संकेत बिंदु– (1) भ्रमण का अर्थ (2) सैर करना अच्छी आदत (3) प्रात: कालीन सैर का आनंद (4) मित्रों के साथ सैर (5) स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम।
‘भ्रमण’ शब्द का वाच्यार्थ है घूमना, इधर-उधर विचरण करना। देश-विदेश में विचरण करना (भ्रमण करना) ज्ञान वृद्धि का प्रमुख साधन है। इसके बिना जीवन में पूर्णता नहीं आ सकती। प्रसिद्ध विचारक आईंस्टाइन के शब्दों में ‘विश्व एक बड़ी पुस्तक है, जिसमें वे लोग, जो घर से बाहर नहीं जाते, सिर्फ एक पृष्ठ ही पढ़ पाते है।’
देश-विदेश के भ्रमण का सुअवसर यदा-कदा ही एवं कतिपय लोगों को ही मिल पाता है। भ्रमण का एक और बहुत उपयोगी रूप है – और वह है प्रातः अथवा सायं काल सैर करना। भ्रमण का यह रूप व्यायाम का ही एक रूप है। प्रातः कालीन भ्रमण सबसे सरल, किंतु सबसे अधिक उपयोगी व्यायाम है।
गर्मियों में लगभग पाँच-साढ़े पाँच बजे और सर्दियों में छह-साढ़े छह बजे का समय प्रातः कालीन सैर के लिए अधिक उपयुक्त है। प्रातः बिस्तर छोड़ने में थोड़ा कष्ट ती अनुभव होगा ही। गर्मियों की प्रातः कालीन हवा और उसके कारण आ रही प्यारी-प्यारी नींद का त्याग कीजिए। सर्दियों में रजाई का मोह छोड़िए और चलिए प्रातः कालीन सैर को।
सैर आप कहीं भी कीजिए, मनाही नहीं है। फिर भी अच्छा है कि किसी पहाड़ी की ओर जाइए, जहाँ की रमणीय प्रकृति आपके चित्त को प्रसन्न कर देगी। किसी बाग-बगीचे या खेत में जाइए, जहाँ के सुंदर विकसित फूल आपकी आँखों को प्रिय लगेंगे और उन्हें तोड़ने के लिए आपका मन ललचाएगा।
किसी नदी तट पर जाइए, जहाँ आपके शरीर को नई स्फूर्ति मिलेगी। यदि इन स्थानों तक जा सकने का सौभाग्य आपको प्राप्त न हो, तो ऐसी चौड़ी सड़क पर सैर कीजिए, जिसके दोनों ओर नीम, जामुन या कोई दूसरे घने वृक्ष खड़े हों।
सैर को जाने से पूर्व ध्यान रखिए कि आप शौच से निवृत हो चुके हैं न। बिना निवृत हुए मत जाइए। मुँह पर ठण्डे पानी के छपके मारिए। बालों में थोड़ा कंघी कर लीजिए। ऋतु अनुसार चुस्त वस्त्र पहनिए, किंतु कम-से-कम। चलिए, सैर कीजिए। मील, दो मील, चार मील, जितनी सामर्थ्य हो। हाँ, बाग-बगीचे में कभी जूते पहनकर मत घूमिए।
प्रातः कालीन वातावरण अत्यंत सुंदर होता है। पक्षी अपने- अपने घोंसलों में फड़फड़ा रहे होते हैं। मंद-मंद सुगंधित पवन चल रही होती है। रात्रि के चंद्रमा और तारागण को ज्योति समाप्तप्राय होती है। भगवान भास्कर उदित होने की तैयारी कर रहे होते हैं। आकाश बड़ा स्वच्छ होता है। गली मोहल्ले में पाँच-सात ही व्यक्ति फिरते नजर आते हैं। इस शांत वातावरण को श्वान अपने बेसुरे स्वर से कभी-कभी अवश्य भंग कर देते हैं।
सैर कीजिए, किंतु चींटी की चाल से नहीं, तेजी से चलिए। लंबे-लंबे कदम हों और उनके साथ बारी-बारी से आगे पीछे पूरे वेग से हिल रहे हों आपके हाथ। मुँह को खोलने का कष्ट न कीजिए। नाक से साँस लीजिए। लंबे-लंबे साँस अधिक लाभ-प्रद रहते हैं। एक बात भूल गया; बूढ़ों की तरह कमर को झुकाकर नहीं, सीना तान कर चलिए।
