भारत में हरित क्रांति

bharat men harit kranti par ek shandaar ninadh

संकेत बिंदु-(1) हरित क्रांति का उद्देश्य (2) कृषक जीवन में चेतना (3) हरित क्रांति के मूलाधार (4) कृषि योग्य भूमि को पानी (5) उपसंहार।

कृषि उत्पादनों में वृद्धि ‘हरित क्रांति’ का उद्देश्य है। उन्नत रीति से कृषि करने के वैज्ञानिक उपायों की खोज और प्रयोग हरित क्रांति के साधन हैं। कृषि उत्पादनों द्वारा देश को स्वावलंबी बनाकर विदेशी मुद्रा की बचत करना हरित क्रांति की आकांक्षा है। सदियों से गरीब, रूढ़िवादी और हीन भावना से ग्रस्त किसान की आर्थिक और सामाजिक उन्नति करना, इस क्रांति की परोक्ष मंगलमयी भावना है। अप्रयुक्त कृषि भूमि को कृषि-मजदूरों में बाँटकर खेती करवाना, इस क्रांति की एक योजना है।

राष्ट्र को ‘हरित क्रांति’ का नारा देने और उसे योजनाबद्ध रूप से कार्यान्वित करने का श्रेय बाबू जगजीवनराम को है। 1967-68 में वे श्रीमती इंदिरा गाँधी की सरकार में कृषि मंत्री थे। तभी उन्होंने कृषि के नये-नए प्रयोगों द्वारा ‘हरित क्रांति’ लाने का बिगुल बजाया था।

‘हरित क्रांति’ के शंखनाद से कृषक जीवन में चेतना आई। कृषि जीवन ने करवट बदली। 1968 में ही इसके सुलक्षण दिखाई देने लगे। 1969, 70, 71 में तो ‘हरित क्रांति’ ने राष्ट्र को हरा-भरा बना दिया। भारत-पाक युद्ध (1971) के कारण एक लाख पाकिस्तानी युद्ध-बंदी और लगभग एक करोड़ बांगला शरणार्थी भारत में आए। इससे ‘हरित क्रांति’ योजना अकस्मात् चौपट हो गई। पुनः विदेशों से अन्न आयात करना पड़ा। 1975 की आपत्कालीनस्थिति ने हरित क्रांति को पुनः सहयोग और संबल दिया। 1978-79 में देश में 12 करोड़ 50 लाख टन और 1980 में 14 करोड़ 20 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ। वर्ष 1983-84 में खाद्यान्न उत्पादन 15.06 करोड़ टन रहा, जिसने पिछले सब कीर्तिमान तोड़ दिये। सन् 2000 तक पहुँचते-पहुँचते खाद्यान्न का उत्पादन 7.4 करोड़ टन गेहूँ तथा 8.8 करोड़ टन धान सहित 20.6 करोड़ टन हो गया है। 1979 के सूखे ने ‘हरित-क्रांति’ की कब्र खोदने का प्रयास तो किया, किंतु खाद्यान्न के स्थायी भंडार ने दैवी विपत्ति को हँसकर टाल दिया। आज खाद्यान्न की यह स्थिति है कि पाकिस्तान, बंगला देश, वियतनाम, अफगानिस्तान, इण्डोनेशिया और मारीशस आदि राष्ट्रों को गेहूँ, गेहूँ का आटा तथा चावल निर्यात करके भारत विदेशी मुद्रा भी अर्जित कर रहा है। सितंबर 2000 से तो गेहूँ का स्टॉक सरकारी गोदामों में इतना भरा हुआ है कि उसे सड़ने से बचाने के लिए गरीब जनता को मुफ्त बाँटने जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई है।

हरित क्रांति के सात मूलाधार हैं-

(1) नयी तकनीक,

(2) उच्चकोटि के बीज,

(3) खाद,

(4) कीटनाशक दवाइयाँ,

(5) कृषि उपकरण,

(6) सिंचाई,

(7) ऋण।

ये सातों मूलाधार परस्पर संबद्ध हैं, परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं। उदाहरणतः यदि अच्छे किस्म के बीज पर्याप्त मात्रा में न मिलें, तो अन्य घटकों का उपयोग बेकार है। यदि खाद सही समय पर न मिल पाई तो उपज की संभावना कम हो जाएगी।

