संकेत बिंदु-(1) ग्रामीण संस्कृति की आत्मा (2) ग्रामीण संस्कृति की विशेषताएँ (3) शोषण, ग्रामीण संस्कृति का अभिशाप (4) ग्रामीण संस्कृति के कलंक (5) उपसंहार।
भारत की 80 प्रतिशत जनता गाँवों में निवास करती है। गाँवों की अपनी एक परंपरागत संस्कृति है, जो शहरों की संस्कृति से सर्वथा भिन्न है। गाँवों में प्रचलित आचार-व्यवहार, रहन-सहन, वेश-भूषा भारतीय ग्रामीण संस्कृति है। ग्रामीण जनता में प्रचलित रूढ़ियों, धार्मिक परंपराओं, विचार-सरणियों व जीवन मूल्यों का स मग्न रूप ही भारत के गाँवों की संस्कृति है। भारतीय ग्राम ग्रामीण संस्कृति की आत्मा है।
भारतीय ग्रामीण संस्कृति की सर्वोत्तम विशेषता है आस्तिक भाव। भारत का ग्रामीण-जन प्रभु की सत्ता का घोर विश्वासी है। वह दारिद्र्य, दीनता, अत्याचार और पीड़ा को अपना ही कर्मफल मानता है। धर्म के प्रति उसकी अंधभक्ति है। इसलिए वह धर्मभीरु है। वह थोथे और शास्त्र-विरुद्ध धार्मिक प्रपचों से बँधा है। उसे धार्मिक आडंबरों में जीवन का स्वर्ग दिखाई देता है। प्रभु के प्रति भारतीय ग्रामीण के मानस में विद्यमान श्रद्धा और विश्वास ही ग्रामीण संस्कृति को शक्ति प्रदान करते हैं।
ग्रामीण संस्कृति की दूसरी विशेषता बंधुत्व की भावना है। ग्रामीण जन दुख-सुख में परस्पर साथ देना अपना कर्तव्य समझते हैं। अभाव के क्षणों में परस्पर सहायता करना, खुशी के अवसर पर सबका सम्मिलित होना ग्राम-संस्कृति का मुख्य गुण है। गाँवों में बहन-बेटी की इज्जत सुरक्षित है। शत्रु भी बहन-बेटी की ओर बुरी निगाह तथा उँगली उठाकर नहीं देख पाता।
गरीबी और अज्ञान के कारण धोखाधड़ी ग्रामीणों का स्वभाव-सा बन गया है। वहाँ दिल की सफाई और ईमान की सच्चाई बहुत कम देखने को मिलती है। चीज लेकर भूल जाना, दूसरे की नहर का पानी काट लेना, अनाज चोरी कर लेना, दूसरे के खेत में पशु घुसा देना ग्रामीण स्वभाव है।
बेईमानी-शैतानी, ईर्ष्या-द्वेष तथा वैर-विरोध ग्रामीण संस्कृति की आंतरिक व्यथा-कथा है। छोटी-छोटी बातों पर मन-मुटाव होना ग्रामीण स्वभाव है। इसलिए दूसरे के खेत में खड़ी फसल कटवा देना, खलियान फुंकवा देना, हलवाहे चरवाहे मजदूरों को बहकाना-भड़काना, पशुओं को हँकवा देना, झूठी निंदा-स्तुति करना ग्रामीण-स्वभाव के अंग हैं। मन-मुटाव शत्रुता में बदलती है, तो एक ओर हत्याओं का सिलसिला शुरू होता है, और दूसरी ओर मुकदमेबाज़ी का चक्कर। शत्रुता और मुकदमेबाजी का व्यसन ग्रामीण-नारी बच्चे को घुट्टी में पिलाती है और रक्त देकर सींचती है।
शोषण ग्रामीण संस्कृति का अभिशाप है। सेठ साहूकार जमींदार और गाँवों का देवता-पंडित ग्रामीणों को हर तरह से चूसते हैं। ऋण देकर जीवन भर सूद भरवाते हैं और मूल राशि के उपलक्ष्य में ‘बंधुवा’ बनाते हैं। गाँव का पंडित धर्म-कर्म के नाम पर जी भरकर लूटता है। रही-सही कसर पूरी करते हैं सरकारी अधिकारी। चूसी हुई गुठली को राजनेता, राज-कर्मचारी, पुलिस, नंबरदार, तहसीलदार, जिलाधीश बेरहमी से निचोड़ते हैं। ऋण दिलाने में कमीशन, उर्वरक दिलाने में बेईमानी तथा फसल बेचने में हेरा-फेरी ग्रामीण-शोषण के द्वार है। बचा खुचा सम्मान-संपत्ति अदालती अमलों के सिल-लोढ़े की रगड़ में समाप्त हो जाती है। उनका जीवन मृत्यु से भयंकर है, क्योंकि उनकी जीवन उच्छ्वासयुक्त मरण है।
झूठी शान ग्रामीण संस्कृति के भाल पर कलंक है। ग्रामीणजन जन्मोत्सव, विवाह तथा धार्मिक आयोजनों पर झूठी शान दिखाने में गर्व अनुभव करता है। इस गर्वानुभूति के लिए चादर से बाहर पैर पसारता है, ऋणी बनता है, भविष्य को अंधकार का निमंत्रण देता है। उसके सोच-विचार गालिब की याद ताजा करते हैं-
कर्ज की पीते थे वो और कहते थे कि हाँ,
रंग लाएगी हमारी, फाका-मस्ती एक दिन।|
बीमारी में ओझों, गुनियों एवं मंत्र फूँकने वालों की शरण जाना, गंडे-ताबीज पर आस्था रखना, पोए-पीर-पूजा में श्रद्धा प्रकट करना ग्रामीण संस्कृति की नियति है। नियति से नीयत बिगड़ी। अंधविश्वास सुरसा के मुँह की तरह फैला। बिल्ली रास्ता काट गई, तो अपशकुन हो गया। पानी भरा लोटा हाथ से गिर गया या किसी ने पीछे से आवाज दे दी, तो कार्य में असफलता मिलेगी। मार्ग में एकाक्षी के दर्शन हो गए और दुर्भाग्य से वह ब्राह्मण हुआ तो समझिए ‘प्राण जाहिं बस संशय नाहीं।’
संस्कृति संस्कार से बनती है। विविध साधनाओं की सर्वोत्तम परिणति संस्कार है। साधना साधन के बिना पंगु है। साधन विवेक से प्राप्त होते हैं। विवेक का उद्गम है शिक्षा। ग्रामीण संस्कृति के अभिशाप माँ शारदा के प्रति विमुखता के परिणाम हैं। ग्रामीण-संस्कृति के मूल्यों में परिवर्तन के लिए ग्रामवासियों को शिक्षित करना होगा, उसे ज्ञान-प्राप्ति के सभी संभव साधन उपलब्ध कराने होंगे।
ग्रामीण जीवन में सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए जीवन जीने की जरूरतों को उपलब्ध कराना होगा। शुद्ध स्वच्छ पेय जल, ऋतु अनुकूल वस्त्र तथा पक्के मकान, पक्की सड़कें, यातायात के सुगम साधन तथा आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित औषधालय-अस्पताल उपलब्ध कराने होंगे। सभ्यता की ये उपलब्धियाँ सांस्कृतिक परिवर्तन की दर्पण बनेंगी।