नदी तट पर भ्रमण

Benefits of morning walk near the river hindi essay

संकेत बिंदु – (1) मस्तिष्क और शरीर के लिए लाभकारी (2) कवि कुँवर नारायण की दृष्टि में (3) प्रातः काल में नदी का दृश्य (4) हर आयु वर्ग के सैर करने वाले (5) मन में स्फूर्ति और स्वस्थ तन।

नदी का तट अत्यंत मनोहर और आनंदप्रद होता है। नदी के मध्य बहती हुई जल- धारा तो सुंदर लगती ही है, उसके दोनों तट पर खड़ी वृक्षावली और उसके रेतीले तट भी कम सुंदर नहीं होते। इसी कारण नदी तट पर भ्रमण से मन प्रसन्न होता है, शरीर चुस्ती का अनुभव करता है, नेत्र हरियाली का आनंद उठाते हैं, और जल-क्रीड़ा को देखते हुए अतृप्त ही रहते हैं। थकने पर पानी में पैर लटका कर बैठने से थकान दूर हो जाती है और फिर मन कहता है नदी तट के भ्रमण का और आनंद लूटें।

नदी तट के वृक्षों, पौधों, क्यारियों की हरियाली के मध्य भ्रमण करना मानव और प्रकृति का सुंदर समागम है। नंगे पैर घूमना स्वास्थ्य के लिए हितकारी है। इससे मस्तिष्क संबंधी विकार दूर हो जाते हैं, मस्तिष्क सबल बनता है। भ्रमण के समय चाल जरा तेज रखिए, फिर लूटिए ऑक्सीजन (प्राण वायु) का आनंद। उधर वृक्षावली सूर्य का स्वागत करने के लिए पाणि-पल्लव पसार रही हो, उन पर बैठे विहगवृंद किल्लोल कर रहे हों, तो लगता है भ्रमण के साथ-साथ माँ सरस्वती की वीणा की झंकार सुनाई पड़ रही है।

एक ओर नदी, दूसरी ओर वृक्षों-लता-पादपों की हरियाली, तीसरी ओर मंद मंद बहती शीतल पवन। शीतल, सुगंधित मंद पवन कभी वृक्षों से अठखेलियाँ करती और कभी लाज भरी कलिकाओं का घूँघट उठाकर हठात् उनका मुख झाँक जाती है। कभी- कभी शिथिल पत्रांक में सुप्त कलिकाओं को झकझोरती है।

कवि कुँवर नारायण तो इसकी पावनता पर इतने मुग्ध हैं कि उसे ‘माँ सरीखी’ मानते हैं-

“नदी तट से लौटती गंगा नहाकर

सुवासित भीगी हवाएँ

सदा पावन / माँ सरीखी।”

(कविता: सवेरे-सवेरे)

यह पवन जब भ्रमण कर्ता के शरीर से टकराती है, तो उसका हृदय-बल्लियों उछलता हैं, मन आत्मानंद की अनुभूति करता है। जी चाहता है चाल धीमी करके धीमे बहती वायु का धीमे-धीमे आलिंगन किया जाए, ताकि इससे श्वासोच्छ्वास क्रिया से रक्त शुद्ध हो, फेफड़ों को बल मिले, शरीर नीरोग हो, पेट अजीर्णता का शिकार न बने।

सूर्य उदय हो रहा है। उदित होते सूर्य की किरणों से नदी तट की रेत भी सतरंगिणी- सी दिखाई देती है। बालू की ऐसी रेखाएँ बनी हुईं हैं, जो साँपों जैसी लगती हैं। बाल- रवि के प्रतिबिंब को पानी में लोट-पोट कर नहाता देखकर भ्रमण करने वाले रुक जाते हैं। जल पर बिखरी लाल-पीली किरणें ऐसी प्रतीत होती हैं मानो पानी में सोना बह रहा हो। वह दृश्य देखते मन नहीं भरता, निरंतर आगे बढ़ने की लालसा बनी रहती है।

