अंग्रेज भारत में व्यापारी बनकर आए, ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की, धीरे-धीरे अपना आधिपत्य बढ़ाया और सन् 1857 के पश्चात् समस्त भारत के शासक बन बैठे। अंग्रेजी शासन काल में भारत की आर्थिक दशा बिगड़ी, यहाँ की संपत्ति अनेकों रास्तों से देश से बाहर ले जाई गई परंतु यह ले जाने की व्यवस्था महमूद गजनवी जैसी नहीं थी। भारत की जनता पर अंग्रेजों ने जादू कर दिया, भारत का जूता और भारत के सिर और जितने दिन भी भारत में रहे बहुत ठाठ के साथ शासन किया। इस शासन काल में अनेकों बुराइयाँ होते हुए भी इस शासन ने भारत को बहुत कुछ दिया है। भारत को अंग्रेजी शासन-काल ने क्या-क्या दिया है इसकी व्यापक व्याख्या न करके यहाँ संक्षिप्त रूप में विचार करेंगे।
सामाजिक सुधार-
हिंदू समाज में सती प्रथा प्रचलित थी अंग्रेजी शासन-काल में सरकारी नियम द्वारा इस कुरीति को सफलतापूर्वक रोककर मानव-जाति के मस्तक से इस कलंक को दूर किया गया। इसी काल में शारदा-बिल पास करके समाज को बाल विवाह की कुरीति से मुक्त किया। इन दो बातों के अतिरिक्त इस काल में वैज्ञानिक प्रगति के कारण मानव जीवन प्रगतिशील बन गया और समाज के वे प्राचीन बंधन जिनमें समाज शताब्दियों से जकड़ा पड़ा था आप से आप खुलते गए। समाज के सिर से छुआछूत का भूत उतरने लगा। उदाहरण-स्वरूप रेलों में यात्रा करने वाले व्यक्ति मार्ग में मोल लेकर खाना खाने लगे, स्टेशनों के नलों का पानी पीने लगे और स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी जाति-पाँति के भेद-भावों से मुक्त होकर एक साथ भोजन करने लगे। होटल का प्रचार बढ़ा और शाकाहारी तथा मांसाहरी भी एक ही रसोई का बना हुआ भोजन खाने लगे। इस प्रकार समाज अपनी रूढ़िवादिता को स्थिर न रख सका और प्रगतिशील बनकर उन्नति के पथ पर अग्रसर हुआ। समाज ने अपने को धार्मिक प्रतिबंधों से बहुत कुछ अंशों में मुक्त कर लिया और यहाँ तक कि विवाह संबंध भी अदालतों में होने प्रारंभ हो गए परंतु यह प्रथा अभी अधिक प्रचलित नहीं हो सकी है। विजातीय विवाहों की ओर भी समाज ने पग बढ़ाया परंतु इस क्षेत्र में भी अभी अधिक प्रगति नहीं हुईं। फिर भी प्रत्येक दिशा में प्राचीन शृंखलाएँ टूटीं और नवीन प्रगतियों का उदय उसमें हुआ है। प्रत्येक दिशा में ब्रह्म समाज और आर्यसमाज ने भी सामाजिक सुधार किए हैं और वह बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इस काल में स्त्री-शिक्षा का भी प्रचार हुआ और उन्हें समाज में भी स्वाधीनता प्राप्त हुई।
धर्म स्थान-
