संकेत बिंदु-(1) कला, संस्कृति और इतिहास की कहानी (2) चाँदनी चौक, कनॉट प्लेस और जामा मस्जिद (3) कुतुबमीनार और बिड़ला मंदिर की भव्यता (4) दिल्ली के मनोरंजक और औद्योगिक स्थल (5) महापुरुषों की समाधि-स्थल।
दिल्ली के दर्शनीय स्थान कला, संस्कृति, इतिहास तथा सभ्यताओं की जीवंत कहानी हैं। पांडवों के इंद्रप्रस्थीय स्मारक, शाहजहाँ के ख्वाबों का स्वर्ग शाहजहाँनाबाद, अंग्रेजी द्वारा बसाई गई नई दिल्ली तथा स्वतंत्र भारत के कर्णधारों की स्वर्णिम योजनाएँ-सबने मिलकर सारी दिल्ली को ही दर्शन के योग्य बना दिया है। उर्दू के शायर मीर का हृदय गा उठा-
दिल्ली के न थे कूचे, आरा के मुसव्विर थे।
जो शक्ल नजर आयी तस्वीर नजर आयी॥
अरे क्या थीं दिल्ली की गलियाँ ! चित्रकार की कूची थी। वहाँ जो भी सूरत शक्ल नजर आती थी, तस्वीर ही नजर आती थी।
और शायद इसलिए शेख इब्राहीम जौक अनेक उपाधियाँ हासिल करने पर भी दिल्ली छोड़ने को तैयार न हुए। वे चीत्कार कर उठे,
‘कौन जाए जौक, दिल्ली की गलियाँ छोड़कर।’
पहले दिल्ली के ऐतिहासिक स्थान लीजिए। यमुना तट पर चाँदनी चौक बाजार के अंत में चारों ओर खाइयों में घिरा आधा मील के घेरे में फैला हुआ लाल पत्थरों से निर्मित एक किला खड़ा है। यह ‘लाल किला’ हैं। शाहजहाँ द्वारा निर्मित कहे जाने वाले इस किले का नौबत खाना, रंगमहल, दीवाने खास और दीवाने-आम देखिए।
ऐतिहासिक वाजार चाँदनी चौक का फव्वारा और जामा मस्जिद, दोनों ऐतिहासिक स्थान हैं। फव्वारे के स्थान पर गुरु तेगबहादुर तथा भाई मतिदास का वध हुआ था और जामा मस्जिद दिल्ली की सबसे बड़ी मस्जिद है, जिसे शाहजहाँ ने बनवाया था। फव्वारे के सम्मुख स्थित सिक्खों का गुरुद्वारा शीशगंज देखिए।
नई दिल्ली में कनाट प्लेस के समीप राजपूत राजा सवाई मानसिंह द्वारा निर्मित जंतर-मंतर बड़े गजब की चीज है। प्राचीन काल में इससे दिन में समय का बोध और रात्रि में नक्षत्रों की गणना होती थी।
मुगल बादशाह कुतुबुद्दीन के बनवाए पुराना किला, फीरोजशाह कोटला, तुगलकाबाद का किला और लोदी गार्डन्स देखिए। साथ ही हुमायूँ का मकबरा भी देखते जाइए।
पृथ्वीराज चौहान द्वारा निर्मित यमुना-स्तंभ अर्थात् कुतुबमीनार पर (जिसे यवनों ने अपना बनाने के लिए उस पर कुरान की आयतें खुदवा दी हैं) चढ़ने की कोशिश कीजिए और उतर कर ‘लौह स्तंभ’ पर आजानुबाहु होने का प्रमाण दीजिए।
नई दिल्ली का शानदार लक्ष्मीनारायण (बिड़ला) मंदिर देखिए। मूर्तियों की भव्यता के साथ इसकी दीवारों की चित्रकला देखते-देखते तथा प्राचीन एवं आधुनिक भारतीय साहित्य के उद्धरण एवं महापुरुषों के आप्तवाक्य पढ़ते-पढ़ते आपका मन नहीं भरेगा।
अंग्रेजों द्वारा निर्मित शाही शान-शौकत के ‘रायसीना’ अर्थात् नई दिल्ली की एक-एक चीज देखने योग्य है। कनाट प्लेस की सजधज और चहल-पहल अवर्णनीय है राष्ट्रपति भवन, आकाशवाणी-भवन, कृषि भवन, चक्राकार संसद भवन, उद्योग भवन, राष्ट्रीय संग्रहालय, इण्डिया गेट तथा केंद्रीयय सचिवालय के भवन, उनके समीपस्थ हरी-हरी मखमली घास के मध्य बने कृत्रिम सरोवर और झील आपके मन को मोह लेंगे। रवींद्र रंगशाला और नेहरू मेमोरियल संग्रहालय भी नई दिल्ली के दर्शनीय स्थल हैं।
