स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी का मोह

bharat men angreji ke prati pyar kii bhavana par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) आंग्ल-संस्कृति के प्रति आकर्षण का परिचायक (2) विश्व की बड़ी जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली (3) अंग्रेजी मोह के प्रमुख कारण (4) जीविका अर्जन के लिए अनिवार्य (5) उपसंहार।

स्वतंत्र भारत में अंग्रेजी का मोह आंग्ल सभ्यता तथा संस्कृति के प्रति आकर्षण का परिचायक है। जीवन और जगत में सफलता की कुंजी है। व्यक्तित्व की महत्ता का द्योतक है। अहं का वर्धक है। गर्व का कारण है। गौरव का प्रतीक है। ज्ञान-विज्ञान के द्वार पर दस्तक है और है विश्व से संपर्क का एकमात्र विश्वसनीय माध्यम।

अंग्रेजी भाषा का ज्ञान विशाल क्षेत्र का वातायन है। अंग्रेजी साहित्य अत्यंत समृद्ध है। अंग्रेजी लेखकों का चिंतन बहुत प्रखर है। नये-नए विषयों में अन्वेषण की प्रवृत्ति उनका स्वभाव है। फलत: उनके ज्ञान-विज्ञान के अपार कोश, साहित्य की अमूल्य कृतियाँ, कला की अनुपम उपलब्धियाँ विश्व मानव के ज्ञान प्रदाता हैं। आज का मानव अंग्रेजी ज्ञान के बिना अधूरा है, अपंग है। इसलिए अंग्रेजी के प्रति मोह स्वाभाविक है।

अंग्रेजी भाषा विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली भाषा है। यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रमुख भाषा है। अतः विश्व के देशों से संपर्क और संबंध का माध्यम है। आज कोई भी देश विश्व से संबंध विच्छेद कर जीवित नहीं रह सकता। अतः विश्व संबंधों के लिए अंग्रेजी के प्रति मोह स्वाभाविक है।

भारत में अंग्रेजी-मोह के चार प्रमुख कारण बने। एक, देश की राजकीय कार्य-व्यवस्था अंग्रेजी में संचालित थी। अतः अंग्रेजी मानसिकता का वर्चस्व था। वे दैनिक व्यवहार में हिंदी को अपनाने के लिए तैयार न थे। सरकारी कार्यालयों के बाबू चाहे वे बड़े-बड़े अधिकारी हों या मध्यम व निम्न श्रेणी के लिपिक अभ्यस्त भाषा को छोड़ने के लिए तत्पर न थे।

दूसरे, देश-संचालन के विशेष पदों और पद्धतियों पर अहिंदी भाषी अधिकारियों का अधिकार था। उन्हें हिंदी तथा उत्तर भारतीय जीवन-पद्धति से घृणा थी। अतः उन्होंने छाती ठोककर हिंदी से लोहा लिया, जिसमें वे सफल भी हो गए।

तीसरे, राजनीतिज्ञों को हिंदी-संचालन में उत्तर-दक्षिण का बँटवारा दिखाई देने लगा। उन्होंने ‘हिंदी-लादने’ जैसी गालियाँ देना शुरू कर दिया। उन्हें हिंदी में सांप्रदायिकता की बू आने लगी। इस मानसिकता ने हिंदी के समर्थकों को अंग्रेजी के गुणगान गाने को बाध्य किया। अपने बच्चों को अर्थात् आगे आने वाली पीढ़ी को कॉन्वेण्ट की दीक्षा देकर उनमें जन्म से ही अंग्रेजी के प्रति मोह उत्पन्न कर दिया।

