विश्व शांति और भारत

BHarat uar vishwashanti par ek hindi nibandh

संकेत बिंदु-(1) संसार की समृद्धि और प्रगति का सूचक (2) विश्व शांति का प्रबल समर्थक (3) हमारे पड़ोसी देश (4) भारत विश्व के अनेक देशों का ऋणी (5) उपसंहार।

विश्व शांति संसार की समृद्धि और प्रगति की सूचक है। मानव कल्याण के लिए नित्य प्रति चिंतन और अन्वेषण का उद्गम है। विश्व के राष्ट्रों में परस्पर प्रबल सहयोग की कामना है। विकासशील देशों के अपने पाँव पर खड़े होने की सहायता की शर्त है। नए-नए शस्त्रास्त्रों की खोज और निर्माण का कारण हैं। औद्योगिक प्रगति और हरित क्रांति का माध्यम हैं।

भारत वैदिककाल से ही ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः’ (सब सुखी हों तथा सब नीरोग हों) की कामना करता आया है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ उसका सिद्धांत वाक्य है। अहिंसा का वह प्रचारक है। त्याग और परोपकार की भावनाएँ उसको घुट्टी में मिले हैं। ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ उसका लक्ष्य है।

भारत विश्व शांति का प्रबल समर्थक है। विश्व के किसी भी भाग में युद्धरत देशां के मध्य वह सन्धि करवाने के लिए सदा तत्पर रहता है। भारत राष्ट्रों के मतभेदों को वार्ता द्वारा निबटाने का पक्षपाती हैं। शीत युद्ध तथा शस्त्र-युद्ध का प्रबल विरोधी है। संहारक शस्त्रास्त्र निर्माण के विरुद्ध है। वैज्ञानिक आविष्कारों को मानव-कल्याण के लिए प्रयोग का इच्छुक है।

विश्व शांति की कामना करने वाला भारत विश्व युद्ध को रोक नहीं सकता। विश्व-युद्ध तो क्या, परस्पर राष्ट्रों के युद्ध अथवा शीत युद्ध को रोकना भी भारत की शक्ति और सामर्थ्य के बाहर है। वह शांति स्थापनार्थ शोर मचा सकता है, शांति-मिशन भेज सकता है, निरर्थक दौड़-धूप कर सकता है, किंतु अपने साहस और शक्ति के बल पर युद्धरत राष्ट्रों को धमकी नहीं दे सकता। न ही वह युद्धरत राष्ट्रों के बीच पड़कर आत्माहुति दे सकता है। भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति कैनेडी ने एक बार रूस को अल्टीमेटम दिया तो उस अल्टीमेटम पर रूस सिहर उठा। उसने अपनी सेनाएँ गंतव्य पर पहुँचने से पूर्व ही वापिस बुला लीं। यह है शांति स्थापना के लिए सामर्थ्य का प्रमाण।

शांति सबल का मित्र है, तो निर्बल दुर्बल से उसका कोई संबंध नहीं। भारत विश्व-शांति की भूमिका तब निभाएगा, जब वह पहले अपने पड़ोसी राष्ट्रों से निबट ले। पाकिस्तान के शस्त्र-संग्रह तथा उग्रवादियों के भेजने पर भारत गला फाड़-फाड़कर चिल्ला रहा है, पर कौन सुनता है? दूसरी ओर 1947 के आक्रमण में पाकिस्तान ने कश्मीर का 40 प्रतिशत भाग दबा लिया था, जिसे हम आज तक हस्तगत नहीं कर सके।

हमारे द्वारा जन्मा तथा पाला-पोसा गया बंगलादेश आज हमें आँखें दिखाता है। गंगाजल के बँटवारे का प्रश्न अनेक वर्षों से निबट नहीं पा रहा था कि उसने नवमूर द्वीप का झंझट खड़ा कर दिया। उधर वह बिहारी मुसलमानों तथा बंगाली हिंदुओं को भारत में भगा रहा है, उनकी संपत्ति जब्त कर रहा है। हमारे लिए सिरदर्द पैदा कर रहा है। अखबारी कागज संबंधी लिखित समझौते पर वह मुकर सकता है और उसे खुश रखने के लिए हमने ‘तीन बीघा जमीन 1992 में उसे समर्पित भी कर दी है।

