संकेत बिंदु-(1) परिवार नियोजन का अर्थ (2) जनसंख्या वृद्धि सबसे बड़ी समस्या (3) परिवार नियोजन का प्रचार (4) बढ़ती महँगाई के कारण (5) उपसंहार।
भारत में बढ़ती हुई जनसंख्या राष्ट्र की विषम समस्या है। राष्ट्र की समृद्धि के लिए सरकार द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों में गतिरोध उत्पन्न होने का एकमात्र कारण जनसंख्या-वृद्धि है। इसलिए भारत सरकार ने जन-कल्याण के लिए ‘परिवार नियोजन’ का आह्वान किया है।
परिवार का अर्थ है- एक घर में विशेषतः एक कर्ता के अधीन या संरक्षण में रहने वाले लोग। नियोजन का अर्थ है, ‘जकड़ना’ (संस्कृत-हिंदी कोष : आप्टे)। ‘जकड़ना’ से तात्पर्य है, विशेष प्रकार के नियमों, बंधनों आदि से इस प्रकार घेरना कि छुटकारा न पा सके। इस प्रकार परिवार नियोजन का अर्थ हुआ कि परिवार को ऐसे नियमों तथा बंधनों में बाँधना जिसका वह पालन करने में विवश हो। शाब्दिक अर्थ से इस सामाजिक शब्द का इच्छित अर्थ संगत नहीं बैठता। परिवार नियोजन का राजकीय दृष्टि से अर्थ है, ‘गार्हस्थ्य जीवन के संबंध में की जाने वाली वह योजना जिससे लोग दो से अधिक संतान उत्पन्न न करें।’ इसका अंग्रेजी पर्याय है, ‘फैमिली प्लानिंग’।
वेदों में दस पुत्रों की कामना की गई है। सावित्री ने यमराज से अपने लिए शत भाई और शत पुत्रों का वरदान माँगा था। राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। कौरव सौ भाई थे। ये उन दिनों की बातें हैं, जब जनसंख्या इतनी कम थी कि समाज की समृद्धि, सुरक्षा और सभ्यता के विकास के लिए जनसंख्या वृद्धि की परम आवश्यकता थी, किंतु आज स्थिति एकदम विपरीत है।
पहली पंचवर्षीय योजना बनाते समय देश के योजनाकारों को यह भय था कि यदि इसी अनुपात से जनसंख्या बढ़ती रही तो बढ़ती हुई जनसंख्या पंचवर्षीय योजना को असफल कर देगी और विकास कार्यों को निगल जाएगी, अत: परिवार नियोजन पर ध्यान दिया गया।
परिवार नियोजन कार्यक्रम में नारा बना एक या दो बच्चे, होते हैं घर में अच्छे / अर्थात् छोटा परिवार, सुखी परिवार छोटा परिवार से ‘काम’ जो कि जीवन का एक पुरुषार्थ है और जीवनानंद की स्वाभाविक वृत्ति भी, उसमें कमी न आए अन्यथा कामानंद के अभाव में जीवन कुंठित हो जाएगा। निराशापूर्ण, घुटनपूर्ण जीवन जीवन रस को समाप्त कर देगा। परिणामतः नारियों के लिए लूप, प्रजनेंद्रिय को टाँका लगाकर बंद करना और गर्भ- निरोधक गोलियों का प्रचलन हुआ। पुरुषों के लिए नसबंदी को प्रेरित किया गया तथा ‘कंडोम’ के प्रयोग पर बल दिया गया।
परिवार नियोजन का प्रचार युद्ध स्तर पर हुआ है और हो रहा है। पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञापनों द्वारा, दीवारों पर पोस्टरों द्वारा, सिनेमा में सलाइडों द्वारा, आकाशवाणी, वीडियो, स्पॉट्स, इंटरनेट तथा दूरदर्शन पर विज्ञापनों के द्वारा तथा परिवार नियोजन के कैम्प लगाकर सघन प्रचार चल रहा है। इतना ही नहीं, दूरदर्शन के अनेक एपीसोड तथा कहानियाँ परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप में परिवार नियोजन की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। दूसरी ओर कवि और लेखकगण भी अपनी कृतियों में सिद्धांत रूप में नियोजित परिवार का प्रचार कर रहे हैं।