अंग्रेजी शासन ने भारतीय धर्मों को राजनैतिक क्षेत्र में प्रयोग करके हिंदू और मुसलमानों की शक्ति को नियंत्रित रखा। यों साधारणतया किसी विशेष धर्म के साथ किसी विशेष प्रकार का पक्षपात नहीं किया परंतु जब जहाँ पर जिसकी प्रबलता देखी तब वहीं पर दूसरे पक्ष को बल देकर अपनी प्रधानता बनाये रखी। धर्म के नाम पर समभाव प्रदर्शित करते हुए भी धार्मिक कटुता को मिटाने का वास्तविक प्रयत्न कभी भी अंग्रेजी शासन ने नहीं किया। परंतु इसी काल में ख़िलाफ़त और कांग्रेस ने जन्म लिया। दोनों आंदोलनों ने भारत में बहुत प्रबल रूप धारण किया और धार्मिक कटुता को मिटाने का सफल प्रयत्न किया। अंग्रेजी शासन काल में हिंदू और मुसलमानों का आपसी वैमनस्य दूर नहीं हुआ। साथ ही भारत में ईसाई धर्म के प्रचार को प्रर्याप्त प्रोत्साहन मिला। ईसाई धर्म का प्रचार भी भारत में हुआ परंतु भारत के धार्मिक रूढ़िवाद के सम्मुख वह प्रचार उच्च वर्गों में सफलतापूर्वक नहीं हो सका। अंग्रेजी शासनकाल की यह विशेषता है कि मुसलमान-शासन काल की भाँति इस काल में शासक वर्ग ने धर्म प्रचार में तलवार का प्रयोग न करके प्रेम और सद्भावना का प्रयोग किया। ईसाई पादरियों ने बच्चों के लिए स्कूल खोले, औषधालय खोले, गिर्जे बनवाए, दीनों की सहायता और इसी प्रकार अनेकों प्रकार से भारतीय जनता के हृदय में घर करने का प्रयत्न किया।
वैज्ञानिक विस्तार-संसार की वैज्ञानिक प्रगति से अंग्रेजी शासकों ने भारत को पिछड़ा हुआ नहीं रहने दिया। जब योरोप में रेलों का आविष्कार हुआ तो भारत में भी रेलें चालू की गई। यह सत्य है कि प्रारंभ में वह रेलवे विभाग केवल सैनिक सुविधा के लिए चालू किया गया था परंतु धीरे-धीरे इसका प्रयोग जनता के लिए किया गया और इससे भारत के व्यापार ने समुचित उन्नति की। भारत में मोटरें आईं, हवाई जहाज आए, रेडियो आया, तार और बेतार के तार का प्रयोग हुआ। यह अंग्रेजी शासन काल की देन हैं जिन्होंने भारत में भी एक वैज्ञानिक प्रगति का संचार किया। प्रचीनता में नवीनता का प्रादुर्भाव हुआ और मानव जीवन में एक नवीन स्फूर्ति आई। इस वैज्ञानिक विकास से मानव के ज्ञान का भी विकास हुआ और इन तीव्र गति से चलने वाले यंत्रों की सहायता से संसार मानव के लिए गम्य हो गया। मानव-ज्ञान का विकास हुआ और भारत ने अनेकों विद्याओं में उन्नति और प्रगति की।
ललित कला- विकास
अंग्रेजी शासन काल में भारतीय ललित कला के क्षेत्र में पर्याप्त विकास हुआ। भवन कला के क्षेत्र में जो विकास मुगल काल में दिखाई देता है, वह अंग्रेजी शासन काल में नहीं हुआ। मूर्ति कला क्षेत्र में भी अधिक विकास नहीं दिखाई देता। संगीत कला का विकास रेडियो के आविष्कार के कारण पर्याप्त मात्रा में मिलता है। संगीत आज जीवन की आवश्यकता बन गया है और सभ्य समाज में तो इसका विशेष स्थान है। चित्रकला का भी इस काल में बहुत विकास हुआ है। सिनेमा के आविष्कार ने चित्रकला को पर्याप्त प्रोत्साहन दिया है। इस काल में भारत में बहुत से चित्रकारों ने जन्म लिया है और इस काल के राजे-महाराजाओं ने उसे बहुत अपनाया इस काल में जो सबसे अधिक उन्नति हुई वह काव्यकला की है। काव्य-कला में नाटक, कविता, उपन्यास, कहानी इत्यादि सभी क्षेत्रों में उन्नति हुई है और एक-से-एक सुंदर ग्रंथ लिखा गया। काव्य का क्षेत्र भी पहले की अपेक्षा अधिक व्यापक हो गया है।
