अच्छा स्वास्थ्य महावरदान

Good health is the greatest boon the hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) नीरोग काया जीवन की सार्थकता (2) अथर्ववेद में महावरदान के लिए प्रार्थना (3) जीवन के चार पुरुषार्थ (4) शांत और स्थिर मन (5) उपसंहार।

नीरोग काया जीवन की सार्थकता है। अच्छा स्वास्थ्य महावरदान है, शुभ फलदायी है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रधान कारण आरोग्य है (धर्मार्थ काममोक्षाणाम् आरोग्यं मूल मुत्तमम्) इसलिए अच्छा स्वास्थ्य महावरदान है। प्रभु की कृपा से प्राप्त होने वाली फल सिद्धि है। आरोग्य से अनेक प्रकार की सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं तथा कष्टों- संकटों का निवारण होता है। पी. साइरस ने इसीलिए कहा है, ‘Good health & good Sense are two of life greatest blessings.’ अर्थात् अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी समझ, जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं।

अच्छा स्वास्थ्य क्या है? इस संबंध में महाभारत के शांति पर्व में वेदव्यास जी ने कहा है- ‘सर्दी, गर्मी और वायु, (कफ, पित्त और वात) ये तीन शारीरिक गुण हैं। इन तीनों का साम्यावस्था में रहना ही अच्छे स्वास्थ्य का लक्षण है। दूसरे, ‘सत्व, रज और तम, ये तीन मानसिक गुण हैं। इन तीनों गुणों का सम-अवस्था में रहना मानसिक स्वास्थ्य का लक्षण बताया गया है। चरक संहिता के अनुसार ‘जब शरीर, मन और इंद्रिय-विषय का समान योग होता है तब स्वस्थता होती है।’ सुश्रुत संहिता का मानना है, ‘जिसके वात, पित्त और कफ समान रूप से कार्य कर रहे हों, पाचन शक्ति ठीक हो, रस आदि धातु एवं मलों की क्रिया सम हो और आत्मा, इंद्रियाँ तथा मन प्रसन्न हो, उसी को स्वस्थ कहते हैं।’

अथर्ववेद में इसीलिए इस महावरदान की प्राप्ति के लिए प्रार्थना की गई है- ‘मेरे मुख में वाक् शक्ति हो, नाक में प्राण शक्ति हो, आँखों में दर्शन-शक्ति हो, कानों में श्रवण- शक्ति हो। बाल काले हों, दाँत मल रहित हों, भुजाओं में बल हो, उरुओं में शक्ति हो, जाँघों में वेग हो, पैरों में दृढ़ शक्ति हो। शरीर के सभी अंग-प्रत्यंग त्रुटिरहित, नीरोग, स्वस्थ और सबल हों। मेरा संपूर्ण देह निर्दोष हो।’ इतना ही नहीं ‘अश्मानं तन्वं कृधि’ शरीर पत्थर समान दृढ़ हो। ‘गात्राण्यस्य वर्धन्तां सुखाप्यायतामयम्’, यह चंद्रमा के समान दिनों-दिन बढ़कर खूब मोटा ताजा हो।

शरीर रथ है और इंद्रियाँ घोड़े शरीर रूपी रथ पर बैठकर मनोदेव इंद्रियों के घोड़े दौड़ाते हैं और आकाश-पाताल की सैर करते हैं। जीवन के चारों पुरुषार्थों-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का पालन और प्राप्ति कर इस लोक और परलोक को सुखमय बनाते हैं। मुख-मंडल की तेजस्विता से दूसरों को मुग्ध करते हैं तथा अपने कुल और राष्ट्र का नाम उज्ज्वल करते हैं। रत्न-गर्भा पृथ्वी का वीरता से भोग करते हैं। यदि इसके पहिए ढीले हो जाएँ, इसकी कमानियों में दम न रहे तो जीवन यात्रा कठिन हो जाए। सांसारिक भोग और आध्यात्मिक उन्नति व्यर्थ हो जाएँ। चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति क्षितिज के उस पार चली जाए। ‘कुर्वन्नेवेह कर्माणि कर्माणि जिजीविषेत् शतं समा’ अर्थात् कर्म करते हुए सौ वर्ष तक जीने की यह इच्छा खंडित हो जाए। इसलिए अच्छा स्वास्थ्य महा वरदान है।