सन् 1976 में आपातकाल के दिनों में परिवार नियोजन कार्यक्रम को युद्ध-स्तर पर अपनाया गया। साम, दान, दंड, तीनों नीतियाँ अपनाई गई। एक ओर नकद राशि और पुरस्कारों का प्रलोभन दिया गया, तो दूसरी ओर जबरदस्ती नसबंदी की गई। सरकारी सुविधाओं और नौकरियों में नसबंदी की शर्त लगाई गई। परिणाम सुखद निकले। देश की जन्मदर घटी। 1951 की जन्मदर 40.8 से घटकर 1996 में 27.5 प्रतिशत रह गई।
परिवार नियोजन का एक दूषित पक्ष भी सामने आया। जन्मदर कम करने के लिए लोगों ने एक घृणित उपाय ढूँढ़ निकाला। भ्रूण परीक्षण द्वारा गर्भ में लिंग पता करवाना शुरू कर दिया। यदि वह लड़की है तो उसकी भ्रूण हत्या कर दी गई। फलतः सरकार ने प्रसवपूर्व जाँच तकनीक कानून 1994 को 1 जनवरी, 1996 में लागू करके इस क्रिया को रोका। इतना ही नहीं, अजन्मे भ्रूण के परीक्षण के लिए आल्ट्रसोनोग्राफी, एमनिओसैटिसिस आदि जाँच करवाने वाले दम्पत्तियों के लिए दंड का प्रावधान भी किया गया।
बढ़ती महँगाई, गिरते जीवन मूल्य तथा शरीर पोषण के अनिवार्य पदार्थों की पर्याप्त पूर्ति न होने से भारतीय समाज को परिवार नियोजन कार्यक्रम अपनाने को विवश किया है। दूसरी ओर, दो या तीन बच्चों से अधिक बच्चों वाले दम्पतियों को समाज हेय दृष्टि से देखता है। ‘बच्चों की फौज’ कहकर उन पर व्यंग्य किया जाता है। तीसरी ओर, पौष्टिक, प्रदूषण तथा मिलावट रहित भोजन के अभाव में आज की नारी सचमुच ‘कोमलांगी’ विशेषण को सार्थक करती है। वह दो बच्चे पैदा करने के बाद टूट जाती है। चौथी ओर, पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में आज का नगरवासी नर-नारी सम्भोग का तो भरपूर आनंद लेना चाहता है, किंतु गर्भाधान से बचता है। पाँचवी ओर, नारी-शिक्षा ने नारी में जीवन- जीने की कला उत्पन्न की है। उसमें वह दो से अधिक संतान को भार मानने लगी है। छठी ओर, सरकार ने जीवन के हर क्षेत्र में नारी को प्रश्रय देकर पुरुष के बराबर खड़ा करने का जो अभियान छेड़ा है, उससे ‘पितृ ऋण’ से उऋण होने की संकल्पना खंडित हो रही है।
परिवार नियोजन का सरलतम उपाय है, राजकीय लाभ उठाने की पात्रता के लिए पंथ तथा संप्रदाय से ऊपर उठकर ‘दो संतान’ का प्रमाण-पत्र अनिवार्य कर दिया जाए। राजकीय लाभ उठाने में नौकरी, पदोन्नति से लेकर परमिट-कोटा लेने तक राशनकार्ड बनवाने या उसका नवीकरण करवाने से लेकर भवन निर्माण आदि के प्रमाण-पत्र तक, अपील करने से लेकर कोर्ट केस करने तक, सभी में परिवार नियोजन का प्रमाण-पत्र अनिवार्य कर देना चाहिए।
यदि परिवार नियोजन के महत्त्व को हमने नहीं समझा, तो एक दिन यह पुण्य भूमि भारत-भू पापमय नरक में परिवर्तित हो जाएगी। कविवर सुमित्रानंदन पंत के शब्दों में- नरक क्यों बने न जन-भू स्वर्ग / नहीं जब प्रजनन पर अधिकार।