भारत में आतंकवाद / उग्रवाद का आतंक

aatankwaad aur bharat par ek shandaar hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) आतंकवाद का अर्थ (2) आतंकवाद का ताँडव (3) भारत के आतंकवाद के विष-बीज (4) भारत की सुरक्षात्मक स्थिति (5) उपसंहार।

अपने प्रभुत्व से शक्ति से, जन-मन में भय की भावना का निर्माण कर अपना उद्देश्य सिद्ध करने का सिद्धांत आतंकवाद है। प्रत्यक्ष युद्ध के बिना जन-मन तथा सत्ता पर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भयप्रद वातावरण निर्माण करने का सिद्धांत टैरिरिज्म, आतंकवाद या उग्रवाद है।

भारत में आतंकवाद अपने नक्सलवादी रूप में 1967 में शुरू हुआ था। बंगाल के उत्तरी छोर पर नक्सलवाड़ी से शुरू हुए खूनी आंदोलन ने एक नए विचार, नई राजनीति का आरंभ किया। गाँव के कुछ मंझोले किसानों के सर काट कर क्रांति शुरू की गई। तेलंगाना में विफल कम्युनिस्ट क्रांति की पीड़ा भोग रहे आंध्रप्रदेश के आदिवासी बहुल श्रीकाकुलम जिले में नक्सलवाद तेजी से फैला। बंगाल के नौजवानों की बेकारी, बिहार में जातिवाद तथा भूमिहीन कमजोर प्रजा का दमन तथा आंध्रप्रदेश के आदिवासियों के शोषण ने नक्सलवाद के लिए उर्वरा भूमि प्रदान की।

1974 तक का नक्सलवाद का इतिहास विनाश की कहानी है और है निरपराध हिंसा के शिकार लोगों की अभिशप्त आत्मा की चीख-पुकार। आपत्काल की घोषणा से पूर्व तक देश के छह राज्य-आंध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा उड़ीसा नक्सलवादी क्षेत्र थे।

जब सत्ता स्वार्थ-द्वंद्व से ग्रस्त हो, तो उसकी पराजित मनोवृत्ति पहचान कर आतंकवाद सिर उठाता है। सत्ता के वर्ग-विशेष के सहयोग से उग्रवाद का आतंक चिरायु होता है और गर्व-गौरव से सिर उन्नत कर चलता है। आज भारत के अधिकांश प्रांत सत्ता की दुर्बलता के कारण आतंकवाद के नखरे झेल रहे हैं।.

त्रिपुरा में टी. एन. वी. (त्रिपुरा नेशनल वालिंटियर्स), बिहार में रणवीर सेना, पीपुल्स वॉर ग्रुप, माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर, आंध्र में पीपुल्स वॉर ग्रुप, असम में बोड़ो आंदोलन आतंकवाद के प्रांतीय रूप हैं। कश्मीर में पाकिस्तान प्रेरित कट्टर मुस्लिम उग्रवाद सक्रिय हैं। आजकल कश्मीर में इसका भयंकर नग्नरूप दिखाई दे रहा है। इसी के कारण वहाँ से लाखों कश्मीरी पंडित पलायन के लिए विवश हो आज जम्मू, दिल्ली व अन्य नगरों में नरक-सा जीवन जीने को विवश हैं। अब भी कश्मीर के ग्रामों में पाकिस्तानी उग्रवादी नित्य अनेक लोगों की सामूहिक हत्या कर रहे हैं।

असम में यू. एल. एफ. ए. (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम), नागालैंड में एन.सी.एस.एन. (नेशनल सोसलिस्ट कॉसिल ऑफ नागालैंड) तथा मणिपुर में पी. एल. ए. (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) तमिलनाडु में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) चमकते आतंकवादी सूर्य हैं।

भारत में आतंकवाद के विष-बीज विविध रूपेण पुष्पित पल्लवित हो चुके हैं। इनके क्रूर आतंक से आम जनता त्रस्त है, सत्ता राजनैतिक स्वार्थ में अंधी है। दलगत राजनीति से दबी है। अतः सत्ता हवा में तलवार घुमाती है और आतंकवाद के विरुद्ध आक्रामक रुख अपना नहीं पाती।

आज भारत सरकार आतंकवाद के हमले से डरकर ‘सुरक्षात्मक स्थिति’ ढूँढ़ रही है। नेताओं को बॉडीगार्ड देना, सरकारी भवनों पर सुरक्षा प्रबंध सुदृढ़ करना, रेलों व बसों में सुरक्षात्मक उपाय करना, जनता को वमों से बचने के उपाय रटाना, सब’ डिफेसिंव मैथड ‘ (सुरक्षात्मक उपाय) हैं।

आतंकवाद सत्ता के लिए खुली चुनौती है, कानून और व्यवस्था की शव-रूप में परिणति है। निरीह नागरिकों के जीवन जीने के अधिकार का अपहरण है। धन-संपत्ति की असुरक्षा की घंटी है। दमघोटू वातावरण में जीवन जीने की विवशता है। लोकतंत्र के मुँह पर जोरदार चाँटा है। राष्ट्र को अस्थिर कर उसे परतंत्र करने का दुश्चक्र है।

निरपराध लोगों के हत्या करने वाले इस आतंकवाद को सत्ता की शक्ति से ही दबाना होगा। शासन को पूर्ण मनोबल से इसके विरुद्ध आक्रामक रुख अपनाना होगा। ‘त्रिषस्य विषमौषधम्’ नियम को अपनाना होगा। सैन्य बल से आतंकवाद का सिर कुचलना होगा। तभी भारतीय जनता सुख और चैन की साँस लेगी; राष्ट्र फलेगा फूलेगा; उन्नति पथ पर अग्रसर होगा।

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