभव नहीं है।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
कबीरदास किस काल के कवि थे?
a) आधुनिक काल
b) भक्तिकाल
c) रीतिकाल
d) आदिकाल
उत्तर – b (पाठ में उल्लेख है कि वे भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि थे।)
कबीरदास की शिक्षा का स्तर क्या था?
a) उच्च शिक्षित
b) अनपढ़
c) माध्यमिक
d) स्वयं शिक्षित
उत्तर – b (वे अनपढ़ थे, जैसा कि परिचय में कहा गया है।)
कबीरदास का जन्म कब हुआ था?
a) सं. 1400
b) सं. 1455
c) सं. 1500
d) सं. 1600
उत्तर – b (पाठ में उनका जन्म सं. 1455 में हुआ था।)
कबीरदास का पालन-पोषण किसने किया?
a) रामानंद ने
b) नीरू और नीमा दंपति ने
c) स्वामी ने
d) परिवार ने
उत्तर – b (पाठ में नीरू और नीमा दंपति ने उनका पालन पोषण किया।)
कबीरदास ईश्वर को किस रूप में मानते थे?
a) साकार
b) निराकार और निरंजन
c) मूर्ति रूप
d) मानवीय
उत्तर – b (वे ईश्वर को निराकार, निरंजन तथा सर्वातर्यामी मानते थे।)
कबीरदास किसके कट्टर विरोधी थे?
a) भक्ति के
b) मूर्ति पूजा के
c) ज्ञान के
d) समाज के
उत्तर – b (वे मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे।)
कबीरदास की रचनाएँ किस ग्रंथ में संग्रहित हैं?
a) रामचरितमानस
b) बीजक
c) पद्मावत
d) सूरसागर
उत्तर – b (साखी, सबद, रमैनी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संग्रहित हैं।)
कबीरदास की भाषा क्या थी?
a) संस्कृत
b) सधुक्कड़ी
c) अवधी
d) ब्रज
उत्तर – b (उनकी भाषा सधुक्कड़ी है।)
पहले दोहे में क्या बताया गया है?
a) साधु का स्वभाव
b) भगवान की महिमा
c) प्रेम की कमी
d) साहस की आवश्यकता
उत्तर – b (इसमें भगवान की महिमा बताई गई है।)
‘बाल न बाँका करि सकै’ का अर्थ क्या है?
a) बाल काटना
b) जरा-सा नुकसान नहीं पहुँचाना
c) बाल मोड़ना
d) बाल बढ़ाना
उत्तर – b (कठिन शब्दार्थ में दिया गया है।)
दूसरे दोहे में साधु की तुलना किससे की गई है?
a) पानी से
b) सूप से
c) लोहार से
d) समुद्र से
उत्तर – b (साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।)
‘थोथा’ शब्द का अर्थ क्या है?
a) सारपूर्ण
b) निस्सार
c) उपयोगी
d) मजबूत
उत्तर – b (कठिन शब्दार्थ में थोथा – निस्सार।)
तीसरे दोहे में प्रेमहीन व्यक्ति की तुलना किससे की गई है?
a) सूप से
b) लोहार की धौंकनी से
c) समुद्र से
d) साधु से
उत्तर – b (जैसे खाल लोहार की, साँस लेत बिनु प्रान।)
‘घट’ शब्द का अर्थ क्या है?
a) पानी
b) शरीर
c) हृदय
d) आत्मा
उत्तर – b (कठिन शब्दार्थ में घट – शरीर।)
चौथे दोहे का संदर्भ क्या है?
a) भगवान की महिमा
b) साधु का स्वभाव
c) प्रेम की कमी
d) साहस करने वाले को सब कुछ मिलता है
उत्तर – d (इसमें बताया गया कि साहस करने वाले को ही सब कुछ मिलता है।)
‘पैठि’ का अर्थ क्या है?
a) बाहर जाना
b) घुसकर
c) बैठना
d) डरना
उत्तर – b (कठिन शब्दार्थ में पैठि – घुसकर।)
कबीरदास किस शाखा के प्रतिनिधि थे?
a) सगुण
b) ज्ञानमार्गी
c) निर्गुण
d) प्रेममार्गी
उत्तर – b (भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि।)
कबीरदास बचपन से क्या थे?
