एक प्राचीन उक्ति है कि देवता भी भारत में जन्म लेने के लिए तरसते थे। वस्तुतः हमारी भारत-भूमि इतनी सुंदर और इतनी संपन्न है कि इसकी तुलना विश्व के किसी अन्य भाग से नहीं हो सकती। भारत जैसी सुजलां सुफलां मलयजशीतलां शस्यश्यामलां पुण्यभूमि के दर्शन अन्यत्र दुर्लभ हैं। किसी समय इस देश में उत्पन्न होने का सौभाग्य जिन्हें होता था, वे देवता कहलाते थे। 33 करोड़ देवताओं की कल्पना इसी की पुष्टि करती है। केवल प्रकृति का वरदान ही इसे नहीं मिला, इस भूमि पर उत्पन्न होने वाली पुण्य आत्माओं ने भी इसे अमर कर दिया। ऋग्वेद केवल भारत का ही नहीं, समस्त विश्व का प्रथम ग्रंथ माना जाता है। भारत ने संसार को साइबेरिया से लेकर लंका तक तथा ईरान से प्रशांत महासागर तक – जिस संस्कृति व ज्ञान की शिक्षा दी, उस पर वह भारत गर्व कर सकता है। भारतीय संस्कृति का विश्व के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद यह माना जाने लगा है कि इससे पुरानी कोई सभ्यता न थी। अपनी अद्भुत विशेषताओं के कारण यह संस्कृति अमर हो गई है। चीनी संस्कृति के अतिरिक्त पुरानी दुनिया की अन्य सभी – मैसोपोटामिया कई सुमेरियन, असीरियन तथा बैबिलोनियन और खाल्दी प्रभृति तथा मिस्र, ईरान, यूनान और रोम की संस्कृतियाँ काल के कराल गाल में चली गई, केवल कुछ ध्वंसावशेष आज उनकी गौरव – कथा सुनाने के लिए बच गए हैं, किंतु भारतीय संस्कृति कई हजार वर्षों तक काल के क्रूर थपेड़े खाती हुई भी आज जीवित है। अपनी उन्नत, सुसमृद्ध संस्कृति और अनंत अगाध ज्ञान कोष के कारण यह देश जगद्-गुरु रहा है। इस देश के वेद-वेदांग, उपनिषद्, दर्शन, सूत्रग्रंथ, पुराण, महाभारत, रामायण तथा संस्कृत के काव्यों आदि का कौन प्राचीन देश मुकाबला कर सकता है? राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य और उसके बाद आने वाली महात्मा गांधी तक संतों की अनंत परंपरा के दर्शन किसी अन्य देश में हम नहीं पाते। अजन्ता की कलापूर्ण कृतियाँ इसका पर्याप्त प्रमाण हैं कि भारत की कला किसी भी अन्य देश में उच्च थी। प्राचीन मंदिर व मठ, गुफाएँ तथा कीर्ति स्तंभ भारत की वास्तु कला की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए बहुत काफी हैं। महाकवि रवींद्र के इन शब्दों में सच्चाई है –
“प्रभात उदय तव गगने। प्रथम सामरव तव तपोवने।”
यह ठीक है कि काल-प्रवाह सदा एक-सा नहीं रहता। इतिहास के दीर्घ काल में अनेक दोष भारत में पैदा हो गए। भारत में जो शौर्य और तेज था. वह मंद हो गया। देश ने धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से दुर्दिन देखे। बड़ी लंबी रात तक भारत सोया। पर अब वह अंगड़ाइयाँ लेकर जाग उठा है। उसकी चिर निद्रा समाप्त हो चुकी है। इस समस्त निद्रा काल में भी भारत की आत्मा मृत नहीं हुई थी। मुसलमानों के दीर्घशासन काल में रत्नप्रसू भारत-भूमि ने कबीर, तुलसी, नानक, तिरुवल्लुवर, नरसी भगत, तुकाराम, रामदास, चैतन्य महाप्रभु, जैसे रत्न पैदा किए; शिवाजी और राणा प्रताप जैसे वीर योद्धा उत्पन्न किए। अंग्रेजी शासन भी भारत की आत्मा का हनन नहीं कर सका। ऋषि दयानंद, विवेकानंद, अरविंद, लोक- मान्य तिलक, रवींद्र, गांधी और विनोबा विदेशी शासन काल में ही उत्पन्न हुए। श्राचार्य जगदीशचंद्र वसु, श्री सी. वी. रमण और आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय जैसे उच्च कोटि के वैज्ञानिक भी इसी विदेशी शासन काल में पैदा हुए। विद्वानों, वैज्ञानिकों और व्यावसायिकों की दृष्टि से भारत आज बहुत से देशों की अपेक्षा ऊँचा स्थान रखता है। इस देश की प्रसुप्त आत्मा को ऋषि दयानंद, लोकमान्य तिलक, श्री गोखले, दादाभाई नौरोजी, स्वामी