तीसरी ओर, हमारा एक पड़ोसी राष्ट्र श्रीलंका है। जिसने हमारे ‘कच्चा टीबू’ को हथिया लिया। तमिलों की नृशंस हत्या की और उन्हें अपने देश से निकाल दिया। वहाँ गृह-युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई, तो भारत ने शांति सेना भेजी। सैंकड़ों सैनिकों की बलि, अरबों रुपयों की कमर तोड़ हानि भी वहाँ शांति स्थापित नहीं करा पाई है, फिर शांति-सेना भी किसके विरुद्ध-भारतवंशी तमिलों के विरुद्ध। यह है भारत के सिर पर विश्व शांति का भूत। जिसके कारण पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की बलि चढ़ी।

फिर, भारत अपने को तटस्थ राष्ट्र कहता है, किंतु रूस द्वारा हंगरी पर अधिकार तथा 1980 में तटस्थ राष्ट्र अफगानिस्तान में रूस के सशस्त्र हस्तक्षेप के विरुद्ध बोलने में उसका गला दुखता रहा। राजनीतिक भाषा में रूस का समर्थन ‘मात्स्य न्याय’ को उचित ठहराता है। कहाँ रही हमारी तटस्थता?

भारत विश्व के अनेक राष्ट्रों का ऋणी है। कर्जदार राष्ट्र अपने को कर्जा देने वाले राष्ट्रों के बारे में निष्पक्ष मत नहीं दे सकता, उनके विरुद्ध मुँह नहीं खोल सकता। विश्व-युद्ध को रोक सकना तो भारत के लिए मरुभूमि में जल की चाह करते हुए मृत्यु का वरण करना है।

भारत के महान् औद्योगिक संस्थान विश्व के अनेक राष्ट्रों की दया और कृपा पर जीवित हैं। उनका संचालन, संवर्धन और उत्पादन उनके इंगित पर होता है। अमेरिका द्वारा यूरेनियम-सप्लाई की रोक ने भारत की असर्मथता को नग्न कर दिया था। यदि ये राष्ट्र चाहें तो कुछ क्षणों में बिना युद्ध, बिना शस्त्र भारत के उत्पादन को ठप्प कर सकते हैं। अरब राष्ट्र चाहें तो ‘तेल बंद’ की धमकी देकर भारत से नाक रगड़वा सकते हैं, उसे बैलगाड़ी के युग में धकेल सकते हैं। ऐसी स्थिति में दूसरों की दया और कृपा पर जीवित राष्ट्र विश्व शांति का माध्यम कैसे बन सकता है?

विश्व शांति में प्रत्यक्ष हस्तक्षेप न करके अप्रत्यक्ष रूप में विश्व शांति के लिए सहयोग तो दे सकता है। यह सहयोग है संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में विभिन्न राष्ट्रों में भेजी जाने वाली शांति सेना की भागीदारी।

अंतर्राष्ट्रीय शांति सुरक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता को स्थिर रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुरोध पर भारत ने लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना तथा लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम सेना के कार्यों की भागीदारी के लिए सेना का एक जत्था भेजा। नवंबर 1998 में दक्षिण लेबनान में भारतीय सेना की एक पैदल-वाहिनी को शामिल किया गया। इस प्रकार भारत संयुक्त राष्ट्र शांति सेना के कार्यों में सबसे बड़ा सहयोगी सिद्ध हुआ। इतना ही नहीं, गृह-युद्ध से शप्त सियरा लियोन में भारत के तीन हजार सैनिक विश्वराष्ट्र शांति सेना में शामिल रहे हैं। भारतीय सैन्य, सैन्य पर्यवेक्षक और सामान्य पुलिस कार्मिक अभी अंगोला और पश्चिम सहारा, कुवैत तथा लेबनान, बोस्निया और हर्जेगोविना एवं हैती में शांति सेना के साथ कार्य कर रहे हैं।

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