a) विद्रोही
b) धर्म परायण
c) योद्धा
d) व्यापारी
उत्तर – b (बचपन से ही कबीर धर्म परायण थे।)
‘साँइयाँ’ का अर्थ क्या है?
a) दोस्त
b) भगवान
c) साधु
d) परिवार
उत्तर – b (कठिन शब्दार्थ में साँइयाँ – भगवान।)
कबीरदास की रचनाओं में क्या शामिल हैं?
a) केवल साखी
b) साखी, सबद, रमैनी
c) केवल सबद
d) केवल रमैनी
उत्तर – b (साखी, सबद, रमैनी कबीरदास की रचनाएँ हैं।)
एक वाक्य वाले प्रश्न और उत्तर
- प्रश्न – कबीरदास किस काल के कवि थे?
उत्तर – कबीरदास भक्तिकाल के कवि थे। - प्रश्न – कबीरदास किस शाखा के प्रतिनिधि कवि थे?
उत्तर – कबीरदास भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि थे। - प्रश्न – कबीरदास का जन्म कब हुआ था?
उत्तर – कबीरदास का जन्म संवत 1455 में हुआ था। - प्रश्न – कबीरदास का पालन-पोषण किसने किया था?
उत्तर – कबीरदास का पालन-पोषण नीरू और नीमा नामक दंपति ने किया था। - प्रश्न – कबीरदास की भाषा कौन-सी थी?
उत्तर – कबीरदास की भाषा सधुक्कड़ी थी। - प्रश्न – कबीरदास किस प्रकार के कवि थे?
उत्तर – कबीरदास रहस्यवादी और समाज सुधारक कवि थे। - प्रश्न – कबीरदास की रचनाएँ किन ग्रंथों में संग्रहित हैं?
उत्तर – कबीरदास की रचनाएँ ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संग्रहित हैं। - प्रश्न – कबीर ईश्वर को किस रूप में मानते थे?
उत्तर – कबीर ईश्वर को निराकार, निरंजन और सर्वव्यापक मानते थे। - प्रश्न – कबीरदास मूर्ति पूजा के बारे में क्या विचार रखते थे?
उत्तर – कबीरदास मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे। - प्रश्न – “जाको राखै साँइयाँ, मारि न सकै कोय” दोहे में क्या बताया गया है?
उत्तर – इस दोहे में बताया गया है कि जिसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं, उसका कोई नुकसान नहीं कर सकता। - प्रश्न – “साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय” दोहे में साधु का कौन-सा गुण बताया गया है?
उत्तर – इस दोहे में बताया गया है कि सच्चा साधु सार्थक बातों को अपनाता है और असार बातों को त्याग देता है। - प्रश्न – “जा घट प्रेम न संचरै” दोहे का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर – इस दोहे का मुख्य भाव यह है कि प्रेमहीन व्यक्ति जीवित होकर भी मृत के समान है। - प्रश्न – कबीरदास ने प्रेम को किससे तुलना की है?
उत्तर – कबीरदास ने प्रेम को जीवन का प्राण बताया है और प्रेमहीनता को मृत्यु के समान माना है। - प्रश्न – “जिन ढूँढा तिन पाइयाँ” दोहे से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – इस दोहे से हमें यह शिक्षा मिलती है कि केवल साहसी और परिश्रमी व्यक्ति ही सफलता प्राप्त करता है। - प्रश्न – कबीरदास के अनुसार डरपोक व्यक्ति को क्या प्राप्त होता है?
उत्तर – कबीरदास के अनुसार डरपोक व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता क्योंकि वह प्रयास नहीं करता। - प्रश्न – कबीरदास के अनुसार भगवान की कृपा प्राप्त करने का लाभ क्या है?
उत्तर – कबीरदास के अनुसार भगवान की कृपा से व्यक्ति अजेय हो जाता है और उसका कोई नुकसान नहीं कर सकता। - प्रश्न – सच्चा साधु कबीरदास के अनुसार कैसा होना चाहिए?
उत्तर – सच्चा साधु सूप की तरह होना चाहिए जो अच्छी बातों को ग्रहण करे और बुरी बातों को त्याग दे। - प्रश्न – कबीरदास प्रेम को जीवन में क्यों आवश्यक मानते हैं?
उत्तर – कबीरदास प्रेम को जीवन की आत्मा मानते हैं, क्योंकि बिना प्रेम के मनुष्य जीवित होकर भी निर्जीव होता है। - प्रश्न – “मैं बपुरा डूबन डरा, रहा किनारे बैठि” पंक्ति से क्या संदेश मिलता है?
