मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। उसे परिवार, मित्र, दुकानदार, डॉक्टर आदि सभी की आवश्कता होती है। जैसे-जैसे वह दूसरों के संपर्क में आता है, उसके जीवन का अनुभव-क्षेत्र बढ़ता जाता है। अपने अनुभव हमारे मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ते हैं। ये अनुभव स्थाई और अमूल्य दोनों प्रकार के होते हैं। अवसर पड़ने पर ये शिक्षक की तरह हमें राह दिखाते हैं। कब क्या करना चाहिए, इसकी और संकेत करते हैं। यदि हम अपने अनुभव से कुछ नहीं सीखते तथा उनकी उपेक्षा करते हैं तो हमें जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। अनुभव व्यक्तिगत संपत्ति रूप में हैं, जिन्हें सदैव अपने पास सुरक्षित रखना चाहिए। इनका स्थायीपन हमें जागरूक करता है।
अनुभव अच्छे या बुरे, लाभदायक अथवा हानिकारक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। उनमें एक प्रकार की पूर्णता का भाव होता है। आवश्यकता पड़ने पर किसी की सहायता करना अच्छा अनुभव है तो दूसरों के मामले में जबरदस्ती हस्तक्षेप करना हानिकारक भी हो सकता है। सच पूछा जाए तो हानि सामयिक हो सकती है किंतु उपयोगी बात यह है कि उससे हमें अनुभव प्राप्त हुआ है। अधिकांशतः स्वयं अनुभव करके हम सीखते हैं, दूसरों के द्वारा बतलाए जाने की उपेक्षा करते हैं। कोई बच्चा पलंग से नीचे कूदकर उतरता है, बड़े अथवा माता-पिता उसे मना करते हैं। प्रायः यही होता है कि वह उनकी बात नहीं मानता। एक बार गिर जाता है तब उसका अनुभव उसे वैसा करने से रोक देता है। इसी कारण कहा गया है कि पुस्तकों में पढ़कर अनुभव नहीं किया जा सकता, उसमें पूर्णता नहीं होती। जिसने ऊँचे बर्फ से ढके पर्वतों को स्वयं न देखा हो, समुद्र की लहरों के पास खड़े होकर स्वयं अनुभव न किया हो, दूसरों के द्वारा बतलाना उसे वह पूर्ण आनंद नहीं दे सकता जो व्यक्तिगत रूप से स्वयं अनुभव करके प्राप्त होता है।
इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम दूसरों के अनुभव से कुछ नहीं सीखते। वास्तव में माता-पिता, शिक्षक तथा अपने से बड़े व्यक्तियों से हम सीखते हैं, उनके अनुभव का लाभ उठाते हैं। बुद्धिमान व्यक्ति वही कहलाता है, जो दूसरों के अनुभव की अनदेखी न कर उससे प्रेरणा लेता है। इसी प्रकार पुस्तकें भी ज्ञान और की भंडार होती हैं। भारतीय प्राचीन साहित्य अनुभवों से भरा है। प्राचीन ऋषियों को जो अनुभूति हुई वही उन्होंने वेद, उपनिषद्, गीता, रामायण, मनुस्मृति आदि ग्रंथों में प्रस्तुत की। यही कारण है कि आज भी ये ग्रंथ विश्व में सम्मानित हैं। फ्रांसिस बेकन ने जो अँग्रेज़ी में लिखा, हिंदी में कुछ इस प्रकार है – ‘कुछ पुस्तकें केवल स्वाद लेने के लिए, कुछ निगलने के लिए तथा कुछ अच्छी तरह चबाकर हजम करने के लिए होती हैं।’ महान व्यक्तियों की जीवनियाँ तथा आत्मकथाएँ उनके अपने अनुभवों की ही कहानी कहती हैं। उनके अनुभव हमें शिक्षित करते हैं।
जीवन एक यात्रा है, ऐसी यात्रा जिसमें हम हर समय सीखते हैं, अनुभव प्राप्त करते हैं। धैर्य, साहस, विवेक, त्याग आदि गुण अनुभव से ही परिपक्व होते हैं। अनुभव की इस लंबी यात्रा में कुछ व्यक्ति बहुत देर से सीखते हैं। उनके लिए इससे अधिक दुर्भाग्य की बात और कोई नहीं है। वे बार-बार गलतियाँ करते हैं और फिर पछताते हैं। वे न तो अपने आचरण में सुधार लाते हैं और न ही अपनी असावधानी वृत्ति से छुटकारा पाते हैं। ऐसे व्यक्ति चिंतन-मनन से बहुत दूर रहते हैं। दूसरों की अनुभूति से उन्हें कोई सरोकार नहीं होता। हम जीवन में यदि सफल होना चाहते हैं तो हमें अपने तथा दूसरों के अनुभव से शिक्षा लेनी चाहिए, हमारे लिए यही अपेक्षित है।
शिक्षक हमें हाथ पकड़कर लिखना सिखाता है, बोलकर पढ़ना और हमारे दोषों को दूर कर अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा देता है। ठीक यही कार्य अनुभव भी करता है। अनुभवजन्य ज्ञान हमें बहुत सी कठिनाइयों से बचा सकता है। अपना अनुभव और दूसरों की अनुभूति मिलकर सुखी जीवन के रहस्य से पर्दा उठा देते हैं। इसी कारण अनुभव हमारा सबसे अच्छा शिक्षक है जो पग-पग पर चेतावनी देता है और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।