भारत की राजधानी

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संकेत बिंदु–(1) राजधानी का अर्थ और विभिन्न कालों में राजधानी (2) दिल्ली राजधानी के रूप में (3) अंग्रेजों के काल में राजधानी (4) स्वतंत्र भारत की राजधानी (5) उपसंहार।

जिस नगर में राष्ट्र के केंद्रीय सरकार के मुख्य कार्यालय अवस्थित होते हैं और जहाँ से देश का सारा राज-काज चलता है, वह ‘राजधानी’ कहलाता है। मुख्य शासक या राजा का स्थायी निवास-नगर ‘राजधानी’ के नाम से पहचाना जाता है। भारत के शासन को चलाने का केंद्रीय नगर ‘भारत की राजधानी’ कहलाएगा।

रामायण काल में अयोध्या भारत की राजधानी रही तो महाभारत काल में पहले-हस्तिनापुर और बाद में इंद्रप्रस्थ (दिल्ली), बौद्धकाल में कपिलवस्तु तो जैनकाल में कुण्डग्राम। सम्राट् अशोक ने पाटलीपुत्र को राजधानी होने का गौरव प्रदान किया तो मुगल बादशाहों ने दिल्ली को बादशाहत बख्शी, किंतु कुछ मुगल सम्राटों ने आगरे को भी सल्तनत का केंद्र बनाया। अंग्रेजों ने शुरू में कलकत्ता को भारत की राजधानी माना, किंतु सन् 1911 से यह गौरव दिल्ली को प्रदान किया गया है। आज स्वतंत्र भारत की राजधानी दिल्ली ही है।

दिल्ली को ‘राजधानी’ बनने का गौरव सर्वप्रथम महाभारतकाल में प्राप्त हुआ। राजा युधिष्ठिर ने इस इंद्रप्रस्थ को शासनकेंद्र का प्रमुख नगर बनाया। उसके बाद चौहान राजाओं में पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। चौहानों के हाथ से हकूमत निकलकर अफगानों के हाथ चली गई। पहले अफगान बादशाह शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी ने भी दिल्ली को ही राजधानी माना।

गुलामवंश का राज्य भारत में आया। कुतुबुद्दीन ऐबक, अल्तमश, रजिया सुल्ताना. बलबन आदि इस वंश के बादशाह रहे। सबको दिल्ली ही रास आई। सबने दिल्ली को ही राजधानी का गौरव प्रदान किया।

गुलामवंश के बाद खिलजीवंश आया। अल्लाउद्दीन खिलजी, फिरोजशाह खिलजी, कुतुबुद्दीन खिलजी ने राज्य किया और शासन केंद्र दिल्ली ही रखा।

खिलजीवंश का उत्तराधिकार छीना तुगलकवंश ने, जिसमें गयासुद्दीन तुगलक, मोहम्मद बिन तुगलक, फीरोजशाह तुगलक ने भारत पर राज्य किया। इन्होंने भी अपनी राजधानी होने का गौरव दिल्ली को प्रदान किया।

मुगलों से भारत के शासन की बागडोर अंग्रेजों ने हथियाई। अंग्रेज व्यापारी के रूप में यहाँ आए थे। उन्होंने व्यापार के लिए कलकत्ता में ईस्ट इण्डिया कंपनी की स्थापना की थी। अतः जब धीरे-धीरे इस कंपनी ने शासन की बागडोर भी हथिया ली, तब कलकत्ता को ही राजधानी बना दिया। उसके बाद अंग्रेजी शासन में सन् 1778 से 1910 तक जितने भी गवर्नर जनरल तथा वायसराय आए, सभी ने ही कलकत्ता को भारत की राजधानी के रूप में अलंकृत किया। लार्ड हार्डिंग ने दिल्ली को सर्वप्रथम राजधानी का पद प्रदान किया। सन् 1914 में दिल्ली में ही उसका विधिवत् राज्याभिषेक हुआ।

