संकेत बिंदु – (1) उल्लास व प्रकाश का उत्सव (2) पर्वों का समूह (3) अमावस्या का महत्त्व (4) महापुरुषों के जीवन से संबंधित घटनाएँ (5) घरों की सजावट व खरीददारी का दिन।
दीपावली प्रकाश का अन्यतम पर्व है। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का महान् उत्सव है। मन को आलोकित करने का त्योहार है। धन, संपत्ति, सौभाग्य एवं सत्त्वगुण की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी के पूजन का दिवस है। जन-मन की प्रसन्नता, हर्षोल्लास एवं श्री – संपन्नता की कामना का महापर्व है। अनेक महान् तथा पूज्य पुरुषों के जीवन से संबद्ध प्रेरणाप्रद घटनाओं का स्मृति पर्व है।
कार्तिक की अमावस्या दीपावली का शुभ दिन है। अमावस्या की काली रात को हिंदू- जनता. घर-घर में दीपकों की पंक्ति जलाकर उसे पूर्णिमा से अधिक उजियाला बना देती हैं। यह उजियाला न केवल वातावरण को उज्ज्वल करता है, अपितु मन के अंधकार को हटाकर उसे ज्योतिर्गमय करने का संदेश भी देता है।
दीपावली एक दिवसीय पर्व नहीं, यह पर्व समूह है जो कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक बड़े हर्षोल्लास से समारोहपूर्वक संपन्न होता है। ये उत्सव हैं धन- त्रयोदशी, नरक चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा (अन्नकूट) तथा भातृद्वितीया (भैयादूज)।
दीपावली आदिकाल में आर्यों की आर्थिक संपन्नता एवं हर्षोल्लास का पर्व रहा होगा। आर्थिक संपन्नता का मापदंड था कृषि उपज। फसल के घर आने को स्वर्ण- भरण माना गया होगा। वर्ष भर के कड़े श्रम के बाद घर आई ‘अन्न-धन’ रूपी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए घर-आँगन लीप-पोत कर साफ-सुथरे किए जाते रहे होंगे और अभावों के कूड़े-करकट को झाड़-बुहार का एक किनारे फेंक दिया जाता रहा होगा। प्रत्येक घर में नए कपास की बाती से, नए तिल के तेल में दीप संजोया जाता रहा होगा और नए वर्ष की अगवानी की जाती रही होगी।
इसीलिए दीपावली से एक मास पूर्व घर की सफाई, लिपाई-पुताई तथा दीप प्रज्वलन की परंपरा प्राचीन काल की देन है।
समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों में लक्ष्मी भी एक रत्न थी। इस लक्ष्मी रत्न का प्रादुर्भाव कार्तिक की अमावस्या को हुआ था। उस दिन से कार्तिक की अमावस्या लक्ष्मी- पूजन का पर्व बना। इस अवसर पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश-पूजन का भी विधान है।
लक्ष्मी जी धन-संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी हैं और गणेश जी विघ्ननाशक तथा मंगल के देवता हैं। लक्ष्मी-गणेश के समन्वित पूजन का अर्थ है- धन का मंगलमय संचयन और उसका धर्म सम्मत उपभोग। अन्यथा धन-संपत्ति पाप एवं जीवन में विघ्नों की उपस्थिति का कारण बन जाएगी।
लक्ष्मी श्रम- साध्य है। कृषि संस्कृति का मूल मंत्र ही श्रम है। धर्म पर आधारित लक्ष्मी का पूजन श्रम बिन्दुओं से होता है। गणपति इस श्रम को मंगलकारी बनाते हैं। इसलिए धर्म पर आधारित अर्थ (लक्ष्मी) कमलासना है और अधर्म पर आधारित लक्ष्मी उलूकवाहिनी। अतः लक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन होता है।
एक किंवदंती यह भी है कि भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष श्रीराम लंकेश्वर रावण पर विजय प्राप्त कर भगवती सीता सहित जब अयोध्या लौटे, तो अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए घरों को सजाया और रात्रि को दीपमालिका की। श्रीराम के अयोध्या लौटने के प्रसंग को ‘दीपावली’ से संबद्ध कर दिया गया है। (पर यह भी जनश्रुति मात्र ही हैं, तथ्य नहीं)
