भारत की अंतरिक्ष-यात्रा

Indian advancement in space science an hindi essay

संकेत बिंदु-(1) भारत विकासशील राष्ट्र (2) भारत की अंतरिक्ष यात्रा की शुरूआत (3) भारतीयों की उपलब्धि (4) आधुनिक उपग्रहों का निर्माण (5) उपसंहार।

भारत विकासशील राष्ट्र है। निर्धनता, निरक्षरता, अंधविश्वास, अज्ञानता, रूढ़िवादिता, त्रीमारी, गन्दगी और भूख यहाँ अभी व्याप्त हैं। विदेशों का बढ़ता अरबों रुपए का ऋण राष्ट्र को घुन की तरह चाट रहा है। यहाँ के राजनीतिज्ञ राष्ट्र को राजनीतिक छल-छंद की धूल से धूलि धूसरित करने को कटिबद्ध हैं, फिर भी भारत के वैज्ञानिक दिन-प्रतिदिन विशाल राष्ट्र की अनन्य समस्याओं को विज्ञान द्वारा हल करने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं।

वैज्ञानिकों की वैज्ञानिक सूझ-बूझ, कार्य-कौशल, दृढ़ निश्चय और कार्य के प्रति समर्पण ने आज भारत को अंतरिक्ष-संचार युग में पहुँचा दिया है, जहाँ अब तक भूतपूर्व सोवियत संघ, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और विकासशील राष्ट्र इण्डोनेशिया ही पहुँच पाए थे।

18 मई 1974 को पहला सफल परमाणु विस्फोट पांखरन (राजस्थान) से लेकर 26 मई 1999 की अंतरिक्ष सफल उड़ान में तीन उपग्रहों की सफल अंतरिक्ष स्थापना तक का 24 वर्षीय इतिहास भारत की अंतरिक्ष विज्ञान संबंधी प्रगति का क्रमबद्ध लेखा-जोखा है, कोई जादुई चमत्कार नहीं।

भारत द्वारा अंतरिक्ष यात्रा का प्रारंभ लगभग छब्बीस वर्ष पूर्व किया गया था। तब भारत ने इस क्षेत्र में एक छोटा-सा पग उठाया था और थुम्बा से एक अमेरिकी राकेट छोड़ा था, किंतु 19 अप्रैल, 1975 का दिन वह ऐतिहासिक दिन है, जब भारत में निर्मित प्रथम उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ अंतरिक्ष कक्षा में स्थापित किया गया। उस दिन से विश्व में भारत की गणना ‘उपग्रह-निर्माण’ की क्षमता रखने वाले राष्ट्रों में होने लगी।

भारत ने अंतरिक्ष में अगला पग रखते हुए 7 जून, 1979 को सोवियत संघ के एक केंद्र से उपग्रह ‘भास्कर’ छोड़ा। यह उपग्रह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा तैयार किया गया था। इसका उद्देश्य भू-पर्यवेक्षण और पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाना था।

भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी प्रयोगशाला में निर्मित राकेट ‘एस. एल. वी-3’ के द्वारा ‘रोहिणी’ उपग्रह को 18 जुलाई, 1980 को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करके अंतरिक्ष-विज्ञान के इतिहास में नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ने में अद्भुत सफलता प्राप्त की।

19 जून 1981 को भारत के महान् वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष विज्ञान में एक पग और बढ़ाया। पहला संचार उपग्रह ‘एप्पल’ (A.P.P.L.E.) यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के सहयोग से अंतरिक्ष में पहुँचाया गया। यह उपग्रह पूर्णतः भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ के बंगलौर केंद्र में ‘भारतीय वैज्ञानिकों ने तैयार किया। इसके प्रक्षेपण से भारत में एक नए संचार-युग का आरंभ हो गया जिससे आज देश को उपग्रह संचार के लाभ मिल रहे हैं।

नवंबर, 1981 में भारत ने दूसरा भू-पर्यवेक्षण उपग्रह ‘ भास्कर-2’ सोवियत संघ की सहायता से अंतरिक्ष में भेजा।

