संकेत बिंदु-(1) नशाबंदी का अर्थ (2) मादक द्रव्यों के प्रकार व दुष्प्रभाव (3) नशे के अनेक दुर्गुण (4) नशे पर प्रतिबंध लगाना हल नहीं। (5) उपसंहार।
वे पदार्थ जिनके सेवन से मानसिक विकृति उत्पन्न होती है, नशीले या मादक द्रव्य हैं। नशीली वस्तुओं पर प्रतिबंध या इनका व्यवस्थित प्रयोग नशाबंदी है। किसी प्रकार के अधिकार, प्रवृत्ति, बल आदि मनोविकार की अधिकता, तीव्रता या प्रबलता के कारण उत्पन्न होने वाली अनियन्त्रित या असंतुलित मानसिक अवस्था नशा (मद) है। जैसे-जवानी का नशा, दौलत का नशा या मोहब्बत का नशा। इनको व्यस्थित रूप देना नशाबंदी हैं।
मादक द्रव्य कौन-से हैं, जिनसे मानसिक विकृति उत्पन्न होती है? वे पदार्थ हैं-शराब, अफीम, गाँजा, भाँग, चरस, ताड़ी, कोकीन आदि। कुछ स्वास्थ्य-विशेषज्ञ तम्बाकू, चाय और बीड़ी-सिगरेट को भी इस सूची में सम्मिलित करते हैं। प्राचीन काल में आसव तथा सोमरस को भी नशा मानते थे। तांत्रिक अनुष्ठान में ‘अमृत को भी नशा मानते थे। कारण ‘तांत्रिक अनुष्ठान में जो वारुणी है, वह भी इसी अमृत की प्रतीक है। ‘ (हिंदी साहित्य कोश : खंड 1, पृष्ठ 54)। वर्तमान समय में भारत में नशाबंदी का तात्पर्य शराब और ड्रगस् पर प्रतिबंध या उसके व्यवस्थित प्रयोग से है। क्योंकि ये पदार्थ अत्यधिक नशा देने वाले हैं।
‘अति’ सदा विनाशकारी होती है। जब मदिरा का अति प्रयोग हुआ, ‘लत’ पड़ गई, हुड़स तंग करने लगी तो मदिरा ने विष बनकर तन-मन को खोखला कर दिया। आँतों को सुखा दिया, ‘किडनी’ (गुर्दे) और ‘लिवर को दुर्बल और असहाय कर दिया। परिणामतः अनेक बीमारियाँ बिना माँगे ही शरीर से चिपट गईं। ड्रगस् ने तो शरीर की हाजमे की शक्ति को ही रौंद डाला और उसके अभाव में पेट-पीड़ा का असाध्य रोग दे दिया, जो व्यक्ति को विह्वल कर देता है।
स्खलन चेतना के कौशल का, मूल जिसे कहते हैं।
एक बिंदु जिसमें विषाद के, नद उमड़े रहते हैं॥
-प्रसाद
नशा करने या मद्यपान करने के अनेक दुर्गुण हैं। नशे में धुत होकर नशेड़ी अपना होश खो बैठता है। विवेक खो बैठता है। बच्चों को पीटता है। पत्नी की दुर्दशा करता है। लड़खड़ाते चरणों से मार्ग तय करता है। ऊल-जलूल बकता है। कोई ड्राईवर शराब पीकर जब गाड़ी चलाता है तो दूसरों की जान के लिए खतरनाक सिद्ध होता है। परिणामत: लाखों घर उजड़ रहे हैं, बरबाद हो रहे हैं। मिल्टन के शब्दों में, “संसार की सारी सेनाएँ मिलकर इतने मानवों और इतनी संपत्ति को नष्ट नहीं करतीं, जितनी शराब पीने की आदत। वाल्मीकि ने मद्यपान की बुराई करते हुए कहा है-
“पानादर्थश्च धर्मश्च कामश्च परिहीयते।” अर्थात् मद्य पीने से अर्थ, धर्म और काम, तीनों नष्ट हो जाते हैं।’
दीर्घनिकाय’ का वचन है, “मदिरा तत्काल धन की हानि करती है, कलह को बढ़ाती है, रोगों का घर है, अपयश की जननी है, लज्जा का नाश करती है और बुद्धि को दुर्बल बनाती है।”
‘जहाँ सौ में से अस्सी आदमी भूखों मरते हों वहाँ दारू पीना गरीबों का रक्त पीने के बराबर है।’
-मुंशी प्रेमचंद
“शराब भी क्षय जैसा एक रोग है। जिसका दामन पकड़ती हैं, उसे समाप्त करके ही छोड़ती है।”
-भगवतीप्रसाद वाजपेयी
“मदिरा का उपभोग तो स्वयं को भुलाने के लिए है, स्मरण करने के लिए नहीं।”-महादेवी वर्मा
अकबर इलाहाबादी कहते हैं कि इस अंगूर की बेटी ने (शराब ने) इतने जुल्म ढाएँ हैं, शुक्र है कि उसका बेटा न था-
उसकी बेटी ने उठा रक्खी है दुनिया सर पर।
खैरियत गुजरी कि अंगूर के बेटा न हुआ।
जो वस्तु खुलेआम नहीं बिकती, वह काले बाजार की चारण में चली जाती है। काला बाजार अपराधवृत्ति का जनक है, पोषक है। अच्छी शराब मिलनी बंद हो जाए, तो घर-घर में शराब की भट्टियाँ लगेंगी। देशी ठर्रा बिकेगा। ‘जीभ चोंच जरि जन्य’ के अनुसार घटिया शराब से लोग बिन परिमट परलोक गमन करने लगेंगे; जो राष्ट्र के लिए पोर अनर्थ होगा।
इसलिए नशे पर प्रतिबंध लगाना श्रेयस्कर नहीं। दूसरे, इससे राजस्व की हानि होगी। तीसरे, औषध के रूप में, शीत काल में सेना के लिए शराब का अपना उपयोग है। अतः इसके व्यवस्थित उपयोग पर बल देना चाहिए।
गुजरात, आंध्र, मीजोरम और हरियाणा राज्य सरकारों ने पूर्ण नशाबंदी करके देख लिया। करोड़ों रुपए राजस्व की हानि तो हुई ही शराब की तस्करी का धंधा जोरों से चल पड़ा। नकली और जहरीली शराब कुटीर उद्योग की तरह पनपने लगी। दूसरी ओर, डिस्टलरियाँ और ब्रुआरियाँ बंद होने से इस कारोबार में लगे हजारों लोग बेरोजगार हो गए। पहले ही इन प्रांतों में बेरोजगारी थी। पूर्ण नशाबंदी ने बेरोजगारों की संख्या और बढ़ा दी। आर्थिक कमर टूटते देख अंततः इन सरकारों ने पूर्ण नशाबंदी आदेश को वापिस ले लिया। सुरालयों की संख्या कम करके, देसी भट्टियों को जड़मूल से नष्ट करके, सार्वजनिक रूप में शराब पीने पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाकर इसके दुरुपयोग को रोका जा सकता है, इसे हतोत्साहित किया जा सकता है।