चौथे, रही-सही कसर पूरी कर दी लोकतंत्र के देवता पंडित जवाहरलाल नेहरू ने। पंडित नेहरू ने मृत्यु से पूर्व अंग्रेजी के सिंहासन की नींव सुदृढ़ कर दी। अंग्रेजी को यह ‘पावर’ (शक्ति) दे दी है कि भारत का एक भी राज्य जब तक हिंदी को नहीं चाहेगा, वह राज्यभाषा नहीं बन सकती। लोकतंत्र में बहुमत के सिद्धांत की सरेआम हत्या कर दी गई।

पापी पेट के लिए जीविका चाहिए। जीविका अर्जित करनी है तो अंग्रेजी का ज्ञान अनिवार्य रूप से चाहिए। राज-काज की भाषा अंग्रेजी है। अतः नौकरी के लिए इसका ज्ञान अनिवार्य है। व्यापारवर्धन करना है, अंग्रेजी जरूर चाहिए। नौकरी में तरक्की करनी है, अंग्रेजी चाहिए। अफसर से काम निकालना है, अंग्रेजी बोलिए, लिखिए। आई.सी.ए., पी.सी.ए. पी.एस.सी. की प्रतियोगिता में बैठना है तो अंग्रेजी अवश्य आनी चाहिए। संघलोक सेवा आयोग (U.P.S.C.) के प्रश्न-पत्र और साक्षात्कार का माध्यम केवल मात्र अंग्रेजी जो है। अतः अंग्रेजी भारत में उदरपूर्ति का साधन बनी, उन्नति का माध्यम बनी। मोह का कारण बनी।

अंग्रेजी का मोह नस-नस में व्याप्त हुआ, रग-रग में संचारित हुआ। अंग्रेजी शैली के नृत्य-संगीत तथा यौन-संबंधों के पंखों पर तैरते हुए आनंद लोक दिखाई देने लगा क्लब-सभ्यता में परमानंद की प्राप्ति जान पड़ने लगी। फलतः अंग्रेजी का मोह सेक्स (काम-वासना) असंतुष्टि का ज्वार-भाटा बनकर छा गया और जो देश की तरुणाई को ‘अज्ञान, भ्रान्ति तथा दुख के सागर में डूबो रहा है।

राजकीय स्तर पर अंग्रेजी का प्रचार परोक्ष रूप में जनता को मोहग्रस्त कर रहा है। अंग्रेजी सीखने, बोलचाल की भाषा बनाने तथा जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित कर रहा है। दूरदर्शन के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम, ज्ञान-विज्ञान की ज्ञानवर्धक वार्त्ताओं, भारत और विश्व की आश्चर्यजनक उपलब्धियों का प्रसारण अंग्रेजी में ही होता है।

इतना ही नहीं, एपीसोड हिंदी में होगा, किंतु उसके कलाकार, निर्माता और प्रबंधकों की नामावली अंग्रेजी में होगी। हिंदी समाचारों के पहले बजने वाली टून का पहला भाग News दिखाकर दूसरे भाग का अंत ‘समाचार’ से करेंगे। मानों वे हिंदी भाषियों को बता रहे हैं कि News प्रस्तुत है, जिसे हिंदी में समाचार कहते हैं। दूरदर्शन पर अभिनेता-अभिनेत्रियों से मुलाकात में ये लोग अंग्रेजी न बोलें तो उनकी छवि को बट्टा लगता है।

अंग्रेजी बोलने वालों में ‘अहम्’ का विकास होता है। उनके व्यक्तित्व में प्रभावोत्पादकता  आती है। गर्व उनके चेहरे से टपकता है। हीनता उन्हें छू नहीं पाती। वह ‘इन्फ्योरिटी कम्प्लेक्स’ (आत्महीनता ग्रंथि) का शिकार नहीं होते। नौकरी और उच्चतर पद पाने की सुविधा और आर्थिक साधनों पर अधिकार की संभावना में जीवन का कैरियर (भविष्य) नजर आता है। तब फिर अंग्रेजी-मोह स्वतंत्र भारत में पल्लवित-पुष्पित हो, यह सहज ही है, स्वाभाविक ही है।

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