संकेत बिंदु-(1) हिंदी को विकसित करने का दायित्व (2) हिंदीमय वातावरण का निर्माण (3) हिंदी के विकास में योगदान (4) कार्यालयों, विश्वविद्यालयों में हिंदी का प्रयोग (5) उपसंहार।
राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को विकसित करना सरकार का कर्तव्य है। हिंदी साहित्य को समृद्ध करना साहित्यकारों का दायित्व है। दैनिक जीवन में अधिकाधिक रूप में हिंदी का प्रयोग करना जनता का धर्म है। ईमानदारी से हिंदी-ज्ञान का वितरण, विस्तार और हिंदी को एकरूपता प्रदान करना हिंदी के माध्यम से रोटी कमाने वालों का नैतिक दायित्व है।
घर और समाज की अंग्रेजी मानसिकता को बदलकर ही हम हिंदी-वातावरण का निर्माण कर सकते हैं, हिंदी की श्रीवृद्धि में योग दे सकते हैं। घर में हिंदी बोलें; हिंदी के दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिकाओं को खरीद कर पढ़ें; हिंदी की श्रेष्ठ साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने का स्वभाव बनाएँ; निजी पत्र-व्यवहार हिंदी में करें।
अपने बच्चों को कान्वेंट शिक्षण से दूर रखें। अंग्रेजी माध्यम के ‘पब्लिक स्कूलों की शिक्षण-पद्धति से परहेज करें। हिंदी पठन-पाठन पर बल दें। शिक्षा का माध्यम हिंदी को ही स्वीकार करें।
घर की शोभा के लिए लटकाए गए चित्रों में विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती’ के चित्र को स्थान दें। संभव हो तो हिंदी के श्रेष्ठ कवियों या लेखकों के चित्रों से घर की दीवारों को अलंकृत कर।
अपने नाम पट्ट, व्यापारिक संस्थाओं के बोर्ड, बीजक, बहीखाते तथा लैटरपैड (पत्रक) हिंदी में रखें। पत्र-व्यवहार में हिंदी अपनाएँ।
हिंदी के माध्यम से रोजी-रोटी कमाने वाले हैं-हिंदी-अध्यापक, प्राध्यापक, हिंदी-अधिकारी, पत्र-पत्रिकाओं के लेखक-संपादक। यही वर्ग हिंदी के विकास में सर्वाधिक योगदान दे सकता है; भारत के वातावरण में हिंदी की सुगंध फैला सकता है।
हिंदी के प्रचार-प्रसार का एक सशक्त साधन चित्रपट भी है। हिंदी-चित्रों ने न केवल हिंदी भाषी क्षेत्रों में, अपितु विश्व के प्रांगण में जो प्रतिष्ठा पाई, उससे हिंदी का गौरव बढ़ा है। हिंदी को जानने पहचानने की उत्सुकता बढ़ी। चित्र-निर्माता सामाजिक दृष्टि से सार्थक, सांस्कृतिक दृष्टि से प्रामाणिक, कला की दृष्टि से संतोषजनक और शिल्प की दृष्टि से चमत्कारी हिंदी-चित्र बनाकर हिंदी के विकास में योगदान दे सकते हैं।
हिंदी-विकास के लिए सरकार को चाहिए कि संपूर्ण भारत में उच्च विद्यालयों तथा उच्चतर माध्यामिक श्रेणियों तक हिंदी का पठन-पाठन अनिवार्य कर दें। उच्च श्रेणियों में शिक्षा का माध्यम हिंदी तथा प्रांतीय भाषाएँ ही कर दें।
चपरासी से लेकर उच्च अधिकारी तक के लिए हिंदी ज्ञान अनिवार्य कर देना चाहिए। पदोन्नति के लिए हिंदी की परीक्षा-प्रभाकर, मध्यमा, उत्तमा, विदुषी, बी. ए. या एम. ए. (हिंदी) परीक्षाओं का प्रमाण-पत्र आवश्यक कर दिया जाए। जब नौकरी में हिंदी ज्ञान की शर्त अनिवार्य होगी तो निश्चित रूप से हिंदी का विकास होगा।
हिंदी-भाषी राज्यों (उत्तर-प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल-प्रदेश, उत्तरांचल, झारखंड, छत्तीसगढ़ एवं दिल्ली) का समस्त राज-काज, उच्च न्यायालयों सहित, हिंदी में ही होना चाहिए। अंग्रेजी को सहयोगी भाषा बनाना भी अहितकर होगा।
कार्यालयों तथा अधिकारियों के नामपट्ट हिंदी में होने चाहिए। विभाग, संस्थान तथा अभिकरणों (एजेन्सीज) के नाम हिंदी में होने चाहिए। जैसे-‘टेलिवीजन’ नहीं, ‘दूरदर्शन’; ‘टेलीफोन’ नहीं, ‘दूरभाष’ तथा ‘रेडियो’ नहीं, ‘आकाशवाणी’ नामकरण तत्काल प्रभावी होने चाहिए।
अहिंदी भाषी प्रांतों तथा विश्व के राष्ट्रों में महत्त्वपूर्ण हिंदी-पुस्तकें तथा पत्र-पत्रिकाएँ सैकड़ों की संख्या में निःशुल्क भेजनी चाहिए।
हिंदी शोश-ग्रंथों, संदर्भ-ग्रंथों तथा विशिष्ट ज्ञानवर्धक पुस्तकों की एक-एक प्रति सरकारी अनुदान से विश्वविद्यालयों तथा शोध-संस्थाओं में पहुँचानी चाहिए। कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, जीवनी आदि की थोक खरीद बंद करके उन संस्थाओं को ही अनुदान दे देना चाहिए, जिनके लिए ये खरीदी जाती हैं। इससे भ्रष्टाचार समाप्त होगा, हिंदी-हित होगा।
इतिहास, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, राजनीति शास्त्र आदि विषयों के शोध-प्रबंधों की भाषा अंग्रेजी नहीं, हिंदी होनी चाहिए। सब प्रकार की वैज्ञानिक पुस्तकें भी हिंदी में निर्मित हों। उनकी पारिभाषिक शब्दावली संस्कृत के विज्ञान ग्रंथों से ली जाए। हाँ, आरंभ में कोष्ठक में उनके अंग्रेजी पर्याय दे दिए जाएँ। संस्कृत शब्द न मिलने पर ही पारिभाषिक अंग्रेजी शब्द लिए जाएँ।
विश्वकोश, पारिभाषिक कोष, संदर्भ-ग्रंथ, औद्योगिक और वैज्ञानिक उच्चकोटि के साहित्य का निर्माण सरकार स्वयं करे और सस्ते मूल्य में जनता को उपलब्ध कराएँ। केंद्रीयय हिंदी निदेशालय, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रकाशन विभाग, साहित्य अकादमी आदि राष्ट्रीय संस्थाओं को यह दायित्व सौंपा जाए।
हिंदी-भाषी क्षेत्रों के ‘दूरदर्शन’ का हिंदीकरण हो। 80 प्रतिशत कार्यक्रम हिंदी में प्रसारित किए जाएँ। ज्ञानवर्धक कार्यक्रम हिंदी में ही दिखाए जाएँ। अन्य भाषाओं की विशिष्ट द्रष्टव्य बातों का हिंदी अनुवाद होना चाहिए।
जनता और सत्ता, दोनों मिलकर जब हिंदी को सच्चे हृदय से अपनाएँगे, राजनीति के छल-छद्म से दूर रखेंगे तो निश्चय ही हिंदी का विकास द्रुतगति से होगा और माँ-भारती का सुंदर शृंगार होगा।