संकेत बिंदु – (1) जीवन का महत्त्वपूर्ण पहलू (2) जीवन में सद्व्यवहार की भावना (3) अनुशासन के बिना जीवन (4) प्रकृति के अन्य जीवों में अनुशासन (5) उपसंहार।
जीवन का यदि कोई महत्त्वपूर्ण पहलू है, तो वह अनुशासन है। अनुशासन के बिना जीवन मूल्यहीन हो जाता है। हमें अपने जीवन में हर संभव अनुशासन को बनाए रखना है, तभी हम सबका जीवन सार्थक है वरना नरक से भी भयंकर हो जाता है जीवन अनुशासन के बिना।
अनुशासन में जीवन हो तो, जीवन रसमय हो जाए।
हर मानव का पूरा जीवन, ‘रत्नम्’ सुखमय हो जाए॥
अनुशासन का अर्थ, शासन को मानना है, घर में माता-पिता, स्कूल में अध्यापक ही अनुशासन की शिक्षा देते हैं। जीवन के चहुँमुखी विकास के लिए मानव का अनुशासन में रहना अनिवार्य है। अनुशासन से जीवन में ज्ञान, विनम्रता, शालीनता सभ्यता और संयम आता है।
अनुशासन जीवन में आये, जीवन में अनुशासन हो।
जीवन सुखद मनोहर बनता, हर मन में अपनापन हो।
अनुशासन से ही हमें जीवन में, खान-पान, उठने-बैठने, बातचीत छोटे-बड़ों से व्यवहार करने का ढंग आता है। जीवन में अनुशासन ही सुख-समृद्धि के साथ-साथ लोक- कल्याण की भावना को भी बल प्रदान करता है। अनुशासन ही हमें कर्त्तव्य परायणता का बोध कराकर जीवन को सुखमय, सार्थक बनाने में सहायक होता है। यदि जीवन में अनुशासन न होता तो हर मनुष्य का जीवन अलग-अलग होता और कोई भी मनुष्य उन्नति न कर पाता। अनुशासन के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं है। अनुशासन ही मानव जीवन का उच्च शिखर तक पहुँचने में सहायक बनता है। अनुशासन के बिना किया गया हर कार्य अपमान का कारण बन सकता है, इसीलिए जीवन में अनुशासन का होना महत्त्वपूर्ण बताया गया है।
जो अनुशासन हीन बना दे, वह अभिवादन बदलो तुम।
जीवन का जो मूल्य घटा दे, वह अपनापन बदलो तुम॥
अनुशासन के बिना जीवन को ‘शव’ के समान ही कहा जाएगा। जीवने मैं यदि अनुशासनहीनता आ जाए तो हमें उस कारण को, शीघ्र ही बदलने प्रयास करना चाहिए क्योंकि अनुशासनहीनता से राष्ट्र व समाज में मानव के अपने जीवन में अशांति, अराजकता, मनमानेपन का जन्म होता है। जो न तो मानव के अपने जीवन के लिए और न ही समाज के लिए लाभदायक हो सकता है और न ही अपने राष्ट्र के लिए लाभदायक हो सकता है। अनुशासनहीनता से हर प्रकार की अशांति, देश में अराजकता का फैलाव होता है और अनुशासन से देश व समाज में अपनापन आता है, भाईचारे की भावना समाज में व मानवमन आती है।
अनुशासन का पर्व सुखद-सा, मिलकर आओ मना लें।
जो अनुशासनहीन है ‘रत्नम्’, उन्हें तनिक समझा दें॥
आकाश में उड़ते हुए पक्षियों को यदि हम देखें तो वह कतार बनाकर अनुशासन के साथ गगन में उड़ते हुए कितने अच्छे लगते हैं, मानो किसी नदी की मोहक धारा आकाश में टाँग दी गई हो। यदि हम चींटियों को देखें तो वह कितने अनुशासन में कतार बनाकर धरती पर, दीवारों पर चलती है जैसे किसी चित्रकार ने जीवन का चित्र बना दिया हो। जबकि यह सत्य है कि चीटिंयों की आँखें नहीं होतीं, फिर भी वह अनुशासन का पालन कितने अच्छे ढंग से करती हैं, अनुशासन के कारण ही चीटिंयाँ अपने हृदय तक पहुँचती हैं जो समाज के प्राणी के लिए अनुशासन की एक सफल प्रेरणा ही कहा जा सकता है।
सेना के जवान जब अभ्यास करते हैं तो उनमें अनुशासन की सुंदर झलक देखने को मिलती है। सैनिकों के पैर और हाथ एक साथ उठते हैं, जीवन को गति प्रदान करते हैं। गणतंत्र दिवस की परेड में सेना का प्रदर्शन देखा जा सकता है। युद्ध के समय में भी देश का सैनिक अनुशासन में रहकर शत्रु पर हमला करता है। स्कूल में प्रार्थना के समय छात्रों में अनुशासन की झलक देखने को मिलती है। माता-पिता और अध्यापक यदि चाहें तो सारे मानव समाज में अनुशासन का साम्राज्य लाया जा सकता है और देश में छाये भय के वातावरण को अनुशासन से समाप्त किया जा सकता है। अनुशासन का जीवन में उतना ही महत्त्व है जितना जीवन में रोटी का| अनुशासन के बिना जीवन पंगु-सा बनकर रह जाता है। अनुशासन के बिना मनुष्य की समाज में प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा भी प्रायः समाप्त-सी हो जाती है। अनुशासन सबसे पहले हमें घर से ही सीखने को मिलता है। अनुशासनहीन बालक को समाज में मूर्ख, धूर्त, चालाक और बदमाश तक बताया जाता है। अनुशासनहीन प्राणी को समाज का कलंक तक कह दिया जाता है। अनुशासन से जीवन में रोचकता आती है और अनुशासन से ही संपूर्ण मानव समाज का विकास भी जीवन में संभव हो जाता है और अंत में-
अनुशासन जीवन में लाने का संकल्प उठा ले।
सकल राष्ट्र में अनुशासन का ‘रत्नम् ‘ दीप जला लें॥