संकेत बिंदु-(1) मिलावट प्राणघातक, देशद्रोही और अमानवीय (2) कानून के शिकंजे से दूर (3) स्वास्थ्य के लिए हानिकारक (4) स्वामी रामतीर्थ के जीवन की घटना (5) उपसंहार।
वर्तमान युग अभाव का युग है। जीवनोपयोगी पदार्थों की दृष्टि से कोई भी वस्तु बाजार से खरीदने जाइए। पहले तो मिलेगी ही नहीं, यदि मिल भी जाए तो बहुत ऊँचे दामों में। अभाव और ऊँचे मूल्य से व्यापारी में अधिक लाभ कमाने की सहज इच्छा जागृत हुई। अधिक लाभ की इच्छा ने वस्तुओं में मिलावट के प्राणघातक, देशद्रोही और अमानवीय कृत्य को जन्म दिया।
यह मिलावट औषधियों में तो और भी प्राणघातक सिद्ध होती है। दिल्ली में उपभोक्ताओं की शिकायत पर एक सर्वेक्षण किया गया। छापा मार कर सैरिडॉन की टिकियाँ पकड़ी गईं। टिकियों पर सैरिडॉन के स्थान पर ‘सारोडॉन’ लिखा हुआ था। डॉक्टरों का मत है कि नकली ‘सारोडॉन’ सिर दर्द तो दूर नहीं करेगी हाँ, पेट की गड़बड़ अवश्य पैदा कर सकती है। इसी प्रकार ‘कोडोपायरीन’ के स्थान पर ‘कोडीपीन’ की टिकियाँ मिलीं, जिनमें एस्पिरिन और चाक पाउडर का मिश्रण था। चाक से किडनी (गुर्दे) में पत्थर बन जाता है और एस्पिरिन हृदय रोग उत्पन्न कर सकती है। एस्प्रो की नकली टिकियाँ जो देखने में असली की तरह दिखाई देती हैं, एस्पिरिन मात्र का संग्रह है, जो ‘अल्परक्तचाप’ का शिकार बना सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी कुछ गोलियाँ एक साथ खाने से गोली खाने वाला स्वस्थ मानव परलोक पहुँच सकता है।
हर मास समाचार-पत्रों के शीर्षक होते हैं-”अमुक नगर में विषैली शराब पीने से 20 आदमी मर गए।” कहीं 25 आदमियों के मरने का समाचार छपता है। विषैली शराब मिलावट का परिणाम है। फिर भी मजाल है कि शराब बेचने वाले पकड़े जाएँ। पकड़े भी गए तो उनकी पहुँच कानून के लंबे हाथों को भी मरोड़ देती है।
नकली ग्लूकोज-इंजेक्शन से रोगियों की मृत्यु हो जाती है। कानपुर के लाला लाजपतराय अस्पताल के 22 रोगी नरक लोक में नकली ग्लूकोज-निर्माता को कोसते होंगे। पंजाब के मोगा शहर में 50 बच्चों की मृत्यु हो गई। पता चला कि उनकी दवाई में चूहे मारने वाली दवा स्टायक्लीन का प्रयोग किया गया था।
खाने की चीजों में मिलावट ने तो भारतवासियों का स्वास्थ्य चौपट ही कर रखा है। चावलों में सफेद पत्थर, काली मिर्चों में पपीते के बीज और पीसे धनिये में सूखी लीद मिलाना तो आम बात है। देसी घी में वनस्पति तेल मिलाकर ‘विशुद्ध’ बनाया जाता है। वनस्पति में तेल मिलाकर पवित्र किया जाता है। सड़े अचार में उत्पन्न कीटाणुओं को उसी में आत्मसात् कर दिया जाता है। सरसों का तेल भी शुद्ध नहीं रहा। शरीर में मलिए-कुछ क्षणों में चिकनाहट गायब। खाने से मृत्यु का आह्वान। बादाम रोगन वास्तविक बादाम का प्रतिफलन नहीं, अपितु सेंट का कमाल है।
मिलावट का दुष्परिणाम देखिए-आँख का अंजन आँख फोड़ रहा है और दंत मंजन दाँतों की जड़ों को खोद रहा है। नकली बाम सिर-दर्द तो मिटाता नहीं, बदन दर्द पैदा कर देता है।
शुद्ध ऊन के वस्त्र में नाईलॉन का मिश्रण होगा। शुद्ध नाईलॉन में नकली रेशमी धागे मिले होंगे। रेशम में कितनी शुद्धता है-कौन जाने?
सीमेंट में रेत और बालू रेत में मिट्टी की मिलावट भवन की नींव को कमजोर कर देती है। फलतः बड़े-बड़े गगनचुंबी भवन अपनी आयु से पूर्व ही पृथ्वी से साक्षात्कार करने को उतावले दिखलाई पड़ते हैं।
कलियुग के बारे में विष्णु पुराण, भागवत और रामचरितमानस के कवि मनीषियों ने जो लिखा है, उसमें वे संभवतः यह लिखना भूल गए लगते हैं कि, “हर पाप कलियुग में अपनी मर्यादा में रहेगा, किंतु मिलावट के पाप पर परमेश्वर भी काबू नहीं पा सकेगा। “
स्वामी रामतीर्थ के जीवन की एक घटना है। उन्होंने शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए दूध खरीदा। दूध के रंग को देखकर स्वामी जी को शंका हुई। आचमन किया तो स्पष्ट हो गया कि दूध में जल का मिश्रण है। स्वामी जी ने पहले तो एकटक दूध वाले को देखा और फिर रोते हुए अपना सिर पीटने लगे। स्वामी जी का रुदन सुनकर अनेक शिष्य आ गए। शिष्यों ने स्वामी जी से उनके रुदन का कारण जानना चाहा, तो स्वामी जी ने कहा, “जो कुछ सामने है, उसकी शिकायत किससे करूँ? सरकार के आँख कान होते नहीं। ग्वाले के सिर पर लोभ का भूत सवार है और शिवजी पहले ही पत्थर के हो गए। इसलिए अपना सिर पीटने के सिवाय चारा ही क्या है?” शिष्य समूह में एक भक्त जो न्यायाधीश भी थे, खड़े थे। उन्होंने क्रोध में ग्वाले को दंड देने की बात कही। इस पर स्वामी रामतीर्थ ने शिवलिंग बगल में दबाया और यह कहते हुए वहाँ से चल दिए, “पहले मुझे इस ग्वाले से कम अपराधी को खोज लेने दो, फिर मैं दंड के बारे में सोचूँगा।”
मिलावट धन के लोभी व्यापारियों की मानसिक पतन की पराकाष्ठा है। उससे छुटकारा पाने के लिए जनता जनार्दन को सचेत रहना होगा। लोकप्रियता की दुहाई देने वाली सरकार को इस जघन्य अपराध से जनता को मुक्ति दिलानी होगी। मिलावट करने वाले संस्थानों के मालिकों को आजन्म कारावास और रिश्वत लेकर उसके जुल्म को कम करने या करवाने में सहायक अधिकारी को मृत्युदंड देना होगा, तभी इस पाप से मुक्ति संभव है, वरना अकबर इलाहाबादी के शब्दों में इस स्वर्णिम भारत की लोकतन्त्री सरकार के मिलावटी दृष्टिकोण पर कहने को विवश होना पड़ेगा-
दुनिया ही अब दुश्मन है, कायम न दीन है।
जर की इस तलब में, शेख भी कौड़ी का तीन है॥