संकेत बिंदु-(1) भ्रष्ट राजनीतिक सफलता के गुर (2) हिंसा और आतंक का तांडव (3) पंडित नेहरू की कश्मीर नीति (4) आतंक की नीति (5) उपसंहार।
हिंसा और आतंकवाद भ्रष्ट राजनीतिक सफलता के गुर हैं। इनके बिना राजनीति में सफलता आकाश के तारे तोड़ना है। इनके बिना नेताओं की सत्ता की स्थिरता असंभव है। विपक्ष को नीचा दिखाने और उसका मनोबल तोड़ने के लिए आतंक रामबाण औषधि है, तो विपक्ष के अस्तित्व को ही समाप्त करने में हिंसा का आश्रय विवशता नहीं आवश्यकता बन गई हैं।
आतंक जब परोक्ष रूप में चाल चलता है, तो व्यक्ति या संस्था पर आयकर या सी.बी.आई. के छापे, अनर्गल मुकदमे, पुलिस द्वारा ज्यादतियाँ करवाते हैं। जब प्रकट रूप दिखाता है, तो जनता त्राहिमाम्-त्राहिमाम् कर उठती है। उसमें गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है। जयप्रकाश नारायण, वी. पी. सिंह अटलबिहारी वाजपेयी जैसे देश भक्त भी कारागार की चक्की पिसते हैं। राजनीति में हिंसा प्रायः प्रत्यक्ष प्रकट नहीं होती। वह अपने पीछे छोड़ जाती है सी. बी. आई की जाँच या न्यायविदों का आयोग। सत्ता द्वारा हिंसा में राजनीति अपने पूरे प्रपंच से चाल चलती है। परिणामतः आयोग और जाँच भी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते।
हिंसा और आतंक जब राहु-केतु बन ललकारते हैं तो पुष्प शैया भी अग्निज्वाला बन जाती है। सौरभ से सने विकसित फूल भी अंगारों का रूप धारण कर लेते हैं। शीतल समीर सर्पों की फुफकार बन जाती है। गंगा भी कर्मनाशा हो जाती है। कल्प वृक्ष विष-वृक्ष बन जाता है। बाढ़ ही खेत को खाने लगती है। इंदिरा गाँधी जैसी सुरक्षित और सजग प्रधानमंत्री भी अपने ही सुरक्षा सैनिकों द्वारा भून दी जाती है।
धर्म पर आधारित भारत-विभाजन की सच्चाई को जब कांग्रेस ने नकारने भुलाने का प्रयत्न करके मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलना शुरू किया तो राजनीति की प्रथम हिंसा के शिकार हुए महात्मा गाँधी स्वतंत्र भारत में राजनीति हिंसा की यह प्रथम बलि थी। इस हत्या का बदला लेने के लिए तत्कालीन कांग्रेस-विरोधी वातावरण को कांग्रेस-पक्ष में बदलने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बलि का बकरा बनाया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को। देश में लगभग एक लाख स्वयंसेवकों को पकड़ कर जेल में बंद करवा दिया गया। अनेक घर फुंकवा कर, कइयों की हत्या करवा कर और पुलिस द्वारा खूब पिटाई करवा कर जो आतंक फैलाया उसने कांग्रेस विरोध की कमर ही तोड़ दी।
इधर इंदिरा जी के आशीर्वाद से जिस भिंडरवाला का उदय हुआ था, वही पंजाब का ‘डिक्टेटर’ बन बैठा। सिक्खों के पवित्र तीर्थ स्वर्ण मंदिर (हरि मंदिर) को अपना दुर्ग बनाकर उसे अपवित्र कर दिया। उसने पंजाब में वह आतंक फैलाया कि पंजाब प्रशासन के नेता और अधिकारी अपनी जीवनरक्षा के लिए उसके द्वार पर जाकर नाक रगड़ने लगे। हिंदुओं का जीना दूभर हो गया। किंकर्त्तव्यविमूढ़ इंदिरा जी ने जब उनके विरुद्ध सैन्य कार्यवाही की तो भिंडरवाला तो मारा गया, पर सिक्ख अपने को आहत महसूस करने लगे। फलत: भिंडरवाला के शिष्यों ने 30 अक्टूबर 1984 को इंदिरा जी की उनके घर में ही हत्या कर दी।
1984 में कश्मीर और आंध्र प्रदेश में कांग्रेस सत्ता में न आ सकी तो षड्यंत्र करके फारुक अब्दुल्ला तथा रामाराव की सरकारों को तोड़कर कांग्रेस-पक्षीय सरकारों को सत्ता सौंपी गई। वे दोनों कांग्रेस सहयोगी सरकारें तो कुछ दिनों में गिरी हीं, किंतु अपने पीछे एक ऐसी दुर्नीति छोड़ गईं जिससे इन दोनों प्रांतों में हत्या और आतंक की नीति आज भी सिर उठाए खड़ी है।
अपना रौब गाँठने और विपक्ष को सबक सिखाने में लोकतांत्रिक मुख्यमंत्रियों में जब अधिनायक की आत्मा का प्रवेश होता है तो लाठी गोलियों से जनता को भूना जाता है। घर से बाहर खींच-खींच कर लावारिस कुत्तों के समान जनता को घसीटा जाता है, पीटा जाता है। कार सेवकों पर मुलायमसिंह सरकार के अत्याचार से तो हिंसा और आतंक ने भी शर्म से मुँह छिपा लिया था और दूसरी बार सत्ता में आने पर आरक्षण के नाम पर आरक्षण विरोधियों की जो दुर्गति मुलायमसिंह सरकार ने की उसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायधीशों तथा वकीलों को भी नहीं बख्शा गया। उसी शैली का कहर 28 फरवरी 1993 की भाजपा की वोट क्लब रैली पर केंद्र सरकार ने ढाया, जहाँ उसके तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. मुरलीमनोहर जोशी तो बेहोश हो गए थे।
आज हत्या और आतंक की जड़ें इतनी जम गई हैं कि भारत के प्रायः हर प्रांत में उग्रवादी राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं। कश्मीर का हरकत उल अंसार, हिजबुल मुजाहिदीन, ‘जम्मू एँड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट’ जमात. ए तुलुबा, बंगाल का नक्सलवाद, बिहार की रणवीर सेना, पीपुल्स वॉर ग्रुप, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर, असम में ऑलबोडो स्टूडेंट्स यूनियन तथा उल्फा (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम); मेघालय की ‘मेघालय यूनाइटेड लिबरेशन आर्मी’ तथा ‘खासी फॉर नेशनल कौंसिल ऑफ मेघालय’; नागालैंड में नेशनल सोशलिस्ट कौंसिल ऑफ नागालैंड तथा ऑल नागा कम्युनिस्ट पार्टी, मणिपुर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी, मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट: त्रिपुरा में नेशनल लिब्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा तथा अखिल त्रिपुरा टाइगर फोर्स, आंध्र प्रदेश में ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ तथा तमिलनाडु में ‘ लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे), मुम्बई महानगर में कुख्यात माफिया दाऊद के लोग चमकते आतंकवादी संगठन हैं जिन्होंने सत्ता की नींद हराम कर रखी है और कानून और व्यवस्था को गहरी नींद में सुला रखा है।
स्वातंत्रोत्तर काल से कांग्रेस ने जिस आतंकवादी और हिंसात्मक नीति को प्रश्रय दिया उसका दुष्परिणाम है कि आज भारतीय राजनीति का ही अपराधीकरण हो गया है। जब देश के शिखर पुरुष ही दूषित राजनीति के अंग हों तब देश में आतंकवाद तथा हिंसा का साम्राज्य फले-फूलेगा ही।