दीपावली के पावन दिन में अन्य अनेक महापुरुषों के जीवन की घटनाओं का भी संबंध है। महाराज युधिष्ठिर का राजसूय यज्ञ इसी दिन संपन्न हुआ था।
राजा विक्रमादित्य आज के ही दिन सिंहासन पर बैठे थे। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी, आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद सरस्वती तथा सर्वोदयी नेता आचार्य विनोबा भावे का स्वर्गारोहण दिवस भी है। वेदांत के प्रसिद्ध विद्वान् स्वामी रामतीर्थ का जन्म, ज्ञान प्राप्ति तथा निर्वाण, तीनों इसी दिन हुए थे। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद जी ने इसी दिन कारावास से मुक्ति पाई थी।
भले ही ये घटनाएँ कार्तिक अमावस्या को हुई थीं, पर ‘दीपावली’ का उत्सव तो समाज हजारों वर्षों से मनाता आ रहा है। अतः इस उत्सव से उनका कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं।
दीपावली का वैज्ञानिक महत्त्व भी है। दीपावली से पूर्व वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है, किंतु घरों में मच्छरों, खटमलों, पिस्सुओं और अन्यान्य विषैले कीटाणुओं की भरमार छोड़ जाती है। मलेरिया व टाइफाइड के फलने-फूलने के दिन होते हैं। दूसरे, वर्षभर की गन्दगी से घर की अस्वच्छता पराकाष्ठा पर होती है। अतः दीपावली से महीने भर पहले ही गरीब और अमीर, सभी अपनी-अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार घरों की सफाई, लिपाई-पुताई और सजावट करते हैं। इससे घर की गन्दगी दूर हो जाती है। नीले थोथे के मिश्रण से की गई सफेदी से मच्छर मर जाते हैं। सरसों के तेल के दीपक जलाने से रोगादि के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। सरसों के तेल का धुआँ (काजल) आँखों के लिए अत्यंत लाभप्रद हैं।
दीपावली के दिन घरों, दुकानों, मंडियों तथा बाजारों को खूब सजाया जाता है। रात्रि को प्रज्वलित किये जाने वाले नन्हें दीपों के प्रकाश से अमावस का गहनतम नष्ट हो जाता है। विद्युत् के प्रकाश से सर्वत्र चकाचौंध भर जाती है। पुष्पमालाओं पन्ने पत्तियों की झिलमिल लड़ियों, कागज की रंगीन – अद्भुत लहरियों तथा कलात्मक झंडियों से यह शोभा द्विगुणित हो जाती है।
रात्रि के प्रथम प्रहर से अर्धरात्रि तक आतिशबाजी का दौर, इस पर्व के उल्लास – उत्साह तथा परम- हर्ष को प्रकट करता है। आतिशबाजी की अग्नि से विभिन्न प्रकार की रंग-बिरंगी आकर्षक झड़ियाँ हृदय को विभोर कर देती हैं। बच्चों के हाथों से जलती फुलझड़ियाँ, पटाखों की लड़ियों की पट-पट की कर्ण-बंधी आवाज. अनार और बमों से निकलती स्वर्णिम चिंगारियाँ, गगन को छूती और गनन में फूटती हवाइयों की विचित्र अग्नि- रश्मियाँ दर्शकों के मन में अद्भुत उत्साह, प्रेरणा और खुशियाँ भर देती हैं।
दीपावली खरीददारी की उमंग का दिन है। मिट्टी के खिलौनों तथा दीवे, मोमबत्तियाँ, तस्वीरें – कलेण्डर, दीपावली शुभकामनाएँ और पूजा-सज्जा के लिए उपकरण के समान, मिठाई, सूखे मेवे तथा फल, पुष्प, पुष्पमालाओं, आतिशवाजी के समान आदि की दुकानों पर अपार भीड़ होती है। ग्राहक जितने अधीर हैं, दुकानदार भी विद्युत् यन्त्र की भाँति उतनी ही त्वरा से विक्रेय वस्तु देने को तत्पर हैं।
दीपावली पारिवारिक – मंगल कामना के विस्तार का पर्व है। इस दिन बंधु-बांधवों तथा मित्रों को बधाई देना तथा उपहार भेजना मंगल कामना के विस्तार का प्रतीक और सुसंस्कृत रूप है।