रजाई के मोह और प्यारी-प्यारी नींद का त्याग और वह भी प्रातः कालीन सैर के लिए, बड़ा लाभप्रद होता है। आलस्य आपसे पराजित हो जाता है। सारे दिन शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। तेज चलने से शरीर के प्रत्येक अंग की कसरत हो जाती है। रक्त नलियाँ खुलती हैं। स्वास्थ्य सुंदर बनता है। चेहरे पर रौनक आती है। हरी-भरी घास पर पड़ी ओस- बिंदुओं पर नंगे पाँव घूमने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
आप सैर को चल रहे हैं, कोई मित्र मिला, हँसकर एक-दो मिनट गपशप हुई। हँसने से फेफड़ों को बल मिला। पड़ोसी मिला; नमस्ते हुई बड़े बुजुर्ग मिले, चरण-स्पर्श किया; क्रीड़ा करते बच्चों की टोलियाँ मिलीं, हृदय गद्गद हो गया। एक साथ इतने लोगों के दर्शन प्रात: काल में; चित्त प्रसन्न हो गया।
सैर से आप वापस आ रहे हैं। सूर्य ने अपनी प्रथम किरण पृथ्वी पर डाल दी है। अहा ! कितना सुंदर दृश्य है। नीले आकाश में उदित होते लाल सूर्य को नमस्कार करने को मन चाहता है। मनुष्यों के साथ प्रकृति भी जग गई है। चारों ओर चहल-पहल नजर आती है। पक्षीगण चहचहा रहे हैं और हमारी सैर का आनंद खराब करने को मार्ग में सफाई कर्मचारी झाड़ू देने के लिए आ गया है और लोकल बसें धुआँ छोड़ती हुई दौड़ने लगी हैं।
जहाँ फूल होते हैं, वहाँ काँटे भी होते हैं। आपकी सैर के मजे को जो किरकिरा करे, उससे बचने का प्रयत्न कीजिए। झाड़ू देते सफाई कर्मचारी को अपना कर्तव्य पालन करने दीजिए, बसों को अपनी जलन निकालने दीजिए। आप नाक पर रूमाल रखकर इससे बच जाइए, मन खराब न कीजिए। कारण, मन खराब हुआ तो सैर का सारा आनंद लुप्त हुआ। प्रातः कालीन सैर स्वास्थ्य निर्माण करने का सर्वोत्तम उपाय है। यह सस्ता भी है, मीठा भी। जिसके लिए न डॉक्टर को पैसे देने पड़ते हैं और न उसकी कड़वी दवाइयों का सेवन करना पड़ता है। स्वास्थ्य के लिए प्रातः कालीन भ्रमण की उपयोगिता पर सुप्रसिद्ध कवि श्री आरसी प्रसाद सिंह ‘आरसी’ का निम्नलिखित पद्य उल्लेखनीय है-
घूम रहा था मैदान में एक दिवस मैं प्रातः काल।
तब तक फैला था न तरणि की अरुण-करुण किरणों का जाल।
प्रकृति-परी बोली मुस्काकर मुझसे अरे पथिक नादान।
जाते हो इस ओर कहाँ तुम नंगे पैर और मुख-म्लान।
मैंने कहा यहीं पर मेरा स्वास्थ्य खो गया है अनजान।
करता हूँ मैं उसी का इस पथ में सखि ! अनुसन्धान॥
कवि ने कितने सुंदर ढंग से इस तथ्य को प्रकट किया है कि प्रातः कालीन भ्रमण से मनुष्य किसी भी कारण खोए हुए स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त कर सकता है।
आइए ! आज से प्रण करें कि हम प्रातःकालीन सैर अवश्य करेंगे, अवश्य करेंगे।