फरवरी मास में देखिए राष्ट्रपति भवन का मुगल उद्यान। ज्यामिती की रेखाओं की तरह खिंची हुई मेड़ों-रास्तों के आसपास हरी-हरी मखमली घास के मध्य और सजी हुई चौकोर क्यारियों में न जाने कितने रंगों के फूल खिले हुए हैं।
बच्चों के साथी अर्थात् पशुओं की विभिन्न जातियों को देखने के लिए पुराने किले के नीचे बहुत बड़े क्षेत्र में बसाए गए ‘चिड़ियाघर’ में जाइए, भारतीय तथा विदेशी जानवरों को देखकर ज्ञानवर्धन और मनोरंजन कीजिए।
पिकनिक स्थानों की सैर के बिना दिल्ली की सैर अधूरी रह जाएगी। ओखला में नहर के प्रवाह और बंध के दृश्य का आनंद लूटिए। तैरना आता है, तो डुबकी भी लगाइए। हौजखास और बुद्धपार्क की भी सैर करते चलिए।
देखिए, स्वतंत्रता के पश्चात् दिल्ली एक औद्योगिक नगर भी बन गया है। वस्त्र-निर्माण से लेकर विशालकाय मशीनों तक का उत्पादन दिल्ली में हो रहा है। विश्वप्रसिद्ध ‘मारुति’ गाड़ियों का निर्माण श्रेय दिल्ली को ही प्राप्त है। सिले सिलाए वस्त्रों तथा पुस्तक प्रकाशन की विश्वमंडी दिल्ली ही है। बिड़ला मिल, स्वतंत्र भारत मिल, गणेश फ्लोर मिल आदि सैकड़ों औद्योगिक संस्थाओं के दर्शन कीजिए।
दिल्ली भारत का हृदय है। भारत की आन-बान-शान को बनाए रखने का श्रेय इस हृदय को है। इसकी धमनियों में सशक्त और स्वस्थ रक्त का संचार हो रहा है। किस-किस की तारीफ करें, किस-किस को छोड़ें। दिल्ली का कण-कण दर्शन के योग्य है, सुंदरता की प्रतिमा है, और है उसमें मनोहर आकर्षण।
अंत में आइए, देश के महापुरुषों की समाधियों पर पुष्पांजलि समर्पित कर चलें; श्रद्धा के सुमन चढ़ा चलें। ये हैं-राष्ट्र-पिता महात्मा गाँधी की समाधि ‘राजघाट’; स्वतंत्रता-संग्राम के यशस्वी संचालक और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू की समाधि’ शांतिवन’, समरांगण में पाकिस्तान को पराजय का मुख दिखलाने वाले प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री की समाधि ‘विजयघाट, श्रीमती इंदिरा गाँधी की समाधि ‘शक्तिस्थल’। राजीव गाँधी की समाधि ‘वीर स्थल’ तथा बाबू जगजीवनराम की समाधि ‘समता-स्थल।’ इनके अतिरिक्त राष्ट्रपति ज्ञान जैलसिंह तथा श्री शंकरदयाल शर्मा को भी श्रद्धांजलि अर्पित कर चलें।
दिल्ली का नक्शा बदल दिया ‘एशियाड 82’ ने। इसके लिए नव-निर्मित जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, इंद्रप्रस्थ स्टेडियम, छत्रसाल स्टेडियम भी दिल्ली के दर्शनीय स्थान बन गए हैं, जो उच्चकोटि की कला के प्रतीक हैं।
दिल्ली प्रतिदिन सज रही है, सँवर रही है। कला की श्रेष्ठतम कारीगरी की मानो यहाँ होड़ लगी है, जो पत्थर में जान फूँक रही है, सीमेंट और लोहे में आत्मा का संचार कर रही है।