संकेत बिंदु-(1) राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक (2) काले धन के विभिन्न रूप (3) भ्रष्ट नेताओं, अपराधियों और व्यवसायियों द्वारा अवैध रूप से कमाया गया धन (4) अवैधानिक मानसिकता से काला धन (5) उपसंहार।
राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक है, काला धन। अर्थव्यवस्था के राजपथ पर बेरोकटोक बढ़ती अंतहीन विकृति है, काला धन। अर्थव्यवस्था को संकटग्रस्त बनाता है, काला धन। राष्ट्र की संपूर्ण संस्कृति और सभ्यता की कर्मनाशा है, काला धन।
राजनीति में काला धन उज्ज्वल वस्त्रधारी राजनेता की ताकत की पहचान है। व्यावसायिक क्षेत्र में काला धन व्यापारी की समृद्धि का द्योतक है। नौकरशाही और अपराध जगत में काला धन उनकी संपन्नता और शक्ति का प्रतीक है।
काला धन क्या है? काली आय से सृजित धन, काला धन है। हवाला, तस्करी, वेश्यावृति, रिश्वत जैसे अवैध धंधों से प्राप्त धन, काला धन है। आय कर, बिक्री कर और उत्पादन कर से छिपा कर रखा गया धन, काला धन है।
सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में लगभग तीन करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके पास पर्याप्त काला धन है। इनमें लगभग एक करोड़ लोग ऐसे हैं जो काले धन में आकंठ डूबे हुए हैं अर्थात् भारत की एक प्रतिशत आबादी के पास ही जमा है, अधिकांश काला धन।
उद्योगपतियों और राजनीतिकों के संबंध जब गहरे होने लगे तो उद्योग जगत में ‘काला धन’ बनाने की प्रवृत्ति जोर पकड़ने लगी। उद्योग जगत विभिन्न राजनीतिज्ञों को आर्थिक सहायता देने लगा और बदले में तमाम वैध-अवैध तरीके से कमाई करने को अपना अधिकार समझने लगा। मैं एक उदाहरण दे रहा हूँ, नेहरू मंत्रिमंडल में रफी अहमद किदवई डाक तार विभाग के मंत्री बने तो उन्होंने ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार के लिए चंदा जुटाना शुरू कर दिया। इस पर आपनि प्रकट करते हुए पटेल ने नेहरू जी को पत्र भी लिखा, लेकिन नेहरू जी ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। फिर धीरे-धीरे चंदे का रूप बदलने लगा। चुनावी खर्च, पार्टी फंड आदि में उद्योगपतियों ने जो धन देना शुरू किया उसकी कीमत वह कई अन्य तरीकों से वसूलने लगे।
‘राष्ट्रीय सहारा’ के हस्तक्षेप परिशिष्ट (26.2.2000) के संपादक की धारणा है कि-
“काले धन का अर्थशास्त्र ऐसा है कि वैध और अवैध, दोनों ही धंधों के जरिये काला धन पैदा होता है। जहाँ शेयर बाजार तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र वैध की श्रेणी में आते हैं वहीं हवाला, तस्करी, वेश्यावृत्ति जैसे अनेक धंधे अवैध माने गए हैं। अवैध धंधों के जरिये पैदा होने वाला काला धन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
पूरे विश्व में करीब 35 लाख करोड़ रुपये की नशीली दवाओं का व्यापार होता है जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग दोगुना है। एक अनुमान के मुताबिक नशीली दवाओं की तस्करी के जरिये 1990 में हमारे देश के तस्करों ने करीब 20 हजार करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया।
भ्रष्ट राजनेताओं, व्यवसायियों, नौकरशाहों और अपराधियों की चौकड़ी ही काले धन का मूल स्रोत है। अनुमान है कि इस चौकड़ी के बेताज बादशाहों ने हवाला के जरिये 150 अरब डॉलर से भी ज्यादा धनराशि विदेशों में जमा कर रखी है। इस राशि पर उन्हें प्रति दर्ष कम से कम 6 अरब डॉलर ब्याज मिलता है।”
सरकार की नियत यदि देश के काले धन को काबू करना हो तो वह छह मास में देश में ऐसा आतंकित वातावरण निर्माण कर सकती है कि काले धन के चारों स्रोत बंद हो जाएँगे। जैसे-मकान की रजिस्ट्री लगभग 75 प्रतिशत कम मूल्य की होती है। रजिस्ट्री उपरांत ऐसे मकानों का रजिस्ट्री मूल्य चुकाकर सरकार जब्त कर ले तो करोड़ों रुपए के काले धन का स्रोत सूख जाएगा। आयकर तथा बिक्रीकर विभाग यदि व्यापारियों और उद्योगपतियों से ईमानदारी से आयकर और बिक्रीकर वसूल करें तो काले धन के दानव की कमर टूट सकती है। नौकरशाही की रिश्वत प्रवृति पर लौह-प्रहार किया जाए तो काले धन की कर्मनाशा उज्ज्वल धन की गंगा में बदल सकती है।
भारत आध्यात्मिक देश है। पहले यहाँ भगवान के भय से जनता कानून का पालन करती थी और नैतिकता को गले लगाती थी। गलत काम का लेखा ‘ऊपर’ देना होगा, की मानसिकता ने अपराध जगत से भारतवासियों को बचा रखा था। धन ने जब नैतिकता की आँखों को विमोहित किया तो आदमी के मन से ‘ऊपर’ का भय निकल गया। संस्कृति पर भौतिक सभ्यता के आक्रमण ने सांस्कृतिक मूल्यों का अपहरण कर लिया। फलतः भारत जैसे आध्यात्मिक देश में ही काला धन फलने-फूलने लगा। ज्यों-ज्यों भगवान का भय कम होता जाएगा, त्यों-त्यों काला धन भारत में बलवती होगा।