शिक्षा –
अंग्रेजी शासन काल में शिक्षा का प्रचार बढ़ा। जगह-जगह विद्यालय खुले और उनमें अनेकों प्रकार की शिक्षा के केंद्र खुले डॉक्टरी साइंस, कॉमर्स, खेती-बाड़ी, टैक्नीकल, कानून, गणित, अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल इत्यादि अनेकों दिशाओं में शिक्षा देने के लिए विद्यालय खुले और सरकार उन्हें पूरी-पूरी सहायता दी। सैनिक स्कूल भी खोले गए और उनमें भी बहुत लाभदायक शिक्षा दी जाती थी। इंजीनियरिंग के स्कूलों में भवन निर्माण के भी केंद्र स्थापित हुए जिनमें पढ़कर बहुत से विद्यार्थी निपुण बनकर भारत के लिए लाभदायक सिद्ध हुए। इस प्रकार शिक्षा के अनेकों क्षत्रों में इस काल में उन्नति हुई परंतु जिस दिशा में विशेष शिक्षा दी गई थी वह थी भारत के नव-युवकों को अंग्रेजी क्लर्क बनाने की शिक्षा। यह थी भारत को एक प्रकार से दास बनाने की शिक्षा, उसके फलस्वरूप भारत आज के युग तक दास बना रहा।
इसके अतिरिक्त अंग्रेजी शासन काल में भारत के राजनैतिक रूप ने भी प्रगति की, कांग्रेस के नेतृत्व में भारत आगे बढ़ा और उसने स्वाधीनता को समझा। भारत के जो व्यक्ति विलायत में गए और वहाँ जाकर उन्होंने भारत की पराधीनता को अनुभव किया, उसके फलस्वरूप भारत में भी जागृति का संचार हुआ। भारत में प्रजातंत्र का आगमन अंग्रेजी शासन की ही देन है। अंग्रेजी ने जहाँ भारत से धनसंपत्ति का हरण किया है वहीं भारत को दिया भी बहुत कुछ है। भारत के वैज्ञानिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक विकास में बाधा डालकर और उन्हें समुन्नत करने में सहयोग दिया है। अंग्रेजी शासकों का दृष्टिकोण सर्वदा हो प्रगतिवादी और सुधारवादी रहा है। भारत में शासक बनकर भी उन्होंने कभी भारत की धार्मिक भावनाओं को नहीं ठुकराया, कभी भारतीय समाज का भारत में अनादर नहीं किया और भारत की उन्नति में यथायोग्य सहयोग ही दिया है। सहयोग की मात्रा इनमें मुसलमान शासकों की अपेक्षा अधिक रही। इस शासन का सबसे बड़ा अवगुण यही रहा है कि इसकी बागडोर का संचालन इंगलैंड में बैठकर किया गया। यदि उसकी बागडोर का संचालन भारत में ही बैठकर किया गया होता तो संभवतः भारत का स्वतंत्रता संग्राम अमरीका के स्वतंत्रता संग्राम से किसी भी प्रकार भिन्न न होता और संभवत: भारत की स्वतंत्रता उन परिस्थितियों में आज के भारत में रहने वाले अंग्रेजों के नागरिक अधिकार अधिक सुरक्षित और स्थायी होते। कुछ काल तक आपस में जो कटुता आई संभवतः वह भी न आती और जो इतने दिन तक हिंदू-मुसलमानों में आपसी द्वेष बना रहा वह भी न रहता। यह भी संभव था कि उन परिस्थितियों में भारत को विभाजित भी न होना पड़ता और इस प्रकार अंग्रेजों को अपना बिस्तर बोरिया लेकर जाने की आवश्यकता न होती।