3 अप्रैल, 1984 को भारतीय सैनिक राकेश शर्मा ने रूस के अंतरिक्ष यान में अंतरिक्ष में जाकर अनेक प्रयोग किए। उसके साथ ही रवीश मल्होत्रा ने भी अंतरिक्ष उड़ान का प्रशिक्षण प्राप्त किया था।

29 अप्रैल, 1985 को अमरीकी स्पेसलैव-3 पर स्थित भारतीय अंतरिक्ष प्रयोगशाला, ‘अनुराधा’ ने अपनी एक सप्ताह की यात्रा में सूर्य तथा ब्रह्माण्ड में अन्य स्रोतों से निकलकर पृथ्वी के वायुमंडल में आने वाली ऊर्जा-किरणों के गठन तथा तीव्रता का अनुसंधान किया।

इसके पश्चात् अंतरिक्ष विज्ञान में भारत ने तेजी से कदम बढ़ाए। दुर्भाग्यवश 24 मई, 1988 को छोड़ा गया पहला ‘ए. एस. एल. वी.’ (A.S.I.V.) विफल रहा। ‘ए. एस. एल. वी.: डी 2’ 13 जुलाई 1988 को श्रीहरिकोटा से उड़ा और 54 सेकिण्ड बाद ही बंगाल की खाड़ी में गिरकर डूब गया। भारत के करोड़ों रुपए नष्ट करता हुआ, वैज्ञानिकों की अनुसंधान प्रतिभा की अक्षमता का परिचय दे गया।

देश में संचार, दूरदर्शन तथा आकाशवाणी प्रसारण एवं मौसम संबंधी जानकारी के लिए 12 जून 1990 को ‘इन्सेट-1 डी’ को अमेरिका के केपकानवरेज, फ्लोरिडा से अंतरिक्ष में भेजकर अंतरिक्ष में ही स्थापित किया गया। दूसरी ओर 29 अगस्त 1991 को दूर संवेदी उपग्रह ‘आई. आर. एस-1 बी सोवियत संघ के बैकानूर अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में प्रक्षिप्त किया गया। इस अति आधुनिक उपग्रह का डिजाइन भारत में ही तैयार किया गया था।

20 मई 1992 को ए.एस.एल.वी. (डी-3) को श्रीहरिकोटा के राकेट प्रक्षेपण केंद्र से छोड़ा गया। यह उड़ान सफल रही और इस उड़ान से छोड़े गए उपग्रह को 450 किलो मीटर ऊँचाई पर भूस्थिर कक्षा में स्थापित कर दिया गया।

17 अगस्त 1992 को अंतरिक्ष विज्ञान में भारत को एक नई सफलता मिली। स्वदेशी उपग्रह ‘इन्सेट-2 ए’ से प्रसारण शुरू हो जाने से दूरदर्शन लगभग 40 हजार डालर (12 करोड़ रुपए) की विदेशी मुद्रा की बचत करेगा।

23 जुलाई 1993 को भारत में निर्मित दूसरा बहुउद्देश्यीय ‘इन्सेट-2 बी’ को फ्रेंच गुयाना में कौरु से एक एरियन राकेट द्वारा प्रक्षिप्त किया गया। यह मौसम संबंधी सूचना, संचार संपर्क और दूरदर्शन प्रसारण में सशक्त काम कर रहा है।

4 मई 1994 को ‘ए.एस.एल.वी. : डी-4’ के सफल प्रक्षेपण द्वारा 113 किलोग्राम के रोहिणी शृंखला के दूसरे उपग्रह ‘स्रोत-सी’ को पृथ्वी के कक्ष में स्थापित कर दिया। भारत के उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रम में यह सफलता मील का पत्थर साबित होगी। लगभग स्वदेशी तकनीक पर आधारित ए. एस. एल.वी. डी-4 इस दिशा में भारत की आत्म-निर्भरता का परिचायक है।

प्रक्षेपण की सफलता जहाँ खगोलीय जानकारियों और वातावरण संबंधी आँकड़े प्राप्त करने के बारे में नए दरवाजे खोलती है, वहाँ अमरीका और अन्य पश्चिमी राष्ट्रों को एक करारा जवाब भी है, जिन्हें भारत की वैज्ञानिक प्रगति नहीं भाती। भविष्य में अंतरिक्ष कार्यक्रम के विकास की अत्यधिक संभावना हैं।

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