संकेत बिंदु-(1) अद्भुत अदृश्य का आँखों देखा हाल (2) गणेश जी को दुग्धपान (3) विभिन्न पत्रों द्वारा प्रतिक्रिया (4) सरकार द्वारा प्रचार माध्यमों में खंडन (5) उपसंहार।
जीवन में कई बार ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं जो अपनी अपूर्वता, विचित्रता और विलक्षणता के कारण हमें मुग्ध और स्तब्ध कर देते हैं। ऐसा अद्भुत, अप्रत्याशित. असाधारण या विलक्षण दृश्य सहसा देखने पर उसका कारण, रहस्य या स्वरूप समझ में नहीं आता। ऐसा ही अद्भुत दृश्य आँखों देखा हैं, इसलिए उसकी सत्यता में अविश्वास प्रकट करना प्रकृति और परमेश्वर पर अश्रद्धा प्रकट करना ही कह सकते हैं।
आश्विन कृष्ण द्वादशी तद्नुसार 21 सितंबर 1995 को ब्राह्म मुहूर्त से रात्रि 12 बजे तक विघ्न विनाशक गणपति, उनके पिता शंकर, माता पार्वती तथा शिववाहन नंदी की प्रतिमाओं ने विश्व में सर्वत्र दुग्धपान किया। प्रतिमाएँ चाहे प्रस्तर की थीं, पीतल, ताँबे या चाँदी अथवा अन्य धातुओं की, सबने ही दुग्धपान किया।
उस दिन प्रातः से ही मंदिरों में जन-समूह उमड़ पड़ा। ठाठें मारने लगा। हर हिंदू गणेश जी को दुग्धपान करवा कर अपना जीवन कृतार्थ करना चाहता था। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनेक भक्त मंदिरों में पंक्तियाँ लगवाने लगे, पर जनता को धैर्य कहाँ? जनता ही क्यों? नेतागण, पत्रकार और तथा बुद्धिजीवी भी इस अलौकिक दृश्य को देखने चल पड़े। व्यवस्था रखने के लिए पुलिस को मंदिरों की घेराबंदी करनी पड़ी।
‘ओम् नमः शिवाय’ का जाप शुरू हो गया। भक्तगण मंदिर में बैठकर गणेश जी की आरती गाने लगे।
प्रेस फोटोग्राफर इस दृश्य के चित्र और पूरे कार्यक्रम की रील खींचने लगे। स्थानीय नेता जब मंदिर में आते तो भीड़ में हलचल मच जाती। उनको दर्शन करवाने के लिए पुलिस को कुछ धका-मुक्की करनी पड़ती।
तत्कालीन विपक्ष के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी, तत्कालीन चुनाव आयुक्त श्री टी. एन. शेषन तथा शिक्षाविद् किरीट जोशी ने इस तथ्य को स्वीकार किया। विश्व हिंदू परिषद् ने तो इसमें भारत के भाग्य परिवर्तन के लक्षण महसूस किए। साधु-महात्माओं ने भारत के उज्ज्वल भविष्य की झाँकी मानी।
सनसनीखेज खबरों के लिए प्रसिद्ध ‘सन’ के संवाददाता डेविड वुडहाउस ने साउथाल (इंग्लैंड के) मंदिर का निरीक्षण करने के बाद लिखा, ‘मैंने आश्चर्य के साथ देखा कि दो हिंदू प्रतिमाओं ने मेरे हाथ की चम्मच से दूध पिया। नंदी की प्रतिमा ने केवल 10 सेकिण्ड में पूरी चम्मच दूध गड़प लिया। मैंने प्रतिमा की पूरी तरह जाँच करने पर पाया कि वह जमीन में गड़ी हुई थी और कहीं कोई चालाकी नहीं थी। मैंने देखा और विश्वास किया कि कुछ विचित्र घट रहा है। पर वह क्या है?’
दि टाइम्स ने ‘दूध और चमत्कार के बारे में’ शीर्षक संपादकीय लेख में कहा कि ‘हमारे मध्य रह रहे भारतीयों के व्यवहार से सिद्ध होता है कि प्रगतिशील खुले मस्तिष्क और धार्मिक आस्थाएँ साथ-साथ रह सकते हैं।’
भारत की तत्कालीन नास्तिक (संयुक्त) सरकार ने दूरदर्शन तथा अन्य प्रचार माध्यमों से इसका जोरदार खंडन किया। इतना ही नहीं दूरदर्शन के ‘आज तक’ के कार्यक्रम में तो इसका मजाक उड़ाते हुए एक मोची को जूता गाँठने के लोहे के औजार को दूध पिलाते दिखाया गया।
कुछ बुद्धिजीवियों ने दुग्ध-पान को नकारा तो नहीं, किंतु इसे विज्ञान का सिद्धांत माना। उनके अनुसार (1) पृष्ठ तनाव वेग (सरफेसटेंशन), गुरुत्वाकर्षण (केपीलेटी एक्शन) एवं मूर्तियों के छिद्रयुक्त होने (फोरस) होने में छिपा हुआ है। यह एक सामान्य घटना थी, कोई चमत्कार नहीं। इसे चमत्कार मानना महज अंध-विश्वास है।
यदि यह विज्ञान का सिद्धांत है तो उसमें शाश्वत सत्य के दर्शन होने चाहिए। जबकि शिव परिवार ने 21 सितंबर के पश्चात् दुग्ध ग्रहण बिल्कुल नहीं किया।
दूसरी ओर, अप्रैल 1995 में इटली के एक छोटे से गाँव में माता मरियम की आँखों से खून के आँसू बहने का समाचार आने पर लाखों कैथालिक श्रद्धालु वहाँ पहुँचे। स्वयं पोप ने भी वेटीकन से अपना दूत इस सत्य का परीक्षण करने भेजा। किसी ने इस घटना का उपहास नहीं उड़ाया।
वस्तुतः इस दृश्यमान् भौतिक जगत के पीछे कुछ ऐसी शक्तियाँ भी सक्रिय हैं, जिनके कार्यों को सामान्य तर्क बुद्धि से समझना और वैज्ञानिकता का आवरण पहनाना संभव नहीं। यह तो प्रभु पर, उसकी अलौकिकता पर तथा जगत्-नियंता की दिव्य शक्ति पर विश्वास और श्रद्धा रहने पर ही इसका महत्त्व समझा जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी अपने ‘रामचरितमानस’ की प्रारंभिक वंदना में इसीलिए कहा है-
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तस्थमीश्वरम्॥