उत्तर – इस पंक्ति से यह संदेश मिलता है कि जो व्यक्ति डर के कारण प्रयास नहीं करता, वह सफलता से वंचित रह जाता है। - प्रश्न – कबीरदास की वाणी से हमें क्या सीख मिलती है?
उत्तर – कबीरदास की वाणी से हमें ईश्वर भक्ति, प्रेम, सादगी, साहस, और सच्चाई के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
- कबीरदास का परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर – कबीरदास भक्तिकाल की ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि थे। वे अनपढ़ और रहस्यवादी थे, जिनका जन्म सं. 1455 में हुआ। नीरू और नीमा ने उनका पालन-पोषण किया। वे ईश्वर को निराकार मानते थे और मूर्ति पूजा के विरोधी थे। वे समाज सुधारक भी थे। (45 शब्द)
- कबीरदास की रचनाएँ कौन-सी हैं और वे कहाँ संग्रहित हैं?
उत्तर – कबीरदास की प्रमुख रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी हैं। ये सभी ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में संग्रहित हैं। उनकी भाषा सधुक्कड़ी है, जो सरल और मिश्रित है। इन रचनाओं में भक्ति, ज्ञान और समाज सुधार के विचार व्यक्त हैं। (48 शब्द)
- पहले दोहे का संदर्भ और व्याख्या समझाइए।
उत्तर – पहले दोहे में भगवान की महिमा बताई गई है। कबीरदास कहते हैं कि भगवान जिसकी रक्षा करता है, उसे कोई नहीं मार सकता, भले सारी दुनिया शत्रु हो। इससे सिख मिलती है कि भगवान की कृपा प्राप्त करनी चाहिए।
- दूसरे दोहे में साधु के स्वभाव की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर – दूसरे दोहे में साधु का स्वभाव सूप के समान बताया गया है। सूप सार-सार को ग्रहण करता है और थोथे को उड़ा देता है। इसी तरह साधु उपयोगी ज्ञान रखते हैं और व्यर्थ को त्याग देते हैं।
- तीसरे दोहे का मुख्य विचार क्या है?
उत्तर – तीसरे दोहे में प्रेमहीन व्यक्ति को मृत माना गया है। ऐसा व्यक्ति लोहार की धौंकनी जैसा है, जो प्राण रहित होते हुए भी साँस लेती है। कबीरदास कहते हैं कि हृदय में प्रेम का संचार आवश्यक है।
- चौथे दोहे की व्याख्या कीजिए। चौथे दोहे में साहस की महत्ता बताई गई है।
उत्तर – जो लोग गहरे पानी में उतरकर ढूंढते हैं, वे रत्न पाते हैं। डरने वाला किनारे पर बैठा रह जाता है और कुछ नहीं पाता। इससे प्रयास की प्रेरणा मिलती है।
- कबीरदास ईश्वर को कैसे देखते थे?
उत्तर – कबीरदास ईश्वर को निराकार, निरंजन और सर्वातर्यामी मानते थे। वे मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे और निर्गुण भक्ति पर जोर देते थे। बचपन से ही वे धर्म परायण थे और समाज में सुधार लाना चाहते थे।
- कबीरदास की भाषा की विशेषता क्या थी?
उत्तर – कबीरदास की भाषा सधुक्कड़ी थी, जो हिंदी, उर्दू और अन्य बोलियों का मिश्रण है। यह सरल और जनसाधारण की भाषा थी, जिससे उनके दोहे और रचनाएँ आम लोगों तक आसानी से पहुँच सकीं।
- कबीरदास को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है?
उत्तर – कबीरदास समाज सुधारक थे क्योंकि वे मूर्ति पूजा, जाति-प्रथा और अंधविश्वासों के विरोधी थे। उनके दोहों में सामाजिक समानता, प्रेम और ज्ञान पर जोर है, जो समाज में सुधार लाने का प्रयास दर्शाते हैं।
- कबीरदास के दोहों से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – कबीरदास के दोहों से भगवान की महिमा, साधु का सार ग्रहण करना, प्रेम की आवश्यकता और साहस की शिक्षा मिलती है। वे जीवन को सरल, भक्ति-पूर्ण और व्यर्थ से दूर रखने की प्रेरणा देते हैं।