कृषि की नयी तकनीक का विकास निरंतर अग्रसर है। फलतः सघन खेती और अनेक फसल उठाने का परिणाम सामने है। 1993-14 में 62.20 लाख क्विंटल उन्नत तथा प्रमाणित बीज किसानों को वितरित किए गए, वहाँ 1998-99 में अनुमानतः 83 लाख क्विंटल बीज बाँटे गए।

राष्ट्रीय बीज निगम नई-नई किस्मों के बीज तैयार कर सस्ते मूल्य में उन्नत किस्म के बीज प्रदान कर रहा है। उन्नत बीजों का स्टॉक प्रतिवर्ष बढ़ रहा है, किंतु सरकार इससे संतुष्ट नहीं।

रासायनिक खाद की कृपा से किसान वर्ष में 2 की बजाय 3-4 फसल पैदा करने लगा है। देश में रासायनिक खाद के कारखानों का जाल-सा बिछ गया है। पलतः सन् 1997-98 में 161.8 लाख टन उर्वरक काम में लाए गए थे जबकि 1998-99 के दौरान 167 लाख टन रासायनिक उर्वरकों की खपत होने का अनुमान है। रासायनिक खाद का उत्पादन अपनी चरम सीमा पर है। खेती को कीड़ों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाओं का उत्पादन खूब समृद्धि पर है।

भारत की कृषि भूमि वरुण देवता की कृण पर फलती थी और कोप पर सूखती थी। वैज्ञानिक साधनों ने वरुण देवता पर आश्रित किसान के लिए विकल्प प्रस्तुत किया। जिन स्थानों पर सिंचाई की व्यवस्था नहीं थी, वहाँ नहरों से पानी पहुँचाया। जहाँ नहरें संभव नहीं थीं, वहाँ नलकूपों की व्यवस्था की गई। भूमिगत जल की खोज के लिए भू-सर्वेक्षण विभाग का ‘केंद्रीयय भूमिगत जल निगम’ कार्यरत है। परिणामतः कृषि योग्य भूमि को समय पर पानी मिलने लगा है।

हरित क्रांति को सफल बनाने के लिए किसान को बहुत सस्ते सूद पर ऋण देने की व्यवस्था की गई। बढ़िया से बढ़िया बीज उधार मिलने लगा। ट्यूबवैल लगाने के लिए कर्ज की सुविधा मिली, ट्रैक्टर खरीदने के लिए ऋण मिलने लगा।

‘हरित क्रांति’ के स्वप्न को साकार करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय खोले गए। कृषि विज्ञान पाठ्यक्रम का विषय बना। अनेक प्रयोग और परीक्षण होने लगे। सूखा-पीड़ित जिलों के लिए चारा उगाने की नई तकनीक की खोज का श्रेय इन्हीं कृषि पंडितों को है। आकाशवाणी और दूरदर्शन जैसे प्रचार माध्यमों से प्रतिदिन कृषक्र-भाइयों के लिए खेत, खेती और कृषि-जीवन पर वार्त्ताएँ प्रसारित की जाती हैं। साथ ही अनाज के भंडारण के लिए देश में वैज्ञानिक भंडारों का जाल बिछाया जा रहा है।

हरित क्रांति के अंतर्गत भूमि सुधार पर भी विशेष बल दिया गया। भूमि सुधार की राष्ट्रीय नीति का उद्देश्य व्यापक परिधि में कृषकों को भूमि के स्वामित्व के अधिकार देना, कृषि को सुरक्षा प्रदान करना और लगान निर्धारित करना है। अब तक लगभग कई लाख हेक्टेयर फालतू भूमि कृषकों में बाँटी जा चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में जिन लोगों के पास अपनी जमीन नहीं है, उन्हें आवास के लिए भूमि बाँटने का काम तेजी से चल रहा है।

सच्चाई तो यह है कि हरित क्रांति का उद्घोष देश को खाद्यान्नों से भरपूर करने की कल्याणकारी योजना है। कृषि भूमि, कृषि और कृषक के विकास और उन्नति की मंगलमय कार्य-शैली है।

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