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देश-प्रेम – पर एक शानदार निबंध

desh prem par esk shandaar nibandh in hindi

संकेत बिंदु – (1) देश-प्रेम की व्याख्या (2) महापुरुषों के विचार (3) राष्ट्रीयता के अनिवार्य तत्त्व (4) देश-प्रेम के अनेक रूप (5) देश-द्रोही और देश-प्रेमी में अंतर।

देश के प्रति मन में होने वाला कोमल भाव जिसे वह बहुत अच्छा, प्रशंसनीय तथा सुखद समझता है, देश-प्रेम है। देश के साथ अपना घनिष्ठ संबंध बनाए रखने की चाहना देश-प्रेम है। स्वार्थ रहित तथा देश के सर्वतोमुखी कल्याण से ओत-प्रोत भाव देश-प्रेम है। देश के प्रति अंत:करण को अत्यंत द्रवीभूत कर देने वाले और अत्यधिक ममता से युक्त अतिशय अथवा प्रचंड भाव को देश-प्रेम कहते हैं।

देश-प्रेम शाश्वत शोभा का मधुवन है। उर-उर के हीरों का हार है। हृदय का आलोक है। कर्तव्य का प्रेरक है। जीवन मूल्यों की पहचान है। जीवन-सिद्धि का मूल मंत्र है। रामनरेश त्रिपाठी देश-प्रेम को इन शब्दों में प्रतिपादित करते हैं|

देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है / अमल असीम त्याग से विलसित।

आत्मा के विकास से जिसमें / मनुष्यता होती है विकसित॥

प्रश्न उठता है, देश से प्रेम क्यों हो? इसका उत्तर देते हुए स्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘भारत मेरा जीवन, मेरा प्राण है। भारत के देवता मेरा भरण-पोषण करते हैं। भारत मेरे बचपन का हिंडोला, मेरे यौवन का आनंदलोक और मेरे बुढ़ापे का बैकुंठ है।‘

मैथिलीशरण गुप्त तर्क देते हैं-

        मेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है।

        बस तेरे ही, सुरस-सार से सनी हुई है।

 इतना ही नहीं,

         जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं।

        घुटनों के बल सरक सरक कर खड़े हुए हैं॥

महात्मा गाँधी कहते हैं, ‘मैं देश-प्रेम को अपने धर्म का ही एक हिस्सा समझता हूँ। देश प्रेम के बिना धर्म का पालन पूरा हुआ, कहा नहीं जा सकता।’

श्रद्धेय अटलबिहारी वाजपेयी देश-प्रेम का कारण बताते हुए लिखते हैं- ‘यह वंदन की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है। यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है। इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिंदु-बिंदु गंगाजल है। हम जीएँगे तो इसके लिए, मरेंगे तो इसके लिए।’

प्रश्न उठता है देश-प्रेम का आलंबन क्या है? आलंबन है देश की संपूर्ण भूमि, सकल प्रकृति तथा सचेतन प्राणी, जिसमें मानव के अतिरिक्त पशु-पक्षी भी सम्मिलित हैं।

जब देश-प्रेम का दिव्य रूप प्रकट होता है तब आत्मा में मातृभूमि के दर्शन होते हैं। स्वामी रामतीर्थ लिखते हैं, ‘मेरी वास्तविक आत्मा सारे भारतवर्ष की आत्मा है। जब मैं चलता हूँ तो अनुभव करता हूँ सारा भारतवर्ष चल रहा है। जब मैं बोलता हूँ तो मैं मान करता हूँ कि यह भारतवर्ष बोल रहा है। जब मैं श्वास लेता हूँ, तो महसूस करता हूँ कि यह भारतवर्ष श्वास ले रहा है। मैं भारतवर्ष हूँ।’

देश-प्रेम का भाव राष्ट्रीयता का अनिवार्य तत्त्व है, देश भक्ति की पहचान है। इहलोक की सार्थकता का गुण है और मृत्यु के पश्चात् स्वर्ग में निश्चित स्थान की उपलब्धि है। संस्कृत का सूक्तिकार तो जन्मभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर महान मानता है-

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

सरदार पटेल का कहना है, ‘देश की सेवा (देश-प्रेम) में जो मिठास है, वह और किसी चीज में नहीं।’

कथाकार प्रेमचंद की धारणा थी, ‘खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।’

महर्षि अरविंद तो देश-प्रेम में विश्व बंधुत्व के दर्शन करते हुए कहते हैं- ‘देश-प्रेम तो मानवता के लक्ष्य विश्व-बंधुत्व का ही एक पक्ष है।’ देश-प्रेमी का नाम इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्णाक्षरों में लिखा जाता है। देश उसकी पुण्यतिथि पर उसे श्रद्धांजलि अर्पित कर अपने को गौरवान्वित अनुभव करता है

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा।

देश-प्रेम के अनेक रूप हैं। देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक उन्नति में सहयोग देना देश-प्रेम का परिचायक है। देश की सुरक्षा में अपने को अर्पित करना देश-प्रेम है। सांप्रदायिक सद्भाव और परस्पर सर्वधर्म समभाव को बनाए रखना देश-प्रेम है। देश को प्रदूषण से मुक्त रखने का दायित्व निभाना देश-प्रेम है। ग्राम, नगर की शुचिता बनाएँ रखना देश-प्रेम है। असामाजिक कृत्यों से दूर रहना, अधार्मिक कर्मों से घृणा करना, राजनीति के छल-छद्म को दूर से ही प्रणाम करना देश-प्रेम है। सार्वजनिक स्थानों पर देश-निंदा तथा नेताओं की अनर्गल आलोचना से बचना देश-प्रेम है। सेवाकाल में अपने दायित्व में प्रमाद न कर उसे पूर्ण करना देश-प्रेम है। अपनी लेखनी से देश हित को प्रश्रय देना साहित्यकार का देश-प्रेम है। देश निर्माण के लिए अपनी कला के उपयोग में कलाकार का देश-प्रेम है।

धन, धर्म, जाति तथा संप्रदाय से ऊपर उठकर मतदान करना देश-प्रेम है। नागरिकों के मन से अंधविश्वास दूर हटाना देश-प्रेम है तो अवांछित और दूषित संस्कारों और परंपराओं से मुक्ति का प्रयत्न देश-प्रेम है।

आज के भारत में देश-प्रेमी या देश-द्रोही की पहचान आसान नहीं रही। यहाँ तो राणा प्रताप की जय-जय की जगह अकबर की जय-जय, देश को लूटकर खाने वाले परम देशभक्त और चरित्र-हीनता की ओर धकेलने वाले ‘भारत रत्न’ हैं। देशहित के लिए जीवनभर तन को तिल-तिल गलाने वाले परम सांप्रदायिक और जातिवाद के परम पक्षधर धर्मनिरपेक्षता के अवतार बने हैं। विदेशी भाषा अंग्रेजी को महारानी और राष्ट्रभाषा हिंदी को दासी मान नाक-भौंह सिकोड़ने वाले राष्ट्रीय हैं। जब यह मन का कालुष्य धुलेगा तो देश-प्रेमी की जय-जय कार और देश-द्रोही की धिक्कार होगी।

अब न चलेगा राष्ट्र प्रेम का गर्हित सौदा।

यह अभिनव चाणक्य न फलने देगा विष का पौधा॥

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