संकेत बिंदु-(1) प्रथम आयोग का गठन (2) मंडल आयोग का गठन (3) मंडल आयोग की सिफारिशें स्वीकार (4) मंडल आयोग की त्रुटियाँ (5) उपसंहार।
भारतवर्ष में पिछड़ी जातियों के संबंध और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के अधीन प्रथम आयोग का गठन 29 जनवरी 1953 के तत्कालीन राष्ट्रपति के आदेश पर हुआ और आयोग ने सरकार के समक्ष अपनी रिपोर्ट 30 मार्च 1955 को प्रस्तुत की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 182 प्रश्नों की सूची संलग्न की और प्रत्यक्ष साक्ष्यों को एकत्र करने के लिए देश के विभिन्न भू-भागों का भ्रमण भी किया। पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए आयोग की सिफारिशें आदि व्यापक थीं, इस आयोग का नाम ‘काका कालेकर आयोग’ था। ‘कालेलकर आयोग’ की सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार नहीं किया क्योंकि इस आयोग की रिपोर्ट में समाज के उचित वर्गीकरण और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की निष्पक्ष परख और मानदंड संबंधी विस्तृत ब्यौरे की कीमत बताई गई थी।
सन् 1955 के बाद दूसरा आयोग तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 21 मार्च 1979 को गठित किया और इस आयोग का नाम ‘मंडल आयोग’ था जिसने देश की जाति समस्या पर अपनी रिपोर्ट 31 दिसंबर 1980 को सरकार के समक्ष प्रस्तुत की। मंडल आयोग ने तर्क दिया कि पिछड़े वर्ग द्वारा झेली जा रही बाधाएँ हमारे सामाजिक ढाँचे में निहित हैं और उन्हें दूर करने के लिए सत्ताधारी वर्गों को व्यापक रचनात्मक परिवर्तन और पिछड़े वर्गों की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में मूलभूत परिवर्तन अनिवार्य है। आयोग ने केवल 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की जबकि देश में पिछड़े वर्गों की जनसंख्या लगभग दोगुनी है।
मंडल आयोग ने राज्यवार जो सूची सरकार के सामने प्रस्तुत की उसका ब्यौरा इस प्रकार है-पिछड़े वर्गों में आंध्र प्रदेश में 292 जातियाँ, असम में 135, बिहार में 150, हरियाणा में 76, हिमाचल में 57, जम्मू और काश्मीर में 63, कर्नाटक में 333, केरल में 208, मध्य प्रदेश में 279, महाराष्ट्र में 272, मणीपुर में 49, मेघालय में 37, उड़ीसा में 224, पंजाब में 83, राजस्थान में 140, सिक्किम में 10, तमिलनाडु में 288, त्रिपुरा में 136, उत्तर प्रदेश में 116, पश्चिम बंगाल में 177, अरुणाचल प्रदेश में 10, चंडीगढ़ में 93, दादरा तथा नगर हवेली में 10, अंडमान निकोबार द्वीप समूह में 17, दिल्ली में 72, गोआ दमन द्वीव में 8, मिजोरम में 5, पांडिचेरी में 260 पिछड़े वर्ग की जातियों को दर्शाया गया।
‘मंडल आयोग समिति’ में 6 सदस्यों की नियुक्ति हुई जिनमें सर्वत्री वी. पी. मंडल, आर. आर. भोले, दीवान मोहनलाल, एल. आर. नायक, के. सुब्रह्मणयम तथा एस. एस. गिल थे। सभी व्यक्तियों को अंशकालिक नियुक्त किया गया और इन सदस्यों ने अवैतनिक रूप से कार्य किया।