पांडवों के इंद्रप्रस्थ से लेकर शाहजहाँ के शाहेख्वाब का स्वर्ग शाहजहाँनाबाद के रंगारंग रूप से गुजरती दिल्ली अंग्रेजों के रायसीना पर आकर टिक गई। ‘रायसीना’ बदलकर ‘नई दिल्ली’ कहलाया। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्र भारत की राजधानी बनी दिल्ली।

पांडवों की राजधानी से लेकर 1947 तक इस दिल्ली ने हजारों साल का सफर तय किया। कितने अत्याचार, अनाचार, रोमहर्षण जुल्म बरदाश्त किए, कितनी खुशियाँ लूटीं। इसके गली-मुहल्ले, दरो-दीवार, इमारत, गुम्बद और मीनार के सीनों पर आप पढ़ सकते हैं। गुजरे जमाने के अफसाने, यादों के झरोखों में झाँकती ये यादगारें दिल्ली के उजड़ने और बसने की पहचान करा देती हैं।

आज स्वतंत्र भारत की राजधानी दिल्ली है। शासन के तीनों प्रमुख अंग-विधि-निर्माण, न्यायपालिका तथा कार्य-पालिका दिल्ली में ही हैं। विधि-निर्माण संसद का कार्य है। न्याय पालिका के लिए सर्वोच्च न्यायालय है। कार्य पालिका के लगभग 30 प्रमुख मंत्रालय हैं।

‘राजधानी’ नाम की सार्थकता पूरी करते हैं राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य-न्यायाधीश तथा लोकसभा अध्यक्ष के निवास स्थान। अपने कार्यकाल में इन सबका स्थायी निवास दिल्ली ही होता है।

30 प्रमुख मंत्रालयों का उत्तरदायित्व जिन जनप्रतिनिधियों पर है, वे हैं- केंद्रीय मंत्री, राज्य मंत्री तथा उपमंत्री। शासन व्यवस्था की दृष्टि से उत्तरदायी हैं निजी सचिव, सहायक सचिव, अपर सचिव, उप सचिव तथा तत्संबंधी अधिकारीगण। ये सभी मंत्री तथा सचिव दिल्ली में ही स्थायी रूप से रहते हैं। इस प्रकार दिल्ली के भारत की राजधानी होने की सार्थकता सिद्ध करते हैं।

वर्तमान युग में किसी भी राष्ट्र की राजधानी विश्व की कूटनीति से संबद्ध होती है। दिल्ली भारत की राजधानी होने के कारण विश्व कूटनीति का एक केंद्र है। 15 राष्ट्रों के राजदूत तथा 18 राष्ट्रों के उच्चायुक्त दिल्ली में रहकर अपने राष्ट्रों का राजनीतिक कार्य करके अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं।

शासन व्यवस्था के विस्तार के साथ दिल्ली का विस्तार अवश्यम्भावी था। दिल्ली ने अपनी सीमा में बहुत तेजी से विविध रूपेण विस्तार किया; एक-एक इंच भूमि का उपयोग किया। गली, कूँचे, मोहल्लों से निकलकर दिल्ली नगरों, ‘विहारों’ में फैली। साधारण मकानों से हटकर आलीशान कोठियों और गगनचुंबी ‘टावरों’ एवं भूमिगत बाजारों में प्रतिष्ठित हुई। ऊबड़-खाबड़ रास्तों को छोड़कर यातायात के अनुकूल सड़कों, पुलों और फ्लाइ ओवरों में बदली। कभी मिट्टी के तेल के दीपक दिल्ली की अंधेरी रात को रोशन करने का दम भरते थे, अब वहाँ विद्युत् के तेल बल्ब और ट्यूब सूर्य के प्रकाश को भी नीचा दिखाते हैं। दिल्ली में खेल के मैदान और स्टेडियम अपनी संपन्नता पर गर्व करते हैं।

भारत की राजधानी है दिल्ली। राजधानी के कारण है यह एक महानगर महानगर की ‘बृहत्ता’ बढ़ रही है। दिल्ली अपनी सीमाओं में समा नहीं पा रही। दिल्ली, उसका निखरता सौंदर्य, अंगड़ाई लेता यौवन तथा मस्तीभरी जवानी गर्व से राजधानी होने की उद्घोषणा करते हैं।

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