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बस की आत्मकथा – पर एक शानदार निबंध  

bus ki aatmkatha par eks handaar nibandh

संकेत बिंदु – (1) यात्रा का सुलभ और आरामदेह माध्यम (2) युग के अनुरूप स्वयं को ढाला (3) मेरे अनेक आकार व प्रकार (4) मेरे उपयोग के नियम (5) धर्म निरपेक्ष स्वरूप और जीवन में महत्त्व।

मैं बस हूँ। आपकी यात्रा का सर्वश्रेष्ठ सुलभ और आरामदेह माध्यम हूँ। आपके अभीष्ट गंतव्य स्थान पर रुकने वाली, शहरों के कोने-कोने तक, सुदूर ग्राम-अंचल या उत्तुंग शैल-शिखरों तक आपको पहुँचाकर ही दम लेने वाली हूँ। ‘कम खर्च पर अधिक सुखद यात्रा’, मेरे जीवन का उद्देश्य है। डीजल मेरा भोजन है, और पानी मेरी प्यास बुझाता है। मानव शरीर पाँच तत्त्वों द्वारा निर्मित है, किंतु मेरे शरीर में छह तत्त्वों का मिश्रण है – लोहा, लकड़ी, शीशा और रबड़ मेरे बाहरी अवयव हैं। मेरी आत्मा मेरा इंजन है, जो सारे ढाँचे को जीवन प्रदान करता है। वायु मेरे चरण हैं। मनुष्य का वायु तत्त्व समाप्त हो जाए, तो शरीर शव बन जाता है, उसी प्रकार मेरे छह अंगों में से किसी एक की भी हवा निकली, तो मेरा शरीर जड़, गतिहीन हो जाता है।

जमाने की चाल का असर मेरे ऊपर भी पड़ा है। भगवान विष्णु ने पृथ्वी का भार हरण

करने के लिए दस बार अवतार लिया, मैंने भी अपने बदलते रूप-विधान में यात्री को, अधिकतम सुविधाएँ देने का प्रयास किया है। साधारण, डीलक्स, एअर कंडीशंड, सुपर डीलक्स रूप मेरी प्रगति के द्योतक हैं। डीलक्स बस में बैठने और थोड़ा लेटने की सुविधा है, तो एअर कंडीशंड में वातावरण को वातानुकूलित करने की क्षमता है। सुपर डीलक्स में शंका निवारण का भी प्रबंध है।

रेलों से मैंने गति सीखी। गति के अनुरूप मैंने अनेक नाम धारण किए – पैसेंजर, फास्ट, सुपर फास्ट, नॉन-स्टॉप नाम मेरी गति के ही परिचायक हैं। मैं स्थान-स्थान पर सवारी लेती- उतारती चलती हूँ, तो पैसेंजर बस कहलाती हूँ। छोटे-मोटे स्टॉपों की परवाह न कर बड़े स्टॉपों पर क्षण दो-क्षण रुकती हूँ, तो फास्ट कहलाती हूँ। ‘लाँग रूट’ पर जब चलती हूँ, तो अनेक बड़े स्टॉपों को उसी प्रकार नमस्कार करती हूँ, जैसे किसी अन्य कार्य में व्यस्त श्रद्धालु मनुष्य मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारे में अंदर न घुसकर बाहर से ही हाथ जोड़कर, कारणवश आप मुझ पर चढ़ न सकें, तो उदासी आपके चेहरे को गमगीन बना देती है। दिल्ली से जम्मू तक का लंबा सफर मैं एक साँस में पूरा करती हूँ। रेल को आप मनचाही जगह रोक नहीं सकते, स्टेशन पर समय के अधिक ठहरा नहीं सकते। पर साहब, मुझे जहाँ चाहें, रोक लीजिए। बस अड्डे पर आप कुछ खा-पी रहे हैं, तो आपकी प्रतीक्षा करूँगी, आपको छोड़कर जाऊँगी नहीं।

मेरा एक भयंकर रूप भी है – वह है मृत्यु से साक्षात्कार। यमराज का निमंत्रण। मेरे अंग का एक अवयव ‘ब्रेक’ फेल हो जाए, मेरा चालक असावधान हो जाए या अन्य कोई वाहन अनचाहे प्रेम दिखाने लगे, तो टकराव के परिणाम के लिए जगत-नियंता प्रभु ही रक्षक हैं। उस स्थिति में मैं बस नहीं, ‘वेबस’ हो जाती हूँ, असहाय और असमर्थ हूँ।

आइए, सानंद, सोत्साह तथा सरलता से अपनी मंगलमयी यात्रा के लिए मुझे अपनाइए, मेरा निमंत्रण स्वीकार कीजिए।

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