महाकवि प्रसाद के ‘कामायनी’ काव्य की नायिका श्रद्धा मनु को जीने के लिए बलवान् बनने और समस्त बाधाओं पर विजय प्राप्त करने की प्रेरणा देते हुए कहती हैं-

‘और यह क्या तुम सुनते नहीं, विधाता का मंगल वरदान।

शक्तिशाली हो, विजय़ी बनो, विश्व में गूंज रहा जय गान॥’

और जब मनु का तन-मन स्वस्थ हुआ तो उसे महावरदान के रूप में प्राप्त हुआ- ‘संगीत मनोहर उठता, मुरली बजती जीवन की।’ और वह अनुभव करता है-‘माँसल- सी आज हुई थी, हिमवती प्रकृति पाषाणी।’

अतः जीवन की सार्थकता के लिए अच्छा स्वास्थ्य अनिवार्य है। अच्छे स्वास्थ्य का गुर है-व्यायाम। महर्षि चरक का कहना है, ‘व्यायाम करने से शरीर की पुष्टि, गात्रों की कांति, मांसपेशियों के उभार का ठीक विभाजन, जठराग्नि की तीव्रता, आलस्य-हीनता, हलकापन और मलादि की शुद्धि होती है। साथ ही शारीरिक हलकापन, कर्म-सामर्थ्य, दृढ़ता, कष्ट-सहिष्णुता और दोषों की क्षीणता आती है।’

मन की वह अवस्था जिसमें मानव को कोई उद्वेग, कष्ट तथा चिंता न हो अच्छे स्वास्थ्य की व्याख्या मानी गई है। कारण, इसमें चित्त शांत और स्थिर होगा। क्षोभ, घबराहट या परेशानी उसे स्पर्श नहीं करेंगे। भय तथा विस्मय आतंकित नहीं करेंगे। कष्ट उसके समक्ष उपस्थित होने में भी भयभीत होंगे। क्योंकि वह वीर है, साहस और तेज की प्रतिमूर्ति है, इसलिए चिंताएँ उसको स्पर्श ही नहीं करतीं। यह संभव है संयम से संयम का अर्थ है- ‘चित्त की अनुचित्त वृत्तियों का निरोध’ अर्थात् इंद्रिय-निग्रह। मन की भटकन, नयनों की चंचलता, जिह्वा का स्वाद, उपस्थ की उत्तेजना को वश में रखना संयम है। कालिदास के शब्दों में- ‘आत्मेश्वराणां न हि जातु विघ्नाः समाधि क्षोभप्रभवाः भवन्ति।’ अर्थात् जितेन्द्रिय पुरुष के मन में विघ्नकर तत्त्व थोड़ा भी क्षोभ उत्पन्न नहीं कर सकता। काका कालेलकर के शब्दों में, ‘संयम में ही जीवन साफल्य की पराकाष्ठा है।’

जीवन जागरण है, सुषुप्ति नहीं। उत्थान है, पतन नहीं। मानव को पृथ्वी के अंधकाराच्छन्न पथ से गुजर कर दिव्य-ज्योति से साक्षात्कार करना है। यह साक्षात्कार तभी संभव है जब हम तन और मन से नीरोग होंगे। मस्तक पर तेज दीप्त होगा। जीवन धारा सुंदर रूप में प्रवाहित होकर, ‘सत सतत प्रकाश, सुखद अथाह से पूर्ण करके महावरदान सिद्ध होगा।

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Avinash Ranjan Gupta

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