नदी तट पर भ्रमण हो रहा है। धोती-कुर्ता पहने नगर के व्यापारी जोर-जोर से बहस करते घूम रहे हैं। बुड्ढों की टोली हँसी-मजाक करती शनैः-शनैः बढ़ रही है। नवयुवक- नवयुवतियों के झुंड तेजी से नदी तट को पार कर जाना चाहते हैं। कुछ दौड़ लगाकर व्यायाम में भ्रमण का आनंद ले रहे हैं, तो कुछ लोग इतनी तेजी से चल रहे हैं, मानो किसी प्रिय को पकड़ने के लिए दौड़ लगा रहे हों।

यह लीजिए, भ्रमणार्थ बालकों की बंदर टोली चली आ रही है। बालक और सीधे चलें तो इन्हें बंदर कौन कहे? मछरना, शरारत करना, शोर मचाना, मार्ग को पूर्णरूपेण घेर कर चलना इनकी आदत में शुमार है। नदी में पत्थर फेंक दें, बड़े बुजुर्गों की टोली को चीर दें, किसी की नकल उतार दें, यह सब इनके लिए क्षम्य है। ये भ्रमण में व्यायाम का सही आनंद लेते हैं।

जरा सैर का शौक देखिए। ये बूढ़े बुढ़िया 70-72 के लगभग होंगे, पर छड़ी टेक-टेक कर मस्तानी चाल का मजा लूट रहे हैं। दूसरी ओर अधरंग का मारा अधेड़ चींटी की चाल चल रहा है, पर मन में उत्साह है, तन में स्फूर्ति है। लीजिए, गृहणियाँ भी परदे से बाहर निकल आई ठंडी हवा का झोंका लेने। पल्लू सिर से उतर गया है, तो कोई बात नहीं, केश विन्यास शिथिल पड़ गया है, तो कोई चिंता नहीं। चिंता को तो ये घर पर छोड़कर मौज- मस्ती लेने तो आई हैं, नदी-तट पर।

नदी तट के भ्रमण में भ्रमण का ही आनंद लीजिए। भ्रमण में सँपेरे, कंजड़, भगवा वस्त्रधारी भिखारी हाथ पसारे मिलेंगे। जटाजूटधारी विभूति- अलंकृत ‘शंकर बम भोला’ के उद्घोषी आशीर्वचन की झड़ी लगाते हुए मिलेंगे। भारत की दरिद्रता के प्रतीक भिखमंगे झोली पसारे दिखाई देंगे। आप मुँह न बनाइए, नाक न सिकोड़िये। चुपचाप अनदेखी करके निकल जाइए। जहाँ इनके चक्कर में पड़े, वहीं भ्रमण का आनंद समाप्त हुआ समझिए।

नदी तट का एक लाभ स्वतः आपको मिल जाएगा। नदी तट के मंदिरों में जगत्- नियंता को माथा टेककर पुण्य कमा लीजिए। कहीं ‘ओम् जय जगदीश हरे’ की आरती हो रही है, चाहे तो रुक कर मन की शांति ले लीजिए, अन्यथा भ्रमण करते-करते श्रवणेन्द्रिय को खुला रखिए। वाणी से स्वयमेव आरती के बोल निकलने लगेंगे। भ्रमण में मन की शांति और चित्त की प्रसन्नता एवं आनंद का लाभ।

नदी तट का भ्रमण न केवल तन में स्फूर्ति भरता है, उसे स्वस्थ रखता है, अपितु मन- मस्तिष्क को शांत रखकर मनोबल बढ़ाता है। नदी जल का नर्तन और तट के पेड़-पौधे अपनी मस्ती से सुगंधित पवन द्वारा हृदय को शुद्ध रक्त प्रदान कर बलवान् बनाते हैं। नदी- तट के पूजा-स्थल भ्रमणार्थी को परमपिता परमेश्वर का स्मरण करवा कर पावन कर्मों को करने का संदेश सुना जाते हैं। भ्रमणान्तर शीतल जल से स्नान मानव को तन, मन से स्वच्छ करके दैनंदिन जीवन में जुटने का साहस प्रदान करता है।

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