विवेकानंद, लाला लाजपतराय, अरविंद घोष, देशबंधु चितरंजन दास, स्वामी श्रद्धानंद, महामना मदनमोहन मालवीय, पंडित मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल प्रभृति राजनैतिक नेताओं ने प्रबुद्ध किया है। चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह आदि सैकड़ों आतंकवादी वीरों का बलिदान इसके जाग्रति- भवन की नींव में हुआ है। हजारों-लाखों स्वयंसेवकों एवं बहनों ने तिरंगे झंडे के नीचे राष्ट्र-स्वातन्त्र्य के लिए जेल काटी है, लाठी गोली खाई है। इन सब का बलिदान व्यर्थ नहीं जा सकता था, और न ही गया। भारत स्वतंत्र हो गया।
इस संघर्ष काल में ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ का मंत्र उसने पढ़ लिया था। स्वतंत्र होते ही भारत ने अंगड़ाई ली और उठ खड़ा हुआ। निद्रा व तंद्रा के सब अवशेषों को त्यागकर अब वह उन्नति के मार्ग पर दौड़ने लगा है। उसने देखा कि देश में अन्न नहीं है, वह अन्न पैदा करने में जुट गया। उसने देखा कि देश में कपड़े का प्रभाव है, किसान ने कपास बोनी गुरू की, कलों व चरखों पर सूत कातकर वह कपड़ा बुनने में लग गया।’ मकानों की कमी थी, देश में कई लाख नए मकान बन गए। पटसन का क्षेत्र पाकिस्तान में चला गया, उसने पटसन की खेती अधिक कर दी। खेती के लिए सिंचाई की व्यवस्था अंग्रेजों ने बहुत कम की थी। अब बड़े-बड़े बाँध बनाने तथा नहरों का जाल बिछाने में वह तन्मय हो गया। शिक्षणालयों व अस्पतालों की कमी देखी, तो वह धड़ाधड़ बनने लगे। सारांश यह कि उसने जहाँ अभाव’ देखा, उसकी पूर्ति में लग गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना पूरी हो गई और दूसरी योजना आरंभ हो गई।
हमारी मैत्री प्राप्त करने को भारत की औद्योगिक उन्नति पंडित नेहरू का नक्षत्र सबसे विदेशी शासन काल में भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति शून्य थी। आज जब कोई नई समस्या पैदा होती है, ससार के सभी राजनीतिज्ञ और पत्रकार नई दिल्ली की ओर उत्सुकता से देखते हैं कि वहाँ से क्या विचार प्रकट होते हैं। ब्रिटेन, अमरीका या रूस जैसे देश आज प्रत्येक समस्या पर भारत की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक रहते हैं ! सभी देश उत्सुक हैं। रूस, ब्रिटेन, अमरीका और जर्मनी में सहयोग दे रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज में अधिक प्रकाशमान है। महात्मा बुद्ध व महात्मा गांधी के अहिंसा व प्रेम के सिद्धांतों पर आधारित पंचशील का संदेश आज सब देश सुन रहे चीन, रूस, इण्डोनेशिया, बर्मा, लंका, मिस्र, यूगोस्लाविया आदि अनेक देश आज पंचशील के आधार पर उसे विश्व शांति के लिए सहयोग दे रहे हैं। कोरिया, इण्डोचीन अणुबम व निःशस्त्रीकरण आदि के पेचीदे प्रश्नों पर भारत से नेतृत्व की प्राशा की जा रही है।
भारत के पास अध्यात्म-संस्कृति पहले थी। भौतिक उन्नति यूरोप के पास थी। विज्ञान की शक्ति पाकर वह दैत्य हो उठा। आज भय यह हो गया है कि न जाने किस क्षण यह समस्त विश्व, ये गगनचुंबी नगर, यह संस्कृति, ये वैज्ञानिक रचनाएँ ऋणु व उद्जन शक्ति से नष्ट हो जाएँ। इस भय के वातावरण से त्रस्त विश्व को भारत की आध्यात्मिक शक्ति शांति प्रदान कर सकती है। यही आज हो रहा है, इसीलिए भारत का भविष्य उज्ज्वल है। पहले भी वह जगद्गुरु था और आज भी जगत् को वह शिक्षा दे रहा है। भारत ने भौतिक क्षेत्र में पश्चिम से बहुत कुछ लिया है, और अपनी अध्यात्म-संस्कृति व आत्मा को पुनर्जीवित कर रहा है। अध्यात्म और भौतिक संस्कृति के परस्पर सहयोग के कारण हमारी पुण्यभूमि भारत का भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है, इसमें संदेह नहीं।