‘मंडल आयोग’ ने आरक्षण की सिफारिश करते समय विधान के विधिक रूप को भी सामने रखा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। भारत सरकार ने 13 अगस्त 1990 को कार्यालय आदेश जारी करके ‘मंडल आयोग’ की सिफारिशों को स्वीकार कर क्रियान्वित कर दिया।’ मंडल आयोग’ की रिर्पोट को जारी करते समय सरकार ने इसकी संभावनाओं की ओर ध्यान नहीं दिया और परिणामस्वरूप इस निर्णय से लोगों में असंतोष फैल गया, और सरकार ने देश में प्रलय के घर जैसे खोल दिए हों। ‘कालेलकर आयोग की रिर्पोट पर सरकार ने बहस कराकर उसे अस्वीकार कर दिया मगर ‘मंडल आयोग’ की रिर्पोट पर सरकार द्वारा बिना कोई बहस विचार किए लागू कर देने का निर्णय एक भयंकर भूल रही। लोग इस बात से परिचित हैं कि सरकार हिंसक आंदोलनों की भाषा ही सुनती हैं। अनेक राज्यों में प्रचंड प्रदर्शन, जन-विद्रोह के विस्फोट हुए यहाँ तक की छात्रों का आत्मदाह तो इतिहास को भी कलंकित कर गया।
वैसे तो मंडल आयोग ने 11 सिफारिशें सरकार के समक्ष प्रस्तुत कीं जिनमें 3 मुख्य मुद्दे सामने उभारे गए (1) सामाजिक पिछड़ापन, (2) शैक्षिक पिछड़ापन और, (3) आर्थिक पिछड़ापन। ‘मंडल आयोग’ के सदस्य रिर्पोट में जो भयंकर भूल कर गए वह आरक्षण की सिफारिश व्यक्ति पिछड़ेपन के आधार पर न करके जातिगत पिछड़ेपन को स्वीकार कर गए। ‘मंडल आयोग’ की रिपोर्ट में 5 घातक त्रुटियाँ भी सामने आईं और इन्हीं के विषैले परिणाम से सारे देश का भूगोल एक बार को हितकर रह गया। जो 5 त्रुटियाँ इस रिपोर्ट में आँकी गयीं उन पर संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है-
1. व्यवसाय उपक्रमों और शैक्षिक संस्थानों में रोजगार के लिए आरक्षण, परंतु यहाँ योग्यता जन्म लेने में भी असमर्थक होगी।
2. जाति पर आधारित आरक्षण / एक ओर गरीब ब्राह्मण और दूसरी ओर धनाढ्य दलित। यह दृढ़ता यहाँ वास्तविकता का विरोध करती है।
3. पिछड़ी जातियों के रोजगार और पदोन्नतियों में आरक्षण। यह बात प्रशासन और सेना जैसे विभागों के लिए तो अनर्थकारी सिद्ध हो सकतीं है।
4. राष्ट्रीय चेतना में परिवर्तन के लिए आरक्षण, यह निर्णय जातिवाद के नासूर में जीवन का नया पट्टा जोरदार ढंग से नियोजित करता है। इस प्रक्रिया से देश में जातिवाद की समाप्ति नहीं अपितु जातिवाद का नया रूप उभरता है।
5. देश की प्रगति और समानतावाद के लिए आरक्षण। समानता आरक्षण से कभी संभव हो ही नहीं सकती, इस निर्णय से तो देश में असमानता को बढ़ाने के अवसर हैं।
मंडल आयोग द्वारा आरक्षण के आधार का अध्ययन करने के पश्चात् देश के प्रबुद्ध नागरिकों ने इससे उत्पन्न स्थिति पर अपनी प्रतिक्रियाएँ प्रस्तुत की थीं, जिनमें नानी. ए. पालखीवाला, अरुण शौरी (पत्रकार) आदि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। कुछ राजनेताओं ने भी आरक्षण के विरोध में अपनी प्रतिक्रियाएँ जनता के समक्ष रखीं। यह खुले रूप से कहा गया कि आरक्षण को लागू करना संविधान की धारा 15 (4), 16 (4), 46 आदि का खुला उल्लंघन है। कुछ न्यायविदों ने भी अपने विचार प्रस्तुत कर ‘मंडल आयोग’ द्वारा प्रस्तुत आरक्षण रिर्पोट पर सुधार के लिए सरकार को सुझाव भी दिये।
यदि आरक्षण जातिगत न होकर व्यक्ति की दयनीय दशा, उसके गिरते आर्थिक स्तर को ध्यान में रखकर लागू किया जाए तब यह संभावनाएँ बलवीत होंगी कि यदि देश का हर नागरिक उन्नतशील होगा तो राष्ट्र स्वतः ही उन्नति करेगा।